स्वतंत्रता के पश्चात राजनीति को आधार बनाकर लिखे गये उपन्यासों में मैला आंचल, रागदरबारी और महाभोज सर्वाधिक उल्लेखनीय हैं। मन्नू भण्डारी का महाभोज, प्रेमचन्द का ‘गोदान’ और फणीश्वरनाथ रेणु का ‘मैला आंचल’ तीनों ही मोहभंग जनित परिस्थितियों की उपज हैं। प्रेमचन्द के मोहभंग का कारण तत्कालीन स्वाधीनता आन्दोलन का सामन्ती चरित्र था तो रेणु के […]
बल्लभाचार्य द्वारा प्रतिपादित शुद्धाद्वैतवाद दर्शन के भक्तिमार्ग को ‘पुष्टि मार्ग’ कहते हैं।शुद्धाद्वैतवाद के अनुसार ब्रह्म माया से अलिप्त है,इसलिये शुद्ध है।माया से अलिप्त होने के कारण ही यह अद्वैत है। यह ब्रह्म सगुण भी है और निर्गुण भी। सामान्य बुद्धि को परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाली बातों का ब्रह्म में सहज अन्तर्भाव हो जाता है।वह […]
आषाढ़ का एक दिन मोहन राकेश का ही श्रेष्ठ नाटक नहीं है,बल्कि यह हिन्दी के सार्वकालिक श्रेष्ठ नाटकों में से एक भी है। जिस नाटक को रंगमंच से जोड़कर भारतेंदु ने जन आंदोलन के एक उपकरण के रूप में विकसित करने का प्रयत्न किया था,वह प्रसाद तक आते आते रंगमंच से पूरी तरह कट जाता […]
किसान समस्या प्रेमचन्द के उपन्यासों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या के रूप में सामने आती है।प्रेमचन्द का पहला उपन्यास ‘सेवासदन’ यद्यपि स्त्री समस्या को लेकर लिखा गया है,लेकिन यहाँ भी चैतू की कहानी के माध्यम से उन्होँने यह संकेत दे ही दिया है कि किसान समस्या और किसान जीवन ही उनके उपन्यासों का मुख्य विषय होने […]
(मशहूर पाकिस्तानी ग़ज़ल गायिका इक़बाल बानो का पिछले दिनों देहांत हो गया।याह्या खाँ के शासन के विरोध में उनके द्वारा गायी गयी यह नज़्म फैज़ ने लिखी थी।) लाज़िम है कि हम भी देखेंगे हम देखेंगे ……. वो दिन कि जिसका वादा है जो लौह-ए-अजल में लिखा है हम देखेंगे ……. जब जुल्म ए सितम […]
‘स्त्री न स्वंय ग़ुलाम रहना चाहती है और न ही पुरुष को ग़ुलाम बनाना चाहती है। स्त्री चाहती है मानवीय अधिकार्। जैविक भिन्नता के कारण वह निर्णय के अधिकार से वंचित नहीं होना चाहती।’ यह कथन विश्व की पहली नारीवादी मानी जाने वाली मेरी उल्स्टोनक्राफ़्ट का है। इस घोषणा को हुए दो सौ साल बीत […]
पद्मावत की व्याख्या आमतौर पर एक सूफ़ी काव्य के रूप में होती रही है. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जैसे आलोचकों ने भी पद्मावत के लौकिक प्रेम की अलौकिक व्याख्या करने की कोशिश की है. यदि गौर से देखें तो पायेंगे कि पद्मावत में मुल्ला दाऊद, उस्मान और कुतुबन जैसे रचनाकारों के प्रेमाख्यानों की अपेक्षा आध्यात्मिकता का […]
‘न सताइश की तमन्ना न सिले की परवाह न सही मेरे अशआर में मानी न सही’ सोचता हूँ, ग़ालिब ने शेर किन परिस्थितियों में कहा होगा। इस बेपरवाही के पीछे कितनी पीड़ा छिपी है,अंदाज़ा लगाना आसान नहीं है। लगातार व्यंग्यवाणों के प्रहार से छलनी सीने से निकली यह आहत निःश्वास बेपरवाही के आवरण में छिपाये […]