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प्रथम स्मगलर (रामकथा क्षेपक)

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लक्ष्मण मेघनाद की शक्ति से घायल पड़े थे। हनुमान उनकी प्राण-रक्षा के लिए हिमाचल प्रदेश से “संजीवनी” नाम की दवा ले कर लौट रहे थे कि अयोध्या के नाके पर पकड़ लिए गए। पकड़ने वाले नाकेदार को पीटकर हनुमान ने लेटा दिया। राजधानी में हल्ला हो गया कि बड़ा “बलशाली” स्मगलर आया हुआ है। पूरा फ़ोर्स भी उसका मुकाबला नहीं कर पा रहा है।
आखिर भरत और शत्रुघ्न आए। अपने आराध्य रामचन्द्र के भाइयों को देखकर हनुमान दब गए।
शत्रुघ्न ने कहा – इन स्मगलरों के मारे हमारी नाक में दम है, भैया। आप तो सन्यास ले कर बैठ गए। मुझे भुगतना पड़ता है।
भरत ने हनुमान से कहा – कहाँ से आ रहे हो?
हनुमान – हिमाचल प्रदेश से
-क्या है तुम्हारे पास? सोने के बिस्किट, गांजा, अफीम?
-दवा है।
शत्रुघ्न ने कहा – अच्छा, दवाइयों की स्मगलिंग चल रही है। निकालो कहाँ है?
हनुमान ने संजीवनी निकालकर रख दी। कहा – मुझे आपके बड़े भाई रामचंद्र ने इस दवा को लेने भेजा है।
शत्रुघ्न ने भरत की तरफ देखा। बोले – बड़े भैया यह क्या करने लगे हैं। स्मगलिंग में लग गए हैं। पैसे की तंगी थी तो हमसे मंगा लेते। स्मगल के धंधे में क्यों फंसते हैं। बड़ी बदनामी होती है।
भरत ने हनुमान से पूछा- यह दवा कहाँ ले जा रहे थे? कहाँ बेचोगे इसे?
हनुमान ने कहा – लंका ले जा रहा था।
भरत ने कहा – अच्छा, उधर उत्तर भारत से स्मगल किया हुआ माल बिकता है। कौन खरीदते हैं? रावण के लोग?
हनुमान ने कहा – यह दवा तो मैं राम के लिए ही ले जा रहा था। बात यह है कि आपके भाईलक्ष्मण घायल पड़े हैं। वे मरणासन्न हैं। इस दवा के बिना वे नही बच सकते।
भरत और शत्रुघ्न ने एक दूसरे की तरफ देखा। तब तक रजिस्टर में स्मगलिंग का मामला दर्ज हो चुका था।
शत्रुघ्न ने कहा – भरत भैया, आप ज्ञानी हैं। इस मामले में नीति क्या कहती है? शासन का क्या कर्तव्य है?
भरत ने कहा – स्मगलिंग यों अनैतिक है। पर स्मगल किये हुए सामान से अपना या अपने भाई भतीजों का फायदा होता हो, तो यह काम नैतिक हो जाता है। जाओ हनुमान, ले जाओ दवा!
मुंशी से कहा – रजिस्टर का यह पन्ना फाड़ दो।

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Hareesh

सटीक व्यंग

Satyajeet Dhomey

A great satire and a very succinct comment on modern times…