अध्याय ५: ससुराल रात झन-झन कर रही है। चारों ओर सन्नाटा है। निशाचरी जानवरों के सिवा और सभी जीव सोये हुए हैं। ऐसी गहरी रात में वह कौन स्त्री अकेली इस अटारी की खिड़की में बैठी झाँक रही है? युवती क्या किसी की बाट देख रही है? या किसी असह्य मनोवेदना से अभी तक सुख […]
अध्याय ४: साधु का आश्रम साधो अधमरे हींगन को कंधे पर लेकर उस जवांमर्द के पीछी एक पगडण्डी से जाने लगा। पगडण्डी के दोनों तरफ बबूलों की कतार खड़ी थी, एक तो अँधेरी रात, दुसरे तंग रास्ता, उन लोगों को बड़ी तकलीफ होने लगी। परन्तु साधो को उस तकलीफ से मन की तकलीफ अधिक थी। […]
अध्याय ३: मैदान में मुंशी हरप्रकाश लाल लंबे-लंबे डेग मारते चले जा रहे थे। वे डर को कोई चीज नहीं समझते थे। उनके पीछे-पीछे भीम-देह दलीपसिंह एक संदूक पीठ पर बाँधे लम्बी लाठी कंधे पर लिए मतवाले हाथी की तरह झूमता जाता था। दोनों चुरामनपुर गाँव को जा रहे थे, जहाँ मुंशी जी की ससुराल […]
अध्याय २ : पंछी का बाग़ मुंशी हरप्रकाश लाल जहाँ नाव से उतरे वहां से थोड़ी दूर पश्चिम जाने पर एक बाग़ मिलता है। किन्तु हम जिन दिनों की बात लिखते हैं उन दिनों वहां एक भयानक जंगल था, लोग इसको ‘पंछी का बाग़’ कहते हैं। इस नाम का कुछ इतिहास है:- लार्ड कार्नवालिस के […]
अध्याय १ : गंगा जी की धारा अगर आकाश की शोभा देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो, अगर चन्द्रमा की शोभा देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो, अगर खेतों की शोभा देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो, अगर सब शोभा एक साथ देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में […]