राजा भोज ने जब खुदाई में प्राप्त राजा विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने का प्रयत्न किया तो सिंहासन की पहली पुतली रत्नमंजरी ने उन्हें रोकते हुए कहा- “हे राजन! राजा विक्रम के इस सिंहासन पर वही बैठ सकता है, जो उनकी तरह प्रतापी, दानवीर और न्यायप्रिय हो। मैं आपको राजा विक्रम की कथा सुनाती हूँ। […]
बहुत समय पहले राजा भोज उज्जैन नगर पर राज्य करते थे। राजा भोज एक धार्मिक प्रवृति के न्यायप्रिय राजा थे। समस्त प्रजा उनके राज्य में सुखी एवं सम्पन्न थी। सम्पूर्ण भारतवर्ष में उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई थी। राजा भोज के शासनकाल में प्रत्येक व्यक्ति संपन्न एवं सुखी था। कृषि भी खूब होती थी। […]
लाहौर पहुँच कर सीधा मसऊद के घर पहुँचा तो वह हजरत गायब थे। मालूम हुआ कि कहीं घूमने गये हैं। खैर, वो घूमने जाएँ अथवा जहन्नुम में, घर तो उनका मौजूद ही था। सामान रख कर अत्यन्त संतोष से नहाया-धोया। कपड़े बदले और उनके नौकर से कहा…”चाय लाओ!” यह नौकर भी कोई नया जानवर ही […]
एक दिन मिर्ज़ा साहब और मैं बरामदे में साथ साथ कुर्सियाँ डाले चुप-चाप बैठे थे। जब दोस्ती बहुत पुरानी हो जाए तो बातचीत की कुछ वैसी ज़रूरत बाक़ी नहीं रहती और दोस्त एक दूसरे की ख़ामोशी से लुत्फ़ उठा सकते हैं। यही हालत हमारी थी। हम दोनों अपने-अपने विचारों में डूबे थे। मिर्ज़ा साहब तो […]
एक मित्र मिले, बोले, “लाला, तुम किस चक्की का खाते हो? इस डेढ़ छँटाक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो। क्या रक्खा है माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो। संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।” हम बोले, “रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो। इस दौड़-धूप […]
संवत् 1375 से लेकर संवत् 1700 तक के काल को भक्ति काल कहा जाता है। भारतीय इतिहास में पहली बार समस्त देश की चेतना इस काल में भक्ति भाव धारा से अनुप्राणित हो उठी। ग्रियर्सन ने कहा है — [themify_quote]‘हम अपने को ऐसे धार्मिक आंदोलन के सामने पाते हैं, जो उन सब आंदोलनों से कही […]
काजर की कोठरी खंड-1 संध्या होने में अभी दो घंटे की देर है मगर सूर्य भगवान के दर्शन नहीं हो रहे , क्योंकि काली-काली घटाओं ने आसमान को चारों तरफ से घेर लिया है। जिधर निगाह दौड़ाइए मजेदार समा नजर आता है और इसका तो विश्वास भी नहीं होता कि संध्या होने में अभी कुछ […]
अभी खप्पर में एक-चौथाई से भी अधिक गेहूं शेष था। खप्पर में हाथ डालकर उसने व्यर्थ ही उलटा-पलटा और चक्की के पाटों के वृत्त में फैले हुए आटे को झाडक़र एक ढेर बना दिया। बाहर आते-आते उसने फिर एक बार और खप्पर में झांककर देखा, जैसे यह जानने के लिए कि इतनी देर में कितनी […]
प्रयाग-विश्वविद्यालय के अंडरग्रेजुएट के लिये डाक्टरी या वकालत के सदृश समय और धन-सापेक्ष व्यवसायों के सिवा नौकरी में नायब तहसीलदारी वा सब-रजिस्ट्रारी के पद ही अधिक आकर्षण रखते हैं; पर उनकी प्राप्ति के लिये विद्या से बढ़कर सिफारिश की जरूरत है। पिता के मित्र सूबेदार नन्हेसिंह से जब मैं मिला, तब उन्होंने दुःख प्रकाश करते […]