रामचंद्रचंद्रिका – केशवदास
सरस्वती वंदना
बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ, ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध ऋषिराज तपवृद्ध, कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।
भावी भूत वर्तमान जगत बखानत है, ‘केसोदास’ कयों हू ना बखानी काहू पै गई।
पति बर्नै चार मुख पूत बर्नै पाँच मुख, नाती बर्नै षटमुख तदपि नई नई॥
पंचवटी-वन-वर्णन
सब जाति फटी दु:ख की दुपटी कपटी न रहै जहँ एक घटी।
निघटी रुचि मीचु घटी हूँ घटी जगजीव जतीन को छूटी तटी।
अघ ओघ की बेरी कटी विकटी निकटी प्रकटी गुरु ज्ञान गटी।
चहुँ ओरन नाचति मुक्ति नटी गुन धूरजटी वन पंचवटी॥
अंगद
सिंधु तरयो उनको बनरा, तुम पै धनुरेख गई न तरी।
बाँधोई बाँधत सो न बन्यो उन बारिधि बाँधिकै बाट करी॥
श्रीरघुनाथ-प्रताप की बात तुम्हैं दसकंठ न जानि परी।
तेलनि तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराई जरी॥