सर्वाइवल इंस्टिक्ट
बात सर्वाइवल की चल रही है
पीटर स्काइलबर्ग उमेआ, स्वीडन के गहरे जंगलों में एसयूवी गाड़ी लेकर घूम रहे थे। वहाँ बेतहाशा बर्फ़ बिखरी हुई थी। उनकी गाड़ी फंस गयी। ऐसी फंसी की गाड़ी के चारों तरफ बर्फ़ ही बर्फ़ हो गयी। जो लोग स्वीडन के बारे में नहीं जानते हैं उन्हें बता दूँ कि स्वीडन क्षेत्रफल में उत्तरप्रदेश से दोगुना बड़ा है लेकिन आबादी है कुल एक करोड़। पर इस साढ़े चार लाख किलोमीटर वर्ग में फैले देश में रहने लायक ज़मीन थोड़ी ही है।
ये आबादी और एरिया मैंने इसलिए बताया कि यूँ तो उमेआ एक छोटा सा शहर है पर यहाँ की आबादी एक लाख से भी कम है। इस गिनती की आबादी में से एक शख्स पीटर स्काइलबर्ग गाड़ी को बर्फ़ में फंसाकर ख़ुद अन्दर फंस गया। ठंड इतनी की हड्डियाँ जम जाएँ और सन्नाटा ऐसा कि मीलों दूर तक कोई बंदा न बन्दे की परछाई नज़र आए। पीटर के पास एक चीज़ अच्छी थी, उनका स्लीपिंग बैग। लेकिन गाड़ी को आख़िर कबतक गर्म रखते? पैदल निकलने की कोशिश करते तो भला कहाँ तक बर्फ़ में चलते? इन सबसे डर के पीटर ने गाड़ी के अन्दर रहना ही बेहतर समझा और ज़रा बहुत स्नैक्स के ख़त्म होने के बाद बर्फ़ तोड़कर खानी शुरु की।
मालन्यूट्रीशन की कमी से उनका शरीर तेज़ी से घटने लगा, विटामिन्स की कमी उन्हें तेज़ी से कमजोर करने लगी। कहते हैं अगर आपको खाना या न्यूट्रीशन्स न मिलें तो आप बड़ी हद 40 दिनों में शरीर त्याग देंगे। यहाँ न्यूट्रीशन तो अलग, सांस लेना भी एक समस्या थी क्योंकि बाहर की ठंडी हवा और -30 डिग्री में सांस लेना मतलब सुसाइड करना था।
ये घटना 19 दिसम्बर 2011 की थी, जब पीटर फंसे थे। फरवरी मिड में किसी राहगीर ने वो गाड़ी देखी, उत्सुकता में खोला तो देखा एक गठरी के ढेर सा आदमी पड़ा है। पीटर को वहाँ से हॉस्पिटल ले जाया गया तो पता चला वो ज़िन्दा है। मतलब दो महीने तक वो शख्स सिर्फ बर्फ़ खाकर और स्लीपिंग बैग में सोकर ख़ुद को ज़िन्दा रख सका। न कोई सुविधा न किसी किस्म का खाद्य पदार्थ उसके पास मौजूद था फिर भी वो ज़िन्दा बच गया? कैसे?
इसका एक अंदाज़ा डॉक्टर बर्ट ने लगाया, उन्होंने बताया कि पीटर के बचने की बहुत बड़ी वजह इग्लू इफेक्ट भी थी। उनकी गाड़ी के ऊपर दायें-बाएं हर तरफ बर्फ़ की मोटी चादर पड़ चुकी थी। गाड़ी दिखनी मुश्किल थी। लेकिन पीटर ज़रा बहुत शीशा-खोलकर ऑक्सीजन और कार्बन का क्रॉस वेंटिलेशन बनाए रखते थे। बर्फ़ में पानी ही क्रिस्टल बना जमा होता है और साथ बने होते हैं छोटे-छोटे ऑक्सीजन के पैकेट्स। बर्फ़ खाते वक़्त फ्रोज़ ऑक्सीजन तो पीटर के शरीर में गयी ही, साथ-साथ पानी मिलने से उसका शरीर डिहाइड्रेट नहीं हुआ। पानी की कमी न हुई। दूसरा, बर्फ़ की चादर ने उसको ठंडी हवाओं से बचाए रखा, तीसरी बात समझने के लिए इग्लू के बारे में जानना ज़रूरी है
इग्लू ‘बर्फिस्तान’ में बनाए जाने वाले बर्फ़ से ही बने घर होते हैं, जिसके अन्दर गर्मी रहती है। इग्लू का निर्माण कुछ इस तरह से होता है कि ज़मीन थोड़ी सी खोदकर उसका एंट्रेंस बनाया जाता है, फिर गोल बॉल जैसी शेप में इसकी छत होती है। मज़े की बात ये कि इसमें आप अन्दर आग भी जला लो, तो भी ये गलता नहीं है। क्यों?
क्योंकि इग्लू की छत के एक कोने में छेद किया जाता है ताकि कार्बन निकल सके। अब सोचो कि इस छेद से ठंडी हवा क्यों नहीं घुसती? वो इसलिए कि हवा आने का एक पैटर्न होता है, जबतक क्रॉस वेंटिलेशन नहीं बनेगा, तबतक हवा घर में नहीं घुसेगी। इसका एक प्रयोग आप अपने घर पर भी कर सकते हैं, आप बालकनी की खिड़की खोल दीजिए पर कमरे की एंट्रेस जाम कर दीजिए, आप पायेंगे कि बाहर सुहानी चलती ठंडी हवा आपके कमरे में एक ग्राम नहीं पहुँच सकेगी। वहीं कमरे का दरवाज़ा खोलते ही ऐसी हवा आयेगी कि आप पंखा बंद कर देंगे।
यही विज्ञान इग्लू में भी काम करती है, फिर भी ध्यान रखा जाता होगा कि जिस तरफ की हवा है उस तरफ छेद न किया जाए, उलटी तरफ किया जाए। अब इधर अन्दर आग जल रही है, गर्म हवा हमेशा ऊपर भागती है, ठंडी हवा नीचे रहती है, इग्लू के अंत में एक ऊँचा प्लेटफोर्म बनाकर वहीँ सोया जाता है ताकि गर्म हवा वहीं बनी रहे, दूसरी ओर बाहर से बर्फ़ पड़ ही रही होती है, अन्दर की बर्फ तभी गल सकती है जब लगातार उसपर गर्म हवा पड़े पर वो कार्बन के साथ-साथ निकलती भी जा रही है।
पॉइंट ये है कि पीटर स्काइलबर्ग कुछ अपनी समझबूझ, कुछ किस्मत और बाकी साइंस के सदके न सिर्फ ज़िन्दा बच गए बल्कि आज हट्टे-कट्टे भी हैं, इंटरव्यू देते नज़र आते हैं।
मोरल ये है कि मुसीबत के वक़्त पैनिक या उदास होकर आप आत्महत्या कर सकते हो पर सर्वाइवल इंस्टिक्ट, उम्मीद आपको ज़िन्दा रखने का कोई मौका नहीं छोड़ती है।
(शेयर करने से पहले पूछने की ज़रुरत नहीं)
जानकारी में इजाफा करने का क्रेडिट HuffingtonPosts को जाता है।
सर्वाइवलStories एपिसोड 1
#सहर
September 21, 2020 @ 7:50 pm
बढ़िया सीरीज रहेगी ये। बहुत साल पहले रीडर्स डाइजेस्ट में ऐसा एक कॉलम आया करता था(काफी साल से RD पढ़ा नही)।
November 2, 2020 @ 4:07 pm
बेहतरीन जानकारी।