अवधी भक्ति काल में और उसके बाद भी हिंदी प्रदेश की एक प्रमुख साहित्यिक भाषा रही है. इसमें प्रेमाख्यानक काव्य और रामभक्ति काव्य खासतौर पर लिखे गए. उसके ये रामभक्ति काव्य और प्रेमाख्यानक काव्य हिंदी को उसकी देन हैं. रामचरित मानस तो लगभग समस्त उत्तर भारत में धर्मग्रंथ की तरह महत्व पाता रहा. तुलसी ने […]
डा. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, अवधी के भाषायी अभिलक्षण पहली शताब्दी में ही मिलने लगे थे. वे तो सोहगौरा, रुम्मिन्देई एवं खैरागढ़ के अभिलेखों में भी अवधी में लक्षण ढूढ निकालते हैं. ये अभिलेख पहली शताब्दी के ही आसपास के हैं. बाबूराम सक्सेना भी अवधी को अर्धभागधी की तुलना में पालि के अधिक करीब मानते हैं. इसका […]
साहित्यिक ब्रजभाषा दसवीं- ग्यारहवीं शताब्दी के आस पास ही शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित हुई। डा. भंडारकर के इस कथन से भी इस बात की पुष्टि होती है कि जिस क्षेत्र में6वीं- 7वीं शताब्दी में अपभ्रंश का जन्म हुआ, उसी क्षेत्र में आज ब्रजभाषा बोली जाती है। ब्रजभाषा के विकास को तीन चरणों में बाटा जा […]
देवनागरी लिपि: उद्गम देवनागरी लिपि का उद्गम प्राचीन भारतीय लिपि ब्राह्मी से माना जाता है. 7वीं शताब्दी से नागरी के प्रयोग के प्रमाण मिलने लगते हैं. नवीं और दसवीं शताब्दी से नागरी का स्वरूप होता दिखता है। देवनागरी लिपि: नामकरण ‘नागरी’ शब्द की उत्पत्ति के विषय में विद्वानों में काफी मतभेद है। कुछ लोगों के […]
भाषा : भाषा उस यादृच्छिक, रूढ़ ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था को कहते हैं , जिसके माध्यम से मनुष्य परस्पर विचार विनिमय करता है. यह समाज का एक अलिखित समझौता है. लिपि:- लिपि उस यादृच्छिक, रूढ़ , वर्ण प्रतीको की व्यवस्था को कहते हैं , जिसके माध्यय से भाषा को लिखित रूप दिया जाता है. भाषा और लिपि में अनिवार्य सम्बंध नहीं है. लाखों […]
अपभ्रंश मध्यकालीन आर्यभाषा के तीसरे चरण की भाषा है. अपभ्रंश शब्द का अर्थ है –भ्रष्ट या पतित. पतंजलि ने अपने महाभाष्य में ‘संस्कृत के शब्दों से विलग भ्रष्ट अथवा देशी शब्दों एवं अशुद्ध भाषायी प्रयोगों’ को अपभ्रंश कहा है. दंडी और भामह अपभ्रंश का उल्लेख मध्यदेशीय भाषा के रूप में करते हैं. दंडी ने अपभ्रंश […]
बहुत पुराने समय की बात है .एक बार एक ब्राह्मण ने यज्ञ करने की सोची. उसने यज्ञ के लिए दूसरे गाँव से एक बकरा ख़रीदा . बकरे को कंधे पर रख कर वह अपने गाँव की ओर लौट रहा था , तभी तीन ठगों की नज़र उस पर पड़ी. मोटे ताजे बकरे को देख कर […]
एक घने जंगल में एक शेर रहता था. वह रोज शिकार पर निकलता और एक ही बार में कई-कई जानवरों का शिकार करके लौटता. जंगल के जानवर डरने लगे कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा, तो एक दिन जंगल में कोई भी जानवर नहीं बचेगा. सारे जंगल में डर फैल गया. शेर को […]
अद्वैत वेदान्त में सामान्यतः माया को ब्रह्म और जीव के बीच पड़े आवरण के रूप में जाना जाता है. यह माया ही है, जो जीव के ब्रह्म से अलग होने का भ्रम उत्पन्न करती है. जीव को ब्रह्म से विच्छिन्न करती है. कबीर दास जी भी माया को इसी भ्रम के रूप में देखते है. […]