पद्मावत-सुआ खंड- भाग-1
पदमावति तहँ खेल दुलारी । सुआ मँदिर महँ देखि मजारी ॥ कहेसि चलौं जौ लहि तन पाँखा । जिउ लै उडा ताकि बन ढाँखा ॥ जाइ परा बन खँड जिउ लीन्हें । मिले पँखि, बहु आदर कीन्हें ॥ आनि धरेन्हि आगे फरि साखा । भुगुति भेंट जौ लहि बिधि राखा […]
पदमावति तहँ खेल दुलारी । सुआ मँदिर महँ देखि मजारी ॥ कहेसि चलौं जौ लहि तन पाँखा । जिउ लै उडा ताकि बन ढाँखा ॥ जाइ परा बन खँड जिउ लीन्हें । मिले पँखि, बहु आदर कीन्हें ॥ आनि धरेन्हि आगे फरि साखा । भुगुति भेंट जौ लहि बिधि राखा […]
धरी तीर सब कंचुकि सारी । सरवर महँ पैठीं सब बारी ॥ पाइ नीर जानौं सब बेली । हुलसहिं करहिं काम कै केली ॥ करिल केस बिसहर बिस-हरे । लहरैं लेहिं कवँल मुख धरे ॥ नवल बसंत सँवारी करी । होइ प्रगट जानहु रस-भरी ॥ उठी कोंप जस दारिवँ दाखा […]
एक दिवस पून्यो तिथि आई । मानसरोदक चली नहाई ॥ पदमावति सब सखी बुलाई । जनु फुलवारि सबै चलि आई ॥ कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली । कोइ सु केत, करना, रस बेली ॥ कोइ सु गुलाल सुदरसन राती । कोइ सो बकावरि-बकुचन भाँती ॥ कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती । […]
भै उनंत पदमावति बारी । रचि रचि विधि सब कला सँवारी ॥ जग बेधा तेहि अंग-सुबासा । भँवर आइ लुबुधे चहुँ पासा ॥ बेनी नाग मलयागिरि पैठी । ससि माथे होइ दूइज बैठी ॥ भौंह धनुक साधे सर फेरै । नयन कुरंग भूलि जनु हेरै ॥ नासिक कीर, कँवल मुख […]
शेखचिल्ली एक दिन अपने घर के सामने अहाते में बैठे भुने हुए चने खा रहे थे और साथ ही जल्दी-से-जल्दी अमीर बनने के सपने देख रहे थे. खुली आँखों से सपने देखते हुए कुछ चने खा रहे थे और कुछ नीचे गिरा रहे थे. संयोग से जमीन पर गिरे चने […]