अध्याय ७: नौरतन का खँडहर डुमरांव से उत्तर नौरतन नाम का खंडहर है। कहते हैं राजा विक्रमादित्य की तरह राजा भोज के दरबार में भी नौरतन थे। राजा ने उनके लिए एक बैठक बनवाई थी। जिस समय का यह हाल है, उस समय नवरतन का खँडहर अनेक प्रकार की वृक्ष-लता आदि से बहरा होने के कारण एक जंगलमय पहाड़ जान पड़ता था। उसके चारों ओर भी एक घना जंगल था। वहां आदमी का प्रवेश नहीं था। रात की कौन कहे, दिन को भी कोई अकेला उस नौरतन के पास से जाने की हिम्मत नहीं करता था। लोगों का ऐसा विश्वास था कि वहां भूत-प्रेत और दैत्य रहते हैं। आधी रात के समय वहां एक औरत के गाने की आवाज सदा सुनी जाती थी, और कभी-कभी पीपल की लम्बी डाल पर पैर लटकाये, सफ़ेद कपड़ा पहने भूतनी भी चांदनी में बाल सुखाते देखी जाती थी।
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‘शो, डोंट टेल’ अंतराष्ट्रीय स्तर पर ‘शो, डोंट टेल’ एक टूल के रूप में लेखकों का पसंदीदा टूल बन चुका है। आप इस टूल के बारे में बात करते हुए कई लेखकों को पढ़ एवं सुन सकते हैं। वैसे यह जानना रुचिकर होगा,
अध्याय ६: सलाह पार्वती उसी अटारी में पलंग पर बेहोश पड़ी है, हिलती है न डोलती है। विधवा बहु उसके पास बैठी सेवा-शुश्रूषा करती है। मुंशी जी दालान में बैठकर ससुर जी के जख्मों पर जल में भिंगो-भिंगो कर पट्टी बाँध रहे हैं। दलीप सिंह सीढ़ी के नीचे खड़ा होकर चिलम पी रहा है। सभी चुप हैं। कोई कुछ नहीं बोलता है।
शरलॉक होल्म्स एवं ‘द न्यूगेट कैलेंडर’ विश्व के पटल पर जब भी क्राइम फिक्शन का नाम लिया जाता है तो वह जाने या अनजाने, परोक्ष य्य अपरोक्ष में, सर आर्थर कॉनन डायल के प्रसिद्ध किरदार ‘शरलॉक होल्म्स’ से जरूर जुड़ा होता है। ‘शरलॉक होल्म्स’ एक ऐसा किरदार है, जिसे लोग भुलाए नही भुलाते, डिटेक्शन की तुलना करने के लिए कई बार इस किरदार का नाम लिया जाता है। लगभग सभी जानते होंगे ही होंगे फिर भी बताना चाहूंगा कि शरलॉक होल्म्स का पदार्पण ‘द स्टडी इन स्कारलेट’ कहानी से हुआ। इसी कहानी में शरलॉक होल्म्स के मशहूर जोड़ीदार डॉ. जॉन वाटसन का भी उदय हुआ था।
अध्याय ५: ससुराल रात झन-झन कर रही है। चारों ओर सन्नाटा है। निशाचरी जानवरों के सिवा और सभी जीव सोये हुए हैं। ऐसी गहरी रात में वह कौन स्त्री अकेली इस अटारी की खिड़की में बैठी झाँक रही है? युवती क्या किसी की बाट देख रही है? या किसी असह्य मनोवेदना से अभी तक सुख की नींद नहीं सो सकी है? घर में एक दीया जल रहा है और एक पलंग पर एक विधवा सोयी हुई है। घर के पिछवाड़े से एक गीदड़ हुआँ- हुआँ करके भागा, फिर कई कुत्ते भों-भों करने लगे। विधवा की नींद टूटी।
कई बार, किसी लेख, किसी कहानी, किसी उपन्यास को लिखने के दौरान, लेखक खुद में ही नहीं रहता।
अध्याय ४: साधु का आश्रम साधो अधमरे हींगन को कंधे पर लेकर उस जवांमर्द के पीछी एक पगडण्डी से जाने लगा। पगडण्डी के दोनों तरफ बबूलों की कतार खड़ी थी, एक तो अँधेरी रात, दुसरे तंग रास्ता, उन लोगों को बड़ी तकलीफ होने लगी। परन्तु साधो को उस तकलीफ से मन की तकलीफ अधिक थी। डर के मारे वह सूख गया और उसके पीछे-पीछे जा रहा था। वह ताड़ गया था कि मुंशी जी नाजुक जगह में चोट लगने से बेहोश हो गए थे और अब होश में आकर मुझे पकड़े लिए जाते हैं। यह सोचकर उसका खून सूख जाता था कि मेरी क्या गति होगी। वह डर के मारे चुपचाप मुंशी जी के पीछे-पीछी जाने लगा। धीरे-धीरे आसमान साफ़ हो चला, अन्धकार की गहराई घाट गई। वे लोग जिस चिराग की रोशनी को ताकते हुए आते थे धीरे-धीरे उसके पास पहुँच कर देखा कि एक बड़े भारी पीपल के […]
मैं कभी-कभी अचरज में पड़ जाता हूँ कि जिस पुस्तक को मैं पढ़ रहा हूँ, उसे कितने लोगों ने पढ़ा होगा,
अध्याय ३: मैदान में मुंशी हरप्रकाश लाल लंबे-लंबे डेग मारते चले जा रहे थे। वे डर को कोई चीज नहीं समझते थे। उनके पीछे-पीछे भीम-देह दलीपसिंह एक संदूक पीठ पर बाँधे लम्बी लाठी कंधे पर लिए मतवाले हाथी की तरह झूमता जाता था। दोनों चुरामनपुर गाँव को जा रहे थे, जहाँ मुंशी जी की ससुराल थी। ठोरे पर से चुरामनपुर सड़क से जाने के बाद मैदान की पगडण्डी से जाना पड़ता था। मुंशी जी और दलीपसिंह धीरे-धीरे कई गाँव पार करके मैदान में जा पहुंचे। वहां जाने पर मुंशी जी को बड़ी ख़ुशी हुई। अगणित तारों से जुड़ा हुआ अनंत आकाश, चांदनी में सराबोर खेतों की हरियाली और शीतल-मंद बयार उनकी ख़ुशी चौगुनी करने लगी। मुंशी जी चलते-चलते गाने लगे –
लेखन में परफेक्शन परफेक्शन अर्थात पूर्णता, सिद्धि एवं प्रवीणता, आज के समय की जरूरत बन गयी है। हर चीज में परफेक्शन लाजमी होती जा रही है। आप जिस मशीन पर काम करते हैं, उसने परफेक्ट काम करना जरूरी है – आपका बॉस हमेशा आपसे परफेक्ट की उम्मीद लगाये बैठता है – आप भी किन्हीं अदाकारों, खिलाड़ियों से परफेक्ट की उम्मीद लगाए बैठते हैं – उसी तरह लेखक से हर पाठक को परफेक्शन की उम्मीद रहती है। लेकिन यह यहीं तक सीमित नही रहता, यहाँ तक कि लेखक भी अपनी कहानी को परफेक्ट बनाने में लगा रहता है। वैसे ये वाजिब बात भी है, जब तक लेखक परफेक्शन देगा नही तब तक पाठकों को वह कहां से नज़र आएगा।
अध्याय २ : पंछी का बाग़ मुंशी हरप्रकाश लाल जहाँ नाव से उतरे वहां से थोड़ी दूर पश्चिम जाने पर एक बाग़ मिलता है। किन्तु हम जिन दिनों की बात लिखते हैं उन दिनों वहां एक भयानक जंगल था, लोग इसको ‘पंछी का बाग़’ कहते हैं। इस नाम का कुछ इतिहास है:- लार्ड कार्नवालिस के समय में भोला पंछी नामक एक जबरदस्त डाकू था। वह किसी से पकड़ा नहीं जाता था। शाम को आपसे उसकी बातचीत होती। रात को वह बीस-पच्चीस कोस का धावा मारकर डाका डाल आता और सबेरे फिर वह वहीँ दिखाई देता। उसकी इस चाल के कारण लोग उसको पंछी कहते थे और यही उसका अड्डा था, इसलिए उसका नाम ‘पंछी का बाग़’ पड़ गया।
लेखकों के लिए, लेखन से लिया गया एक लंबा ब्रेक, उसके लिए एक श्राप के समान होता है। कभी-कभी ये ब्रेक जानबूझ कर लिए जाते हैं तो कभी स्थिति ऐसी बन आती है कि स्वतः ही ब्रेक लग जाता है। आपने अपने रोज लिखने की आदत से खुद को तोड़ लिया है या आप महीनों-हफ्तों से लिख रहे हैं लेकिन अचानक कुछ ऐसा घट जाता है, लेखन से मन उचट जाता है। कई स्थितियां उभर सकती हैं, इस बिंदु पर। ऐसी स्थितियों से उबरने में लिए आप एक दिन का ब्रेक लेते हैं, फिर दो दिन का, फिर यह सिलसिला चलता ही जाता है। आप अपने बंद लैपटॉप या धूल खाती डायरी को देखते रहते हैं।
अध्याय १ : गंगा जी की धारा अगर आकाश की शोभा देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो, अगर चन्द्रमा की शोभा देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो, अगर खेतों की शोभा देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो, अगर सब शोभा एक साथ देखना चाहते हो तो शरद ऋतु में देखो। आकाश में चन्द्रमा की खिलखिलाहट, तालाब में कमल की खिलखिलाहट, खेतों में धान की हरियाली, घर में नवरात्र की धूम, शरद ऋतु में सभी सुन्दर, सभी मनोहर हैं। इसी मनोहर समय दुर्गा पूजा की छुट्टी पाकर मुंशी हरप्रकाश लाल नाव से घर आ रहे थे। वे दानापुर के एक जमींदार के मुलाजिम थे। सूर्य डूब गया है, नीले आकाश में जहाँ-तहां दो-एक बड़े-बड़े बादल सुमेरु पर्वत की तरह खड़े हैं। चौथ के चन्द्रमा दिखाई दे रहे हैं परन्तु अभी तक उनकी चांदनी नहीं खिली है, इसी समय मल्लाहों ने डांड़ हाथ में लिए। गंगा […]
दिल्ली में बारिश का मौसम भी अजीब तरह से आता है। जहाँ मौसम विभाग कहता है कि आज बारिश होगी, तो उस दिन न होकर २ दिन लेट-लतीफी के साथ, बिल्कुल दिल्ली पुलिस की तरह देर से ही पहुँचती है। दिल्ली शहर की इस विशेषता के साथ ही इसे कुछ उन शहरों में गिना जाता है – जो कभी सोते ही नहीं हैं। दिन-रात, सुबह-शाम-दोपहर, सर्दी-गर्मी-बरसात, यह शहर बस दौड़ता-भागता ही नज़र आता है। रात के दो बज रहे थे – ऊपर से मूसलाधार बारिश – ऐसे मौसम में पालम विहार चौराहे की रोड नंबर २०१ पर, एक पान की दुकान का खुला होना अपने आप में आश्चर्य की बात थी। लेकिन यह आश्चर्य उस रास्ते से पहली बार गुजरने वालों को ही होता था। पूरे द्वारका में, एक यही पान की दुकान थी जो रात भर खुली रहती थी। वे मेडिकल शॉप, जो २४ घंटे खुले रहने का दावा […]
Nicely written. Nagpanchami is one of that festivals which combines the good vibes of conservating forests and their dependents. The…