टूटे तारे
“क्या लाऊँ, साहब?” बड़ी ही नम्रता से उसने पूछा. मैने सुबह के अखबार पर नज़र गड़ाए हुए ही कहा, “चाय…. एक चाय ले आओ, और हाँ, जरा कड़क रखना.”
वह फुर्ती से चला गया. कई घण्टे लगातार काम करने से उत्पन्न तनाव और दिसंबर की ठिठुरन के चलते मैं आफिस से निकलकर सीधा चाय के ढाबे पर ही आ बैठा था.
“साहब और कुछ चाहिए.” कहकर उसने चाय का गिलास मुझे थमा दिया और केतली से जलता हाथ सहलाने लगा था. मैने अखबार बेंच के एक कोने पर रख दिया. फिर एकटक उसकी ओर देखा. वह एक नौ दस वर्ष का गोरा- चिटठा सुन्दर बालक था, उसने एक मोटी चीकट सी फटी हुई शर्ट और फटी नेकर पहनी हुई थी. वह कड़कड़ाती ठण्ड से कांप रहा था. उस बालक की दयनीय दशा देख मेरे ह्रदय में हूक सी उठी और मन पसीज आया. मैने पर्श से सौ रूपये के दो नोट निकाल कर उसके हाथ पर रखते हुए कहा, “लो, रख लो बेटा.” फुटपाथ से स्वेटर, पैंट ले लेना.”
“जी साहब….. ले लूंगा.” उसके कुतूहल भरे नेत्रों में प्रसन्नता का स्वप्निल सागर लहरा उठा था. उसने इधर उधर देखकर शीघ्रता से रूपयों को अन्टी में खूंस लिया.
“साहब, और भी कुछ चाहिए क्या?” उसने पुनः पूछा था. वह बड़ी आत्मीयता से मुस्कुरा रहा था.
“नही, बस चाय ही.” फिर सहसा ही पूछा, “बेटा तुम्हारा नाम कया है?” जाने क्यूँ उसके प्रति मेरे मन में एक सहानुभूति पैदा हो गई थी.
“राज कुमार.” उसने बताया.
“अच्छा राज कुमार तुमने स्वेटर क्यूँ नही खरीदा?” मैने उसे फटी शर्ट में सर्दी से ठिठुरते स्वेटर विहीन देख आश्चर्य से पूछा.
एक क्षण को उसके मुख पर विवशता की लकीरें खिंच गई, पर दूसरे ही श्नण वह संभल कर प्रफुल्लित हो कहने लगा, “मेरी जिज्जी के ब्याह के लिए दादा ने ज़मीन गिरवी रख दी है और हमें जो रूपया मिले, उनसे दादा ने ब्याज चुका दिया. दादा की तबियत ठीक नहीं है. जब ज़मीन क़र्ज़ से छुट जायेगी तो मैं भी घर में अम्मा के पास रहूंगा.” उसकी भोली सी निर्दोष आँखों में भविष्य की सुखद आशाओं का सागर लहरा उठा था.
“साहब, अम्मा कहती हैं, ज़मीन छुट जाए फिर मैं भी स्कूल जाऊँगा. पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन जाऊँगा तो मैं भी कार चलाऊँगा.” राज कुमार मेरी सह्रदयता के चलते मुखर हो उठा था.
आज काफी समय बाद मेरा चाय के ढाबे पर आना हुआ था. मैं चाय की गुहार लगा कर अखबार उलट-पलट देखने लगा. थोड़ी ही देर में एक नए बालक ने केतली से चाय निकाल कर गिलास मेरे सामने रख दिया. मैने उससे अनायास ही पूछा, “राज कुमार कहाँ है?”
“बाबू जी, वह तो चोटटा था, तभी मालिक ने मार कर भगा दिया.”
“अच्छा….!” मैंने कहा तो पर विश्वास नहीं हुआ. हाँ, मन में एक कुतूहल पैदा हो गया, “क्या राज कुमार चोर हो सकता है?…. शायद…… नही, नही. वह चोरी नही कर सकता. मेरे मन ने मस्तिष्क में उभरे प्रश्न का उत्तर दिया. फिर मैने उस लड़के से पूछा, “अब राज कुमार कहाँ काम करता है?”
“वह…वह अब बीड़ी बनाता है. उधर है झुमका छाप बीड़ी का कारखाना, बाबू जी.” उसने ऊँगली उठा कर बताया.
चाय खत्म हुई तो अनचाहे ही मेरे कदम उधर उठ पड़े, जिधर का उस लड़के ने पता बताया था. थोड़ी ही दूर चलने के बाद मैं झुमका छाप बीड़ी के कारखाने के सामने था.
सामने से छोटे बड़े बालकों का झुंड आता दिखा. कुच्छेक ने हाथों में नोट पकड़े हुए थे, वे कारखाने के गेट से बाहर आ रहे थे. उनमे से कई तो टूटी बीड़ी के टुकड़े सुलगाकर कस खींचते धुंआ उड़ा रहे थे. बालकों के बीच मुझे राज कुमार नज़र आया. मैं उसे देखकर सन्न रह गया. वह भी बीड़ी का कस लगाकर खाँस रहा था. उसकी आँखों में पहले सी सपनीली चमक न थी. वह श्नमित, श्नुधि्त, कुम्हलाया-सा हांफ रहा था. मैंने हाथ के इशारे से उसे बुलाया, “अरे! यह क्या कर रहे हो तुम …….बीड़ी बनाने का काम कयों किया?” मेरी सहानुभूति पाकर मुखर हुआ वह, “साहब, आपने जो रूपया दिया था, वह अम्मा को दिया था. मेरे मालिक ने यह जान लिया था, उसने चोरी लगाकर शिकायत की. मुझे अम्मा ने बहुत मारा और भूखा भी रखा. मालिक ने पैसा भी ले लिया था साहब…..।” राज कुमार कहते कहते सुबक पड़ा, “और साहब मालिक ने दूसरा लड़का काम पर रख लिया और मुझे हटा दिया था, मगर साहब यह काम अच्छा है, पैसा रोज मिल जाता है. खाने-पीने का खर्चा चलता रहता है.” उसके मुख पर संतोष का भाव उभर आया था. पर उसकी आँखों में पहले सी स्वप्निल आभा न थी. लगा, जैसे सपनो के सप्तरंगी इंद्रधनुषों को हालात के काले बादलों का गृहण लग गया था. जीवन की क्रूर सच्चाईयों ने उस निर्धन बालक को कच्ची वय में ही आत्मनिर्भर बना दिया था और भविष्य की आशा के आकाश पर टिमटिमाने वाला एक नन्हा तारा टूट कर बिखर गया था.
September 12, 2020 @ 1:21 pm
Sahridaya aadmi ki meharbaani malik ki nazar me chori ban gai. Ye baaten baalman par kharonch daal gai. Baalak masumiyat khokar bhi apni sacchai sabit na kar sakaa.
Tabhi to abhishaap hai garibi. Ye bach pane se lekar masumiyat ,insaniyat ,sapne aur na jane kya-kya chheen leti hai .