हास्य व्यंग्य
तो मर जाओ !
“मैं उसके बिना जिन्दा नहीं रह सकती!” उन्होंने फैसला किया। “तो मर जाओ!” जी चाहा कह दूँ। पर नहीं कह सकती। बहुत से रिश्ते हैं, जिनका लिहाज करना ही पड़ता है। एक तो दुर्भाग्य से हम दोनों औरत जात हैं। न जाने क्यों लोगों ने मुझे नारी जाति की समर्थक […]
पत्नी-प्रेम
मान्यवर सम्पादक जी! क्षमा चाहता हूँ कि इस बार अपके दीपावली अंक के लिए लेख न भेज सका। बात यह हुई कि जब पहली बार आपका पत्र आया, जिसमें आपने लिखा था कि इस वर्ष आपने अपने कुछ पुराने लिखने वालों को एक ही विषय पर लेख लिखने के […]
छलाँग-शौकत थानवी
लाहौर पहुँच कर सीधा मसऊद के घर पहुँचा तो वह हजरत गायब थे। मालूम हुआ कि कहीं घूमने गये हैं। खैर, वो घूमने जाएँ अथवा जहन्नुम में, घर तो उनका मौजूद ही था। सामान रख कर अत्यन्त संतोष से नहाया-धोया। कपड़े बदले और उनके नौकर से कहा…”चाय लाओ!” यह नौकर […]
मरहूम की याद में- पतरस बुखारी
एक दिन मिर्ज़ा साहब और मैं बरामदे में साथ साथ कुर्सियाँ डाले चुप-चाप बैठे थे। जब दोस्ती बहुत पुरानी हो जाए तो बातचीत की कुछ वैसी ज़रूरत बाक़ी नहीं रहती और दोस्त एक दूसरे की ख़ामोशी से लुत्फ़ उठा सकते हैं। यही हालत हमारी थी। हम दोनों अपने-अपने विचारों में […]