खूनी औरत का सात खून – दसवाँ परिच्छेद
साया भ्रूचातुर्यात्कुष्चिताक्षाः कटाक्षाः स्निग्धा वाचो लज्जितांताश्च हासाः | लीलामंदं प्रस्थितं च स्थितं च स्त्रीणां एतद्भूषणं चायुधं च ‖ (भ्रतृहरि:) बस, इतने ही […]
साया भ्रूचातुर्यात्कुष्चिताक्षाः कटाक्षाः स्निग्धा वाचो लज्जितांताश्च हासाः | लीलामंदं प्रस्थितं च स्थितं च स्त्रीणां एतद्भूषणं चायुधं च ‖ (भ्रतृहरि:) बस, इतने ही […]
मायारानी का डेरा अभी तक खास बाग (तिलिस्मी बाग) में है। रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है। पहरे वालों के सिवाय सभी को निद्रादेवी ने बेहोश करके डाल रखा है, मगर उस बाग में दो औरतों की आँखों में नींद का नाम-निशान भी […]
दुर्दैव “यदपि जन्म बभूव पयोनिधौ, निवसनं जगतीपतिमस्तके । तदपि नाथ पुराकृतकर्मणा, पतति राहुमुखे खलु चन्द्रमाः ॥” (व्यासः) मैं सिर झुकाए हुए यों कहने लगी,– कानपुर जिले के एक छोटे से गाँव में मेरे माता-पिता रहते थे। उस गाँव का नाम आप जानते ही हैं, इसलिये अब मैं अपने मुँह […]
पाठकों को याद होगा कि भूतनाथ को नागर ने एक पेड़ के साथ बांध रखा है। यद्यपि भूतनाथ ने अपनी चालाकी और तिलिस्मी खंजर की मदद से नागर को बेहोश कर दिया मगर देर तक उसके चिल्लाने पर भी वहाँ कोई उसका मददगार न पहुंचा और नागर फिर से होश […]
हितोपदेश माता मित्रं पिता चेति स्वभावात् त्रितयं हितम्। कार्यकारणतश्चान्ये भवन्ति हितबुद्धयः॥ (हितोपदेशे) यों कहकर भाईजी फिर मुझसे बोले,–“ दुलारी, अब तुम अपना बयान मेरे आगे कह जाओ; पर इतना तुम ध्यान रखना कि इस समय जो कुछ तुम कहो, उसे खूब अच्छी तरह सोच-समझ कर कहना।” यों […]