‘स्त्री न स्वंय ग़ुलाम रहना चाहती है और न ही पुरुष को ग़ुलाम बनाना चाहती है। स्त्री चाहती है मानवीय अधिकार्। जैविक भिन्नता के कारण वह निर्णय के अधिकार से वंचित नहीं होना चाहती।’ यह कथन विश्व की पहली नारीवादी मानी जाने वाली मेरी उल्स्टोनक्राफ़्ट का है। इस घोषणा को हुए दो सौ साल बीत चुके हैं।इन दो सौ सालों में नारीवाद की संकल्पना और नारी की स्थिति में काफी बदलाव आया है।पुरुष को ‘मेल शाउनिस्ट पिग’(MCP) कहने से लेकर ‘ब्रा बर्निंग मूवमेंट’ के नाम पर खुलेआम अपने अंतर्वस्त्रों को जलाने तक नारीवादी आंदोलन ने कई मुक़ाम तय किये हैं,परन्तु ‘निर्णय का अधिकार’ नारी को मिल पाया है या नहीं, यह विवाद का विषय है।
नारीवाद में मूल में स्त्री पुरुष समानता को स्थापित करने की चेष्टा काम कर रही थी। लेकिन, ऐसा लगता है बीच रास्ते में ही नारीवाद अपनी राह भटक गया है। स्वतंत्रता की अदम्य लालसा और पुरुष उत्पीड़न की प्रतिक्रिया में नारी अनजाने ही पुरुष के हाथ की कठपुतली या और स्पष्ट शब्दों में कहें तो उसकी यौन पिपासा की तृप्ति का साधन बनती जा रही है। विज्ञापन जगत में स्त्री शरीर की बढ़ती माँग और मिस वर्ल्ड, मिस यूनिवर्स जैसी प्रतियोगिताओं की बाढ़ क्या समाज में स्त्री के बढ़ते महत्व या पुरुष से उसकी समानता की सूचक है? जवाब बिल्कुल स्पष्ट है- “नहीं”। इन प्रतियोगिताओं और विज्ञापनों ने स्त्री को वस्तुतः एक उपभोग की वस्तु के समकक्ष ला खड़ा किया है। फ़िल्में भी किसी तरह पीछे नहीं है। याद करें कुछ समय पहले की नेहा धुपिया की चर्चित उद्घोषणा कि ‘फ़िल्मों में शाहरुख खान के बाद आज सिर्फ सेक्स बिकता है।’ नेहा धुपिया सौंदर्य प्रतियोगिताओं के जरिये फ़िल्मों में आई उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो यह मानती है कि अगर शरीर खूबसूरत है तो उसे दिखाने में कोई हर्ज़ नहीं है। खूबसूरती की यह नुमाइश क्या उतनी ही घातक नहीं जितनी स्त्रियों को सात पर्दों के पीछे रखने की मध्ययुगीन सामंती प्रवृति थी? पुरुषों की भोगवादी मनोवृति ने स्त्रियों के नारे का सहारा लेकर ही स्त्रियों को अपना शिकार बनाया है।
आजकल अमूल बॉडी वार्मर का एक विज्ञापन सभी चैनलों पर ज़ोर शोर से दिखाया जा रहा है, जिसमें आधुनिक द्रौपदी दु:शासन को चीरहरण के लिये आमंत्रित करती है। यह प्रश्न विचारणीय है कि नारी शरीर का यह भोंडा और नग्न प्रदर्शन नारीवाद की जीत है या पुरुषवादी उपभोगवादी विज्ञापनी संस्कृति की ।
नारीवाद में मूल में स्त्री पुरुष समानता को स्थापित करने की चेष्टा काम कर रही थी। लेकिन, ऐसा लगता है बीच रास्ते में ही नारीवाद अपनी राह भटक गया है। स्वतंत्रता की अदम्य लालसा और पुरुष उत्पीड़न की प्रतिक्रिया में नारी अनजाने ही पुरुष के हाथ की कठपुतली या और स्पष्ट शब्दों में कहें तो उसकी यौन पिपासा की तृप्ति का साधन बनती जा रही है। विज्ञापन जगत में स्त्री शरीर की बढ़ती माँग और मिस वर्ल्ड, मिस यूनिवर्स जैसी प्रतियोगिताओं की बाढ़ क्या समाज में स्त्री के बढ़ते महत्व या पुरुष से उसकी समानता की सूचक है? जवाब बिल्कुल स्पष्ट है- “नहीं”। इन प्रतियोगिताओं और विज्ञापनों ने स्त्री को वस्तुतः एक उपभोग की वस्तु के समकक्ष ला खड़ा किया है। फ़िल्में भी किसी तरह पीछे नहीं है। याद करें कुछ समय पहले की नेहा धुपिया की चर्चित उद्घोषणा कि ‘फ़िल्मों में शाहरुख खान के बाद आज सिर्फ सेक्स बिकता है।’ नेहा धुपिया सौंदर्य प्रतियोगिताओं के जरिये फ़िल्मों में आई उस पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो यह मानती है कि अगर शरीर खूबसूरत है तो उसे दिखाने में कोई हर्ज़ नहीं है। खूबसूरती की यह नुमाइश क्या उतनी ही घातक नहीं जितनी स्त्रियों को सात पर्दों के पीछे रखने की मध्ययुगीन सामंती प्रवृति थी? पुरुषों की भोगवादी मनोवृति ने स्त्रियों के नारे का सहारा लेकर ही स्त्रियों को अपना शिकार बनाया है।
आजकल अमूल बॉडी वार्मर का एक विज्ञापन सभी चैनलों पर ज़ोर शोर से दिखाया जा रहा है, जिसमें आधुनिक द्रौपदी दु:शासन को चीरहरण के लिये आमंत्रित करती है। यह प्रश्न विचारणीय है कि नारी शरीर का यह भोंडा और नग्न प्रदर्शन नारीवाद की जीत है या पुरुषवादी उपभोगवादी विज्ञापनी संस्कृति की ।
बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
नववर्ष् की शुभकामनाएं
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
http://www.zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
http://www.chitrasansar.blogspot.com
सुझावों के लिये राजीव जी एव मसिजीवी जी का धन्यवाद। वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दिया है। फ़ॉन्ट का आकार बढ़ा दिया है। सुजाता जी के प्रश्नों पर विस्तार से चर्चा अगले पोस्ट में।
नारियों को ख़ुद ही वस्तुस्थिति को समझना चाहिए . अन्यथा वो यूँ ही छली जाती रहेगी. स्वागत मेरे ब्लॉग पर भी.
आप विमर्श कर रहे हैं यही बड़ी बात है। उसकी दिशा तो समय तय करता जाएगा।
घुघूती बासूती
अच्छा लिखा ! एक सवाल है बस!200 साल पहले के नारीवाद और अब तक के पड़ावों से कितनी स्त्रियाँ परिचित हैं?मुझे नही लगता कि मुट्ठी भर से ज़्यादा संख्या ऐसी स्त्रियों की होगी।
दर असल यह नारीवाद का भटकाव नही, नारीवाद के व्यापक विरोध का परिणाम है।यह पूंजीवाद और पितृसत्ता की मिली जुली फौज वर्सिज़ स्त्री विमर्श है।
आपसे अनुरोध है कि कृपया फांट का आकार बढ़ा लें इतना बारीक पढ़ने में तकलीफ होती है।
आपका स्वागत है
aapka vichaar achha laga.agar nari age barhna chahti hai to kya khoya kya paya ka hisaab lagana prega nahi to is andhi daur me apna sab kuchh kho bethegi
औरतों को पुरुषों के समान अधिकार देने की जैसे ही संसद और बुद्धिजीवी वर्ग ने वकालत की हमारे देश की युवतियों ने सबसे पहले अश्लीलता को समानता के रूप में मान लिया यही कारण है कि आज स्त्रियां और युवतियां समाज में हवस के शिकार भेड़ेयों का शिकार हो रही है लेकिन स्मानता तो अपने बौद्धिक स्तर को ऊंचा करने से होगी। प्रतिभा पाटिल ,सुनीता विलियम्स किरण बेदी लक्ष्मी बाई, सानिया मिर्ज़ा, आदि, आदि महिलाएं हैं जिन्हें उदाहरण मानकर चल सकते हैं कि इन्होंने ही समानता के लिए एक पाक रास्ता अख़्तियार किया न कि अपने जिस्म की नुमाईश की। अगर मिस यूनिवर्स या किसी फैशन प्रतियोगिता में या फिर किसी हिन्दी फिल्म में फूहड़ सीन करने को लड़कियां इंकार कर दे तो कैसे भला ये ग़लत परिपाटी फलेगी फूलेगी। समानता का अर्थ महिलाओं को ही समझना होगा और पुरुषों को तो महिलाओं के उत्त्थान में बढ़्चढ़ कर आगे आना चाहिए ही। ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत।
हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं ई-गुरु राजीव हार्दिक स्वागत करता हूँ.
मेरी इच्छा है कि आपका यह ब्लॉग सफलता की नई-नई ऊँचाइयों को छुए. यह ब्लॉग प्रेरणादायी और लोकप्रिय बने.
यदि कोई सहायता चाहिए तो खुलकर पूछें यहाँ सभी आपकी सहायता के लिए तैयार हैं.
शुभकामनाएं !
ब्लॉग्स पण्डित – ( आओ सीखें ब्लॉग बनाना, सजाना और ब्लॉग से कमाना )
आपका लेख पढ़कर हम और अन्य ब्लॉगर्स बार-बार तारीफ़ करना चाहेंगे पर ये वर्ड वेरिफिकेशन (Word Verification) बीच में दीवार बन जाता है.
आप यदि इसे कृपा करके हटा दें, तो हमारे लिए आपकी तारीफ़ करना आसान हो जायेगा.
इसके लिए आप अपने ब्लॉग के डैशबोर्ड (dashboard) में जाएँ, फ़िर settings, फ़िर comments, फ़िर { Show word verification for comments? } नीचे से तीसरा प्रश्न है ,
उसमें 'yes' पर tick है, उसे आप 'no' कर दें और नीचे का लाल बटन 'save settings' क्लिक कर दें. बस काम हो गया.
आप भी न, एकदम्मे स्मार्ट हो.
और भी खेल-तमाशे सीखें सिर्फ़ 'ब्लॉग्स पण्डित' पर.
यदि फ़िर भी कोई समस्या हो तो यह लेख देखें –
वर्ड वेरिफिकेशन क्या है और कैसे हटायें ?
वाह ? स्पष्ट और सही बात स्वतंत्रर्ता और भटकाव की बारीक़ सी लाइन दिखाती है ये लेख |
गुरूजी ???