आचार्य शुक्ल ने शृंगार को रसराज कहा है। कारण यह है कि शृंगार रस के सहारे मनुष्य के सभी भावों को व्यंजित किया जा सकता है। यद्यपि सूरदास के यहाँ शृंगार के दोनों पक्षों संयोग और वियोग का चित्रण मिलता है, तथापि सूरदास का मन ज्यादातर वियोग वर्णन में ही रमा है। सूरदास का भ्रमरगीत […]
हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार ‘कबीर ने ऐसी बहुत सी बातें कहीं है जिनसे समाज सुधार में सहायता मिलती है, इसलिए उन्हें समाज सुधारक समझना उचित है। वस्तुतः उनकी व्यक्तिगत साधना की परिधि इतनी व्यापक थी कि वह अनजाने ही समाज की समस्त विकृतियों को झकझोरती हुई ब्रह्म में लीन हो गयी।’ द्विवेदी जी के […]
‘झीनी-झीनी बीनी चदरिया’ अब्दुल बिस्मिल्लाह का सर्वाधिक चर्चित एवं प्रशंसित उपन्यास है। 1987 ई. में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित इस उपन्यास का कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। उपन्यास बनारस के साड़ी बुनकरों की ज़िंदगी पर आधारित है। वर्षों तक इन बुनकरों के जीवन के रेशे-रेशे को देखने के बाद लेखक […]
किसान प्रारंभ से ही प्रेमचंद की साहित्य सर्जना के केंद्र में रहा है. अपने पहले उपन्यास सेवासदन के ‘चैतू प्रसंग’ से ही प्रेमचंद यह आभास दे देते हैं कि उनके साहित्य की दशा और दिशा क्या होने वाली है. तिलिस्मी-अय्यारी और जासूसी के सस्ते मनोरंजन में गोते खा रहे हिंदी उपन्यास को प्रेमचंद जन समस्याओं […]
बचपन में जो मेलोडीज़ गुनगुनाते थे, साहित्यिक अभिरुचि जागने के बाद पता चला किन्हीं गोपाल दास ‘नीरज’ नाम के कवि ने उन्हें रचा है। साहित्य का विद्यार्थी होने पर तो नीरज जैसे मन में समा गए। लोकप्रिय साहित्य बनाम गंभीर साहित्य के विमर्श को आधुनिक कवियों में नीरज से ही सबसे ज्यादा चुनौती मिली। न […]
कवि सिंहलद्वीप, उसके राजा गन्धर्वसेन, राजसभा, नगर, बगीचे इत्यादि का वर्णन करके पद्मावती के जन्म का उल्लेख करता है। राजभवन में हीरामन नाम का एक अद्भुत सुआ था जिसे पद्मावती बहुत चाहती थी और सदा उसी के पास रहकर अनेक प्रकार की बातें कहा करती थी। पद्मावती क्रमश: सयानी हुई और उसके रूप की ज्योति […]
रस सिद्ध और मैथिली कोकिल के नाम से विख्यात विद्यापति आदिकालीन कवियों में अन्यतम हैं. संस्कृत, अवहट्ट और मैथिली – तीनों भाषाओं पर समान अधिकार रखने वाले विद्यापति अपनी रचनाओं में रसिक, चिंतक और भक्त की भूमिकाओं का समुचित निर्वाह करते नजर आते हैं. संस्कृत में पुरुष परीक्षा, भू परिक्रमा, शैव सर्वस्व सार, गंगा वाक्यावली […]
अद्वैत वेदान्त में सामान्यतः माया को ब्रह्म और जीव के बीच पड़े आवरण के रूप में जाना जाता है. यह माया ही है, जो जीव के ब्रह्म से अलग होने का भ्रम उत्पन्न करती है. जीव को ब्रह्म से विच्छिन्न करती है. कबीर दास जी भी माया को इसी भ्रम के रूप में देखते है. […]
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भक्ति को रहस्यवाद से जोड़ा है और इसे एक प्रतिक्रियावादी दर्शन मानकर कबीर की आलोचना की है. शुक्लजी के मत की समीक्षा करने से पहले आवश्यक है कि रहस्यवाद को समझा जाय. आमतौर पर उस कथन या अनुभव को रहस्यवाद की संज्ञा दी जाती है, जिसमें अज्ञात ब्रह्म की […]