नंदी की चोरी – दूसरे स्थान पर चयनित हल
“किसने की है चोरी?” सभी ने लगभग चौंकते हुए पूछा।
“बताता हूँ एक बार थाने वालों को भी आ जाने दो।” अनिल शर्मा ने ने सभी की और देखते हुए कहा।
कुछ ही मिनटों में थाने वाले भी आ गये।
“अरे अनिल तुम यहाँ कैसे?” थाने से आये पुलिस ऑफिसर जो की अनिल शर्मा का पुराना मित्र था ने अनिल को देखते ही कहा।
“आज पी सी आर पर नाईट ड्यूटी पर था वायरलेस पर चोरी का मेसेज मिला तो तूरंत पहुच गया।”
“अच्छा बताओ मामला क्या है?”
“एक कीमती मूर्ति चोरी हुई जिसकी कीमत लगभग 30-40 लाख की थी।” अनिल शर्मा संक्षिप्त में मामला समझाते हुए कहा।
“यार ये आज कल चोरो ने नाक में दम कर रखा है, सारी रात इनके पीछे भागते रहो।” थाने से आए पुलिस ऑफिसर ने कहा।
“तुम चिंता मत करो मामला सुलझ गया है, मैंने पता लगा लिया है चोरी किसने की है।” अनिल शर्मा ने ऑफिसर को दिलासा देते हुए कहा।
“किसने की है चोरी!” एक बार फिर सभी ने ये सवाल उठाया।
“दरअसल चोरी हुई ही नहीं है, नंदी की मूर्ति इसी घर में है।”
“ये क्या कह रहे हो आप?” मालविका ने तेज आवाज में कहा।
“सही कह रहा हूँ, यहाँ कोई चोरी नहीं हुई है। ये एक सोची समझी साजिश है जिसे अंजाम दिया है मालविका परिदा ने और ये पूरा प्लान और किसी का नहीं बल्कि खुद देबीप्रसाद परिदा का है।”
“क्या बकवास करते हों! पूरी दुनिया जानती है मैं एक कला प्रेमी हूँ और मैं भला अपने ही आर्टिकल को चुराने का क्यों प्लान बनाऊंगा।” अपनी व्हील चेयर पर घसीट कर आते हुए देबीप्रसाद ने कहा।
“अभी बताता हूँ देबीप्रसाद जी थोडा सा इत्मिनान रखिये।
हाँ तो हुआ ये की देबीप्रसाद जी जो की राजा महाराजाओं के खानदान से है को अपने गरीबी के दिन रास नहीं आ रहे थे और अपने आर्टिकल्स को वो बेचना नहीं चाहते थे तो गरीबी से छुटकारा पाने और अपना बुडापा सुधारने के लिये इन्होने ये प्लान बनाया।” अनिल शर्मा ने बोलने शुरू किया।
“ये पूरा प्लान था इंश्योरेंस कंपनी से पैसे हथियाने का। नंदी की मूर्ति जिसकी कीमत लगभग 30-40 लाख रूपये की थी और उसका इंश्योरेंस कीमत से दस गुना ज्यादा 30 करोड़ का था जबकि सबसे कीमती नटराज की मूर्ति का कोई इंश्योरेंस ही नहीं।”
“पर तुम इतना दावे के साथ कैसे कह सकते हो?” थाने से आये पुलिस ऑफिसर ने अनिल शर्मा से पूछा।”
“मालविका जी ने बताया की उस रात सिर्फ होटल से डिलीवरी बॉय खाना देने आया था और खाना लेते वक़्त उन्होंने भूल से दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया था और शायद उसी ने वो मूर्ति चुराई हो।
आज पूरी रात एक मिनट के लिये भी बारिश नहीं रुकी है और जब हम यहाँ पहुचे तब फर्श एकदम साफ़-सुथरा था और हमारे अन्दर आने से जूतों निशान फर्श पर बन गए थे उसे से पहले कोई और अन्दर आया हो ये मुझे बिलकुल नहीं लगता।
और जब हमने इंश्योरेंस के पेपर देखे तो उन सब में सबसे ज्यादा प्रीमियम नंदी वाली मूर्ति का था और वो एक ही महीने में खतम भी होने वाला था। देबीप्रसाद जी की मौजूदा हालत को देख कर लगता नहीं कि वो नंदी का अगला इंश्योरेंस प्रीमियम चुकाने की हालत मैं भी है।
जब मैं देबीप्रसाद के कमरे में गया तो वह खाना वैसा का वैसा रखा था। इतनी रात को खाने का आर्डर भी सिर्फ इसीलिये दिया गया ताकि शक की सुई राजेश मखीजा की और गुमाई जा सके।”
ये सब सुनकर मालविका सकते में आ गई और देबीप्रसाद के चेहरे पर भी हवाइयां उड़ने लगी।
“हवलदार इस घर की अच्छी तरह तलाशी लो जब तक मैं मालविका और देबीप्रसाद से पूछताछ करता अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।” पुलिस ऑफिसर ने अपने साथ आये दो हवलदारों को आदेश देते हुए कहा।
“तो क्या अब हम जा सकते है?” राजेश मखीजा के साथ आए मेनेजर ने पूछा।
“हाँ अभी आप लोग जा सकते है अगर जरुरत पड़ी तो आपको फिर बुलाया जा सकता है” अनिल शर्मा ने कहा।
कुछ ही देर में हवलदारों ने नंदी की मूर्ति को ढूंड निकाला। मूर्ति होटल से आये चाइनीज खाने के पैकेट से मिली थी। किसी को शक न हो इसीलिए मूर्ति को मंचूरियन के डब्बे में रख दिया था और मूर्ति का आकार में छोटा होना इसके लिये फायदेमंद रहा।
थोडा सख्ती से पूछताछ करने पर मालविका टूट गई और उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया। अनिल शर्मा की बात सही निकली थी ये पूरा खेल दोनों ने मिलकर इंश्योरेंस का पैसा हथियाने के लिये खेला था।
नंदी की चोरी का राज दिल्ली पुलिस ने कुछ ही घंटे में सुलझा लिया था। देबीप्रसाद और मालविका को झूठी रिपोर्ट करवाने और इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ साजिश के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। दिल्ली पुलिस के दिमाग और स्किल पर चढ़ी धुल शायद इस मुसलाधार बारिश में धुल गई थी।