जनवरी की एक सर्द सुबह थी। बर्फ़ीली हवा हड्डियों से गुजर खून जमा देने पर उतारू थी। स्टॉप पर खड़े सभी यात्री अपने-अपने तरीक़े से ठंड से बचाव किए हुए थे। वो दोनों भी गर्म कपड़ों से ख़ुद को […]
पायल की नींद अचानक टूट गई। घड़ी देखी तो सुबह के सात बजे थे। तभी, नौकर चाय लेकर आया और सामने टेबल पर रखकर चला गया। पायल का मन अभी और सोने का कर रहा था, तभी उसकी नजर चाय के पास रखे अखबार पर गई। मुखपृष्ठ पर ही छपा था ‘कुमार हिमांशु देववर्मा को […]
“खाना बन गया??”- दरवाजा खुलते ही वो तेजी से भीतर दाखिल होकर वह गुर्राया। “न….नहीं”- सीमा सहमी सी बोली। “इतनी देर हो गयी? क्या घास छीलती रहती हो दिन भर? या शृंगार करती रहती हो? कोई काम होता है तुमसे? तुम्हे पता है मुझे कितना काम करना होता है?” वह दहाड़ा। “पर…” उसने कुछ कहना […]
2004 में प्रदर्शित ‘द डे आफ्टर टूमारो’ में पर्यावरण संकट के भयावह रूप को दिखाया गया था। यद्यपि यह एक काल्पनिक कथा थी, लेकिन पिछले 15 वर्षों में यह कल्पना जिस तेजी से यथार्थ में रूपांतरित होने की ओर बढ़ी है, वह कहीं से भी उस फिल्म की कहानी से कम भयावह नहीं है। वैश्विक […]
“अतीत की रीसती छत से मेरा वर्तमान ठोप- ठोप टपक रहा भविष्य के पेंदाहीन पात्र में” अभियन्यु अनत ( मॉरीशस के कवि ) कुली लाइंस एक साहित्यिक पुस्तक भर नहीं है, बल्कि इतिहास के उस दौर का चलचित्र (मनमोहन देसाई मार्का नहीं, बल्कि आर्ट मूवी की तरह) है, जिससे कि हममें से ज्यादातर लोग परिचित […]
साहित्य विमर्श पर कुंदन यादव की कई कहानियाँ आप पढ़ और सराह चुके हैं। पिछले दिनों कुंदन दक्षिण भारत की यात्रा पर थे। पढ़िये इस दक्षिण यात्रा का वृतांत कुंदन की विशिष्ट बनारसी शैली में बनारस में एक प्रचलित कहावत है, “बड़ा तेज बनत रहलन, ससुर दक्खिन लग गईलन”! […]
दिल्ली में एक सुल्तान थे सिकंदर लोदी। उनके एक छोटे भाई थे आलम खाँ। उनकी एक बेटी थी, जिसका नाम था गुलनार। गुलनार बेहद खूबसूरत थी। इतनी…जितना – ‘त्योहारों में घर चाहे जितना सजा लो, एक लड़की बिना हमेशा सजावट अधूरी। लड़की से ही घर की सबसे बड़ी सुंदरता है। चाहे झोपड़ी ही क्यों न हो। और महल […]
बुढ़ापे में चलने की ताकत भी कहाँ बची थी। पर नफीसा आज रुक भी तो नहीं सकती थी। आखिर उसने बड़ी मुश्किल और जद्दोजहद के बाद यह ठाना था। हाँफते लड़खड़ाते उसके कदम बस मंजिल तक पहुँचकर ही दम लेना चाहते थे। मंजिल….इसे लेकर भी तो नफीसा निश्चिंत नहीं थी। सोच रही थी….पता नहीं वहाँ […]
“प्रभु आये हैं द्वार पर साम्राज्ञी और प्रथम भिक्षा वे आप से ही चाहते हैं आज!” दासी की आवाज़ भर्राई हुयी थी और आँखों से आंसू टप टप टपक रहे थे मगर वो ये देख कर मन ही मन आश्चर्यचकित भी थी कि रानी यशोधरा की आँख में एक भी आंसू न था. हाँ कहीं […]