पद्मावत-सिंहलद्वीप वर्णन खंड-तृतीय पृष्ठ-मलिक मुहम्मद जायसी
ताल तलाव बरनि नहिं जाहीं । सूझै वार पार किछु नाहीं ॥
फूले कुमुद सेत उजियारे । मानहुँ उए गगन महँ तारे ॥
उतरहिं मेघ चढहि लेइ पानी चमकहिं मच्छ बीजु कै बानी ॥
पौंरहि पंख सुसंगहिं संगा । सेत पीत राते बहु रंगा ॥
चकई चकवा केलि कराहीं । निसि के बिछोह, दिनहिं मिलि जाहीं ॥
कुररहिं सारस करहिं हुलासा । जीवन मरन सो एकहिं पासा ॥
बोलहिं सोन ढेक बगलेदी । रही अबोल मीन जल-भेदी ॥
नग अमोल तेहि तालहिं दिनहिं बरहिं जस दीप ।
जो मरजिया होइ तहँ सो पावै वह सीप ॥9॥
अर्थ: सिंहलद्वीप के ताल-तलैयों का वर्णन नहीं किया जा सकता ,क्योंकि उनकी संख्या का ही कोई ओर-छोर नहीं है. कमल के सफ़ेद फूलों के खिलने से चारों ओर उजाला छा गया है. तालाब में खिले कमल के फूल ऐसे लग रहे हैं जैसे आकाश में तारे उग आये हैं. बादल आकाश से नीचे उतरते हैं और जल भरकर ऊपर चले जाते हैं. तालाब में मछलियाँ यूं चमक रही हैं, जैसे आकाश में बिजली चमकती है. सफ़ेद, पीले और लाल रंग के पक्षी साथ-साथ तैर रहे हैं. अपने शाप के कारण रात में बिछड़ जाने वाले चकवा चकवी दिन में मिलने के बाद प्रेम भरी क्रीड़ा कर रहे हैं.सारस पक्षी भी किलोल करते हुए ख़ुशी व्यक्त कर रहे हैं कि उनका जीना-मरना एक साथ है. तरह-तरह के बगुले भी अपनी आवाजें निकाल रहे हैं, जबकि जल का संपूर्ण रहस्य जानने वाली मछलियाँ चुपचाप हैं.
इन तालाबों में बहुत सारे अमूल्य रत्न हैं,जिनकी चमक के कारण ये दिए की तरह जलते प्रतीत होते हैं. इन सीपों को वही पा सकता है जो अपने प्राणों को दांव पर लगा सके.
आस-पास बहु अमृत बारी । फरीं अपूर होइ रखवारी ॥
नारग नीबू सुरँग जंभीरा । औ बदाम बहु भेद अँजीरा ॥
गलगल तुरज सदाफर फरे । नारँग अति राते रस भरे ॥
किसमिस सेव फरे नौ पाता । दारिउँ दाख देखि मन राता ॥
लागि सुहाई हरफारयोरी । उनै रही केरा कै घौरी ॥
फरे तूत कमरख औ न्योजी । रायकरौंदा बेर चिरौंजी ॥
संगतरा व छुहारा दीठे । और खजहजा खाटे मीठे ॥
पानि देहिं खँडवानी कुवहिं खाँड बहु मेलि ।
लागी घरी ग्हट कै सीचहिं अमृतबेल ॥10॥
अर्थ: इन तालाबों के आसपास बहुत सारे अमृत समान फलों के बगीचे हैं.इनमें इतने फल हैं कि कभी ख़त्म नहीं होते. इनकी रक्षा करने के लिए रक्षक तैनात हैं. नारंगी,नींबू, शरीफा, बादाम ,कई तरह के अंजीर, गलगल आदि फल इन बगीचों में हैं. नारंगियाँ रस से भरकर अत्यंत लाल हो गयी हैं. अंगूर और सेब नए पत्तों के साथ फले हुए हैं. अनार तथा अंगूरों को देख कर मन प्रसन्न हो जाता है. हरफरौरी के फल शोभा दे रहे हैं. केलों के बड़े-बड़े गुच्छे (घौर) अपने बोझ से झुके जा रहे हैं. कमरख, शहतूत, लीची, करौंदे, बेर, चिरौंजी, संतरे और छुहारे दिख रहे हैं. खट्टे-मीठे मेवे भी लगे हुए हैं.
कुएँ की जल में खांड मिलाकर उस खांडयुक्त मीठे पानी से इन वृक्षों की सिंचाई की जाती है . कुओं से सींचने के लिए रहटें लगी हुई हैं.
पुनि फुलवारि लागि चहुँ पासा । बिरिछ बेधि चंदन भइ बासा ॥
बहुत फूल फूलीं घनबेली । केवडा चंपा कुंद चमेली ॥
सुरँग गुलाल कदम और कूजा । सुगँध बकौरी गंध्रब पूजा ॥
जाही जूही बगुचन लावा । पुहुप सुदरसन लाग सुहावा ॥
नागेसर सदबरग नेवारी । औ सिंगारहार फुलवारी ॥
सोनजरद फूलीं सेवती । रूपमंजरी और मालती ॥
मौलसिरी बेइलि औ करना । सबै फूल फूले बहुबरना ॥
तेहिं सिर फूल चढहिं वै जेहि माथे मनि-भाग ।
आछहिं सदा सुगंध बहु जनु बसंत औ फाग ॥11॥
अर्थ : फलों के बगीचों के चारों ओर फुलवारियाँ हैं. इन पुष्प वृक्षों में चंदन की सुगंध व्याप्त है. घनबेली, केवड़ा, चंपा, चमेली आदि विविध प्रकार के फूल खिले हुए हैं. लाल गुलाब, कदम्ब, कुब्जक और गुलबकावली जैसे सुगंधित फूलों से राजा गंधर्वसेन पूजा करते हैं. जूही,गेंदा,मालती,रेवती और हरसिंगार जैसे फूल हर तरफ़ लगे हुए हैं. सुदर्शन का फूल सुशोभित हो रहा है. सोनजुही और मौलश्री जैसे कई रंगों के फूल शोभा दे रहे हैं.
ये फूल सिर्फ सौभाग्यशालियों के माथे ही चढ़ सकते हैं. वर्ष भर इन फूलों में सुगंध व्याप्त रहती है.
सिंगलनगर देखु पुनि बसा । धनि राजा अस जे कै दसा ॥
ऊँची पौरी ऊँच अवासा । जनु कैलास इंद्र कर वासा ॥
राव रंक सब घर घर सुखी । जो दीखै सौ हँसता-मुखी ॥
रचि रचि साजे चंदन चौरा । पोतें अगर मेद औ गौरा ॥
सब चौपारहि चंदन खभा । ओंठँघि सभासद बैठे सभा ॥
मनहुँ सभा देवतन्ह कर जुरी । परी दीठि इंद्रासन पुरी ॥
सबै गुनी औ पंडित ज्ञाता । संसकिरित सबके मुख बाता ॥
अस कै मंदिर सँवारे जनु सिवलोक अनूप ।
घर घर नारि पदमिनी मोहहिं दरसन-रूप ॥12॥
अर्थ: इन बगीचों के बाद सिंहलद्वीप का नगर बसा दिखाई देता है. वह राजा धन्य है,जिसका नगर इतना सुंदर है. इस नगर में ऊंचे चबूतरों पर ऊंचे-ऊंचे महल बने हुए हैं. ऐसा लग रहा है, जैसे स्वर्ग में इंद्र का महल हो. यहाँ धनी और निर्धन सभी सुख से हैं. अर्थात् सभी एक समान हैं. जो भी चेहरा दिखता है, हँसता हुआ ही दिखाई देता है. घरों के आगे चंदन के चबूतरे हैं, जो अगरू,मेद और गोरोचन से सुवासित हैं. चौपालों में चंदन के खम्भे हैं, जिनसे पीठ टिका कर सभा के दौरान सभापति बैठते हैं. राजसभा देवताओं की सभा के समान प्रतीत होती है. नगर ऐसा लग रहा है, जैसे इंद्र की राजधानी पर नजर पड़ गई हो. यहाँ के निवासी गुणी और पंडित हैं, जो संस्कृत में ही बातें करते हैं.
यहाँ के भवन शिवलोक के समान सजे-संवरे हैं, जिनमें मन मोहने वाली पद्मिनी नारियाँ बसती हैं.
February 9, 2018 @ 8:30 pm
बढिया .