पद्मावत-सिंहलद्वीप वर्णन खंड-द्वितीय पृष्ठ (मानसरोवर)-मलिक मुहम्मद जायसी
बसहिं पंखि बोलहिं बहु भाखा । करहिं हुलास देखि कै साखा ॥
भोर होत बोलहिं चुहुचूही । बोलहिं पाँडुक “एकै तूही”” ॥
सारौं सुआ जो रहचह करही । गिरहिं परेवा औ करबरहीं ॥
“पीव पीव”कर लाग पपीहा । “तुही तुही” कर गडुरी जीहा ॥
`कुहू कुहू‘ करि कोइल राखा । औ भिंगराज बोल बहु भाखा ॥
`दही दही‘ करि महरि पुकारा । हारिल बिनवै आपन हारा ॥
कुहुकहिं मोर सोहावन लागा । होइ कुराहर बोलहि कागा ॥
जावत पंखी जगत के भरि बैठे अमराउँ ।
आपनि आपनि भाषा लेहिं दई कर नाउँ ॥5॥
अर्थ: सिंहल द्वीप के बागों में विविध भाषा बोलने वाले पक्षी बसे हुए हैं, जो फलों से लदी डालियों को देख कर अपनी ख़ुशी व्यक्त करते हैं. प्रभात होते ही चुहचुही बोलने लगती है. पंडुक पक्षी भी उनके मुकाबले में बोलना प्रारंभ कर देते हैं. तोता और मैना चहचहाते हैं. लोटन कबूतर जमीन तक गिरते हुए आते हैं और गुटरगूं करते हैं. पपीहा पक्षी पिउ-पिउ की ध्वनि निकालते हैं. गडुरी पक्षी तुही-तुही की ध्वनि कर रहे हैं. कोयल कुहू-कुहू की आवाज़ कर रही है. भृंगराज पक्षी कई तरह की अवाजें निकालता है. महरी पक्षी ऐसी आवाज़ निकालती है जैसे दही-दही पुकार रही हो. हारिल पक्षी भी अपना हाल सुनाता है. कुहुकते हुए मोर सुहावने लग रहे हैं. कोए के बोलने का कोलाहल चारों ओर सुनाई दे रहा है.
संसार में जितने भी पक्षी हैं, वो सभी इस बगीचे में बैठे हैं और अपनी-अपनी भाषा में ईश्वर का नाम ले रहे हैं.
पैग पैग पर कुआँ बावरी । साजी बैठक और पाँवरी ॥
और कुंड बहु ठावहिं ठाऊँ। औ सब तीरथ तिन्ह के नाऊँ ॥
मठ मंडप चहुँ पास सँवारे । तपा जपा सब आसन मारे ॥
कोइ सु ऋषीसुर, कोइ सन्यासी । कोई रामजती बिसवासी ॥
कोई ब्रह्मचार पथ लागे । कोइ सो दिगंबर बिचरहिं नाँगे ॥
कोई सु महेसुर जंगम जती । कोइ एक परखै देबी सती ॥
कोई सुरसती कोई जोगी । निरास पथ बैठ बियोगी ॥
सेवरा, खेवरा, बानपर, सिध, साधक, अवधूत ।
आसन मारे बैट सब जारि आतमा भूत ॥6॥
अर्थ: यहाँ कदम-कदम पर कुएँ बावड़ियाँ बनी हुई हैं. उनके चारों ओर बैठने के लिए चबूतरे और उनमें चढ़ने-उतरने के लिए सीढ़ियाँ भी बनी हुई हैं. जगह-जगह जलाशय बने हुए हैं. ये सब और इनके नाम भी तीर्थों के समान हैं. चारों ओर मठ और मंडप शोभा दे रहे हैं, जहाँ जप-तप करने वाले आसन लगा कर बैठे हैं. इनमें कोई ऋषीश्वर है तो कोई संन्यासी. कोई राम की भक्ति पर विश्वास करने वाला है. कोई ब्रह्मचर्य धारण किये हुए हाई, तो कोई दिगंबर साधुओं की तरह नग्न बैठा है. कोई महेश्वर शिव का साधक है तो कोई देवी सती की भक्ति कर रहा है. कोई सरस्वती की साधना कर रहा है तो कोई सबसे निराश होकर योगी बन गया है.
श्वेताम्बर, वानप्रस्थी, सिद्ध, साधक और अवधूत सारे आसन लगा कर बैठे अपनी आत्मा को तपा कर शुद्ध कर रहे हैं.
मानसरोदक बरनौं काहा । भरा समुद अस अति अवगाहा ॥
पानि मोती अस निरमल तासू । अमृत आनि कपूर सुबासू ॥
लंकदीप कै सिला अनाई । बाँधा सरवर घाट बनाई ॥
खँड खँड सीढी भईं गरेरी । उतरहिं चढहिं लोग चहुँ फेरी ॥
फूला कँवल रहा होइ राता । सहस सहस पखुरिन कर छाता ॥
उलथहिं सीफ , मोति उतराहीं । चुगहिं हंस औ केलि कराहीं ॥
खनि पतार पानी तहँ काढा । छीरसमुद निकसा हुत बाढा ॥
ऊपर पाल चहूँ दिसि अमृत-फल सब रूख ।
देखि रूप सरवर कै गै पियास औ भूख ॥7॥
अर्थ: मानसरोवर का तो कहना ही क्या? भरे हुए समुद्र की तरह हिलोरें ले रहा है. उसका जल मोती की तरह स्वच्छ है. अमृत जैसे इस जल से सदैव कपूर की सुगंध आती है. मानसरोवर के घाटों को बनाने के लिए लंका द्वीप से शिलाएँ मंगाई गई हैं. उसके चारों तरफ घुमावदार सीढियाँ बनी हुई हैं, जिससे लोग चढ़ते-उतरते हैं. इस मानसरोवर में हजारों पंखुड़ियों वाले लाल कमल खिले हुए हैं. सीपों के उलट जाने से मोती निकल कर इस मानसरोवर में तैर रहे हैं, जिन्हें चुगते हुए हंस क्रीड़ा कर रहे हैं. सुनहले पंखों वाले पक्षी तैरते हुए सलोने लग रहे हैं. ऐसा लगता है, जैसे ये पक्षी सोने से ही बनाए गए हैं.
सरोवर के चारों ओर किनारों पर अमृत जैसे मीठे फलों वाले वृक्ष लगे हुए हैं. इस सरोवर को देख कर ही लोगों की भूख-प्यास मिट जाती है.
पानि भरै आवहिं पनिहारी । रूप सुरूप पदमिनी नारी ॥
पदुमगंध तिन्ह अंग बसाहीं । भँवर लागि तिन्ह सँग फिराहीं ॥
लंक-सिंघिनी, सारँगनैनी । हंसगामिनी कोकिलबैनी ॥
आवहिं झुंड सो पाँतिहिं पाँती । गवन सोहाइ सु भाँतिहिं भाँती ॥
कनक कलस मुखचंद दिपाहीं । रहस केलि सन आवहिं जाहीं ॥
जा सहुँ वै हेरैं चख नारी ।बाँक नैन जनु हनहिं कटारी ॥
केस मेघावर सिर ता पाईं । चमकहिं दसन बीजु कै नाईं ॥
माथे कनक गागरी आवहिं रूप अनूप ।
जेहि के अस पनहारी सो रानी केहि रूप ॥8॥
अर्थ: इस सरोवर में जो पनिहारिनें पानी भरने आती हैं, वो सभी पद्मिनी जाति की हैं. इनके शरीर से कमल की सुगंध आती है, जिसके कारण भँवरे उनके चारों ओर मंडराते हैं. उनकी कमर सिंहनी के समान पतली है, जबकि उनकी आँखें मृग के समान हैं. हंस जैसी उनकी चाल है और कोयल के जैसी आवाज़. ये झुंड के झुंड पंक्तियाँ बनाकर सरोवर तक आती हैं और इनका विविध तरीकों से जल भर कर जाना शोभा देता है. सिर पर सोने के कलश लिए हुए उनके मुख चन्द्रमा के समान प्रकाशित हो रहे हैं. ये नारियाँ जिसे भी अपनी कंटीली आँखों से देखती हैं, उस पर मानो कटार से प्रहार कर मार डालती हैं. उनके सिर के केशों काले मेघों के समान मुख को घेरे हुए हैं,जिनके बीच उनके सुडौल दांत बिजली के समान चमकते दिखाई दे रहे हैं. वे क्रीडाएं करती हुई आती जाती हैं.
अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी ये स्त्रियाँ कामदेव की मूर्तियों के समान लगती हैं. यह सोचने वाली बात है कि जिस रानी की पनिहारिनें इतनी सुंदर हैं, वह रानी यानी पद्मावती कितनी सुंदर होगी.
October 26, 2020 @ 10:50 am
बहुत अच्छी चीजें पोस्ट है जिससे सबको मदद मिलती है
October 26, 2020 @ 10:30 pm
आभार.