खूनी औरत का सात खून – छठवाँ परिच्छेद
सज्जनता
“किमत्र-चित्रं यत्सन्तः परानुग्रहतत्पराः।
न हि स्वदेहशैत्याय जायन्ते चन्दनद्रुमाः॥”
(कालिदासः)
पर, उस बात पर मैं अधिक ध्यान न देने पाई, क्योंकि भाईजी ने अबकी बार जरा बिगड़कर यों कहा, —“बस, बहुत हुआ, एक लड़की को अपने बड़ों के आगे इतना हठ और इतनी ढिठाई कभी न करनी चाहिए, इसलिए अब मैं तुम्हें यह आज्ञा देता हूँ कि तुम इन दोनों कंबलों में से एक को बिछा लो और दूसरे को ओढ़ कर सहूलियत से अपनी कोठरी में बैठ जाओ।”
यह सुनकर फिर मैंने कुछ भी न कहा और चुपचाप एक कंबल को धरती में डालकर मैं उस पर बैठ गई और दूसरे को मजे में मैंने ओढ़ लिया। सचमुच, उस समय मुझे बड़ा जाड़ा लग रहा था, क्योंकि सबेरे मैं ठंढे पानी से खूब नहाई थी! इसलिये भाईजी की इस डाँट-फटकार को मैंने मन ही मन अनेक धन्यवाद दिए और सर्दी से काँपते हुए कलेजे को धीरे-धीरे गरम किया।
भाईजी ने कहा,–‘ तुमने जो अपने इजहार में यह लिखाया था कि, ‘मेरे घर की सारी चीजें कालू वगैरह लूट ले गए थे।’ इस बात की जाँच मैंने तुम्हारे गाँव पर जाकर की थी, पर इस बात का ठीक-ठीक पता मुझे किसी ने भी न दिया। हां, तुम्हारी इस बात को तुम्हारे चचा ने जरूर सकारा था और उन्होंने मुझसे यों कहा था कि, ‘मैं जब इस घर में घुसा; तब इसमें एक बुहारी भी नहीं पाई गई थी।’ तुम्हारे चारों बैल भी गायब हैं और उनका कुछ भी पता नहीं है। जिस गाड़ी पर चढ़कर तुम अपने घर से रसूलपुर के थाने में गई थी, उस गाड़ी और उसके दोनों बैल का भी कुछ पता नहीं लगा कि वे क्या हुए, या उनपर किसने अपना कब्जा किया। मेरे दरयाफ्त करने से यह भी मालूम हुआ कि, ‘हिरवा नाऊ की मां हुलसिया भी अपने लड़के के खून होने के तीन-चार दिन बाद प्लेग से मर गई और हिरवा की नौजवान जोरू झलिया न जाने कहाँ चल दी। इसके अलावे, तुम्हारे इजहार में कहे हुए—हिरवा, नब्बू, धाना, परसा और कालू–ये पांचों तो खून हो ही चुके थे; और इन पांचों के अलावे बाकी के वे जो “घीसू, बहादुर, तिनकौड़ी, हेमू, कतलू, रासू और लालू वगैरह-सात आदमी थे, उनका भी पता मैंने लगाया; जिसपर मुझे यह मालूम हुआ कि प्लेग देवता इन सातों को भी चट कर गए हैं! केवल इतना ही नहीं, वरन तुम्हारे वे तीनों चरवाहे भी, जिनका नाम ढोंडा, घोंघा और फल्गू था, प्लेग की भेंट हो गए। फिर मैं रसूलपुर के चौकीदार दियानतहुसेन और रामदयाल से भी मिला, पर उन दोनों ने मुझसे वही बात कही, जो कि वे अपने-अपने इजहार में कह चुके हैं। अर्थात् उन दोनों ने यह कहा कि, “हां, दुलारी नाम की एक जवान लड़की बैलगाड़ी पर यहाँ आई थी, जिसे कोठरी में बन्द करके हींगन चौकीदार के साथ अब्दुल्ला थानेदार इस लड़की के गाँव पर पांच-पांच खून का पता लगाने उसी लड़की की बैलगाड़ी पर चढ़कर गए थे। पर रात को वे दोनों इक्के पर वापस आए और तब अब्दुल्ला ने इस चौकी पर के हम छओं चौकीदारों को बुलाकर यह हुकुम दिया कि, ‘अब तुम सब अपनी कोठरी में चले जाओ और जबतक तुम लोगों को हींगन चौकीदार या मैं न पुकारूं, तबतक अपनी कोठरी से हरगिज बाहर न निकलना क्योंकि अब मैं उस खूनी औरत से खून कबूल कराऊंगा, इसमें मुमकिन है कि वह खूब शोर गुल मचावे, इसलिये तुमसबों को यह हुकुम दिया जाता है कि इस औरत के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ सुनकर यहाँ हरगिज न आना और अपनी कोठरी के अंदर रहना। बस, अपने अफसर का ऐसा हुकुम सुनकर हम छओं चौकीदार अपनी कोठरी में आ बैठे। इसके बाद क्या हुआ, इस बात की ख़बर हम लोगों को नहीं हैं। हाँ, जब इस जवान लड़की ने हमलोगों की कोठरी के पास पहुंचकर हमलोगों को पुकारा और यह कहा कि, ‘ हींगन और अब्दुल्ला आपस में लड़ झगड़ कर कट मरे हैं, इसलिये तुमलोग उन्हें जाकर देखो। तब इतना सुनते ही हमलोग बहुत ही घबराए और तुरंत हमलोगों ने जाकर क्या देखा कि, “हींगन और अब्दुल्ला-दोनों मरे पड़े हैं, सारी कोठरी और तख्तपोश खून से रंग गया है, अब्दुल्ला का सिर कटा हुआ है, हींगन के कलेजे में तलवार घुसी हुई है और वे दोनों बेजान होकर तख्त पर लुढ़के पड़े हैं!” यह सब हाल देखकर हमलोग बहुत ही घबराए और रामदयाल इस वारदात की खबर करने तुरन्त कानपुर रवाने किया गया। बस, इतना ही हाल हमलोग जानते हैं, जो अपने इजहारों में लिखवा चुके और कचहरी में भी कह चुके हैं। और यह बात जो उस खूनी औरत ने अपने इजहार में कही है कि ‘रामदयाल ने मुझे दूध पिलाया’ यह बिल्कुल झूठ है। उसे किसी ने दूध तो क्या, पानी भी नहीं पिलाया। इसके अलावे, उस औरत की यह बात भी बिल्कुल झूठ है, जो कि उसने अपने बयान में रामदयाल और दियानतहुसेन का नाम लेकर अब्दुल्ला और हींगन के बारे में कही है, क्योंकि रामदयाल और दियानतहुसेन ने अब्दुल्ला और हींगन के खिलाफ इस औरत से कुछ भी नहीं कहा था। यहाँ तक कि उससे किसी भी चौकीदार ने किसी किस्म की भी बातचीत नहीं की थी।”
इत्यादि। बस, उन दोनों का बयान सुनकर फिर मैं कानपुर वापस आ गया।