सफरनामा सिंदबाद जहाजी का – कन्हैयालाल नंदन की बाल कथा
अरसा काफी लंबा गुजर चुका था. सिंदबाद के मन में यह लहर बार-बार दौड़ रही थी कि वह अपनी तिजारत को हिन्दुस्तान तक फैला दे. उसने एक दिन तय कर ही लिया कि वह हिन्दुस्तान जाएगा. उसने अपनी गठरियों में तिजारती सामान बाँध लिया. वह बसरा के लिए रवाना होने ही वाला था कि उसके पास एक आदमी दौड़ता हुआ आया. वह आदमी और कोई नहीं, वही हिंदबाद था जो बग़दाद की सड़कों पर टहलते हुए सिंदबाद के महल के नीचे आकर बैठ गया था. उसने बाइज्जत सिंदबाद को मशवरा दिया कि अब उसे समुद्री जहाज से जाने की ज़रुरत नहीं है. अब तो आपको हवाई जहाज से सफ़र करना चाहिए, वरना हिन्दुस्तान के लोग आपको निहायत पिछड़ा हुआ मानेंगे.
सिंदबाद ने मशविरे के लिए हिंदबाद का शुक्रिया अदा किया और अपना साफा संभालते हुए सोच में पड़ गया कि हवाई सफ़र पता नहीं कैसा हो. लेकिन तभी सिंदबाद को अपना पहला सफ़र याद आ गया. उसके जहाज के कप्तान ने एक बहुत बड़े कछुए की पीठ को एक टापू समझकर उसे उस टापू पर उतार दिया था और फिर बमुश्किल तमाम लहरों से लड़ता वह एक नामालूम किस्म के टापू से जा टकराया था. इस बार सारी मुसीबतों से बचने के लिए सिंदबाद ने इंटरनेशनल एयरलाइन्स के दरवाजे खटखटाए.
वहाँ एयरलाइन्स की अरबी महिला बुकिंग अफसर ने सिंदबाद की पगड़ी की तरफ़ एक निगाह डाली और अपनी एयरकंडीशन मुस्कान के साथ सिंदबाद से तशरीफ़ रखने को कहकर अंदर चली गई. सिंदबाद को छोकरी की मुस्कान पसंद आई, लेकिन उसका इस तरह अंदर चले जाना सिंदबाद को अच्छा नहीं लगा.
छोकरी लौटी और सिंदबाद से पासपोर्ट की मांग करने लगी. सिंदबाद समझ ही न पाया कि यह क्या बला है. उसने एक नहीं सात सफ़र किये थे, लेकिन कभी उससे पासपोर्ट नहीं माँगा गया था. बोला: ‘मेरा नाम सिंदबाद जहाजी है. मैं कई बार सफ़र कर चुका हूँ. किसी ने पासपोर्ट नहीं माँगा. यह क्या बला है?’
छोकरी ने ग्लूकोज डली हुई मुस्कान से सिंदबाद को समझाया कि पासपोर्ट और हेल्थ परमिट के बिना अब सफ़र करना मुश्किल होगा. हारकर उसे यह इंतजाम करना पड़ा. बहरहाल, सिंदबाद को एक दिन एक हवाई बंबई एअरपोर्ट पर ले ही आया. उतरकर सिंदबाद एयर टर्मिनल पर अपने सामान का इंतज़ार करने लगा. सामान एक ट्रैक्टर पर लदा हुआ आया और सरकते हुए रबर के फट्टे पर पटक दिया गया.
गठरियाँ कई थीं. एक में पुराने सोने के सिक्के बंधे थे. पोर्टर ने ज्योंही झटके के साथ गठरी को फट्टे की तरफ़ फेंका, सोने के सिक्के छर्र से बिखरकर फर्श पर घूमने लगे. तभी सफ़ेद वरदी पहने कस्टम अफसरों का काफिला पता नहीं कहाँ से आनन-फानन नमूदार हुआ और सिंदबाद को सिक्के बटोरते देखकर घेर लिया. सिंदबाद ने घबराई हुई आवाज में ऐलान किया कि उसका नाम सिंदबाद जहाजी है. इस बार उसने समुद्री सफ़र न करके हवाई यात्रा की है, यही गलती की है.
एक कस्टम अधिकारी आगे आकर बोले : ‘शुक्रिया ! लेकिन आपको सोना स्मगल करने के गुनाह में हमारे साथ पुलिस स्टेशन तक चलना होगा.’
‘गुनाह’ शब्द सुना तो सिंदबाद के होश फाख्ता हो गए- ‘मैंने कोई गुनाह नहीं किया. यह तो मेरी अपनी पूँजी है. मैं तिजारती आदमी हूँ. तिजारत के लिए अपने साथ अपनी रकम लेकर आया हूँ.’ सिंदबाद साहब बड़बड़ाते रहे और उन्हें पुलिस की हिफाज़त में तहकीकात के लिए चलता कर दिया गया. काफी जिल्लत-तवालत के बाद जनाब सिंदबाद जहाजी साहब अपने सामान की गठरियों के साथ कस्टम से बाहर आ पाए. एक कुली ने उनका सामान टैक्सी में रखा और बोला: ‘साहब, बख्शीश!’
सिंदबाद को हैरत हुई कि हिन्दुस्तान का आदमी भिखमंगा कैसे हो गया ! यह तो ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाने वाला देश है. सिंदबाद ने कस्टम से बचे हुए अपने सिक्कों में से एक सिक्का कुली की तरफ़ बढ़ा दिया.
सिंदबाद की टैक्सी बांद्रा हाईवे से होती हुई नरीमन पॉइंट की तरफ़ लपकती चली जा रही थी. बड़ा भीड़-भड़क्का, हंगामाई आलम था. सिंदबाद सकते में. या इलाही ये माजरा क्या है. जगह-जगह झंडियाँ, पोस्टर….टैक्सी वाले ने बताया कि आज हमारे देश में पार्लियामेंट का चुनाव हो रहा है.
‘पार्लियामेंट क्या बला है, भाई मेरे?’ सिंदबाद ने पूछा.
‘हमारे देश की हुकूमत चलाने के लिए जो लोग चुने जाते हैं, उनकी सभा का नाम है यह.’ टैक्सीवाला गर्व से बोला.
‘तो अब तुम्हारे यहाँ हुकूमत राजा नहीं चलाते?’ हैरत से सिंदबाद बोला.
‘राजे-महाराजों के दिन लद गए. अब तो वे भी आम आदमी की तरह चुनाव में खड़े होते हैं. देख रहे हो वह लंबी कतार, उस स्कूल के बाहर ! वह वोट डालने वालों की है.’ टैक्सीवाले ने बताया.
सिंदबाद घबराए. बोले: ‘भाई, यह हिन्दुस्तान ही है न ? मैं गलत जगह तो नहीं उतर गया? ऐसा करो तुम टैक्सी मोड़ लो और मुझे उस टापू में ले चलो, जहाँ मैं पिछली बार रुका था. वहाँ का राजा मुझे ज़रूर पहचान लेगा. यह तो वह जगह है ही नहीं, जहाँ मैंने अजदहों के बीच मांस के लोथड़ों से चिपटकर लाल-औ-गौहर, हीरे-जवाहरात बटोरे थे. भई, यहाँ से चलो.
टैक्सीवाला भौंचक्का होकर सोचने लगा कि यह कौन सी बला सिर पड़ी. कहाँ ढूँढू इसका वह टापू? बहरहाल उसने गाड़ी मोड़ दी और सबसे नजदीक उसे जो टापू समझ में आया, उसकी ओर चल पड़ा.
पता नहीं, कहाँ का जिक्र चला और सिंदबाद ने समुद्री जहाज़ों का जिक्र छेड़ दिया. उसका इशारा था कि टैक्सीवाला समुद्री सफ़र की बात चलाए तो बताए कि उसका नाम क्या है और उसने सात बार सफ़र करके कितना नाम और पैसा कमाया है.
टैक्सीवाला एक ही छंटा हुआ आदमी था. उसने जहाज़ों के नाम पर मझगांव डाक का जिक्र छेड़ दिया और उसे बताया कि अब हमारे यहाँ समुद्री जहाज खुद बनाए जाते हैं. लड़ाई वाले जहाज भी और मुसाफिरी जहाज भी. पूरे के पूरे जहाज एयरकंडीशन हैं. उस टैक्सीवाले की बातें सुनकर सिंदबाद को अपने पुराने सफ़र वाला जहाज पिद्दी सरीखा लगने लगा. उसका सिर घूम गया. कैसे टैक्सीवाले से पाला पड़ा. खैर, टैक्सी मार्वे बीच के पास मड द्वीप के सामने जा खड़ी हुई. ‘यह रहा आपका टापू’ टैक्सीवाला बोला. ‘यहाँ के राजा को बुलवाओ तो मैं जान लूँगा कि असली जगह आ गया हूँ.’ सिंदबाद ने कहा. टैक्सीवाला झुंझला उठा: ‘आपका दिमाग ख़राब हो गया है क्या? यह मड द्वीप है. यहाँ राजा-वाजा नहीं है कोई. हमारी अपनी हुकूमत है!’
सिंदबाद को लगा कि अब वह भटक रहा है. इसलिए टैक्सीवाले से नरमी से बोला: ‘भाई, मुझे प्यास लगी है. किसी चश्मे के पास ले चलो.’
टैक्सीवाला सीधा उसे लाया और जुहू के एक होटल में पटक गया. उसका सामान नीचे उतारा गया और उसे लिफ्ट में चढ़ाकर ऊपर ले जाया जाने लगा. लिफ्ट का दरवाजा बंद होते ही सिंदबाद घबराया. लिफ्ट ऊपर को चल पड़ी. जितनी देर लिफ्ट ऊपर को चली सिंदबाद की सांस रुकी रही. दरवाजा फिर खुला तो जान में जान आई. बड़ी हिम्मत करके बैरे से इशारे से पूछा. बैरा बोला : ‘लिफ्ट! ऊपर जाने की मशीन!’ सिंदबाद समझा कि बिलकुल ऊपर, खुदा के घर जाने की मशीन! कान पकड़ा कि अब कभी उसमें नहीं चढ़ेगा.
शानो-शौकत का तो वह आदी था ही, आलीशान होटल देखकर थोड़ी राहत मिली. उसे अपने कमरे की खिड़की से एक चुनाव केंद्र और दिख गया. उसने बाहर निकल कर किसी नौकर को बुलाने के लिए ताली बजाई. थोड़ी देर इंतज़ार भी किया, लेकिन कोई आया ही नहीं. हारकर वापस कमरे में घुस गया. तभी गलती से उसका हाथ एक बटन पर पड़ गया. अचानक कमरे में एक आवाज गूँजने लगी. सिंदबाद की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह आवाज कैसे और कहाँ से आ रही है. उसने दहशत में कमरे में जितने भी बटन दिख रहे थे, उन सबको दबा दिया. किसी के दबाने से बत्ती जली, किसी से पंखा चला. एक से घंटी भी बजी. एयरकंडीशनर चला. दरवाजा खोलकर बैरा अंदर आया. पूछा : ‘जी साहब, बुलाया आपने?’
सिंदबाद पसीने-पसीने हो रहा था. दहशत के मारे चेहरा सूख रहा था. बैरे को देखकर थोड़ी हिम्मत बंधी. बोला : ‘यह आवाज कहाँ से आ रही है?’ बैरे ने रेडियो का स्विच ऑफ कर दिया. आवाज बंद हो गई.
सिंदबाद खिसियाना होकर तौलिये से अपना मुंह पोंछने लगा. मैं अपने वतन जाना चाहता हूँ. बैरे ने उसकी बुकिंग करा दी. कुछ देर बाद देखा गया कि सिंदबाद का सामान फिर से टैक्सी में रखा जा रहा है. सिंदबाद एक ही दिन में हिन्दुस्तान से पनाह मांग गया. लौटकर एअरपोर्ट जाते हुए टैक्सीवाले ने पूछ लिया : ‘आप कहाँ के रहने वाले हैं साहब? कैसा लगा हिन्दुस्तान आपको?’
बस, यह पूछना था कि सिंदबाद फट पड़ा. बोला: ‘हिन्दुस्तान की तरक्की से मैं आजिज आकर भाग रहा हूँ प्यारे ! यहाँ वही नहीं मिलता, जिसे मैं खोजने निकला था.’ ‘आखिर क्या खोजने निकले थे आप?’ टैक्सीवाले ने पूछा.
खोजने निकला था आदमी. सो यहाँ भी मशीने बढ़ गईं, आदमी कम हो गया. हंगामाखेज जिंदगी है. दहशत हो रही है इन सबको देखकर. मैं अजदहों के बीच रह आया, नहीं डरा, लेकिन इन मशीनों की बेजानियत को दूर से ही देखकर घबरा गया हूँ. सिंदबाद बोल उठा.
एअरपोर्ट आ गया था. सिंदबाद हड़बड़ी में उतरा और अंदर चला गया. टैक्सीवाला गाड़ी लेकर आगे बढ़ गया. जब पीछे देखा, तब सिंदबाद का सामान उसी की गाड़ी में रह गया था. वह पुलिस स्टेशन जा रहा था कि उसे जमा करा दे. अंदर ही अंदर सोच रहा था कि अगर न जमा कराऊँ, घोंट जाऊं, तो किसी को क्या पता चलेगा. वह इसी उहापोह में था और सिंदबाद का जहाज उड़ा जा रहा था.