ऐन आधी रात के वक्त कादिर मियाँ को मालूम हुआ कि खुदावन्द करीम ख्वाब में कह रहे हैं—अमाँ कादिर, तुम दुनिया के भोले-भाले बाशिन्दों को मेरा यह इलहाम सुना दो कि कल जुमेरात के दिन शाम की नमाज के बाद मैं आऊँगा, और उसी वक्त तमाम लोगों से मिल कर कयामत का दिन मुकर्रर करूँगा।” […]
संयोग की बात थी, मैं जिस दिन अपने वकील मित्र शिवराम के घर पहुँचा, उसी दिन मेरे मित्र के पुत्र की वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई जा रही थी। भोज में निमंत्रित व्यक्तियों में वेंकटेश्वर राव को देखकर मेरी बाँछे खिल गईं। उसी समय देखता क्या हूँ, एकदम उछलकर वह मुझसे गले मिले। कुशल-प्रश्नों की बौछार […]
रस-बूँद अमीरी और गरीबी के भेद के कारण टूटते पारिवारिक संबंधों की कहानी है। अमीरी प्राय: मनुष्य को अमानवीय एवं स्वार्थी बना देती है। इस बात को लेखक ने रामचरन के प्रति उसके चाचा और भाई लल्ला के हृदयहीन और निष्ठुर व्यवहार के माध्यम से व्यक्त किया है। एक ओर लल्ला खेल में रामचरन के […]
(1) बूढ़ा मनोहरसिंह विनीत भाव से बोला — “सरकार, अभी तो मेरे पास रुपए हैं नहीं, होते, तो दे देता। ऋण का पाप तो देने ही से कटेगा। फिर, आपके रुपए को कोई जोखिम नहीं। मेरा नीम का पेड़ गिरवी धरा हुआ है। वह पेड़ कुछ न होगा, तो पचीस-तीस रुपए का होगा। इतना पुराना […]
कभी अंबाला आना तो माल रोड आइयेगा । यहाँ खड़ा है एक बहुत पुराना, हवेलीनुमा, अभिशप्त सा मकान। राह पर जाते वक्त की झोली से जैसे गिरा हो और पड़ा रह गया हो सड़क किनारे। इस मकान में एक किराएदार होता था, जो यहाँ इस शान और ठसक से रहता था साहब कि क्या कोई […]
हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है। उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे। उनका नाम था अब्बू खाँ। उन्हें बकरियाँ पालने का बड़ा शौक था। बस एक दो बकरियाँ रखते, दिन भर उन्हें चराते फिरते और शाम को घर में लाकर बाँध देते। अब्बू गरीब थे और भाग्य भी उनका साथ नहीं देता […]
‘एल्प्स’ के सामने कारीडोर में अंग्रेजी-अमरीकी पत्रिकाओं की दुकान है। सीढ़ियों के नीचे जो बित्ते-भर की जगह खाली रहती है, वहीं पर आमने-सामने दो बेंचें बिछी हैं। इन बेंचों पर सेकंड हैंड किताबें, पॉकेट-बुक, उपन्यास और क्रिसमस कार्ड पड़े हैं। दिसंबर… पुराने साल के चंद आखिरी दिन। नीला आकाश… कँपकँपाती, करारी हवा। कत्थई रंग का […]
कोहरे की वजह से खिड़कियों के शीशे धुँधले पड़ गये थे। गाड़ी चालीस की रफ्तार से सुनसान अँधेरे को चीरती चली जा रही थी। खिड़की से सिर सटाकर भी बाहर कुछ दिखाई नहीं देता था। फिर भी मैं देखने की कोशिश कर रहा था। कभी किसी पेड़ की हल्की-गहरी रेखा ही गुज़रती नज़र आ जाती […]
कैमरे का बटन दबाते हुए अनन्त ने अपनी साथिन से कहा, “खींचने में कोई दस मिनट लग जाएँगे-टाइम देना पड़ेगा।” और बटन दबाकर वह कैमरे से कुछ अलग हटकर पत्थर के छोटे-से बेंच पर अपनी साथिन के पास आ बैठा। वह सारा दिन दोनों ने इस प्रतीक्षा में काटा था कि कब शाम हो और […]