भ्रमरगीत सार का विरह शृंगार
आचार्य शुक्ल ने शृंगार को रसराज कहा है। कारण यह है कि शृंगार रस के सहारे मनुष्य के सभी भावों को व्यंजित किया जा सकता है। यद्यपि सूरदास के यहाँ शृंगार के दोनों पक्षों संयोग और वियोग का चित्रण मिलता है, तथापि सूरदास का मन ज्यादातर वियोग वर्णन में ही […]