दर्द दिया जो तूने कितना अच्छा लगता है, आँखों का खारा पानी भी मीठा लगता है । धब्बों वाला चाँद नहीं, तेरा सुन्दर मुखड़ा, सुबह सुबह का सूरज घर में उतरा लगता है। यह जो नीला अम्बर है, तेरे शर्माने से, कहीं गुलाबी ना हो जाए ऐसा लगता है । तू गुलशन में पहुँचेगी तो […]
रात देर तक जागना और देर रात जाग जाना बड़ा भयंकर अंतर है दोनों परिस्थितियों में, पहली में जहां आप अपनी मर्ज़ी से जाग रहे हैं और वक़्त बिता रहे हैं मनपसंद कामों में किसी फ़िल्म या किताब या किसी की बातों में डूबे सुनहले भविष्य का सपना बुनते ख़ुश – ख़ुश जाग रहे होते […]
मेरे पंख रंग-बिरंगे, थोड़े बेजान जरा खुले, जरा बंद जैसे मेरा मन मेरा मन थका सा, थोड़ा टूटा कसक से ठिठकता, परतों में जैसे मेरी हँसी मेरी हँसी जग को खिलखिलाती खुद में मायूस, मगर मुसकाती जैसे मेरे नयन मेरे नयन सब कुछ देख, सब कुछ नकारते इंकार करते, कभी स्वीकारते जैसे […]
मैं जब भी व्यक्त हुआ आधा ही हुआ उसमें भी अधूरा ही समझा गया उस अधूरे में भी कुछ ऐसा होता रहा शामिल जिसमें मैं नहीं दूसरे थे जब उतरा समझ में तो वह बिल्कुल वह नहीं था जो मैंने किया था व्यक्त इस तरह मैं अब तक रहा हूँ अव्यक्त।
डर गईं अमराइयां भी आम बौराए नहीं, ख़ूब सींचा बाग हमने फूल मुस्काए नहीं। यार को है प्यार केवल जंग से, हथियार से, मुहब्बत के रंग मेरे यार को भाए नहीं। मंज़िलों के वास्ते खुदगर्जियाँ हैं इस कदर , हमसफ़र को गिराने में दोस्त शर्माए नहीं । रोज सिमटी जा रही हैं उल्फतों की चादरें […]
सूरज की आंखों में ढीठ बनकर देखते मुद्राओं की गर्मी पर बाजरे की रोटी सेकते हम चाह लेते तो दोनों पलड़े बराबर कर तुम्हारी अनंत चाहतों से अपने सारे हक तौलते सिले हुए होंठ और कटी ज़ुबान से बोलते हम चाह लेते तो पोखरे के गंदले पानी में आसमानी सितारे घोलते!
सभ्यता के दूसरे छोर पर अपने पैरों से एक गोरा दबाए बैठा है एक काले की गर्दन और काला चिल्ला रहा है- ‘आई कांट ब्रीद-आई कांट ब्रीद’ सभ्यता के इस छोर पर जन्मना स्वघोषित श्रेष्ठ कुछ इस तरह से बुने बैठे हैं मायाजाल जिसमें फंसा है अधिकतर का गला बोला भी नहीं जाता उनसे बोलें […]
जमाने की प्रेम – पाठशाला जब गुलाबों के बगीचे में लगा करती थी, मेरी कविता तब बूढ़ी नदी पर बने टूटे हुए पुल पर बैठ झरबेरी के फल खाया करती थी, और अब तुम्हारे घिसे – पुराने प्रेम की महापुरानी लालटेन इसकी नई गुलेल के निशाने पर है!
मैं एक पेड़ होना चाहता हूँ जिसके नीचे मेरी बेटियाँ खेलें घर-घर जिसकी डाल पर वे और सावन दोनों झूलें झूम झूमकर मैं चिड़िया होना चाहता हूँ कि ला सकूँ दूर देश से दाने और डाल सकूँ उनके मुँह में बड़े प्रेम से बड़े जतन से मैं अपनी बेटियों के लिये बनना चाहता हूँ जादूगर […]