अमृतसर से स्पेशल ट्रेन दोपहर दो बजे चली और आठ घंटों के बाद मुगलपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। अनेक जख्मी हुए और कुछ इधर-उधर भटक गए। सुबह दस बजे कैंप की ठंडी जमीन पर जब सिराजुद्दीन ने आंखें खोलीं और अपने चारों तरफ मर्दों, औरतों और बच्चों का एक उमड़ता समुद्र देखा तो उसकी सोचने-समझने की शक्तियां और भी बूढ़ी हो गईं। वह देर तक गंदले आसमान को टकटकी बांधे देखता रहा। यूं ते कैंप में शोर मचा हुआ था, लेकिन बूढ़े सिराजुद्दीन के कान तो जैसे बंद थे। उसे कुछ सुनाई नहीं देता था। कोई उसे देखता तो यह ख्याल करता की वह किसी गहरी नींद में गर्क है, मगर ऐसा नहीं था। उसके होशो-हवास गायब थे। उसका सारा अस्तित्व शून्य में लटका हुआ था। गंदले आसमान की तरफ बगैर किसी इरादे के देखते-देखते सिराजुद्दीन की निगाहें सूरज से टकराईं। तेज रोशनी उसके अस्तित्व की रग-रग […]
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सोना की आज अचानक स्मृति हो आने का कारण है। मेरे परिचित स्वर्गीय डाक्टर धीरेन्द्र नाथ वसु की पौत्री सस्मिता ने लिखा है : ‘गत वर्ष अपने पड़ोसी से मुझे एक हिरन मिला था। बीते कुछ महीनों में हम उससे बहुत स्नेह करने लगे हैं। परन्तु अब मैं अनुभव करती हूँ कि सघन जंगल से सम्बद्ध रहने के कारण तथा अब बड़े हो जाने के कारण उसे घूमने के लिए अधिक विस्तृत स्थान चाहिए। ‘क्या कृपा करके उसे स्वीकार करेंगी? सचमुच मैं आपकी बहुत आभारी हूँगी, क्योंकि आप जानती हैं, मैं उसे ऐसे व्यक्ति को नहीं देना चाहती, जो उससे बुरा व्यवहार करे। मेरा विश्वास है, आपके यहाँ उसकी भली भाँति देखभाल हो सकेगी।’ कई वर्ष पूर्व मैंने निश्चय किया कि अब हिरन नहीं पालूँगी, परन्तु आज उस नियम को भंग किए बिना इस कोमल-प्राण जीव की रक्षा सम्भव नहीं है। सोना भी इसी प्रकार अचानक आई थी, परन्तु वह […]
अच्छाई-बुराई की बात मैं नहीं जानता। कम-से-कम इतनी नहीं जानता कि सबके, और खासकर अपने, बारे में यह फैसला कर सकूँ कि हम अच्छे हैं कि बुरे। लेकिन उसके बिना जी न सकें, चल न सकें, चाह न सकें, ऐसा तो नहीं है! उसके लिए जानता हूँ कि वह अच्छी है। और यह भी जानता हूँ कि इस बात को जाने रहना, पकड़े रहना जरूरी है कि वह अच्छी है। सवेरे-सवेरे उससे मिलने गया था। यों तो अक्सर हम मिलते हैं, पर वह सवेरे सवेरे का मिलन कुछ बहुत विशेष था। मैं चौंककर उठा था, तो एक तो जिस स्वप्न से उठा था, वह मेरे मन पर छाया था; दूसरे आँख खोलते ही सामने देखा, बगुलों की एक छोटी-सी डार आकाश में उड़ी जा रही थी, तो पहले तो मैं इसमें उलझा; स्वप्न बहुत मीठा था, उसकी मिठास बिगड़ने का डर नहीं था, बल्कि उलझने से ही डर था, यों […]
दो में से क्या तुम्हे चाहिए कलम या कि तलवार मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति अजेय अपार अंध कक्षा में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान जला ज्ञान का दीप सिर्फ़ फैलाओगे उजियाली अथवा उठा कृपाण करोगे घर की भी रखवाली कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली, दिल ही नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे, और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे एक भेद है और वहाँ निर्भय होते नर -नारी, कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले, बादलों में बिजली होती, होते दिमाग में गोले जहाँ पालते लोग लहू में हालाहल की धार, क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में नहीं हुई तलवार
बयान – 1 पाठक समझ ही गये होंगे कि रामशिला के सामने फलगू नदी के बीच में भयानक टीले के ऊपर रहने वाले बाबाजी के सामने जो दो औरतें गई थीं वे माधवी और उसकी सखी तिलोत्तमा थीं। बाबाजी ने उन दोनों से वादा किया था कि तुम्हारी बात का जवाब कल देंगे इसलिए दूसरे दिन वे दोनों आधी रात के समय फिर बाबाजी के पास गईं। किवाड़ खटखटाते ही अंदर से बाबाजी ने दरवाजा खोल दिया और उन दोनों को बुलाकर अपने पास बैठाया। बाबा – कहो माधवी अच्छी हो! माधवी – अच्छी क्या रहूंगी, अपने किये को पछताती हूं! बाबा – अब भी अपने को सम्हालो तो मैं वादा करता हूं कि राजा वीरेंद्रसिंह से कहकर तुम्हारा राज्य तुम्हें दिलवा दूंगा। माधवी – अजी अब भीख मांगने की इच्छा नहीं होती, अब तो जहां तक बन पड़ेगा अपने दुश्मनों को मार के ही कलेजा ठंडा करूंगी और चाहे […]
बयान – 15 आधी रात से ज्यादे जा चुकी है। गयाजी में हर मुहल्ले के चौकीदार ‘जागते रहियो, होशियार रहियो’ कह-कहकर इधर से उधर घूम रहे हैं। रात अंधेरी है, चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ है। यहां का मुख्य स्थान विष्णु-पादुका है, उसके चारों तरफ की आबादी बहुत घनी है मगर इस समय हम गुंजान आबादी में न जाकर उस मुख्तसर आबादी की तरफ चलते हैं जो शहर के उत्तर में रामशिला पहाड़ी के नीचे आबाद है और जहां के कुल मकान कच्चे और खपड़े की छावनी के हैं। इसी आबादी में से दो आदमी स्याह कम्बल ओढ़े बाहर निकले और फलगू नदी की तरफ रवाना हुए। रामशिला पहाड़ी से पूरब फलगू नदी के बीचोंबीच में एक बड़ा भयानक ऊंचा टीला है। उस टीले पर किसी महात्मा की समाधि है और उसी जगह पत्थर की मजबूत बनी हुई कुटी में एक साधु भी रहते हैं। उस समाधि और कुटी के […]
बयान – 11 हम ऊपर के बयान में सुबह का दृश्य लिखकर कह आये हैं कि राजा वीरेंद्रसिंह, कुंअर आनंदसिंह और तेजसिंह सेना सहित किसी तरफ को जा रहे हैं। पाठक तो समझ ही गये होंगे कि इन्होंने जरूर किसी तरफ चढ़ाई की है और बेशक ऐसा ही है भी। राजा वीरेंद्रसिंह ने यकायक माधवी के गयाजी पर धावा कर दिया जिसका लेना इस समय उन्होंने बहुत ही सहज समझ रखा था, क्योंकि माधवी के चाल-चलन की खबर बखूबी लग गई थी। वे जानते थे कि राजकाज पर ध्यान न दे दिन-रात ऐश में डूबे रहने वाले राजा का राज्य कितना कमजोर हो जाता है। रैयत को ऐसे राजा से कितनी नफरत हो जाती है और किसी दूसरे नेक धर्मात्मा के आ पहुंचने के लिए वे लोग कितनी मन्नतें मानते रहते हैं। वीरेंद्रसिंह का खयाल बहुत ही ठीक था। गया पर दखल करने में उनको जरा भी तकलीफ न हुई, […]
बयान – 6 कुंअर इंद्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर जो होगा देखा जायगा मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर भी कुंअर इंद्रजीतसिंह कमरे के अंदर सुनहले पावों की चारपाई पर आराम कर रहे हैं और एक लौंडी धीरे-धीरे पंखा झल रही है। हम ठीक नहीं कह सकते कि उन्हें नींद दबाये हुए है या जान-बूझकर हठियाये पड़े हैं और अपनी बदकिस्मती के जाल को सुलझाने की तरकीब सोच रहे हैं। खैर इन्हें इसी तरह पड़े रहने दीजिए और आप जरा तिलोत्तमा के कमरे में चलकर देखिए कि वह माधवी के साथ किस तरह की बातचीत कर रही है। माधवी का हंसता हुआ चेहरा कहे देता है कि बनिस्बत और दिनों के आज वह खुश है, मगर तिलोत्तमा के चेहरे से किसी तरह की […]
दूसरा भाग बयान-1 घंटा भर दिन बाकी है। किशोरी अपने उसी बाग में जिसका कुछ हाल पीछे लिख चुके हैं कमरे की छत पर सात-आठ सखियों के बीच में उदास तकिए के सहारे बैठी आसमान की तरफ देख रही है। सुगंधित हवा के झोंके उसे खुश किया चाहते हैं मगर वह अपनी धुन में ऐसी उलझी हुई है कि दीन-दुनिया की खबर नहीं है। आसमान पर पश्चिम की तरफ लालिमा छाई है। श्याम रंग के बादल ऊपर की तरफ उठ रहे हैं, जिनमें तरह-तरह की सूरतें बात की बात में पैदा होती और देखते-देखते बदलकर मिट जाती हैं। अभी यह बादल का टुकड़ा खंड पर्वत की तरह दिखाई देता था, अभी उसके ऊपर शेर की मूरत नजर आने लगी, लीजिए, शेर की गर्दन इतनी बढ़ी की साफ ऊंट की शक्ल बन गई और लमहे-भर में हाथी का रूप धर सूंड दिखाने लगी, उसी के पीछे हाथ में बंदूक लिए एक […]
बयान – 11 सूर्य भगवान अस्त होने के लिए जल्दी कर रहे हैं, शाम की ठंडी हवा अपनी चाल दिखा रही है। आसमान साफ है क्योंकि अभी-अभी पानी बरस चुका है और पछुआ हवा ने रुई के पहल की तरह जमे हुए बादलों को तूम-तूमकर उड़ा दिया है। अस्त होते हुए सूर्य की लालिमा ने आसमान पर अपना दखल जमा लिया है और निकले हुए इंद्रधनुष पर की शोभा और उसके रंगदार जौहर को अच्छी तरह उभाड़ रखा है। बाग की रविशों पर जिन पर कुदरती भिश्ती अभी घंटा भर हुआ छिड़काव कर गया है, घूम-घूमकर देखने से धुले-धुलाये रंग-बिरंगे पत्तों की कैफियत और उन सफेद कलियों की बहार दिल और जिगर को क्या ही ताकत दे रही है जिनके एक तरफ का रंग तो असली मगर दूसरा हिस्सा अस्त होते हुए सूर्य की लालिमा पड़ने से ठीक सुनहला हो रहा है। उस तरफ से आये हुए खुशबू के झपेटे […]
बयान – 6 बहुत-सी तकलीफें उठाकर महाराज सुरेंद्रसिंह और वीरेंद्रसिंह तथा इन्हीं की बदौलत चंद्रकांता, चपला, चंपा, तेजसिंह और देवीसिंह वगैरह ने थोड़े दिन खूब सुख लूटा मगर अब वह जमाना न रहा। सच है, सुख और दुख का पहरा बदलता रहता है। खुशी के दिन बात की बात में निकल गये कुछ मालूम न पड़ा, यहां तक कि मुझे भी कोई बात उन लोगों की लिखने लायक न मिली, लेकिन अब उन लोगों से मुसीबत की घड़ी काटे नहीं कटती। कौन जानता था कि गया-गुजरा शिवदत्त फिर बला की तरह निकल आवेगा किसे खबर थी कि बेचारी चंद्रकांता की गोद से पले-पलाए दोनों होनहार लड़के यों अलग कर दिए जाएंगे कौन साफ कह सकता था कि इन लोगों की वंशावली और राज्य में जितनी तरक्की होगी, यकायक उतनी ही ज्यादे आफतें आ पड़ेंगी खैर खुशी के दिन तो उन्होंने काटे, अब मुसीबत की घड़ी कौन झेले हां बेचारे जगन्नाथ […]
महादेवी वर्मा के जन्मदिन पर विशेष वर्तमान की कौन-सी अज्ञात प्रेरणा हमारे अतीत की किसी भूली हुई कथा को सम्पूर्ण मार्मिकता के साथ दोहरा जाती है, यह जान लेना सहज होता तो मैं भी आज गांव के उस मलिन सहमे नन्हे-से विद्यार्थी की सहसा याद आ जाने का कारण बता सकती, जो एक छोटी लहर के समान ही मेरे जीवन-तट को अपनी सारी आर्द्रता से छूकर अनन्त जलराशि में विलीन हो गया है। गंगा पार झूंसी के खंडहर और उसके आस-पास के गांवों के प्रति मेरा जैसा अकारण आकर्षण रहा है, उसे देखकर ही सम्भवत: लोग जन्म-जन्मान्तर के संबंध का व्यंग करने लगे हैं। है भी तो आश्चर्य की बात! जिस अवकाश के समय को लोग इष्ट-मित्रों से मिलने, उत्सवों में सम्मिलित होने तथा अन्य आमोद-प्रमोद के लिए सुरक्षित रखते हैं, उसी को मैं इस खंडहर और उसके क्षत-विक्षत चरणों पर पछाड़ें खाती हुई भागीरथी के तट पर काट ही […]
आज महादेवी के जन्मदिन पर…… चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! जाग तुझको दूर जाना! अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले! या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले; आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया जागकर विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले! पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना! जाग तुझको दूर जाना! बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले? पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले? विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन, क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल के दल ओस गीले? तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना! जाग तुझको दूर जाना! वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया, दे किसे जीवन-सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया! सो गई आँधी मलय की वात का उपधान ले क्या? विश्व का अभिशाप क्या चिर नींद […]
बयान – 1 नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह के लड़के वीरेंद्रसिंह की शादी विजयगढ़ के महाराज जयसिंह की लड़की चंद्रकांता के साथ हो गई। बारात वाले दिन तेजसिंह की आखिरी दिल्लगी के सबब चुनार के महाराज शिवदत्त को मशालची बनना पड़ा। बहुतों की यह राय हुई कि महाराज शिवदत्त का दिल अभी तक साफ नहीं हुआ इसलिए अब इनको कैद ही में रखना मुनासिब है मगर महाराज सुरेंद्रसिंह ने इस बात को नापसंद करके कहा, कि ”महाराज शिवदत्त को हम छोड़ चुके हैं, इस वक्त जो तेजसिंह से उनकी लड़ाई हो गई यह हमारे साथ वैर रखने का सबूत नहीं हो सकता। आखिर महाराज शिवदत्त क्षत्रिय हैं, जब तेजसिंह उनकी सूरत बना बेइज्जती करने पर उतारू हो गए तो यह देखकर भी वह कैसे बर्दाश्त कर सकते थे? मैं यह भी नहीं कह सकता कि महाराज शिवदत्त का दिल हम लोगों की तरफ से बिल्कुल साफ हो गया क्योंकि उनका अगर […]
चित्रसेन चितउर गढ राजा । कै गढ कोट चित्र सम साजा ॥ तेहि कुल रतनसेन उजियारा । धनि जननी जनमा अस बारा ॥ पंडित गुनि सामुद्रिक देखा । देखि रूप औ लखन बिसेखा ॥ रतनसेन यह कुल-निरमरा । रतन-जोति मन माथे परा ॥ पदुम पदारथ लिखी सो जोरी । चाँद सुरुज जस होइ अँजोरी ॥ जस मालति कहँ भौंर वियोघी । तस ओहि लागि होइ यह जोगी । सिंघलदीप जाइ यह पावै । सिद्ध होइ चितउर लेइ आवै ॥ मोग भोज जस माना, विक्रम साका कीन्ह । परखि सो रतन पारखी सबै लखन लिखि दीन्ह ॥1॥ अर्थ: चितौड़ का राजा चित्रसेन था, उसने अपने किले को विचित्र परकोटों से सुसज्जित किया था. रत्नसेन ने उसके यहाँ जन्म लेकर उसके कुल को प्रकाशित कर दिया. ऐसे बालक को जन्म देने वाली माता भी धन्य है. पंडितों, विद्वानों और ज्योतिषियों ने उसके रूप और लक्षणों को देख कर उसके भविष्य के […]
Nicely written. Nagpanchami is one of that festivals which combines the good vibes of conservating forests and their dependents. The…