मई-2016-मिस्ट्री : प्रथम स्थान
सभी आश्चर्यचकित निगाहों से फ्रेड को घूर रहे थे, और उसके बोलने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
फ्रेड अपनी एकाएक बन चुकी पूछ पर आनंदित होता हुआ, पांचों की तरफ देखते हुए बोला..
‘इन्द्रेश कसाना का कातिल हम सबके बीच में ही है। कातिल ने कहानी तो बहुत सुंदर तैयार की थी लेकिन उससे थोड़ी चूक हो गयी।’
सभी सावधान से हो गये। मैंने फ्रेड से कहा, ‘पहेलियां मत बुझाओ। जो कहना है साफ–साफ कहो।’
फ्रेड बोला-‘ कहता हूं सर। दरअसल इस कत्ल में कातिल ने कुछ ऐसा किया था कि उसपर कोई शक ही न करे। करे भी तो केवल मामूली सा। कातिल के पास मौका और उद्देश्य दोनों ही उपलब्ध थे। उसने कुछ इस तरह इस हत्या की प्लानिंग की कि सभी के सामने होते हुए भी वह किसी को दिखाई न दे। ’
फ्रेड की बातों से किसी के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे। सब सस्पेंस भरी खामोशी के साथ सांस रोके खड़े थे।
फ्रेड आगे बढ़ा– ‘आप सभी गौर करें, जब लिली चीख सुनकर नीचे की ओर भागी तो उसने इन्द्रेश के दोनों दोस्तों जैसन डिसिल्वा और रईस खान को नीचे की ओर भागते हुए देखा, टोनी भी कमोबेश उन सभी के साथ ही नीचे पहुंचा। लेकिन कोई नहीं भागा तो वह रागिनी थी। क्यों रागिनी जी मैं ठीक कह रहा हूं न?’
रागिनी चिल्लाई– ‘अरे जब मेरी चीख सुनकर सभी नीचे की ओर भागे तो मैं क्यों दोबारा वहां भागने जाउंगी, मैं तो वहीं खड़ी थी।’
‘बिल्कुल–बिल्कुल। मैं मानता हूं आपकी बात को। लेकिन रागिनी जी ये तो समझ आ रहा है कि आपने एक नजर में देखते ही समझ लिया कि आपके चाचा जी की मौत हो चुकी है। लेकिन ये बताइये आमतौर पर जब कोई रिश्तेदार यूं जमीन पर गिरा पड़ा हो और उसके शरीर से खून रिस रहा हो तो हमारी सबसे पहले प्रतिक्रिया होती है कि उसे उठाया जाये, यह देखा जाये कि कहीं वह जीवित तो नहीं, अस्पताल–एंबुलेंस कोफोन लगाया जाता है। लेकिन सबसे पहला आपने जो काम किया वह केवल चीखा और चिल्लाया और सभी को इकट्ठा किया। चाचा को छूने तक की कोशिश नहीं की। है न?’
रागिनी सन्न सी खड़ी थी।
मैंने फ्रेड से कहा, ‘ तो तुम कहना चाहते हो, रागिनी ने ये हत्या की है? केवल इसलिए कि उसने गिरे हुए इन्द्रेश कसाना की मदद की कोशिश नहीं की?’
‘नहीं सर’ फ्रेड बोला, ‘दरअसल रागिनी ने हत्यारी खुद को ही साबित किया है। उसने अपने बयान में कहा, खिड़की से सूर्योदय का सुंदर नजारा दिख रहा था। सर आपको तो पता ही है कि इस विला का नाम ही सनसेट प्वाइंट है। यानी यहां से सूर्यास्त का दिलकश नजारा दिखता है। आपने भी रूम में खिड़की से सूर्यास्त होते हुए देखा होगा। लेकिन रागिनी ने इसी खिड़की से सूर्योदय कैसे देख लिया। यहां से सूर्योदय तो दिख ही नहीं सकता।’
मेरे ज्ञानचक्षु खुल गये। मैंने रागिनी की ओर देखा जो अब पत्ते की तरह कांप रही थी।
फ्रेड ने अपनी थ्योरी जारी रखी, ‘ दरअसल सर रागिनी ने शायद काफी पहले ही हत्या की प्लानिंग की होगी। लेकिन घर में उसे एक से अधिक सस्पेक्ट्स की जरूरत थी। कल घर में दो और गेस्ट्स और नौकर–चाकर भी थे। उसने यही समय उचित जाना। वह रात को अपने कमरे में सोयी ही नहीं होगी। या सोयी भी होगी तो काफी कम। सुबह सबेरे अपने काम को अंजाम देने के लिए वह उठी होगी। अपने कमरे से जो इंद्रेश के कमरे से बिल्कुल विपरीत है, वहां उसने सूर्योदय देखा होगा इसलिए उसके सूर्योदय की बात कही। उसने आकर इन्द्रेश को गोली मारी। हत्या के बाद वह लोगों को चीख कर इकट्ठा करने के अपने काम में जुट गयी’।
‘रिवॉल्वर कहां से मिली’ मैंने सवाल किया।
‘सर रागिनी इन्द्रेश की भतीजी है। यह घर बोलिये या इन्द्रेश की आदतें, वह हर चीज से वाकिफ थी। कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर उसने इस काम के लिए इन्द्रेश के रिवॉल्वर का ही इस्तेमाल किया हो। उसे तो पता होगा ही कि इन्द्रेश हथियार रखता कहां था।’
‘लेकिन हत्या का मकसद क्या है?’ मैंने पूछा।
फ्रेड ने कहा, ‘सर ये तो आगे विस्तृत तफ्तीश का मुद्दा है लेकिन मुझे यकीन है कि इस कत्ल के पीछे भी मकसद पैसा ही है। इन्द्रेश के रियल इस्टेट के कारोबार को उसका बड़ा भाई महेश देखता है। रागिनी और उसके पिता की माली हालत भले ही ठीकठाक है लेकिन पैसों का मूल मालिक तो इन्द्रेश ही है। लिहाजा बिजनेस और कारोबार को हथियाने के लिए ही इन्द्रेश का कत्ल किया गया क्योंकि इसकी मौत के बाद सबसे नजदीकी रिश्तेदार तो महेश और उसकी बेटी रागिनी ही होते। ’
मैंने सवाल किया– ‘तो क्या इसमें महेश का भी हाथ है?’
फ्रेड ने कहा-‘सर ये तो जांच का विषय है लेकिन ऐसा होने की संभावना कम ही दिखती है क्योंकि कत्ल जैसे काम को करने के लिए कोई बाप शायद ही अपनी बेटी को कहे। लेकिन इसका बेहतर जवाब तो रागिनी ही दे सकती है।’
हम दोनों ने रागिनी की ओर देखा। लेकिन वह तबतक बेहोश होकर लुढ़क चुकी थी।
आनंद जी, पत्रकारिता के साथ, करीब 15 वर्षों से जुड़े हैं। विभिन्न राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कार्य करने के बाद फिलहाल प्रभात खबर, कोलकाता में वरीय संवाददाता के तौर पर कार्यरत हैं। उन्हें बचपन से ही किताबें पढ़ने का शौक रहा है। उनका सफ़र, राजन–इकबाल और कॉमिक्स के साथ शुरु हुआ जो देखते ही देखते छठी या सातवीं कक्षा में सुरेंद्र मोहन पाठक जी तक जा पहुंचा। उस वक्त सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के अलावा वे वेद प्रकाश शर्मा को पढ़ते थे। फिलहाल वे हिंदी में जासूसी उपन्यासकारों में केवल पाठकजी को ही पढ़ते हैं वहीँ अंग्रेजी में कई लेखकों को पढ़ते हैं। उन्हें लिखने का शौक हमेशा से रहा है। उनकी दिली इच्छा है की वे थ्रिलर–जासूसी श्रेणी में उपन्यास लिखें।