द ब्लाइन्ड गेम #४
अगली सुबह अखबार के राजधानी की खबरों वाली पेज को राजधानी में हुए खबरों ने कवर किया हुआ था। पहली खबर अमितेश गुप्ता नामक एक एंटरप्रेन्योर की थी जिसकी लाश जनकपुरी डिस्ट्रिक्ट सेंटर के करीबी रोड पर लावारिश पाई गई थी। वहीं दूसरी खबर एक एक्सीडेंट की थी जो डी एन डी रोड पर हुआ था।
लियाकत और रज्जी, उस वक़्त शिवाजी पार्क, पंजाबी बाग स्थित मैक्स ग्लोबल पैकर्स एवं मूवर्स के वेयरहाउस में मौजूद थे। उन दोनों का वहां मूल काम हेल्पर्स का था जो मूवर्स एवं पैकर्स वाले काम में समान पैकिंग करने और फिर गाड़ी लोड करने का करते थे। दिन में उनके पास यही काम होता था जबकि रात में छोटे-मोटे आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होते थे। जिस रात भी वे शिकार पर निकलते थे, मात्र एक एक्ट का टारगेट रखते थे।
लियाकत के हाथ में अखबार था, उसने रज्जी को अपने करीब बुलाया।
“ओये, रज्जी इधर आ।”
रज्जी अपनी कुर्सी से बमुश्किल उठता हुआ, लेकिन सशंक भाव से, उसके करीब पहुंचा।
“क्या हुआ?” – रज्जी ने सवाल किया।
लियाकत ने अपनी सामान्य आवाज को दबाते हुए कहा – “भाई, कल रात वाली लाश पुलिस मिल गयी है।”
रज्जी बेपरवाह होकर बोला – “वो तो मिलनी ही थी, दिल्ली है भाई, कोई अपना यूपी नहीं।”
“अबे कल भारी गलती हो गयी अपने से?”
“भोंसड़ी के तेरे कारण हुई। – रज्जी ने उसे ताना देते हुए कहा – “तुझे उस कार को छेड़ने से मना कर रहा था, लेकिन तू माना नहीं।”
“भाई, मुझे तो दूर से लगा कि वो सेठ कोई मोटा माल उसमें रख रहा था, मुझे क्या पता था कि वह अपने कार की डिक्की में लाश रख रहा था।”
“लेकिन, भाई, कल रात हम दोनों बाल-बाल बचे।”
“हाँ, उस बहुमंजिला बिल्डिंग की बेसमेंट की पार्किंग में लाइट कम थी, इसी कारण से बच गए, वरना उस सेठ को पता चल जाता कि हम उस लाश को कारपेट समेत उसकी कार की डिक्की से बाहर निकाल चुके थे।”
“लेकिन मुझे अभी भी लगता है कि उस कारपेट को भी हमें लाश से लिपटे छोड़ देना चाहिए था।”
“भाई, बाद में तो छोड़ ही दिया न।”
“दोनों ही बातों में फ़र्क़ है भाई,” – रज्जी उसे समझाते हुए बोला – “तेरे कहने पर हमने उस लाश को डिस्ट्रिक्ट सेंटर के पीछे डंप किया, उस कारपेट को लेकर निकले, जब घर पहुंचे तब पता चला कि उस कारपेट पर खून ही खून था।”
लियाकत ने न्यूज़पेपर फेंकते हुए बोला – “अबे साले उसके बाद, उसे mcd की गाड़ी में फेंक आए न, बात खत्म।” – वह कुर्सी पर पसड़ गया – “ज्यादा लोड मत ले।”
“तेरे ज्यादा लालच करने के चक्कर में किसी दिन हम तिहार के मेहमान बनेंगे।” – रज्जी ने अखबार उठाया और उस खबर को पढ़ना शुरू किया जिसके कारण लियाकत ने उसे बुलाया था।
खबर के अनुसार – उस लावारिश लाश का केस – जनकपुरी ईस्ट थाने के पास था। खबर के मुताबिक लाश अमितेश गुप्ता नामक शख्स की थी जो एक स्टार्टअप कंपनी का सीईओ था।
***
प्रमोद तिवारी जनकपुरी थाने में पोस्टेड वह पुलिस अधिकारी था जिसके पास अमितेश गुप्ता नामक व्यक्ति के मर्डर का केस था। वह 40 के पेटे में पहुंचा हुआ, एक बड़ी तोंद वाला, सब इंस्पेक्टर था जिसकी कल रात जनकपुरी थाने में ड्यूटी थी। वह इकलौता उस थाने सब-इंस्पेक्टर लेवल का पुलिसिया था जिसे होमोसिडल केसेस का तजुर्बा था। बीती रात उसके लिए बहुत बुरी गुजरी थी, क्योंकि एक मर्डर केस का उस थाने में आने का मतलब था कि वह आने वाले कई दिनों तक बुरी तरह से व्यस्त रहने वाला था। आगे के दिनों का शेड्यूल तो फिर भी वह अपने अनुसार एडजस्ट कर सकता था पर पोस्टमॉर्टेम की रिपोर्ट आने तक उसकी ड्यूटी रोज 24 घंटे की चलने वाली थी।
इस समय वो सफदरजंग हॉस्पिटल स्थित पोस्टमॉर्टेम रूम के बाहर बैठा था। उसने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली, जो कि एम आई का स्मार्टवॉच था, फिर एक उंगली से उसके टचस्क्रीन को टच किया, समय साढ़े बारह बज रहा था। वह थाने में इस केस संबंधित प्राइमरी रिपोर्ट बना रहा था, जब उसे बताया कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने उसे 10:30 बजे उसे बुलाया था। वह लगभग 2 घंटे से, डॉक्टर के रूम में बैठकर डॉक्टर का इंतजार कर रहा था। वह जानता था कि उसके पेशे में कई बार गधे को भी बाप बनाना पड़ता था, जैसे कि यह डॉक्टर।
पोस्टमॉर्टेम करने वाला डॉक्टर लगभग पौने एक बजे अपने केबिन में दाखिल हुआ।
“सॉरी, तिवारी जी। आपको बहुत इंतज़ार करवाया लेकिन यकीन मानिए आपका ही काम कर रहा था।” – डॉक्टर अपनी चेयर पर बैठते हुए बोला।
तिवारी आश्चर्यचकित होकर बोला – “मेरा काम, क्या मतलब?”
“तुम्हारे थाने से जिस आदमी की लाश आयी है, उसका पोस्टमॉर्टम कर रहा था।”
“लेकिन मुझे तो बताया गया था कि पोस्टमार्टम हो चुका था।”
डॉक्टर ने एक पेपर निकाल कर अपने सामने रखते हुए कहा – “हुआ तो था लेकिन उसे मेरे जूनियर ने अंजाम दिया था। उस वक़्त मैं यहाँ मौजूद नहीं था। जब पहुंचा तो उसने मुझे जो रिपोर्ट सौंपी उससे मैं मुतमईन नहीं हुआ।”
एस आई प्रमोद तिवारी ने बात को पकड़ने की कोशिश की -“आपके जूनियर के रिपोर्ट में ऐसा क्या था जिससे आप मुतमईन नहीं हो पाए।”
“कुछ खास नहीं था, इसलिए तो मुतमईन नहीं हो पाया। वो नया लड़का है जिसे मर्डर केसेज के पोस्टमॉर्टेम को डील करना नहीं आता लेकिन फिर भी उसने पूरी ईमानदारी से, अपनी नॉलेज के अनुसार पोस्टमॉर्टम किया। क्योंकि रिपोर्ट पर मेरे सिग्नेचर होते और अगर यह कोर्ट केस का ऐसा मामला बनता जिसमे मेरी गवाही की जरूरत पड़ती तो मेरा स्टैंड उतना स्ट्रांग नहीं होता जितना की अब हो पायेगा।”
“ग्रेट। आपकी काम के प्रति निष्ठा काबिलेतारीफ है।”
“शुक्रिया, लेकिन काम के प्रति निष्ठा होने से काम में मन और दिल लगा रहता है, वरना सरकारी नौकरी हो या प्राइवेट, सबमें कर्मचारी के जल्दी ही निष्क्रिय होने की संभावना होती है।”
प्रमोद तिवारी ने सहमति में गर्दन हिलाते हुए कहा – “सहमत हूँ आपसे।” – उसने डॉक्टर के सामने रखे पेपर को देखते हुए, अपने उपरले जेब से एक ब्लेंक पेपर निकालते हुए कहा -“कुछ काम का मिला क्या उस आदमी के पोस्टमॉर्टम से?”
डॉक्टर ने अपने सामने रखे पेपर को पलटते हुए देखते हुए कहा -“मिला न तिवारी जी, सब बातों से इतर ये पता चला कि क़त्ल कल रात 8 से 12 बजे बीच किया गया था। इसको और एक्यूरेट तरीके से पिन-पॉइंट करने के लिए यह जानना है कि मृतक ने अपना आखिरी मील कब लिया था। उसके पेट में कुछ भोज्य पदार्थ के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो कम से कम 70% डाइजेस्ट नहीं हुए थे। हालांकि मैं अंदाजा लगा कर कह सकता हूँ कि का 9 से 11 के बीच हुआ है।”
तिवारी ने इसे नोट कर करते हुए कहा – “मैंने देखा कि मृतक को स्टैब किया गया था, यानी चाकू से उसको मौत के घात उतारा गया था।”
“हाँ, उसका क़त्ल चाकू से ही किया गया था। यह आम रसोइयों में पाया जाने वाला बड़े फल का चाकू होगा, जिससे क़ातिल ने कई वार, उसमें भी अंधाधुंध वार मृतक पर जिसमें कोई एक या दो घातक साबित हुआ। हालांकि मृतक की मृत्यु खून के अधिक बहने से हुआ है।”
“लगभग कितने वार क़ातिल ने किए होंगे?”
“लगभग नहीं, एक्यूरेट बताऊं तो 17 बार मृतक पर चाकू से वार हुआ।”
“लगता है, क़ातिल ने क्रोध की आग में मृतक पर अंधाधुंध वार किए।”
“एक और बात है, लाश के कंधे और पांवों पर घर्षण के निशान हैं जिससे लगता है, जहां मृतक की मृत्यु हुई, वहां से उसे हटाकर दूसरे स्थान पर ले जाया गया था।”
“हो सकता है। और कुछ खास?” – तिवारी प्रत्येक डिटेल को नोट करता जा रहा था।
“हाँ, एक खास बात है, जो आप लोगों के लिए बड़े काम की बात भी होगी।” – डॉक्टर ने एक पन्ने को पलट कर कहा -“लाश को किसी कारपेट में लपेटा गया था क्योंकि लाश के पहने हुए कपड़ों और नग्न बॉडी पार्ट्स पर कारपेट के रेशे प्राप्त हुए हैं।”
“इसका मतलब, लाश को एक स्थान से दूसरे स्थान तक कारपेट में लपेट कर मूव किया गया था लेकिन लाश जहां बरामद हुई वहां कोई कारपेट मौजूद नहीं था।”
“हो सकता है, तथ्य तुम्हारे सामने रखना मेरा काम था और उस तथ्य से किसी तर्क तक पहुंचना तुम्हारा काम है।”
“सही कहा।” – प्रमोद तिवारी ने उठते हुए कहा – ” पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की एक कॉपी मुझे प्राप्त हो पाएगी।”
“हाँ, एक कॉपी तुम्हारे लिए ही है।”
प्रमोद तिवारी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को प्राप्त किया और वहां से निकल पड़ा।
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#क्राइम_फिक्शन
©राजीव रोशन
द ब्लाइंड गेम #३
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