खूनी औरत का सात खून – तृतीय परिच्छेद
अयाचित बन्धु उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे | राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः || (चाणक्य:) अस्तु, अब यह सुनिए कि कुर्सियों पर बैठ जाने पर उन नौजवान बैरिष्टर साहब ने मुझे सिर से पैर तक फिर अच्छी तरह निरख कर यों पूछा,–‘दुलारी तुम्हारा ही नाम है?” मैंने धीरे से […]