माया के तीन रूप होते हैं ,-कामिनी,कंचन ,कीर्ति ।इसी में एक माया जब दूसरी माया पर आकर्षित हो गयी तब तो गजब होना ही था।यानी एक देवी जी को कीर्ति की यशलिप्सा जाग उठी। इस कीर्ति को पाने का साधन बना एक यंत्र ।उस यंत्र को प्रणाम करके आँखे बंद करना और आंख खोलकर सबसे […]
कुछ समय पहले टीवी पर एक इश्तहार आता था जिसमें सब झूम झूम कर कहा करते थे कि “जो तेरा है वो मेरा है जो मेरा है वो तेरा” इस थीम को ध्येय वाक्य बना लिया चीन ने और चौदह देशों से सटी अपनी सीमाओं पर यही फार्मूला अपना लिया और हर तरफ हाथ पांव […]
“मैं उसके बिना जिन्दा नहीं रह सकती!” उन्होंने फैसला किया। “तो मर जाओ!” जी चाहा कह दूँ। पर नहीं कह सकती। बहुत से रिश्ते हैं, जिनका लिहाज करना ही पड़ता है। एक तो दुर्भाग्य से हम दोनों औरत जात हैं। न जाने क्यों लोगों ने मुझे नारी जाति की समर्थक और सहायक समझ लिया है। […]
मान्यवर सम्पादक जी! क्षमा चाहता हूँ कि इस बार अपके दीपावली अंक के लिए लेख न भेज सका। बात यह हुई कि जब पहली बार आपका पत्र आया, जिसमें आपने लिखा था कि इस वर्ष आपने अपने कुछ पुराने लिखने वालों को एक ही विषय पर लेख लिखने के लिए राजी किया है और […]
लाहौर पहुँच कर सीधा मसऊद के घर पहुँचा तो वह हजरत गायब थे। मालूम हुआ कि कहीं घूमने गये हैं। खैर, वो घूमने जाएँ अथवा जहन्नुम में, घर तो उनका मौजूद ही था। सामान रख कर अत्यन्त संतोष से नहाया-धोया। कपड़े बदले और उनके नौकर से कहा…”चाय लाओ!” यह नौकर भी कोई नया जानवर ही […]
एक दिन मिर्ज़ा साहब और मैं बरामदे में साथ साथ कुर्सियाँ डाले चुप-चाप बैठे थे। जब दोस्ती बहुत पुरानी हो जाए तो बातचीत की कुछ वैसी ज़रूरत बाक़ी नहीं रहती और दोस्त एक दूसरे की ख़ामोशी से लुत्फ़ उठा सकते हैं। यही हालत हमारी थी। हम दोनों अपने-अपने विचारों में डूबे थे। मिर्ज़ा साहब तो […]
लफ़्टंट पिगसन की डायरी का एक अंश इतने दिनों तक भारतवर्ष में रहने के पश्चात् मुझे यह ज्ञात हो गया कि सेना विभाग में काम बहुत ही कम है। खूब भोजन करना, घुड़सवारी करना, चाँदमारी करना, परेड करा देना, यही हम लोगों का काम था और सप्ताह में तीन-चार दिन सिनेमा देखना। मैंने अपने ऊपर […]
कायँ! कायँ !! कायँ !!! शाम का समय था। चचा छक्कन शेख साहब के साथ हमेशा की तरह शतरंज खेल रहे थे। मिर्जा साहब हुक्का पीते जाते थे और कभी-कभी किसी अच्छी चाल पर खुश होकर दोनों की तारीफ भी करते जाते थे, कि इतने में शेख साहब बोले-“देखिए, जरा सँभल कर चलिए, उठा […]
‘रोमांस’ के लिए हिन्दी में कोई उपयुक्त शब्द नहीं मिलता। हमारे अय्याजी यद्यपि संस्कृतज्ञ थे, किन्तु इस शब्द के साथ उनका संबंध ठीक उसी तरह जुड़ गया था, जैसे मलहम के साथ पट्टी। अंग्रेजी न जानने पर भी वे रोमांस का रहस्य समझते अवश्य थे। हमारी यह धारणा और भी बलवती हो गई, जब उन्होंने […]