ब्राह्मण और तीन ठग – हितोपदेश
बहुत पुराने समय की बात है .एक बार एक ब्राह्मण ने यज्ञ करने की सोची. उसने यज्ञ के लिए दूसरे गाँव से एक बकरा ख़रीदा . बकरे को कंधे पर रख कर वह अपने गाँव की ओर लौट रहा था , तभी तीन ठगों की नज़र उस पर पड़ी. मोटे […]
बहुत पुराने समय की बात है .एक बार एक ब्राह्मण ने यज्ञ करने की सोची. उसने यज्ञ के लिए दूसरे गाँव से एक बकरा ख़रीदा . बकरे को कंधे पर रख कर वह अपने गाँव की ओर लौट रहा था , तभी तीन ठगों की नज़र उस पर पड़ी. मोटे […]
एक घने जंगल में एक शेर रहता था. वह रोज शिकार पर निकलता और एक ही बार में कई-कई जानवरों का शिकार करके लौटता. जंगल के जानवर डरने लगे कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा, तो एक दिन जंगल में कोई भी जानवर नहीं बचेगा. सारे जंगल में […]
अद्वैत वेदान्त में सामान्यतः माया को ब्रह्म और जीव के बीच पड़े आवरण के रूप में जाना जाता है. यह माया ही है, जो जीव के ब्रह्म से अलग होने का भ्रम उत्पन्न करती है. जीव को ब्रह्म से विच्छिन्न करती है. कबीर दास जी भी माया को इसी भ्रम […]
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भक्ति को रहस्यवाद से जोड़ा है और इसे एक प्रतिक्रियावादी दर्शन मानकर कबीर की आलोचना की है. शुक्लजी के मत की समीक्षा करने से पहले आवश्यक है कि रहस्यवाद को समझा जाय. आमतौर पर उस कथन या अनुभव को रहस्यवाद की संज्ञा दी जाती […]
असाध्य वीणा अज्ञेय की एक लम्बी कविता है, लेकिन जैसी चर्चा मुक्तिबोध (अंधेरे में, चांद का मुंह टेढ़ा है) और धूमिल (पटकथा) की लम्बी कविताओं को मिली, वैसी असाध्य वीणा को नहीं मिली. यद्यपि इसका प्रकाशन इनसे पूर्व (आंगन के पार द्वार-1961) हुआ था. इसका कारण कई आलोचक असाध्य वीणा […]