कोतवाल रामलखन सिंह
कोतवाल रामलखन सिंह अपने कमरे में कुछ उदासी भरी सोच की मुद्रा में बैठे थे. उन्होंने सपने में भी न सोचा था कि जरा से बवाल से कप्तान उन्हें लाइन हाजिर कर देगा. ऐसा भी नहीं था कि वे पहले निलंबित या लाइन हाजिर नहीं हुए थे. कई बार तो उन्होंने सिर्फ कोतवाल बने रहने के लिए और डीएसपी के प्रमोशन से बचने के लिए भी कोई न कोई कांड करवा दिया, जिससे वे थानेदार या कोतवाल ही रहें. कोतवाल के पद को लेकर उनके मन में मुगलकालीन भारत के कोतवाल जैसी छवि उतर आती थी. अक्सर वे अपनी इस मान्यता को कोतवाली में किसी खाली शाम को लोकल पत्रकारों के बीच साझा करते, “यार देखो पुलिस में सबसे पुराना असरदार पद कोतवाल का ही है. इ सब डीआईजी पीआईजी , एसपी टेसपी तो बाद में आए. अवध में नवाबों के जमाने से कहावत चली आ रही है कि, कोतवाल का ओहदा फौलाद का होता है. कहावत तो यहाँ तक है कि, कोतवाल के पेशाब से चिराग जला करते हैं. इतनी ताकत है इस पोस्ट में.“
उनके बाप दादा भी उत्तर प्रदेश पुलिस में ही दारोगा थे. अपने बेटे को भी दारोगा भर्ती में पास करवा देने के बाद उन्होंने महान जैव विज्ञानी लेमार्क के सिद्धान्त को बदल डाला था कि पहलवान का बेटा पहलवान नहीं होता है.
वैसे उन्हें पिछले महीने से ही शक था कि नया कप्तान उनको पसंद नहीं करता है. दो महीने पूर्व अपनी पहली ही क्राइम मीटिग में कप्तान ने निर्देश दिया- मेरे आने से पहले यहाँ जो भी सट्टा, हवाला आदि सब उल्टा सीधा चल रहा था, बंद हो जाना चाहिए. कोई शिकायत मिली तो खैर नहीं. हम शासक नहीं, बल्कि जनता के सेवक हैं.
सेवक शब्द सुनते ही रामलखन सिंह ने अधरोष्ठों में ही मुस्काते हुए अपने समकक्ष को देखा और त्योरियों से हल्का इशारा किया. इस हरकत को कप्तान ने भी देख लिया. उसने तुरंत रामलखन सिंह को उठाया और पूछा.
क्या नाम है तुम्हारा ? कहाँ तैनाती है ?
सर रामलखन सिंह वल्द राणा समर बहादुर सिंह. इंस्पेक्टर सारनाथ.
क्या इशारा कर रहे थे?
कुछ नहीं साहब.
रामलखन के नकारते ही कप्तान ने उस दूसरे इंस्पेक्टर से पूछा , क्या कह रहे थे ये?
दूसरे ने हड़बड़ी में कहा- जनाब मैं इनपर ध्यान नहीं देता हूँ. मैं तो आपके निर्देश नोट कर रहा था ,कि अब सब पुराना धंधा बंद.
कप्तान ने फिर रामलखन सिंह से पूछा, इसमें इशारे वाली क्या बात है? मीटिंग को मज़ाक समझ रखा है.
यद्यपि रामलखन सिंह ने कहा जनाब भूल हो गई, क्षमा करें लेकिन कप्तान गुस्से में लगभग चीखने लगे. तुम लोग मेरी बातों को इस तरह हल्के में लेकर इशारे कर रहे हो तो पब्लिक का क्या हाल करते होगे? मैं कह रहा हूँ सारे गैरकानूनी काम बंद आज से तो इंस्पेक्टर सारनाथ को मज़ाक सूझ रहा है. ज्यादा चर्बी चढ़ गई है?
क्षमा मांगने के बावजूद कोई असर न देख रामलखन सिंह से न रहा गया. अचानक वे खड़े हो गए.
कप्तान ने अचानक खड़े देख डपट कर कहा , क्या हुआ खड़े क्यों हो गए. मीटिंग में मन नहीं लग रहा तुम्हारा?
सर एक बात कहनी थी अगर आप इजाजत दे तो अर्ज़ करूँ.
बैठो चुपचाप. आई डोंट लाइक इंटेर्फ़ियरेंस इन बिटवीन सिरियस मैटर्स. बैठो चुपचाप जो कहना है लास्ट में कहना.
लगभग पौन घंटे तक मीटिंग चलती रही. मीटिंग के बाद कप्तान ने रस्मी तौर पर पूछा- कोई शक या सवाल?
सबने एक स्वर में कहा – नो सर. तभी कप्तान साहब की नज़र रामलखन सिंह की तरफ गई. वे तुरंत बोले- हाँ तुम कुछ कहना चाहते थे.
रामलखन सिंह ने इतना ही कहा- जनाब मैं आपकी बातों को हल्के में नहीं ले रहा था, लेकिन आपका हुक्म तामील होना संभव नहीं है. पिछले साहब भी इसी चक्कर में छह महीने में ही पीएसी में चले गए. इधर और कुछ तो है नहीं. बस हवाला और सट्टा का ही हिसाब किताब है. मान लीजिए हम लोग तो आपके आदेश से संतोष कर लेंगे लेकिन सत्ता पक्ष के बहुत बड़े लोगों की शह है इन चीजों में. अगर हुज़ूर ने ज्यादा कड़ाई की तो ई लॉबी बहुत पउवा वाली है. समझ लें कि आज की तारीख में उनका कोई कुछ उखाड़ नहीं सकता. इसलिए साहब थोड़ा व्यवहारिक योजना रखी जाए.
यह सुनते ही कप्तान आग बबूला हो गए. बोले गेट आउट . दलाली करते होगे तुम लोग, मैं नहीं करता. फिर उसने स्टेनो को बोला , शर्मा, लगता है इनका मन सारनाथ में ज्यादा शांत हो गया है. एक ऑर्डर निकालो इनका लाइन के लिए. ओके आप सब जा सकते हैं.
सभी जय हिन्द करके बाहर निकलने लगे. कुछ लोगों ने कहा अरे भाई क्या जरूरत है ऐसी बातें करने का? रामलखन सिंह बोले तो ठीक है तुमलोग अपने इलाके में आदेश तामील करके दिखाना. एडिशनल एसपी और सीओ सिटी ने किसी तरह कप्तान साहब को मनाया कि साहब इसको माफ कर दें. ये मूर्ख है लेकिन स्वामिभक्त है. थोड़ा बड़बोला है लेकिन एकदम अनुशासित और आज्ञाकारी. मेहनत भी बहुत करता है. हमेशा गश्त करता है. क्राइम भी कंट्रोल रखता है. थोड़ा दबंग है और भाषा खराब लेकिन आदेश का पालन करने में कहीं भी देर नहीं करता. कप्तान ने भी माफ कर दिया. इस ताकीद के साथ कि आदेश के पालन में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए. और जल्दी ही सारनाथ थाने का दौरा करेंगे.
राम लखन सिंह पुलिस गिरी के तरीके की अपनी मुगलकालीन मान्यता पर ज्यादा यकीन करते थे. भारतीय दंड संहिता और मानवाधिकार आयोग के निर्देशों को वह पुलिस के कामकाज में बिना वजह का हस्तक्षेप मानते थे. उनके थाने में घुसते ही एक बड़ा बोर्ड लगा होता था जिस पर लिखा होता था , “मैं वादी को तुरंत एफ़आईआर दर्ज करने और उसकी अनुज्ञप्ति के बाद एक प्रति प्राप्त किए जाने का भी वचन देता हूं “आज्ञा से राम लखन सिंह, कोतवाल. जब कप्तान ने उनके थाने का निरीक्षण किया तो पाया कि एफ़आईआर रजिस्टर में पिछले तीन महीनों से एक भी केस दर्ज नहीं है. उसने तुरंत राम लखन सिंह को तलब किया. यह क्या मजाक है? राम लखन सिंह ने कहा, हुजूर यहां पर महात्मा बुद्ध ने आज से सैकड़ों साल पहले शांति और प्रेम का प्रवचन दिया था. उसका थोड़ा बहुत तो असर होगा ही और आप पता कर लें इस इलाके में लोग बड़े मिलनसार और आपसी सद्भाव से रहते हैं. तारीख गवाह है कि कभी भी कोई दंगा नहीं हुआ. वैसे भी हिंदू और बौद्ध आबादी ज्यादा है जिससे कि किसी प्रकार का सांप्रदायिक तनाव पैदा नहीं होता. और इस इलाके में अधिकतर खेती-बारी करने वाले ग्रामीण हैं. ज्यादा शहर का इलाका नहीं पड़ता तथा बौद्ध धर्म के अध्ययन के केंद्र तथा संग्रहालय हैं. ऐसे में अपराध की संभावना कम हो जाती है और सबसे बढ़कर सारनाथ स्टेशन से उतरते ही हर तरफ लिखा हुआ है बुद्धम शरणम गच्छामि तो इसलिए भी थोड़ा बहुत फर्क पड़ता है.
कप्तान ने भड़क कर कहा, “ व्हाट नॉन सेंस आर यू टॉकिंग? सारे बनारस में एफ़आईआर रजिस्टर भरे पड़े हैं और तुम्हारा इलाका सत्यवादी हरिश्चंद्र का हो गया है. जरूर तुम गड़बड़ कर रहे हो. मैं पता कर लूंगा और अगर मुझे किसी भी धोखाधड़ी का पता चला तो तुम्हारे खिलाफ मुकदमा दर्ज कराऊंगा.“ राम लखन सिंह का मन किया कि कप्तान को उल्टा जवाब दें, लेकिन उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा – आप सरकार है साहब जो आज्ञा लेकिन आपको कुछ ऐसा नहीं मिलेगा कि सेवक के खिलाफ यह जहमत उठानी पड़े.
वापिस आकार कप्तान ने एलआईयू इंस्पेक्टर को बुलाकर कहा कि पता करो राम लखन सिंह कैसे मैनेज करता है कि उसके थाने में कोई एफ़आईआर दर्ज नहीं है, जबकि थाने के मेन गेट पर रुपए में रिजर्व बैंक के गवर्नर के वचन की भाषा में उसने एफ़आईआर दर्ज करने की गारंटी दे रखी है. एलआईयू इंस्पेक्टर ने जो कथा सुनाई उसके बाद कप्तान ने सिर पकड़ लिया. इंस्पेक्टर ने बताया कि जनाब राम लखन सिंह अपने तरीके के अलग ही कोतवाल हैं. जब भी कोई केस आता है पहले उसको नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाते हैं और इतना दिमाग चाट लेते हैं कि आदमी मुकदमेबाजी के बजाए मेल मिलाप कर के चला जाता है.
जैसे भाई-भाई के बीच का झगड़ा हो तो, वह रामायण सीरियल की सीडी लगवा कर दोनों को दिनभर दिखाते हैं और बीच बीच में अपने दो चार चेलों को लेकर बोलते रहते हैं, कि एक वह देखो भाई थे. कितना प्रेम और एक दूजे की चिंता. एक हरामजादे तुम लोग हो. भगवान का कोई डर है कि नहीं? कि ऊपर पहुँच कर क्या जवाब दोगे. खाली माया के चक्कर में एक दूसरे के दुश्मन बने हुए हो अभी. एक माँ के पैदा हुए, एक ही मां ने दूध पिलाया. फिर ऐसा क्या हो गया कि तुम लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए? चलो अभी तुम लोग थोड़ा मेडिटेशन करो. अपने कर्म और व्यवहार के विचार करो और अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनो. फिर मुझे बताओ कि अन्तर्मन का कलुष धुला कि नहीं? और अगर अपने अपने मेहरारू के इशारे पे नाचना ही है तो बोलो अभी एफ़आईआर करता हूं. मैं तो इसलिए समझा रहा हूँ क्योंकि अगर एक बार मुकदमा दर्ज हो गया तो साले कोर्ट कचहरी के चक्कर और तुम लोग तो खत्म हो जाओगे और तुम्हारी दुश्मनी में तुम्हारे बेटे पोते भी बर्बाद हो जाएंगे. देखो भारत और पाकिस्तान में चार बार भयंकर लड़ाई हुई . हजारों सैनिक शहीद हुए. फिर भी हर बार बातचीत का दौर चलाया जाता है, क्योंकि हमारे नेतागण और बड़े बड़े सचिव और अधिकारी लोग समझदार हैं. तुम लोगों की तरह जाहिल होते तो एक दूसरे पर परमाणु बम फेंक दिए होते. सत्यानाश हो गया होता पूरी धरती का. तो बोलो क्या चाहते हो सत्यानाश या आगे आने वाले दिनों में अपने परिवार की खुशहाली?
एलआईयू इंस्पेक्टर बोलता रहा, सर उनके इलाके में गैंगवार होता नहीं है, क्योंकि अब तक साठ से अधिक एनकाउंटर कर चुके हैं. बड़े-बड़े डकैतों की वैसे ही उनसे हालत खराब रहती है. दलित उत्पीड़न की कोई घटना नहीं होती. क्योंकि जब राम लखन सिंह चकिया में थे तो वहां एक ठाकुर साहब ने किसी दलित का घर जलवा दिया था. ठाकुर साहब निश्चिंत थे कि कोतवाल अपनी बिरादरी के हैं, इसलिए कुछ नहीं होगा. लेकिन शिकायत मिलने पर राम लखन सिंह ने न केवल उस ठाकुर को गांव के बीच में बेटों सहित लाठियों से पीटा और मूछें उखाड़ लीं बल्कि दलितों से पिटवाया भी और जिस दलित का घर जलाया था, उसको बोला अपनी चप्पल पर थूको. फिर उस थूक को ठाकुर को चटाया भी. इसके बाद घुटन और शर्म के मारे ठाकुर परिवार औने पौने दाम पर घर बेचकर कहीं और बस गया. और शेड्यूल कास्ट का ऐसा समर्थन उनको मिला कि चकिया से अचानक ट्रांसफर होने पर जनता ने जीटी रोड जाम कर दिया. जनता तभी मानी जब रामलखन सिंह खुद माइक लेकर पब्लिक से आग्रह किए कि भाई ट्रांसफर होना जरूरी है और मेरी मर्ज़ी से हुआ है. अब आप लोग की बहुत सेवा कर ली , दूसरों का भी करने दें. तब जाम खत्म हुआ और विदाई में तो पूछिए मत चकिया से मुगल सराय तक लोग रोक रोक के माला फूल बरसा रहे थे. कप्तान ने इस तारीफ से कुछ झुँझलाकर कहा , ये सब छोड़ो, तुम यह बताओ कि और क्या करता है रामलखन सिंह घटना की खबर दबाने के लिए. आखिर कोई तो खिलाफ बोलता होगा. सबको कैसे मैनेज कर सकता है कोई?
इंस्पेक्टर ने कहा, हुज़ूर उनकी सजा देने के तरीकों पर जनता का पुरजोर समर्थन रहता है. जैसे आजमगढ़ में एक बार उनके इलाके में बलात्कार की घटना हुई दोनों आरोपी पकड़ भी लिए गए उसके बाद उन्होंने उनको भीड़ के हवाले कर दिया और भीड़ को सलाह दी कि इन पापियों को जान से मार दोगे, तब तो इनको मुक्ति मिल जाएगी. मारने की जगह इन सालों का गुप्त अंग ईंट से कूच के बधिया कर दो ताकि ज़िंदगी भर इनको देखकर बहू बेटियों पर गलत नज़र डालने वालों की फट के हाथ में आ जाए. और उसके बाद दस साल के लिए बड़े घर भेजने का इंजाम मैं करता हूँ. और भीड़ ने वही किया. तब से राम लखन सिंह के इलाके में बलात्कार की कोई घटना नहीं हुई.
कप्तान ने चौंकते हुए पूछा कि मामला क्या अखबारों में नहीं आया या आजमगढ़ के एसएसपी तक बात नहीं पहुंची? इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया जनाब किसी पत्रकार की औकात नहीं है कि राम लखन सिंह के खिलाफ कुछ लिख दें. और ये बात कौन साबित करता कि पुलिस ने उन बलात्कारियों को भीड़ को सौंपा? एक बार किसी छेड़खानी की घटना में जब वह चेतगंज में थे तो उन्होंने उस लड़के को गधे पर बैठा कर, सिर मुड़ा कर, चेहरा काला सफेद करके घुमाया था. तब एक वरिष्ठ पत्रकार ने मानवाधिकार की दुहाई देते हुए उनके खिलाफ काफी कुछ लिखा. जिस पर तत्कालीन कप्तान साहब ने उनकी जमकर क्लास लगाई थी. उनको लिखित चेतावनी भी मिली थी. राम लखन सिंह ने इसका बदला इस प्रकार लिया कि अपने किसी आदमी को उस पत्रकार की बेटी के आर्य महिला डिग्री कॉलेज से निकलते हुए उसका दुपट्टा खींचकर और उसके साथ अश्लील हरकतें करते हुए बेनियाबाग की तरफ भागने को कहा और रास्ते में उसे पकड़ लिया उसका चेहरा भी कवर करवा दिया. मौके पर जब जनता और नेता , पत्रकार इकट्ठा हुए तो लोगों ने मांग की कि उसको नहीं ले जाने देंगे पहले हमारे हवाले करिए तब उन्होंने उसी पत्रकार की तरफ इशारा करते हुए कहा कि नहीं नहीं मानवाधिकार का मामला है. कोई मारपीट नहीं. हम इसकी काउंसलिंग करेंगे और अपने ही लोगों से जो कि पहले से भीड़ में घुसे हुए थे, धक्का-मुक्की करवाई और उस चक्कर में छेड़खानी करने वाले बंदे को धीरे से भगा दिया. उसको भगाने के बाद उस पत्रकार और 50 लोगों के खिलाफ पुलिस के कामकाज में बाधा डालने और अपराधी को भगाने में सहयोग करने का मुकदमा अलग दर्ज कर लिया. समूचे घटनाक्रम की रिकॉडिंग की व्यवस्था पहले ही उन्होंने कर रखी थी. इसके बाद थाने में भयंकर पिटाई की बात छोड़िए कोर्ट में सबूत सहित अभियोजन अधिकारी के साथ जाकर उस पत्रकार को एक साल की सजा करवा कर ही मानें. उस बेचारे की नौकरी गई और इज्ज़त भी. इसके बाद से कोई भी पत्रकार राम लखन सिंह खिलाफ लिखने से पहले हजार बार सोचता है.
कप्तान ने फिर झुँझला कर कहा यार फिर भी कुछ तो चोरी , पॉकेटमारी की घटना होती होगी इतने बड़े थाने के इलाके में. ऐसे कैसे मैनेज कर लेता है वो?
इंस्पेक्टर ने कहा , जनाब, आप नाराज न हों लेकिन उनका तरीका ही ऐसा है. छोटे मोटे चोरो, जेबकतरों की तो बात न पूछिए. कोई पकड़ में आ गया तो उसको पूरे थाने भर के स्टाफ के कपड़े लत्ते , झाड़ू पोछा, और माली का काम करने के बाद रात में उससे सभी लोग मालिश अलग से करवाते हैं. बड़े बड़े पहलवानों का दो दिन में काम कराकर कचूमर निकाल देते हैं. तीसरे दिन किसी पेंडिंग केस में नाम डालकर कोर्ट में पेश करवा देते हैं. अब ऐसे में कौन हिम्मत करेगा चोरी चकारी की. एक बार तो दस – बारह बदमाशों की जबर्दस्ती नसबंदी करवा दी यह कहते हुए कि इन सालों की सन्तानें भी एंटीसोशल ही होंगी. और मानवाधिकार उसके लिए है जो मानव वाला काम करे. लोगों ने भी सपोर्ट किया.
कप्तान ने माथा पकड़ लिया. फिर पूछा क्या पैसे नहीं लेता है रामलखन सिंह.
अबकी एलआईयू इंस्पेक्टर चुप रहा. सर इसकी जानकारी नहीं है.
कप्तान –“तब किस बात के एलआईयू इंस्पेक्टर हो? सारी कथा सुना रहे हो और असली मर्ज का पता नहीं. हुंह. “
इंस्पेक्टर ने थोड़ा सकपकाते हुए कहा, “सर अब कहाँ कहाँ तक कहें. बस समझ लें कि बालू का भी तेल निकाल लें रामलखन सिंह. सत्ता पक्ष के किसी नेता की हिम्मत नहीं कि उनसे मनमानी करा लें और विपक्षी पार्टियों की सिफ़ारिश सुनने के पैसे खूब लेते हैं. सीधे कहते हैं कि तुमलोगों की नेतागिरी हम मुफ्त में चमकने थोड़े देंगे. और भंडारे के नाम पर जिनका समझौता कराते हैं उससे चंदा भी जम के लेते हैं . ज्ञानपुर तहसील के तो वकीलों ने एक बार प्रदर्शन भी किया था इनके खिलाफ कि सारे मामले थाना स्तर पे ही सुलझा देते हैं जिससे कोई मामला कोर्ट में जाता ही नहीं था. वकीलों की रोजी रोटी पर आफत आ गई थी. “
कप्तान ने सिर पकड़ लिया. एलआईयू इंस्पेक्टर से कहा अच्छा जाओ. मैं इस रामलखन को देखता हूँ क्या चीज है ये.
इंस्पेक्टर ने चलते हुए कहा, जनाब एक विनती है. जाने भी दें ऐसे लोगों को अब पके घड़े पे मिट्टी चढ़ना तो संभव नहीं है. बाकी जो आज्ञा जनाब की. जय हिन्द
इसके महीने भर बाद ही दूसरी घटना घटी जिसने कप्तान साहब को और नाराज़ कर दिया. एक दिन रामलखन सिंह चिरई गाँव के पूर्व ब्लॉक प्रमुख शमशाद अली नेता के ईंटों के भट्ठे पर बाटी-चोखा-मटन की दावत पर गए थे. भोजन से पहले व्हिस्की का दौर चल रहा था. रामलखन सिंह चार-पाँच पेग के बाद आँखें रतनार कर चुके थे. भाषा भी कुछ बहकने लगी थी. नेता जी अब शमशाद भाई से होते हुए समसदवा में बदल चुके थे. शमशाद अली भीतर ही भीतर आशंकित थे कि कहीं रामलखन सिंह इसके आगे बढ़कर असंसदीय शब्दावली तक न बढ़ जाएँ! इसलिए उन्होंने अपने सम्बोधन को कोतवाल साहब से बदल कर ठाकुर साहब किया. फिर उनको याद आया कि ठकुरइति के ताव में कहीं कोतवाल महोदय मुसलमानों के लिए ठाकुरों की परंपरागत शब्दावली तक न पहुँच जाएँ, इसलिए उन्होंने रामलखन सिंह को अपना बड़ा भाई घोषित किया,” देखिए भाई कोतवाल साहब हमारे बड़े भाई हैं, इनके नाम में भले ही लखन लगा हो लेकिन इनके लखन हम ही हैं ” यह कहते हुए शमशाद अली ने उनके चरण छू लिए. शायद इस दास्य भाव वाली भक्ति का परिणाम था कि नशे का सुरूर दब गया और रामलखन सिंह ने शमशाद अली के लिए उन शब्दों का प्रयोग नहीं किया जिनसे अन्य मेहमानों को नवाजा जिसमें कुछ छुटभैये नेता, पत्रकार और एक डॉ साहब भी थे, . महफिल अपने रंग पर थी कि 9:40 बजे के आस पास ज़िला नियंत्रण कक्ष से सूचना वायरलेस पर प्रसारित हुई. भट्ठे पर उनकी जीप का वायरलेस रह रह कर संदेश दे रहा था. हमराह सिपाही ने तुरंत रामलखन सिंह को बताया सर कंट्रोल रूम से मैसेज है कि लालपुर पेट्रोल पम्प से कुछ बदमाश कैश लूटकर पाण्डेयपुर की तरफ भागे हैं. तुरंत नाका बंदी की जाए. लालपुर रामलखन सिंह के इलाके में नहीं आता था लेकिन भट्ठे से लालपुर बहुत ज्यादे दूर न था . लालता प्रसाद पत्रकार ने कहा भी कि कोतवाल साहब बस मीट तैयार है, खाकर निकलें. लेकिन रामलखन सिंह ने अपने फर्ज़ को तरजीह दी . कड़क स्वर में बोले अबे चार पीढ़ी से पुलिस का खून दौड़ रहा है. रुका न जाएगा. तुम भकोसो साले परजीवी पत्रकार. हम त चले फर्ज़ निभाने कहकर खड़े हुए. बेल्ट ठीक करते हुए वे जीप की तरफ बढ़ रहे थे कि मीट के भगोने से खुशबू का झोंका आया. शमशाद अली ने भी कहा पता नहीं क्या किस्मत है, इतना मज़ा आ रहा था भईया के साथ. अब बिना खाए भईया जा रहे हैं तो बड़ा बुरा लग रहा है. खैर क्षत्रिय खून हैं ललकार पर चुप नहीं बैठ सकता. भईया अगर रास्ते में मिलें बदमाश न तो वहीं एनकाउंटर कर दीजिएगा सालों का. सब रामलखन सिंह को जीप तक पहुँचाने के लिए चले ही थे कि उन्होंने अपने हमराह को आवाज़ लगाई- “अबे जनार्दन”
“जी साहब”
“अबे, गाड़ी में टिफिन वगैरह है?”
“हाँ सर! है. मेरा और रमाशंकर का भी है.
“तो ऐसा करो, थोड़ा खाना रख लो टिफिन में. बाद में खा लिया जाएगा . इतने मोहब्बत से समसदवा इंतजाम किया है तो उसको उदास नहीं करेंगे. और हाँ थोड़े पीस ज्यादा रख लेना. सीओ साहब को भी चिखाया जाएगा. चावल वगैरह रहने देना किसी होटल से ले लेंगे.“
इशारा मिलते ही दोनों जवानों ने बड़े बड़े चारखाने वाले टिफिन के खानों में पर्याप्त सामग्री और मटन के मनपसंद पीस उदारता से भर लिए.
इसके बाद रामलखन सिंह रवाना हुए. उनके जाते ही शमसाद ने कहा , “देख रहे हैं डॉ साहब. ई पुलिसवालों को जरा भी लाज सरम का एहसास नहीं है. सारा बढ़िया पीस उठा ले गए . हमारे लिए तरी छोड़ गए हैं. और ड्राईवरवा तो साला बची हुई बोतल भी दबा ले गया.“
लालता पत्रकार ने समर्थन किया, “सही बात नेताजी. ये तो फर्ज़ निभाने के नाम पर साक्षात डकैती है. बाटी भी घी में डुबाके लेने के बजाए टिफिन में ही घी भर लिया. दाल भात नहीं ले गए. होटल का नाम सुना रहे थे. अगर मैंने कल पेपर में नहीं छापा कि फर्ज़ के लिए भोजन छोडकर भागे कोतवाल सारनाथ तो मौका मिलते ही पीकर गरियाएंगे.“
डॉ साहब बोले “अब जाने दीजिए . बला टली मान के भोजन कीजिए. चोखा और खीर तो छोड़ गए हैं ना. हो जाएगा. मटन भी दो दो पीस हो जाएगा. बाकी दाल है ही. “
इधर रामलखन सिंह मौका ए वारदात पर सबसे पहिले पहुंचे. पेट्रोल पम्प पर पहुँचते ही उन्होंने वायरलेस पर संदेश दिया, “डीसी वाराणसी कंट्रोल रूम. इंस्पेक्टर सारनाथ घटना स्थल पर पहुँच चुके हैं. बदमाशो के हुलिये की पहचान नोट करें. चश्मदीदों के अनुसार दो बदमाश हीरो होंडा पर हैं. पीछे वाले बदमाश की दाढ़ी है और आगे वाले ने पीली कमीज पहनी है गाड़ी नं 8278 लाल हीरो होंडा, ओवर.“ सूचना पूरे ज़िले में प्रसरित कर दी गई. तबतक मैनेजर भी आ गया था. लूटे हुए कैश का विवरण लेने के बाद उसको दो चार गलियाँ दी कि दुनिया सीसीटीवी लगा के बैठी है और तुम बदमाशों को नेवता दे रहे हो. फिर पूछा, “कबे एक बंदूक धारी प्राइवेट गार्ड नहीं रख सकते .“
“सर दो साल से रखे थे. कोई वारदात हुई नहीं. वैसे ही इधर चहल पहल रहती है और इधर सेक्योरिटी एजेंसी वाले बंदूक धारी गार्ड के 20 हज़ार मांग रहे थे. कमीशन अलग. इसीलिए दो महीने पहले हटा दिए. मालिक के पास लाइसेंसी पिस्तौल है ही.“
“बेवकूफ़ कहीं के वारदात नहीं हुई तो सुरक्षा हटा दिए. साले तुमको रक्षा मंत्री बना दिया जाए तो दस बीस साल युद्ध ना होने पे सेना ही हटा दोगे. अब बोलो, सावधानी हटी दुर्घटना घटी. “
इतने में एक और पुलिस जीप आई. थानाध्यक्ष लालपुर की. आते ही एसओ लालपुर ने जयहिंद किया और पूछताछ की कमान संभाल ली. बेमन से उसने रामलखन सिंह के मौके पर तुरंत पहुँचने की तारीफ की. लेकिन मन इसी सवाल में उलझा रहा कि इतनी जल्दी यहाँ कैसे पहुँच गए. एसओ लालपुर के आने के बाद रामलखन सिंह कि कोई भूमिका नहीं थी. वो चलने को ही थे कि मैनेजर को बुलवाया और बोले. हाँ बेटा सुन जरा जीप की टंकी फुल करवा दे. हमारे थाने का खाता तो आशपुर के राधाकृष्ण बिमलकुमार के यहाँ है. खबर मिलते ही भागे आए. जीप अब रिजर्व में आने वाली है. हाँ जरा जल्दी करा दे. फिर ड्राईवर को आवाज देकर बोले मोहन सिंह प्रापर पर्ची ले लेना.
टंकी फुल होने के बाद जीप में बैठते हुए उन्होंने ड्राईवर से तसदीक की. पर्ची ले लिए हो ना. तब तक एसओ लालपुर ने कहा-“अरे सर रहने दें अपने चेले को भी कुछ सेवा का मौका दें. अगले हफ्ते आइए थाने पे मुर्गा बनवाता हूँ. भाई साहब आर्मी में हैं आपके लिए कुछ विलायती समान भेजे हैं कहते हुए एसओ मुस्कराए.“
रामलखन सिंह ने फिर रीझते हुए कहा- “अरे नहीं यार कोई और दिन होता तो बात अलग थी. आज ही इसके यहाँ लूट हुई है और आज ही टंकी फुल करवाना बिना पर्ची कुछ जम नहीं रहा.“
अबकी मैनेजर बोला- “अरे सर शर्मिंदा न करें. एक तो आपकी तेज़ी से हम सब बहुत सेफ महसूस कर रहे हैं. और इतना तेल तो ट्रक वाले ऑइल कंपनी से आने जाने में छलका देते हैं. पर्ची की बात मालिक ने सुन ली त हमारी तो खटिया खड़ी कर देंगे.“
रामलखन सिंह कुछ बोलते उसके पहले ही ड्राईवर मोहन सिंह बोल पड़ा- “सर ई लोग खानदानी लोग हैं. इनके मालिक तो बहुते व्यवहारिक हैं.“
तभी वायरलेस पे संदेश आया कि बदमाश पिसनहरिया तिराहे के आगे पंचकोशी रोड पर पकड़े गए हैं. रामलखन सिंह ने एसओ से कहा –“बधाई हो यार. तुम्हारा केस साल्व हो गया. चलो मुल्ज़िम बरामद करो.“ मैनेजर ने जोशीले अंदाज़ में नारा लगाया, “कोतवाल साहब ज़िंदाबाद!” पेट्रोल पंप कर्मियों ने उत्साहपूर्वक इसे तब तक दोहराया जब कोतवाल साहब ने स्वयं न कह दिया- “अरे भाई बस करो , इ टीम वर्क का नतीजा है और तुम लोग भी गाड़ी का नंबर नोट न किए होते तो साले नौ दो ग्यारह हो जाते .“ एसओ ने खुश होकर पीक कैप उतारा और रामलखन सिंह के घुटनों को छूते हुए कहा “सर, आपने जो निशानदेही की कि कहाँ जाते इसकी माँ की साले सब. चलिए चला जाए.“
रामलखन सिंह ने कहा अब चलो खाना खाकर ही चलते हैं. तब तक ड्राईवर ने पेट्रोल पंप के एक कर्मचारी से हाइल्यूब इंजिन ऑइल का एक गैलन भी मंगा लिया था.
भोजन के बाद दोनों जीपें चलीं . वायरलेस पर एसओ लालपुर ने मैसेज प्रसारित किया कि हम और कोतवाल साहब पिसनहरिया आ रहे हैं मुल्ज़िम बरामद करने.
चार-पाँच पेग का सुरूर, अपनी कोशिश की सफलता और स्वादिष्ट भोजन के असर से रामलखन सिंह बहुत खुश थे. दूसरे थाने के इलाके में अपने लिए ज़िंदाबाद के नारों से उनकी छाती चौड़ी हुई जा रही थी. सायरन बजाते हुए दोनों गड़ियां आधा रास्ता तय कर चुकी थीं कि पुनः वायरलेस पर संदेश आया, “ डिस्ट्रिक्ट कंट्रोल रूम ओवर. टाइगर महोदय का आदेश नोट करें एसओ लालपुर के लिए कि घटना स्थल पर पहुंचे और कोतवाल साहब को आने की जरूरत नहीं . वे अपने इलाके में ही रहें वहीं गश्त करें, ओवर.“ टाइगर महोदय अर्थात कप्तान साहब!
यह सुनते ही एसओ लालपुर ने कहा, “अरे सर, ये क्या आदेश है! आपके साथ चलता तो मेरा भी मनोबल बढ़ता. अब लगता है कप्तान साहब क्लास लेंगे कि तुमसे पहले इंस्पेक्टर साहब कैसे पहुंचे? अब बस जलील ही होना है. ठीक है सर हम अपनी गाड़ी में चलते हैं. गाड़ी रोको मोहन.“
एसओ के जाने के बाद रामलखन सिंह की जीप वापिस लौटने लगी. रामलखन सिंह को यह अपमान सा लगा कि घटनास्थल पर जाने के लिए तो आदेश दिया गया लेकिन जब प्रेस के सामने तारीफ बटोरने का वक़्त आया तो उनको वापिस कर दिया गया. उन्होंने वायरलेस का माइक लिया और बोले- “डीसी बनारस फ्राम कोतवाल रामलखन सिंह ओवर. “
डीसी से वायरलेस ड्यूटी कांस्टेबल की आवाज़ आई, “जय हिन्द सर बताएं क्या खबर है ओवर.“
“ कहना है कि टाइगर महोदय को सूचित किया जाए कि कोतवाल का कोई इलाका नहीं होता. इलाका तो हिजड़ों का, कुत्तों का, भूतों का या गुंडे माफियाओं का होता है. कोतवाल अपनी मर्ज़ी का मालिक होता है, जहां उसकी जरूरत होती है पहुँच जाता है. सजनों का सजन मेरा नाम है लखन. ओवर .“
इस प्रसारण को यद्यपि कप्तान ने नहीं सुना लेकिन बात किसी न किसी तरीके से उन तक पहुँच गई. कप्तान को बहुत गुस्सा आया. इधर महकमे के लोग भी रामलखन सिंह के ऊपर गाज गिरने की राह देखने लगे.
तीन हफ्ते तो ठीक ठाक बीते. इस बीच रामलखन सिंह का कप्तान साहब से दो बार सामना हुआ. एक बार श्रीलंका के राष्ट्रपति के सारनाथ दौरे पर और दूसरी बार अंबेडकर प्रतिमा के क्षतिग्रस्त होने पर हुए चक्का जाम के संबद्ध में. दोनों ही अवसरों पर कप्तान ने सीओ से ही बातचीत की. रामलखन सिंह के अभिवादन का उत्तर भी इशारे से ही दिया.
लेकिन आज पहड़िया फल व सब्जी मंडी के सामने गाजीपुर रोड पर विपक्षी पार्टी के चक्का जाम और लाठी चार्ज के कारण उनको दोषी मानकर लाइन हाजिर कर दिया. और कोतवाली का चार्ज एसएसआई को दे दिया. कोई सही वजह होती तो रामलखन सिंह बुरा न मानते. अपने सेवाकाल में बीसियों बार वे लाइन हाजिर हो चुके थे. लेकिन आज इस लाइन हाजिर का कारण उनको कचोट रहा था. थोड़ी ही देर में उनकी मंडली के शुभचिंतक थाने पर पहुँचने लगे.
पुलिस लाइन में आमद से बचने के लिए उन्होंने उसी भट्ठे वाली मंडली के डॉक्टर से बीमारी का एक प्रमाणपत्र ले लिया जिसमें एक हफ्ते का बेड रेस्ट था.
कुछ देर में शमशाद अली आए और उनके साथ सत्ताधारी पार्टी के नगर महामंत्री प्रेमचंद, लालता पत्रकार, डॉक्टर साहब आदि थे. सबने अपनी अपनी योजना प्रस्तुत की कि कैसे तबादला निरस्त कराया जाए. किसी ने डीआईजी से तो किसी ने कमिशनर से , किसी ने ज़िले के प्रभारी मंत्री से सिफ़ारिश की बात की.
रामलखन सिंह ने शमसाद अली को संबोधित करते हुए कहा , “नेता जी ई सब टिटिहरी प्रयत्न छोड़िए. ठोस जुगाड़ भिड़ाइए. आपको पता ही है. कप्तनवा सिस्टम में है नहीं. नगद नारायण से परहेज है साले को. हमेशा सर्विलान्स रूम में बैठा रहता है. याद है सांसद जी के भाई की नकली दवा वाली एजेंसी वाले केस में जेल भेज के ही माना. कई बार तो एफ़आईआर बदलवा देता है अगर सही धारा नहीं लगी तो. और पंद्रह दिन बाद निकाय चुनाव की आचार संहिता लागू हो जाएगी. फिर तबादला लंबा लटक जाएगा. बिना हाइकमान के फोन से बात नहीं बनेगी. चलेंगे लखनऊ आप लोग मेरे लिए?”
प्रेमचंद बोले- “जरूर चलेंगे भाई साहब. आपके लिए लखनऊ क्या दिल्ली तक चलेंगे.“
रामलखन सिंह फिर बोले, “लालता बाबू आप देखिए अपने लखनऊ वाले ब्यूरो चीफ या क्राइम रिपोर्टर से अगर कुछ बात बने तो . और हाँ डॉ साहब आप मेरी किसी बीमारी का हवाला देकर मुझे संजय गांधी पीजीआई लखनऊ रेफर कीजिए नहीं तो अगर मैं बेडरेस्ट के नाम पे लखनऊ गया तो कपतनवा मेडिकल बोर्ड बैठा देगा और आपकी भी छीछालेदर हो जाएगी.“
डॉ साहब ने कहा – “अगर अब तक आप अशोकनगर वाला मेरा मकान खाली करा दिए होते तो मैं एक हॉस्पिटल खोलता और वहीं रिपोर्ट बनाकर लखनऊ रेफर कर देते.“
रामलखन सिंह ने जवाब दिया, “अरे भाई चिंता काहे कर रहे हैं. 30 सितंबर की शाम तक कोर्ट का स्टे है किराएदारों के पास . रात को ही आपका कब्जा. वादा रहा.“
डॉ साहब बोले , “वो तो मैं यूं ही कह रहा था. आप चिंता न करें , मैं कबीरचौरा हॉस्पिटल के न्यूरोलोजी वाले दुबे जी से रेफर करवाता हूँ.“
अंततः तय हुआ कि रामलखन सिंह के साथ लालता , शमशाद व प्रेमचंद तीनों कल शाम लखनऊ चलेंगे. तब तक वहीं रहेंगे जब तक मुख्यमंत्री से मुलाक़ात नहीं हो जाती . साथ में उनका कारखास सिपाही परमहंस राय भी चलेगा.
उनके जाने के बाद रामलखन सिंह ने परमहंस को एक 8 सीटर गाड़ी की व्यवस्था के लिए कहा. जैसे ही परमहंस ने कहा साहब हम कुल 5 लोग हैं, स्कॉर्पियो में आ जाएंगे.
रामलखन ने ज़ोर देकर कहा नहीं इनोवा या टवेरा ही रखो. लाइन पार मस्जिद से एक मौलाना और एक थाइलैंड वाले बुद्ध मंदिर के लामा को भी ले चलेंगे. माइनारिटी का असर गहरा पड़ता है.
उधर कोतवाली से निकलते ही तीनो सज्जन आपस में बात करने लगे. शमशाद अली ने कहा, “देखिए आज कैसे चूहे की तरह बात कर रहा है नेताजी, नेताजी . उस दिन समसदवा कह रहा था और आज लालता भाई को भी लालताजी कह रहा है जबकि दावत वाले दिन परजीवी पत्रकार और न जाने क्या क्या बोल रहा था. अब औकात पता चली है ससुर को. जिस तरह से उस दिन इसने सारी दावत का मजा खराब कर दिया जी तो करता है कि भाड़ में जाने दें साले को लेकिन पुलिस की जात ही ऐसी है. और हम सब को किसी न किसी रूप में थाने से काम पड़ना ही है इसलिए समझ लीजिए कि जीती मक्खी निकल रहे हैं. चलिए ट्रांसफर रुके या न रुके, भाड़ में जाए राम लखन सिंह. असली मुद्दा यह है कि तीन दिन तक लखनऊ भ्रमण और खातिर भाव का एक अलग ही मजा रहेगा. मुख्यमंत्री जी से मुलाकात होती है तो ठीक उस का अपना अलग फायदा है और नहीं होती है तो राम लखन की किस्मत जानें.“ लालता प्रसाद ने सुर में सुर मिलाया, “सही कह रहे हैं प्रमुख जी हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू है ट्रांसफर रुकेगा तो हमारा चेला बन कर रहेगा और अगर नहीं रुका तो भाड़ में जाए . नया जो आएगा उस से नाता जोड़ लिया जाएगा. सरकार तो अपनी है ही , कहो प्रेमचंद भाई गलत कह रहे हैं?” प्रेमचंद ने भी पुरजोर समर्थन किया, “नहीं भाई साहब बिल्कुल सही कह रहे हैं. वैसे यह जान लीजिए कि अपने इलाके का कोतवाल अगर आपका एहसानमंद हो तो बात ही कुछ और होती है. छोटी मोटी चीजों को तो फोन पर ही हल किया जा सकता है. अब देखिए ना स्कूटर मोटरसाइकिल छुड़वाने के लिए भी थाने पर आना पड़ता है. अगर कोतवाल कब्जे में रहेगा तो फोन से आदेश दीजिए . वहीं बैठे बैठे काम करेंगे जनता में भी मैसेज जाएगा कि नेताजी की कितनी चलती है.“
अगले दिन 11 जुलाई की सुबह कचौड़ी सब्जी जलेबी का नाश्ता करने के बाद एक टवेरा गाड़ी में सवार होकर सभी लोग लखनऊ के लिए निकल पड़े. रास्ते में सुल्तानपुर के ढाबे पर सबने दोपहर का भोजन किया और शाम तक लखनऊ पहुँच गए. विधान सभा के पास ही रॉयल होटल में चार कमरे लिए गए. रामलखन सिंह प्रेमचंद से एक मुलाक़ात के लिए प्रार्थना पत्र लिखवाकर कालिदास मार्ग पर मुख्यमंत्री आवास के दफ्तर गए. वहाँ सुरक्षा में तैनात एक इंस्पेक्टर से सिफ़ारिश लगवा करके और बड़े बाबू को एक लिफाफा पकड़ा कर यह कहते हुए कि बिटिया की शादी में आ नहीं पाया था सो उसका सगुन है, उन्होंने 13 तारीख को 11 बजे दिन में मुलाक़ात का समय पा लिया. इसके बाद वे होटल लौट कर देखते हैं कि उनका कारखास परमहंस लॉबी में कुछ परेशान बैठा है. उसने बताया कि लामा और मौलाना को छोडकर बाकी तीनों होटल के बार में व्हिस्की और काजू लिए सिगरेट की कश लगा रहे हैं. परमहंस ने धीरे से कहा , “साहब बनारस से 2 बोतल ले के चले थे कि जरूरत पड़ेगी तो कमरे में कुछ चखना वगैरह मंगाकर काम हो जाएगा. लेकिन ई ललतवा इसकी बेटी की सबको लेकर बार में बैठ के पी रहा है. भुक्खड़ साला पत्रकार . चार पेग में तो बोतल का दाम के बराबर हो जाएगा. और साले दबाकर चिकन अ मटन टिक्का खा रहे हैं जैसे यही भोजन हो.“
रामलखन सिंह बोले, “कोई बात नहीं . धीरज रखो. एक एक चीज का हिसाब होगा. सेती की गंगा तो हरामी का गोता. खैर लमवा और उ मौलनवा कहाँ हैं?”
परमहंस ने बताया , “सर लमवा तो शाम को खाता नहीं. डमरू घुमाके कुछ पूजा पाठ कर रहा है शायद चाइनिज भाषा में . और मौलाना की बहन नखास पे रहती है वहीं मिलने गया है.खा के आएगा. सौ ठो रुपया दे दिए थे आने जाने का किराया.“
“चलो ठीक है. उस मियां से कह देना सेरवानी वगैरह प्रेस कराके और जूता पालिस करवा के रखेगा, परसों सुबह का टाइम है मिलने का.“
फिर बार की तरफ बढ़कर उन्होंने शमशाद अली की तरफ मुखातिब होते हुए कहा, “आहा महफिल पूरे रंगत पर है.“
तभी लालता प्रसाद बोल पड़े- “अरे कोतवाल साहब बस आपका ही इंतज़ार कर रहे थे. लेकिन उस दिन भट्ठे पे जो महफिल थी उसका कोई जवाब नहीं. लीजिए आप भी.“
रामलखन सिंह ने दो पेग लिए . फिर सबने खाना खाया. तीनों सज्जन मटन जहांगीरी, रोगन जोश, नरगिसी कोफ्ते, दाल बुखारा, गलौटी के कबाब, चिकन अफगानी, कीमा पराँठा, नान और मिस्सी रोटी के अलावा शीरमाल फ़ीरनी, कुल्फी का बेहिचक और बेधड़क ऑर्डर देते रहे. भोजन के उपरांत बिल साइन करते हुए रामलखन सिंह ने देखा लगभग साढ़े चार हज़ार की रकम लिखी थी.
भोजन के बाद कमरे के लिए चलते हुए प्रेमचंद ने एक वेटर को बोला, “ऊपर कमरे में पानी भिजवा दीजिए.“
वेटर ने पूछा “सर, रेगुलर या बोटल्ड?”
लालता तपाक से बोल पड़े “अरे भाई, मिनरल वॉटर नहीं जानते? वही भेज दो. और साढ़े पाँच बजे हम लोग बेड टी लेंगे. “
रामलखन सिंह कमरे में आकर परमहंस से उन तीनों की ऐय्याशी पर चर्चा कर ही रहे थे कि दरवाजे की घंटी बजी. परमहंस ने दरवाजा खोला. सामने वेटर था. उसने भीतर आकर बताया कि बगल के लोगों ने 4 बोतल हिमालय मिनरल वाटर ऑर्डर किया और बिल पे साइन करने के लिए आपके पास भेजा है.
बिल साइन करते हुए परमहंस लगभग चीख पड़ा- “ये क्या लूट है भाई? पानी मंगाया है न? कोई दूध की बोतल या बीयर तो नहीं मंगाई है. 4 बोतल का 240 रुपया. मज़ाक है? “
वेटर ने जवाब दिया, “सर ये मिनरल वाटर है. पैकेज्ड ड्रिंकिंग वॉटर नहीं है, जो आप सोच रहे हैं कि 15 -20 रुपया बोतल मिलता है. ये हिमालय की चोटियों से पैक होकर आता है. लोकल वाटर नहीं है.
इस बार रामलखन सिंह ने चुप्पी तोड़ी – “अबे सारा पानी ही हिमालय से आता है. सब लूट है हरामखोर कंपनियों की. चलो अब साइन कर दो यार. ई साले घर में हैंडपंप का पानी पीते हैं इहाँ मिनरल वाटर मांग रहे हैं. एक बार तबादला रुक जाए फिर इस लालता के बच्चे की पत्रकारिता हम उसके अमुक में डाल देंगे.“
परमहंस ने फिर चिंता व्यक्त की- “सर, सीएम साहब से परसों भेंट है. अगर ई साले ऐसे ही खर्च कराते रहेंगे तो फिर कहीं पैसा कम न पड़ जाए. और ई लालता पत्रकार रिसेप्शन पे पूछ भी रहा था कि बढ़िया चिकनकारी वाले कपड़े कहाँ मिलेंगे? ये प्रेमचंद भी कुछ खुसुर फुसुर कर रहा था.“
राम लखन सिंह ने कहा ओह ,साले भट्ठा बैठा देंगे ऐसे तो. रुको कुछ जुगाड़ करता हूँ. फिर छत की तरफ देखते हुए दो-तीन मिनट तक कुछ सोचते रहे. फिर अचानक बोले, “परमहंस सुबह का नाश्ता तो होटल के चार्ज में शामिल है न?”
“जी हाँ सर. ब्रेकफ़ास्ट कम्प्लीमेंटरी है .”
रामलखन सिंह ने तुरंत रिसेप्शन को फोन मिलकर शमशाद के कमरे से कनेक्ट करने को कहा. शमशाद अली की आवाज़ आते ही वे बोले- “अरे नेताजी सीएम साहब से मिलने का समय तो परसों है. क्यों न कल ग़ाज़ी मसूद सालार साहब की दरगाह तक माथा टेक आते हैं? ढाई घंटा जाना ढाई घंटा आना. आप जानते ही हैं पुलिस की नौकरी में समय मिलता कहाँ है. लगता है गाजी बाबा का बुलावा आया है इस बहाने. “
शमशाद ने कहा, “ख्याल तो अच्छा है. रुकिए लालता जी से पूछ लूँ. प्रेम भाई तो सो गए.“
रामलखन सिंह तुरंत बोले- “अरे पूछने का क्या है. मौलाना तैयार हैं ही. गाज़ी साहब का बुलावा आने पर कोई रुकता है भला. कल इन लोगो को भी ले चलिए. सब मिलकर चादर चढ़ाते हैं” और गुड नाइट कहते हुए फोन रख दिया. फिर परमहंस की ओर मुखातिब हुए- “देखो दरगाह के नाम पे शमसदवा और मौलनवा मना करेंगे नहीं. लामा कुछ बोलेगा नहीं. फिर इ दूनों साले इहाँ रह के घंटा उखाड़ेंगे. इनकी माँ की साले चिकन कारी का सूट लेंगे. और ढाई घंटा नहीं कम से कम एक तरफ से साढ़े तीन घंटा लगेगा. रास्ते में कैसरगंज के पास एक अपने चेले का दशहरी आमों का बाग है. उसके यहाँ बाग में ही लंच कर लिया जाएगा. शाम को थक थका कर आएंगे तो बाज़ार जाने की हिम्मत नहीं रहेगी. कल सालों को कमरे में ही पिया उवा के सुता दिया जाएगा. हरामखोर साले भिखमंगे. सब माले मुफ्त दिले बेरहम बन रहे हैं.“
अगली सुबह नाश्ते के दौरान लालता और प्रेमचंद ने न जाने की थोड़ी बहुत कोशिश की. प्रेमचंद ने जैसे ही कहा ‘जरा इमामबाड़ा देखना था और दारुलशफा और पार्टी दफ्तर भी जाने की सोच रहा थ‘, रामलखन सिंह बोल पड़े, “अरे नेता जी एक बार ग़ाज़ी मियां की रहमत हो गई फिर अगले चुनाव में एमएलए या एमएलसी बनके यहीं विधायक निवास में रहिएगा और इमामबाड़ा में बैठ के शतरंज खेलिएगा नवाबों की तरह.“ वाक्य पूरा होते ही मौलाना और शमशाद ने एक सुर में कहा, “आमीन !” फिर कोई मना करने की हिम्मत न कर सका.
नाश्ते के बाद सभी बहराइच के लिए निकले. दरगाह में चादर चढ़ने और ज़ियारत करने के बाद वापसी में सभी कैसरगंज के पास घाघरा नदी के किनारे रामलखन सिंह के चेले कौशलकिशोर के यहाँ रुके. दोपहर का भोजन सामान्य ही था लेकिन बाल्टी भर खुशबूदार दशहरी आमों ने सारी कमी पूरी कर दी. रामलखन सिंह के अलावा सभी ने जी भर आम खाए. थोड़ा आराम किया और चलने से पहले चाय पी रहे थे कि परमहंस ने रामलखन सिंह को अलग बुलाया.
अलग होते ही उसने कहा, “ साहब अभी तो तीन ही बज रहे हैं. दो ढाई घंटे में लखनऊ पहुँच जाएंगे. फिर ससुरे आम खाकर ताज़ा हो गए हैं. कहीं मार्केटिंग के लिए बोलने लगे तब?”
रामलखन सिंह बोले, “हाँ यार हमको क्या पता था कि फोरलेन सड़क बन गई है, इतनी जल्दी बहराइच पहुँच जाएंगे. मंदिर होता तो रुद्राभिषेक आदि में एकाध घंटा और निकल जाता. दरगाह में तो चादर चढ़ाए काम खत्म. मंत्र भी ज्यादा है नहीं. खैर रुको कुछ दिमाग लगाते हैं. ऐसा करो ड्राईवर से कहो गाड़ी में कोई खराबी बता दे हम सब यहीं आराम करते हैं.“
“सर ये गाड़ी वाला डॉ साहब का पड़ोसी है. बात को कान्फीडेन्शियल रखेगा , इसमें शक है. कुछ और सोचिए. क्यों न हम चलते समय अंबेडकर पार्क वगैरह में टाइम काटें.“
रामलखन बोले, “नहीं यार इस उमस में कौन बैठेगा? रुको कुछ सोचता हूँ.“ फिर वो वापिस वहीं आए जहां लोग बाकी लोग बैठे उत्सुकता पूर्वक उन्हीं की तरफ देख रहे थे. तब तक एक आइडिया उनके दिमाग में आ गया और मुख से चिंता की बजाय आत्मविश्वास झलकने लगा.
लालता ने पूछ ही लिया, “क्या बात है कोतवाल साहब जो दीवान जी आपको उधर ले जाकर बता रहे हैं?”
रामलखन सिंह पहले थोड़ा हँसे “ह ह ह. अरे कुछ नहीं परमहंस कह रहा है कि लौटते हुए बाराबंकी के बजाय देवा शरीफ की तरफ से दर्शन करते हुए चला जाए. कहीं मैं सबके सामने मना न कर दूँ, इसलिए अलग से कह रहा था. लेकिन आप लोग थक गए होंगे इसीलिए मैंने ये प्रस्ताव अभी तय नहीं किया.“
लालता कुछ कहने ही जा रहे थे कि कौशलकिशोर ने उनकी बात काटते हुए कहा, “बिलकुल नेक ख्याल है. देवा शरीफ से कोई खाली हाथ नहीं लौटा है आज तक. वहाँ से जाने में महज़ आधे घंटे का फर्क समझें. समझ लीजिए बाइपास वाले पुल में मेरे बगीचे का कुछ हिस्सा एनएचएआई वाले मांग रहे थे. सर्वे भी कर गए. बस हमने देवा शरीफ सरकार के यहाँ गुहार लगाई और आप माने न माने एनजीटी ने पर्यावरण की मंजूरी नहीं दी. वरना आज इस पेड़ वाला आम न खा रहे होते.“
तब तक मौलाना ने भी सहमति दी- “एकबारगी तो यह ख्याल मेरे मन में भी आया लेकिन कुछ हिचक सी हो रही थी कहने में. बहुत ही नेक ख्याल है.“ शमशाद ने भी सुर मिलाया- “दीवान जी मान गए आपको. आपने दिल जीत लिया.“
परमहंस कभी रामलखन सिंह को तो कभी लालता पत्रकार को देख मन ही मन मुस्कुरा रहा था.
जैसे ही वे लोग कुछ आगे बढ़े. पीछे की सीट पर से परमहंस ने आवाज़ दी , “अरे ड्राईवर साहब थोड़ा धीमे चलो गाड़ी बहुत उछल रही है.“ आगे बैठे रामलखन सिंह ने तुरंत कहा, “जल्दी किस बात की है बे? कहीं लड़ भिड़ गए तो इस इलाके में में सीधे गाड़ी फूँक देते है. कुटाई अलग से. हम भी बचा न पाएंगे.“ और गाड़ी की रफ्तार अस्सी से पचपन आ गई. फिर रामलखन सिंह ने मौलाना को पहली बार इज्जत देते हुए कहा- “मौलाना साहब कुछ ऐसी पूजा नहीं होती आपके यहाँ जिसमें काम सिद्ध होने के लिए संकल्प किया जाए.“
मौलाना ने कहा, “जी जनाब बहुत सी दुआएं हैं. दुरूद शरीफ़, सूरा ए फ़ातिहा, आयतल-कुर्सी, चार क़ुल, लाहौल हैं इनके साथ या हफ़ीज़ या सलाम‘ और कई सूरतें भी हैं. मैंने सालार साहब की दरगाह में पढ़ी थी. आप चिंता न करें इस बार पूरे तरीके और अमल से पढ़ूँगा.“
रामलखन सिंह ने कहा- “भाई सभी के लिए पढ़िएगा. सबको दुआ चाहिए.“ मौलाना बोले- “बेशक”
देवा शरीफ में ज़ियारत आदि करने में शाम हो गई सूरज डूब चुका था. रामलखन सिंह और परमहंस मन ही मन प्रसन्न थे. ड्राईवर ने फिर तेज गाड़ी भगाना चाहा तो अबकी उसको न टोक कर रामलखन सिंह ने फ़्लाइओवर के बजाए बादशाह नगर की क्रॉसिंग वाला रास्ता बता दिया जो कि एक बार बंद होकर आधे आधे घंटे बंद ही रहता है. फिर शाम की भीड़ में धीरे धीरे चलते साढ़े आठ बजे वे सब होटल पहुंचे. नहा धोकर लगभग नौ बजे मौलाना के अलावा तीनों रामलखन के कमरे में आए. दिन भर दरगाह और कल समय से मुख्यमंत्री के यहाँ पहुँचने के कारण बोतल नहीं खोली गई. तेल मसाले के अधिक इस्तेमाल पर होटल को कोसते हुए रामलखन सिंह ने कमरे में ही एक दाल, दो सब्जी, चावल और फुल्के मंगा लिए. परमहंस ने खबर दी कि सामने बहुत अच्छा घेवर और कढ़ाई का दूध मिलता है. खाना आने पर बिल साइन करते हुए परमहंस बहुत खुश था. रकम हज़ार तक भी न पहुँच सकी थी. प्रेमचंद के लेटरहेड पर सारा मजमून रामलखन सिंह ने पहले ही टाइप करा रखा था.
अगली सुबह परमहंस ने हजरतगंज कोतवाली के अपने एक जानकार सिपाही को सुबह नाश्ते पर बुला लिया था. जिसने होटल बिल में कुछ और डिस्काउंट करवा दिया. सब लोग जल्दी नाश्ते के बाद होटल से चेक आउट करके कालिदास मार्ग के लिए रवाना हुए. रामलखन सिंह ने आज कुर्ता पाजामा और सदरी पहनी हुई थी. चूंकि सीएम साहब सिर्फ पाँच मिनट देते और इतने कम में कौन सारी बातें बताएगा? इस बात पर विचार चल रहा था. लालता एक चिट पर नोट कर रहे थे कि रामलखन सिंह ने टोका. अब आप सीएम साहब के सामने चिट निकालेंगे? सीएम के सामने सीधे जाने में प्रेमचंद का भी हलक सूख रहा था. वैसे कई रैलियों में वे सीएम साहब का माल्यार्पण कर चुके थे. इधर शमशाद अली भी बोलने की प्रेक्टिस में लड़खड़ा रहे थे. मौलाना और लामा को चुपचाप रहना था. सिर्फ हाँ में हाँ मिलाना था. मुख्यमंत्री आवास के आगंतुक कक्ष में सभी छह लोग शांत बैठे थे जैसे किसी परीक्षा का साक्षात्कार देने आए हों. अचानक रामलखन सिंह बोले, “ऐसा है कि आप लोग गड़बड़ा देंगे इसलिए मैं बोलूँगा. बस आप लोग हाँ में हाँ मिलाइएगा. और हाँ बुके प्रेमचंद जी और शमशाद भाई देंगे. और चलते समय मैं और प्रेमचंद जी लिखित प्रार्थना पत्र देते हुए उनके पैर छुएंगे. समय कम होगा इसलिए थोड़ा तेज़ी से काम करिएगा.“
जैसे ही भीतर जाने का बुलावा आया. रामलखन सिंह तेजी से सबसे आगे बढ़े. उनके पीछे शेष सभी मुख्यमंत्री के कक्ष में दाखिल हुए. रामलखन सिंह ने बिजली की तेज़ी से सबका परिचय कराया.
“ परम माननीय आदरणीय नेता जी को नमस्कार और सादर चरण स्पर्श. माननीय ये बनारस में पार्टी के ज़िला महामंत्री प्रेमचंद जी, ये चिरईगाँव ब्लॉक के प्रमुख शमशाद अली जी है. इनके दादा जी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे. सन बयालीस आंदोलन में जेल गए थे और खान अब्दुल गफ्फार खाँ साहब के बहुत खास थे . ये लालता प्रसाद जी हैं. इंडिया टुडे ग्रुप के बनारस के ब्यूरो चीफ, आप मौलाना रहमत उल बुखारी हैं. शाही इमाम के खानदान से आप ताल्लुक रखते हैं. और आप श्री लामा जी है. इनका नाम थोड़ा कठिन है जनाब.“ इसपर सीएम साहब थोड़ा मुस्कुराए. “आप बोधिसत्व सोसाइटी के महासचिव और परमपवित्र दलाईलामा जी के बड़े खास शांतिदूत हैं . मैं अपनी पार्टी के अधिवक्ता प्रकोष्ठ के वाराणसी जनपद का संयुक्त सचिव रघुनाथ सिंह हूँ.“ बुके और नमस्कार के बाद सभी बैठे. सभी अपने अपने अजीब और झूठे परिचय को लेकर सकपकाए हुए थे. रामलखन सिंह ने आगे बात शुरू की.
“माननीय महोदय हम सभी बनारस के पुलिस कप्तान के अत्याचारों से दुखी होकर आपकी शरण में आए हैं . कप्तान का रुख शुरू से ही पार्टी विरोधी है. विपक्षियों की हर सिफ़ारिश सुनी जाती है और हमें जनता के सामने नीचा देखना पड़ता है. महोदय अभी कुछ दिन पहले सारनाथ में विपक्षी पार्टी ने कुछ उल्टे सीधे मुद्दे लेकर चक्का जाम किया. आपका पुतला फूंकने की कोशिश कर रहे थे कि अपने कोतवाल साहब रामलखन सिंह ने पहले अनुरोध किया कि भाई और चाहे जो करो लेकिन माननीय मुख्यमंत्री जी का पुतला नहीं जलाने देंगे. प्रेमचंद जी और शमशाद भाई ने भी रोकने की कोशिश कि तो उन लोगों ने पथराव कर दिया. मजबूरी में कोतवाल रामलखन सिंह को लाठी चार्ज करना पड़ा. कुछ लोगों को मामूली चोटें आईं. लेकिन कप्तान ने एकतरफा कार्यवाई करते हुए अपने कोतवाल साहब को लाइन हाजिर कर दिया. हम लोग मिलने गए तो समय नहीं दिए जबकि विपक्षी पार्टी के नेताओं को अपने कमरे में बैठा कर लस्सी पिला रहे थे. हुज़ूर ये वही रामलखन सिंह कोतवाल हैं जिन्होने सकलडीहा उपचुनाव में पार्टी की बहुत मदद की थी. हुज़ूर कुछ कीजिए वरना पार्टी का जनाधार बहुत कम हो जाएगा. यही प्रार्थना लेकर हम आए हैं.“ यह कहते हुए रामलखन सिंह ने उनके चरण की ओर झुक गए.
सीएम ने कहा “अरे उठिए उठिए.“ फिर उन्होंने तुरंत फोन पर डीजीपी को तलब किया . लाइन मिलते ही कहा- “डीजीपी साहब एसएसपी बनारस को अंतिम चेतावनी दे दीजिए कि अगर हमारे कार्यकर्ताओं की बात न सुनी गई तो गंभीर परिणाम होंगे. और सारनाथ के कोतवाल रामलखन सिंह को तुरंत वापिस वहीं पदस्थापित करके मुझे शाम तक रिपोर्ट दीजिए. यदि रामलखन सिंह ने शाम तक सारनाथ का चार्ज नहीं लिया तो मैं बख्शूंगा नहीं.“
इसके बाद सीएम बोले, “अब आपलोग इतमीनान रखिए . बार बार एसएसपी बदलना ठीक नहीं होता. मीडिया में बातें उठती हैं. लेकिन अब वो सुधर जाएगा. और हाँ निकाय चुनाव के लिए अभी से कमर कस के लग जाइए. इस बार बनारस का मेयर अपनी पार्टी का होना चाहिए. और रघुनाथ तुम कोई बात हो तो मेरे पीए को रिपोर्ट देते रहना. अपनी सीवी भेजना. देखता हूँ कहीं सरकारी वकील के लिए जगह हुई तो. ठीक है फिर.“
रामलखन सिंह के साथ सब बाहर आए. मौलाना ने पहला सवाल दागा- “कोतवाल साहब आपने झूठ मूठ इतना बढ़ाचढ़ा कर परिचय क्यों दिया?” लालता ने भी कहा, “और मुझे इंडियन एक्स्प्रेस का ब्यूरो चीफ बता दिया.“
रामलखन सिंह वापस अब अपने पुलिसिया ताव में आकर बोले- “तो का बताते बे कि सर ये सड़कछाप मौलवी है. कुजड़ों की बस्ती के मदरसे में अलिफ बे ते सिखाता है? और तोहें बताते कि ई बिना मान्यता वाले फ्री लांसर पत्रकार हैं. इनको दैनिक जागरण से निकाल दिया गया. देखो उनको प्रेमचंद की पहचान थी . इसलिए हम केवल नगर मंत्री को ज़िला मंत्री कर दिए. और अगर ऐसा परिचय न देते तो सीएम आप लोगों की तरफ देखते भी नहीं. चलिए चला जाए. बनारस से पेशकार साहब का फोन भी आ रहा है.“ इसके साथ वो लघुशंका हेतु आगे बने सुलभ शौचालय की ओर बढ़े. फारिग होकर हाथ धोने के लिए वाश बेसिन पर गए तो देखा परमहंस गमछा लेकर उनका इंतज़ार कर रहा था .
हाथ धोते समय उसने कहा , “साहब ई हरामखोर सब शाने अवध होटल में लंच करके चलने का प्लान बना रहे हैं. अगर इजाजत हो तो सीधे सीधे कह दूँ कि जऊन तुम लोग ई होटल के बार में बैठ के पैग लगाए हो और रूम में मंगा कर चिकन मटन, अटर पटर खाए हो, तो होटल का बिल देने में हमारा सब पैसा खत्म हो गया है. इसलिए लौटने में जहां भी खाना पीना हो अपनी अपनी जेब देख के खाना पीना . हमारे भरोसे मत रहना.“
“नहीं नहीं अभी नहीं. शाने अवध चलो. भकोसने दो सालों को फिर ये बात बोली जाएगी. अभी कहोगे तो चोट उतनी गहरी नहीं लगेगी.“
रास्ते में मौलाना ने कहा, “जनाब मुझे चारबाग के सामने उतार दें. मैं कुछ रिश्तेदारों से मिलकर एक दो दिन में आऊँगा.“ परमहंस ने मौलाना की शेरवानी में 500 का एक नोट डाल दिया. लामा ने भी वहीं उतर कर कहा कि “श्रीमान मैं भी श्रावस्ती और कुशीनगर होते हुए सारनाथ आऊँगा.“ उतरते हुए परमहंस ने लामा को भी 500 रुपए देने चाहे लेकिन लामा ने विनम्रतापूर्वक इंकार कर दिया,बोला – “साहब जरूरत होगी तो मांग लेंगे. हम संचय नहीं करते.“
उसके बाद शाने अवध रेस्तरां में पहुँच कर राम लखन सिंह ने घोषणा की , “भाई आपलोग भोजन करें. सुबह नाश्ता बहुत हो गया. पेट कुछ ठीक नहीं है और सफर भी करना है. और यहाँ तो बहुत रिच खाना है. परमहंस तुम साथ दो.“
परमहंस ने कहा, “सर हमारा मंगल व्रत है.“
रामलखन सिंह उठे और बोले , “आपलोग भोजन करें . मंगल का दिन है इसलिए हमलोग मीट मुर्गा से थोड़ा सा हट के बैठते हैं.“
तीनों सज्जनों ने पहले दो दो पेग वेश कीमती व्हिस्की ब्लू लेवल के लिए और फिर विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का चटखारे ले लेकर आनंद लिया. वे लोग फिंगर बोल में उंगलिया साफ कर ही रहे थे कि वेटर ने बिल प्रस्तुत किया. लालता प्रसाद ने वेटर को इशारा करते हुए कहा , “वो जो क्रीम कलर का कुर्ता और ब्राउन सदरी में बैठ टीवी देख रहे हैं , उनको दे दो. वही पे करेंगे और सौंफ और इलायची की जगह मीठा पान हो तो ले आओ.“
रामलखन सिंह कनखियों से यह सब देख रहे थे और परमहंस भी उत्सुक था. वेटर ने जैसे ही बिल प्रस्तुत किया, उन्होने तीनों को सुनाकर कहा- “काबे हम कुछ खाए हैं? कोई ऑर्डर किए हैं? त बिल का इहाँ बैठने का दें. जो खाया है उससे लो कि हमसे लोगे? चलो परमहंस चला जाय” कहते हुए खड़े हुए.
लालता पत्रकार ने प्रतिवाद किया- “ये क्या कोतवाल साहब . काम निकल गया ,फायदा हो गया तो नीयत बदल गई?”
रामलखन सिंह ने उत्तर दिया , “तुम सबका तीन दिन का खर्चा और होटल और बार के बिल में जो लाए थे सब खतम हो गया. अब तुमलोग भी कुछ शेयर करोगे कि नहीं? और का ई हमारा अकेले का फायदा हुआ है. तुमलोगों का फायदा नहीं है? तुम लोग थाने पे दलाली नहीं करोगे? हमारे नाम का फायदा नहीं उठाओगे? और हमारी बात बुरी लगे तो जाके वापिस सीएम साहब से बोल दो कि ई सब हम झूठ बोले हैं. चलो मिलजुल के बिल चुकाओ हम खाए होते तो कुछ सहयोग जरूर करते. जल्दी करो निकलना भी है.“
परमहंस ने भी मोबाइल से ड्राईवर को आवाज दी- “हाँ बे सरपट गाड़ी लगा ले. साहब को चार्ज लेना है सवा पाँच बजे से पहले, उसके बाद राहुकाल लग जाएगा.“
इसके बाद लखनऊ से चली गाड़ी सारनाथ ही रुकी.
May 3, 2018 @ 10:38 pm
कहानी बेहतरीन है।।भाषा शैली भी गजब पकड़ के साथ है। स्थान एवं भौगोलिक स्थितियों का शानदार इस्तेमाल किया है। किरदार भी बेहतरीन चुने हैं।
May 4, 2018 @ 3:16 pm
धन्यवाद राजीव जी।
May 3, 2018 @ 10:47 pm
बेहतरीन कहानी….एक बार शुरू करने के बाद तो जैसे लेखक के दिखाए दृश्यों में खो जाता है पाठक…भाषाशैली सहज आंचलिक है जिसपर लेखक की बेहतरीन पकड़ है , किरदार भी बहुत बढ़िया से चुने गए है, कहानी अपने सरल प्रवाह में कई जटिल मुद्दों को छूती है, बाकी कोतवाल साहब सब पर भारी हैं….कोतवाल साहब जिंदाबाद
May 4, 2018 @ 3:17 pm
दिग्विजय जी धन्यवाद
आपकी टिप्पणी मेरे लिए उत्साह वर्धक है।
May 3, 2018 @ 11:09 pm
बेहद मस्त कहानी ??
May 4, 2018 @ 3:19 pm
????
May 3, 2018 @ 11:15 pm
मस्त कहानी ?? सजनो के सजन
May 4, 2018 @ 3:20 pm
☺☺?? धन्यवाद
May 3, 2018 @ 11:45 pm
ग़ज़ब की किस्सागोई । बनारस का होने के कारण एक अलग सा अपनत्व लगा । मुख्यमंत्री से परिचय और उनसे मिलकर बाहर निकलने के बाद का विवरण सचमुच जान डाल देता है । बेहद सजीव चित्रण है रामलखन सिंह का और क्या अंदाज है उनके न्याय का ।
लेखक को नमन साधुवाद , अरसे बाद एक दिल को छू लेने वाली , गुदगुदाती कहानी परोसने के लिये
May 4, 2018 @ 12:18 am
बेहतरीन
May 4, 2018 @ 3:21 pm
धन्यवाद वेद जी
May 4, 2018 @ 1:13 am
एक बार में पठनीय कहानी, लेखक श्री यादव जी को साधुवाद । कहानी का प्रवाह अद्भुत रहा, कोतवाल साहब ने दिल जीत लिया । लेखक की अन्य कहानियों की प्रतीक्षा रहेगी ।
May 4, 2018 @ 3:22 pm
धन्यवाद राशीद जी
May 4, 2018 @ 6:01 am
सिस्टम का बहुत ही सटीक वर्णन किया है। कोतवाल साहब छाये हूए है पूरी कहानी मे। बहुत दिलचस्प कहानी।
May 4, 2018 @ 3:23 pm
धन्यवाद चहल जी
May 4, 2018 @ 7:07 am
बेहतरीन
May 4, 2018 @ 3:23 pm
☺??
May 4, 2018 @ 8:09 am
वाह… बहुत ही बढ़िया।
हल्की फुल्की मनोरंजक कहानी, बांधे रखती है। चरित्रों को बहुत ही खूबसूरती से दर्शाया गया है। कोतवाल रामलखन तो ग़ज़ब के किरदार हैं। किसी भी किरदार से अरुचि नही होती, पूरी कहानी पढ़ने के दौरान एक आनंद का भाव बना रहा। शानदार
May 4, 2018 @ 8:23 am
सिस्टम पर बड़ी ही सरल भाषा में गहरा कटाक्ष किया गया है।
May 4, 2018 @ 3:24 pm
☺?? धन्यवाद गुप्ता जी
May 4, 2018 @ 8:41 am
आज बहुत समय पश्चात कोई अच्छी हिंदी कहानी पढ़ने को मिली है। लेखक बहुत बहुत शुभकामनाओं व सराहनाओं के पात्र हैं। उम्मीद है कि आगे भी उनकी लेखनी की मिठास व जीवन के सबक ऐसे ही मिलते रहेंगे…
May 4, 2018 @ 3:25 pm
☺?? धन्यवाद , आपकी बातें मेरे लिए प्रोत्साहन का कार्य करेंगी।
May 4, 2018 @ 8:56 am
बहुत ही उम्दा। ऐसा लग जैसे में स्वयं कहानी का पात्र हूँ। जिस जीवंतता से कहानी का वर्णन हुआ है, असल कोई जवाब नहीं।
ढेरों बधाइयाँ।
May 4, 2018 @ 3:25 pm
☺?? धन्यवाद
May 4, 2018 @ 9:55 am
एकदम ज़ोरदार
May 4, 2018 @ 3:26 pm
☺?? धन्यवाद याज्ञिक जी
May 4, 2018 @ 9:59 am
कथ्य और शिल्प के साथ साथ समकालीन विसंगतियों को समेटे हुए एक बहुत ही उम्दा कहानी। कुन्दन जी का नाम पहली बात सुना लेकिन ऐसे ही लिखते रहें। कहन शैली जैसे कि प्रेमचंद की परंपरा हो और सरल शब्दावली में यूपी का पुलिसिया अंदाज़ बहुत ही बेहतरीन है। कोतवाल साहब द्वारा मुख्यमंत्री महोदय से सभी का बढ़ा चढ़ा कर परिचय कराना और फिर मौलाना के प्रतिवाद पर कोतवाल साहब का कथन:- तो का बताते बे? सर ये सड़क छाप मौलवी है। कुंजड़ों की बस्ती के मदरसे में अलिफ बे ते सिखाता है…….. । कोतवाल साहब का यह बेधड़क अंदाज़ हमेशा याद रहेगा। लेखक को उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग का काफी सूक्ष्म अनुभव प्रतीत होता है। साधुवाद
May 4, 2018 @ 3:27 pm
☺?? बहुत धन्यवाद श्रीमान।
May 4, 2018 @ 10:13 am
हिन्दी साहित्य से कट रहे पाठकों को पुनः हिन्दी की तरफ खींच लाने वाली कहानी। व्यवस्था का सहज, सरस और सटीक चित्रण।
May 4, 2018 @ 3:27 pm
क्या बात है अरुण जी। इस कमेन्ट का शुक्रिया।
May 4, 2018 @ 10:31 am
bahut hi umda kahani laga hi nahi ki ye kalpnik kahani Kundan ji ko bahut bahut dhanyavad
May 4, 2018 @ 3:28 pm
बहुत ही सुंदर कमेन्ट। धन्यवाद
May 4, 2018 @ 10:40 am
वर्तमान स्थिति में पुलिस और नेताओं के संबंधों की बानगी प्रस्तुत करती एक फुलब्राइट स्कालर की रोचक कहानी।आज भी पुलिस इंस्पेक्टर राम लखन सिंह जैसे पात्र ढूंढने पर मिल जांयेंगे।
May 4, 2018 @ 3:29 pm
☺?? धन्यवाद जनाब। बड़ी बात कही आपने।
May 4, 2018 @ 10:41 am
उम्दा !!! समय के अनुकूल और आज के हालात पर चोट करती . कुन्दन को ढेर सारी बधाई.
अगली कहानी का भी इंतज़ार होगा .
May 4, 2018 @ 3:32 pm
वीर जी ☺?? धन्यवाद
May 4, 2018 @ 12:41 pm
Nice story this is reality in our society
Thanks
May 4, 2018 @ 3:33 pm
बहुत ही सूक्षम दृष्टि। धन्यवाद
May 4, 2018 @ 3:34 pm
बहुत ही सूक्षम दृष्टि धन्यवाद
May 4, 2018 @ 1:42 pm
शानदार। गजब की भाषा शैली और प्रस्तुतिकरण।
May 4, 2018 @ 3:34 pm
☺?? धन्यवाद परमजीत भाई
May 4, 2018 @ 1:54 pm
बहुत ही बढ़िया कहानी , पुलिस के काम करने के तरीके का सजीव चित्रण की कैसे खाने के लिए सब कुछ ले लेना और साथ में दुत्कारना और मंत्री जी के सामने छोटे लोगो का परिचय बढ़ा चढ़ा के देना और काम हो जाने पर अपनी रंगत दिखाना, कोतवाल साहब का ये रौब तथा होटल का बिल काम करने के लिए घूमने के लाजवाब उपाय। लिखने का सलीका ऐसा जैसे की हम अदृश्य हो के सारी घटना से हूबहू हो रहे हो।
May 4, 2018 @ 3:35 pm
निशिकांत। आपने बड़ी बात कह दी।
May 4, 2018 @ 2:25 pm
Kya baat hai . Very well written. Glimpses of Sri Lal Shukla ji. Keep it up.
May 4, 2018 @ 2:28 pm
एक बेहतरीन व्यंग्य…..परसाई व शुक्ल साहब के नक़्शे क़दम पे? ऐसे ही लिखते रहिए यादव जी।
May 4, 2018 @ 3:32 pm
☺?? धन्यवाद अनुराग जी
May 4, 2018 @ 2:30 pm
अरे कुन्दन भाई ! मजा आ गवा
मुंह में कचोड़ी जलेबी का स्वाद !
ओर समसदवा का बाटी चोखा मटन!
कोतवाल साहब का तरीका बहुत पसंद आया
लिखते रहें!
May 4, 2018 @ 3:32 pm
☺?? धन्यवाद मैडम
May 4, 2018 @ 2:39 pm
गजब की कहानी। मजा आ गया। क्या भाषा, क्या पकड़। लाजवाब।
May 4, 2018 @ 2:55 pm
लाजवाब कुन्दन!??
May 4, 2018 @ 2:57 pm
Kundan. You hit the bull’s eye. Maza aa gaya.
May 4, 2018 @ 3:01 pm
इतने हलके फुलके अंदाज़ में इतनी शानदार कहानी
पढ़ते हुवे दिलो दिमाग से कोई बोझ सा हटता हुआ महसूस होता है
कथा प्रवाह बहुत सहज गति से अपनी यात्रा करता है और पाठक को अपने साथ बहा ले जाता है और फ़िर उतनी ही नजाकत से वापिस किनारे पे उतार देता है
May 4, 2018 @ 3:31 pm
☺?? धन्यवाद
May 4, 2018 @ 3:07 pm
Kundan ji, Ramlakhan daroga kee kahani bahut mast likhi hai aapne…Plz continue to write….
May 4, 2018 @ 3:30 pm
☺?? धन्यवाद राघवेन्द्र जी
May 4, 2018 @ 3:13 pm
पुलिस विभाग की 18 साल की दारोगा की नौकरी में मैंने कई रामलखन जैसे चरित्र देखे लेकिन यह वास्तव में बेजोड़ है। इस कहानी से मुझे पुलिस की कई बातों का खुलासा हुआ। आजकल के नेतागिरी और पुलिस तथा मीडिया के गठजोड़ को समग्रता से यह कहानी चित्रित करती है। किसी वरिष्ठ अधिकारी के ऐसे अनूठे लेखन से आश्चर्य हुआ। धन्यवाद श्रीमान
May 4, 2018 @ 3:30 pm
☺?? धन्यवाद एसएचओ साहब।
May 4, 2018 @ 4:41 pm
बहुत ही शानदार कथा। उत्तर प्रदेश के हर पुलिस स्टेशन में ऐसे रामलखन मिल जाएंगे। बहुते व्यावहारिक हैं सभी पात्र। धर्म, जाती, राजनीति, प्रशासन, मान्यताएँ और मानवीय कमजोरियों का मणिकांचन संयोग है। हम भी बनारसी ठहरे सो कहेंगे की एकदम चकाचक हौ गुरु।
May 4, 2018 @ 6:30 pm
कमाल कहानी है.
एक ही बार में पढ़ ली.
बिना पूरी पढ़े रहा नहीं गया.
कमाल का करैक्टर है कोतवाल राम लखन सिंह.
बधाई.
May 4, 2018 @ 6:58 pm
श्रीलाल.शुक्ल जी को स्मरण करा दिया।
गजब की कथा,गति और दिलचस्पी. है चना. मे।
सोचने के लिए बहुत. देर तक. मस्तिष्क में घटनाएं घूमती रहेंगी।
लेखक का आभार आधुनिक. हिंदी लेखन पर।
May 4, 2018 @ 8:53 pm
बढ़िया कहानी। कई जगह पर कोतवाल साब मुस्कुराने पर मजबूर करते है पर उनका असिस्टेंट उसके योगदान को भी न भूला जाए। कहानी up की होने से एक अलग सा अपनत्व लगा। बढ़िया अगली कहानी का इंतज़ार रहेगा।
May 5, 2018 @ 1:33 pm
Behad samsamyik. Laga ki Rag Darbari ka naya aur laghu Roop padh reha Hoon.
Lilhte rahein Yuhin
May 5, 2018 @ 4:07 pm
लेखक की रचना एक प्रकार से आज कि प्रशासनिक गतिविधियों का संक्षेप में वर्णन है। बहुत ही उम्दा कहानी। शुभ कामनाओं सहित। अगली रचना के इंतजार में।
May 6, 2018 @ 12:04 pm
मुझे तो कोतवाल रामलखन सिंह के किरदार में मनोज बाजपेयी नज़र आये… परमहंस के किरदार में राजपाल यादव.
May 7, 2018 @ 9:05 am
कहानी मजेदार दमदार एवं रसदार है, कहानी में आंचलिकता एवं सटीकता का जो संगम मिलता है वो महान कथाकार प्रेमचंद की इयाद दिलाता है, यह कहानी वर्तमान समय में राजनीति एवं पुलिस के संबंधों को भी बताता है, आपकी लेखनी से ऐसे ही रचनाओं का सृजन होते रहे, धन्यवाद महोदय ….
May 17, 2018 @ 4:03 pm
कुंदन जी के पास अनुभव का विस्तृत दायर है और समृद्ध भाषा की ताकत भी, रोचकता उनकी कहानी को गतिमान बनाती है। पाठक को और क्या चाहिए। बहुत बहुत बधाई।
May 17, 2018 @ 11:58 pm
रोचक अंदाज में सुन्दर कहानी कही है। लोकानुभव से समोयी। अच्छा लगा पढ़ कर। आगे भी ऐसे अवसर आते रहें।
May 21, 2018 @ 6:23 am
Good job
December 23, 2018 @ 1:05 am
कहानी के बारे में बाद में कहूंगा…लेकिन अगर इसे कभी celluloid पर उकेरा जाता तो कोतवाल साहब के किरदार के लिए ओम पुरी से बेहतर कोई नही होता..कोतवाल साहब का दबंग किरदार मन को छू गया, परमहंस जैसा चेला मिलना मुश्किल आजकल के दौर में.