बच के तू रहना (लेखक : आनंद कुमार सिंह)
उस उमस एवं गर्मी के मई के महीने में, शाम 5 बजे ,सुब्रोजित बासु उर्फ मिकी, तीसरे कत्ल की तैयारी कर रहा था। कत्ल करते रहना कितना खतरनाक हो सकता था, उसे इस बात का पूरी तरह एहसास था। जरा सी गड़बड़ से उसकी जान पर बन आ सकती थी। लिहाजा हमेशा की तरह सोच-समझकर, प्लानिंग के साथ इसे अंजाम देने की जरूरत थी। मिकी, दिखने में पतला-दुबला, भीड़ में खो जाने लायक, मामूली शक्ल-सूरत वाला व्यक्ति था। उसके बाल थोड़े लंबे और उंगलियां पतली सी थी। एकबारगी कोई देखे तो सहज ही उसे पेंटर या लेखक मान ले। लेकिन उसे जानने वाले, बखुबी जानते थे कि वह एक दुर्दांत हत्यारा था। उसके चौड़े कंधों पर उसका मजबूत सिर, एक आला दिमाग का स्वामी था। उसे जानने वालों को, जिनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थी, यह भी पता था कि अपने पेशे में मिकी के बराबर कम ही लोग हैं। उसका पेशा था, मोटे पैसों की एवज में किसी के भी रास्ते के पत्थर को सफाई से हटा देना। वह एक पेशेवर हत्यारा था। उससे संपर्क केवल भरोसेमंद चैनल के जरिये ही स्थापित किया जा सकता था। अपने कॉन्ट्रैक्ट देने वाले से वह न कभी मिलता था न कभी सीधे बात करता था। केवल स्थापित सोर्सेस से ही वह काम लेता था। काम की कीमत वह पहले लेता था और काम में ढिलाई उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं थी। भले ही टारगेट कितना ही मामूली क्यों न हो वह कोई रिस्क नहीं लेता था। मौजूदा टारगेट मिकी के लिए एक आसान सा लक्ष्य था।
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जयंत गोखले की नींद, मोबाइल की घंटी से खुली। उसने आंखें खोलकर चारों ओर देखा, पहले तो उसे यह समझने में दो-तीन सेकेंड लगे कि वह अपने घर में है, हैंगओवर से फट रहे सिर पर उसने हाथ फेरते हुए मोबाइल उठाया। उसके दोस्त नमन शांडिल्य का कॉल था।
‘बोल भाई’ जयंत ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।
‘अबे कहां है? तीसरी बॉर कॉल लगाया तो तूने उठाया है’ नमन ने नाराजगी भरे स्वर में कहा।
‘यार कल ज्यादा हो गई थी। तेरा क्या हाल है? तूने भी तो कम नहीं पी थी’।
‘मैं तेरी तरह शराब में स्विमिंग नहीं करता’।
‘हां क्यों नहीं, तू तो ढक्कन सूंघकर रख देता है’ जयंत ने हंसते हुए कहा।
‘अच्छा छोड़, लगता है अभी उठा है तू। घड़ी देख ले और आज का प्रोग्राम याद कर ले’।
‘कौन सा प्रोग्राम। अरे हां यार, हमलोगों को तो वर्षा के साथ आज खरीदारी पर जाना था। भूल गया था जानेमन। कितने बजे कहां पहुंचना है’।
‘12 बजे क्राउन ज्वेलर्स पहुंच और फिर वहां से हमलोग रेमंड्स के एमजी रोड के शोरूम में पहुंचेंगे। शादी में जितनी खरीदारी की जाये कम है भाई’।
‘अरे हां, मैं तो भूल ही गया था मेरी शादी होने वाली है’, जयंत ने मजाक किया।
‘जल्दी उठ तैयार हो जा। मजाक बाद में करना। देर हो गई तो वर्षा तेरे साथ-साथ मेरी भी खाट खड़ी कर देगी’।
‘बस पांच मिनट में तैयार होता हूं’।
मोबाइल बंद करके जयंत बाथरूम में घुस गया। शावर के नीचे पिछले छह महीने के वाकयात फिल्म की तरह चलने लगे उसके सामने। कैसे वह इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिग्री के बावजूद नौकरी के लिए मारा-मारा फिर रहा था। दिल्ली जैसे अनजान शहर में कॉलेज के दोस्त नमन ने उसका साथ दिया था। न केवल नौकरी दिलायी बल्कि छोकरी दिलाने में भी उसकी बड़ी भूमिका थी। नमन एक मल्टीनेशनल कंपनी में ऊंचे पद पर था। उसकी ही पार्टी में पहली बार वर्षा उससे मिली थी। जयंत की मजाक करने की आदत और आउटगोइंग पर्सनैलिटी के आगे वह मर मिटी थी। दो-चार मुलाकातों में ही दोनों के बीच ‘जन्म जन्म का साथ’ वाली फीलिंग आ गई थी। शुरुआत में वर्षा के अत्यंत संपन्न पिता, मनमोहन सेठ ने पुरजोर आपत्ति जतायी थी लेकिन बेटी के रोने-धोने के आगे उसकी न चली थी। अब लगभग 15 दिन बाद दोनों की शादी थी। आज मार्केटिंग का प्रोग्राम था।
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जयंत और वर्षा के लिए अंगूठी खरीदने में ही तीनों को करीब दो घंटे लग गये। कपड़े खरीदने से पहले नमन ने थकान और भूख लगने की बात बतायी। वर्षा की गाड़ी को जयंत ने सड़क के किनारे पार्क की और तीनों रेस्तरां में दाखिल हुए। बड़ी कांच की खिड़की के पास तीनों ने रेस्तरां में सीट हासिल की। जयंत व नमन ने बियर और वर्षा ने फ्रूट जूस का ऑर्डर दिया। रेस्तरां के एसी ने थोड़ी ही देर में थकान दूर कर दी थी। पांच मिनट में तीनों ने ही अपने गिलास खाली कर दिये। वेटर को इशारे में ऑर्डर रिपीट करने का हुक्म दिया गया। नये गिलास हाथों में लेकर तीनों ने ड्रामैटिक अंदाज में हाथ ऊंचे करके गिलासों को टकराया और उच्च आवाज में कहा, ‘चियर्स’। जयंत ने अपना गिलास अपने होंठों की ओर बढ़ाया ही था कि तभी कई चीजें एकसाथ हुईं। रेस्तरां की कांच की खिड़की चटकने की आवाज आई, जयंत के हाथ का गिलास बेहद तेज आवाज के साथ फटा, बियर से जयंत नहा सा गया और गिलास के कांच के टुकड़े नमन और वर्षा पर गिरे। अगले ही क्षण गोलियां चलने की आवाज आईं और उनकी टेबल पर रखी क्रॉकरी की धज्जियां उड़ गईं। दो सेकेंड के लिए रेस्तरां में सभी मानों फ्रीज हो गये। फिर जैसे प्रलय आ गई। टेरोरिस्ट अटैक की आशंका में सब इधर उधर भागने लगे। जयंत ने वर्षा का हाथ थामा, नमन ने शॉपिंग बैग उठाया और तीनों गेट की ओर भागे। कार के पास पहुंचकर, जयंत ने ड्राइविंग सीट संभाली, वर्षा और नमन बिजली की गति से कार में समा गये। देखते ही देखते कार हवा से बातें कर रही थी। पीछे अफरातफरी का माहौल छोड़कर।
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करीब दो किलीमीटर दूर जाकर जयंत ने कार रोकी। तीनों हक्के-बक्के से एक दूसरे का मुंह देख रहे थे।
‘हुआ क्या था?’ नमन ने कांपती आवाज में पूछा।
‘गोलियां चली गोलियां’ वर्षा जड़वत होकर बोल रही थी। मानों वह नींद में बोल रही हो।
‘दिल्ली में जो न हो जाये वो कम है’ जयंत ने कहा।
‘लेकिन यार रेस्तरां पर गोलियां क्यों चली? गोली थोड़ी इधर उधर होती तो हम तो खतम थे।’ नमन अभी भी कांप रहा था।
जयंत ने नमन और वर्षा का हाथ थपथपाकर सांत्वना दी। थोड़ी देर बाद कार वर्षा के बंगले के सामने जाकर रुकी। कार को गेट के सामने ड्राइवर के हवाले किया गया और तीनों गाड़ी से उतर गये। यहां से जयंत और नमन कैब से वापस लौटने वाले थे। जयंत और वर्षा को स्पेस देते हुए नमन रास्ते पर दोनों से थोड़ा दूर जा खड़ा हुआ। जयंत ने वर्षा के डर को दूर करने की कोशिश की। धीरे-धीरे वर्षा सामान्य हो रही थी। दोनों ने विदा होने वाली किस एकदूसरे को दी। मुस्कुराते हुए जयंत ने वर्षा के हाथों को थामते हुए नमन को देखा जो फटी-फटी आंखों से उन्हें देख रहा था। उसकी आंखों में आतंक तैर रहा था। जयंत को भारी हैरानी हुई। वो उनकी तरफ दौड़ने लगा। जयंत और वर्षा इससे पहले कुछ और समझे उसने आकर दोनों को जोरों से धक्का दिया और खुद भी गिर गया। दोनों के गिरते ही पीछे से तूफान की गति से आ रही कार करीब से सनसनाते हुए गुजर गई। वे अगर न गिरे होते तो शर्तिया कार की चपेट में आ गये होते। मौत से आज वह दूसरी बार बचे थे। जयंत ने वर्षा की ओर देखा। वो बेहोश हो चुकी थी।
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मिकी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उससे दो-दो बार चूक हो गई। आखिर ऐसा हो कैसे सकता है। उसके पांच वर्षीय पेशेवर जिंदगी में ऐसा पहली बार हुआ था। और पहली बार ही दो-दो बार चूक। असंभव। लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकता। मारने का ठेका यदि उसे मिलता था निशाना कभी बच नहीं सकता था। लेकिन आज ऐसा ही हुआ। आगे ऐसा न हो, इसके लिए मिकी दृढ़प्रतिज्ञ था। उसने अपना मोबाइल उठाया, नया सीम उसमें इनसर्ट किया। फोन उठाने पर उसने केवल कहा, ‘मिकी हूं। एक अगरबत्ती और एक तरबूज चाहिए। कूड़े में रख देना।’
देर शाम उसने अपने भरोसेमंद सप्लायर से दोनों ही चीजें हासिल की जो कि सचमुच कूड़े के ढेर में एक झोले में रखी हुई थी। देखकर लगता था कि उस कूड़े की सफाई शायद सदियों से न हुई हो। घर आकर उसने सामान चेक किया। कुछ जरूरी परिवर्तन किये। तरबूज, सप्लायर की कोड की भाषा में एक शक्तिशाली टाइम बम था और अगरबत्ती एक नये प्रकार का बम था जो आसपास के करीब 20 मीटर के दायरे में विषैला धुंआ फैलाता था जो किसी भी नश्वर प्राणी की सांसों को हमेशा के लिए रोक देने के लिए काफी था। ये एक फैंसी आइटम थी जो हाल ही में नेपाल के रास्ते से उत्तर कोरिया से स्मगल्ड की गई थी। शिकार अब कैसे बच सकता था।
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उस दिन घर लौटने में जयंत को देर हो गई थी। वर्षा से ज्यादा उसे मनमोहन सेठ से सिर खपाई करनी पड़ी। उसे समझाने में बेहद दिकक्त आई कि एक ही दिन में दो-दो बार मौत से वास्ता बिल्कुल संयोग मात्र था। पहली बार कोई टेरोरिस्ट घटना और दूसरी बार कोई पियक्कड़ शराबी ड्राइवर। खैर नींद की गोली से वर्षा बेसुध होकर सो जाने के बाद देर रात जयंत घर लौटा। नमन को उसने जबरन पहले ही घर भेज दिया था। घर लौटने के बाद वह ड्राइंग रूम में सोफे पर ही ढेर हो गया। काफी थके होने के बाद भी उसे नींद नहीं आ रही थी। सुखमय भविष्य के सपने में न जाने ये कैसा ग्रहण लग गया था। उसके सामने वर्षा का बदहवास चेहरा नाच रहा था। कैसे बेचारी के आंसू नहीं थम रहे थे। कैसे बिस्तर पर वह उससे लिपट कर रोते हुए उससे दिल्ली से दूर भागकर शादी करने के लिए प्रार्थना कर रही थी। कैसे उसे भी विश्वास नहीं हो रहा था कि दोनों घटनाएं संयोग है। कैसे उसे यकीन था कि कोई उसकी जान लेना चाहता था। लेकिन कोई वर्षा को क्यों मारना चाहेगा? क्या ऐसा हो सकता है? कोई क्या सचमुच उसकी वर्षा की जान लेना चाहता है? यह सोचकर ही उसपर क्रोध हावी होने लगा। उसकी मुट्ठियां भिंच गई। लेकिन वह ऐसा होने नहीं देगा। ये सब सोचते हुए उसपर कब नींद तारी हो गयी उसे पता ही नहीं चला। उसकी नींद खुली प्यास के कारण। वह पसीने से नहाया हुआ था। उसने सोफे के करीब पानी की बॉटल से पानी पीया। उसे फिर याद आया उसने आज कुछ खाया ही नहीं था। ऐसी घटनाओं में खाने का किसे होश रहता है। लेकिन उसे अचानक भयंकर भूख लग गयी थी। वह उठा। फ्रिज खोला। भीतर से ब्रेड निकाला। उसपर जैसे तैसे मक्खन लगाया। दो निवाले जाते ही पेट को काफी आराम मिला। रात के करीब ढाई बजे थे। माहौल में बिल्कुल सन्नाटा था। सिवाय टिक-टिक की आवाज के। जयंत जानता था वो दीवार घड़ी की आवाज है। उसने ब्रेड को खत्म किया। पानी पीया। हाथ मुंह धोकर वापस सोफे पर पसर गया। लेकिन एक मिनट बाद ही वह झटके से उठा। उसके पास तो दीवार घड़ी है ही नहीं। फिर वो कैसी आवाज। रात के शांत माहौल में वह आ रही आवाज का पीछा करते हुए बेडरुम में पहुंचा। बेड के करीब आलमारी से टिक-टिक की क्षीण आवाज आ रही थी। सस्पेंस के मारे उसने लाइट जलाकर दरवाजा खोला। भीतर उसने जो देखा उसने पहले कभी नहीं देखा था। वहां दो सामान रखे थे। एक टेबल क्लॉक की तरह आइटम थी जिसके साथ कुछ तार जुड़े हुए थे और उसके करीब ही एक पैकेटनुमा आइटम थी जिसपर हाथघड़ी लगी हुई थी। जयंत हक्का बक्का उन्हें कुछ क्षण देखता रहा। फिर उसकी समझ में आ गया। मौत से उनका जो दिन में सामना हुआ था वह कोई संयोग नहीं था। और उसकी वर्षा को कोई खतरा नहीं था। शिकार जयंत खुद था।
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मिकी को लगा जैसे वो कोई सपना देख रहा है। न केवल जयंत का फ्लैट सही सलामत था बल्कि ‘अगरबत्ती’ भी फुस्स हो गयी थी। जयंत उसकी आंखों के सामने सुबह गुजरा था। क्या दोनों ही बम एकसाथ फेल हो सकते हैं? उसके दिल ने कहा, ऐसा नहीं हो सकता। तो क्या सप्लायर ने धोखा दिया? पहले तो कभी नहीं हुआ। फिर सही सलामत कैसे है जयंत। क्या उसने बम को देख लिया होगा? मिकी के दिमाग ने तत्काल जवाब दिया, ऐसा होता तो पुलिस का यहां जमघट लगा होता। फिर क्या बात हुई। बमों को फिर से चेक करना जरूरी है। उसने नजर दौड़ायी। बड़े शहरों में रात से अधिक सेफ दोपहर का वक्त होता है। खासकर गर्मी का वक्त हो तो कहना ही क्या। सड़कें खाली होती हैं। फ्लैट्स में रहने वालों को अपने पड़ोसियों से खास मतलब नहीं होता। जयंत का घर तो स्टारमार्क की इमारत में आठवीं मंजिल पर है। जहां कल रात भी जयंत के आने से पहले उसमें प्रवेश करने और बम रखने में कोई दिक्कत नहीं आई थी। उसने कुछ देर तक माहौल को भांपा। स्थिति को अपने भीतर समाहित करता रहा। ये उसकी खासियत थी। आसपास के माहौल को बेहद बारीकी से वह स्टडी करने में सक्षम था। उसके बाद उसका शरीर एक कंप्यूटर की तरह बन जाता था जो परिस्थिति के मुताबिक मानों अपने आप ही कदम उठाने लगता था। करीब तीन बजे वह आराम से जयंत की इमारत में दाखिल हुआ। हाथों में पीत्जा के बड़े ब्रांड के तीन पैकेट और कोल्ड ड्रिंक्स की बोतल लेकर वह इमारत के सिक्यूरिटी रूम के सामने पहुंचा। सिक्यूरिटी ने हाथों के इशारे से ही उसे भीतर चले जाने की अनुमति दे दी। अपनी कैप को थोड़ी और नीचे करके सीसीटीवी से अपने चेहरे की रक्षा करते हुए वह लिफ्ट की तरफ बढ़ा। लिफ्ट खाली थी। आठवीं मंजिल का बटन उसने दबाया। आठवीं मंजिल पर पहुंचते ही उसने पैकेट्स और कोल्ड ड्रिंक्स को जमीन पर रखा। मिकी को अब कोई चिंता नहीं थी। आठवीं मंजिल पर जयंत के फ्लैट के अलावा एक और फ्लैट था जो, उसे पता था, बंद पड़ा है। पीठ पर रखे बैग से उसने जरूरी सामान निकाले। कोई लॉक खोलना, खासकर आधुनिक फैंसी लॉक्स, आसान नहीं होता। किस्से कहानियों में भले वह चुटकियों में खुल जाते हैं लेकिन वास्तविक जीवन में बेहद सावधानी बरतनी पड़ती है। खैर इस लॉक को वह पिछली रात को ही खोल चुका था। लिहाजा हद से हद दो मिनट लगने वाले थे। मिकी ने चाबी और एक महीन तार निकाला और लॉक की ओर बढ़ा। तार को उसने लॉक की छेद में डाला, तभी उसे लगा जैसे किसी ने उसका खून निचोड़ लिया हो, आंखों के आगे तारे नाच गये। बिजली के तगड़े झटके से वह धड़ाम से गिरा। करीब 10 मिनट तक वह यूं ही पड़ा रहा। फिर वह उठा। उसे लग रहा था जैसे उसके शरीर को किसी हाथी ने कुचल दिया हो। हर अंग दर्द कर रहा था। उसने अपना सामान समेटा। दर्द की परवाह न करते हुए उसने अपनी चाल को सामान्य किया। लिफ्ट में सवार होकर वह नीचे पहुंचा और फिर इमारत से निकल कर सड़क पार करके अपनी कार में। 15 मिनट बाद वह अपने अस्थायी ठिकाने, किराये के बंगले के कमरे में मौजूद था। उसने इमर्जेंसी कैबिनेट खोला। जरूरी दवाएं हासिल की। पानी के साथ उसे पीकर वह बिस्तर पर लेट गया और दिमाग को फोकस करने की कोशिश करने लगा। मतलब साफ था। शिकार को पता चल चुका था शिकारी उसके पीछे है और वह शिकारी से दो-दो हाथ करने को तैयार है। मिकी को हो रहे दर्द में भी खुशी का अहसास हुआ। अब अपने शिकार को खत्म करके उसे आनंद भी मिलेगा। पहले इसे केवल वह ड्यूटी समझता था। लेकिन अब मामला निजी बन गया है। अब वह जयंत की मौत का मजा लेगा।
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जयंत के सामने दो सवाल मुंह बाये खड़े थे। आखिर कोई उसकी हत्या क्यों करना चाहता है? दूसरा, गोली, बम, जैसे अत्याधुनिक हथियारों से लैस दुश्मन का वह सामना कैसे करे? पहली बार तो उसने बम को संयोग से देख लिया। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग का विद्यार्थी रहने की बदौलत उसे डिफ्यूज करने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई थी। लेकिन यह संयोग तो हर बार नहीं हो सकता। उसे अपने बचाव के लिए कदम उठाने होंगे। कोई सुरक्षा गार्ड लगाये या फिर बुलेट प्रुफ जैकेट पहने? लेकिन पहला सवाल और ज्यादा महत्वपूर्ण है। उसने किसी का क्या बिगाड़ा है। उसकी जानकारी में दुनिया में कोई उसका दुश्मन भी नहीं। कत्ल के लिए इतने बड़े आयोजन में पैसे भी अच्छे लगते होंगे। आखिर कौन है जो उसकी मौत के लिए इतने पैसे खर्च कर सकता है। लेकिन पहले अपनी जान बचानी जरूरी है। जयंत ने पहले ही घर के लॉक को दुरुस्त कर लिया था। उसने कुछ यूं बंदोबस्त कर लिया था कि लॉक से छेड़छाड़ करने वाले को बिजली का खासा झटका लगता। दूसरा उसके स्मार्टफोन में इस बाबत मैसेज भी आ जाता कि उसके दरवाजे के खोलने की कोशिश की जा रही है। इसके साथ ही वो अपने ही घर की निगाहबीनी कर रहा था। इसलिए मिकी जब पीत्जा डिलीवरी बॉय के वेश में उसकी इमारत में दाखिल हुआ था तो वह जयंत की नजरों से छिप नहीं सका था। लेकिन जयंत दावे के साथ नहीं कह सकता था कि वो उसी के फ्लैट में जा रहा है। लेकिन जब स्मार्टफोन में उसके फ्लैट के दरवाजे को जबरन खोल जाने की कोशिश का मैसेज आया तो उसके सामने स्थिति पानी की तरह साफ थी। 10 मिनट बाद जब मिकी इमारत से निकला था तो जयंत भी कैब में उसके पीछे था। जब मिकी अपनी कोठी में पहुंचा तो मिकी की भरपूर झलक उसे मिली थी। लेकिन उसके लिए मिकी का चेहरा बिल्कुल अनजान था।
कौन है वो, क्या चाहता है, क्यों उसके पीछे पड़ा है? ये सवाल जयंत को खाये जा रहे थे। लेकिन एक बात की गनीमत थी, उसे अपने दुश्मन का चेहरा मालूम था, और दुश्मन का ठिकाना भी।
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ऐसा नहीं था कि मिकी को जयंत के इरादों की खबर नहीं थी। जब कैब से जयंत उसका पीछा कर रहा था तभी मिकी की अनुभवी आंखों ने स्थिति को ताड़ लिया था। वह जान चुका था पीछे एक कैब उसका पीछा कर रही है। कैब में मौजूद यात्री को भी उसने पहचान लिया था। उसका शिकार। मिकी ने वह करने की ठान ली जो उसने कभी नहीं किया। शिकार को सामने से जाकर मारने का। इसके लिए उसने प्राइम मल्टीप्लेक्स को वारदात का स्थल चुना था। उसे अपने रेकी से पता था कि जयंत की आदत हर शनिवार रात को उसी मल्टीप्लेक्स में जाने की है। इंटरवेल के वक्त वह हॉल से निकलता था, इंटरवेल के खत्म होने और फिर से फिल्म शरू होने के पांच मिनट बाद ही वह दोबारा हॉल में दाखिल होता था। वह इस दौरान कोल्ड ड्रिंक्स के साथ दो सिगरेट पीता था। शनिवार की रात बस कुछ ही घंटे दूर थी। मिकी तैयार था।
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तैयार जयंत भी था। सुरक्षा के सभी उपाय उसने अपनाये थे। चौकन्नी निगाहें और कुछ खास इंतजाम। बचपन से ही उसे फिल्म अकेले ही देखने का शौक था। दोस्त हंसते थे उसपर। उसे अंदाजा था कि उसका यह शौक दुश्मन इनकैश करने की कोशिश जरूर करेगा। क्या वह दुश्मन के उस वार को झेल सकेगा। उसे पता था कि उसका दुश्मन शांत बैठने वाला नहीं था। उसकी जान जाने तक वह कोशिश जारी रखेगा। इसलिए इस खतरे को खत्म करना जरूरी था।
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मल्टीप्लेक्स में कंज्यूरिंग 2 का टिकट उसने हासिल किया। भयंकर डरावनी फिल्म का तमगा इस फिल्म को हासिल था। नाइट शो में हॉल में नाम मात्र को दर्शक थे। फिल्म तो डरावनी थी लेकिन उसके जीवन में चल रहे अंधड़ के सामने फिल्म की क्या बिसात? इंटरवैल में जयंत हॉल से बाहर निकला। काउंटर से उसने कोल्ड ड्रिंक्स की बोतल हासिल की। पांच मिनट में उसे खत्म की। वह टॉयलेट में गया। वहां कोई नहीं था। उसने सिगरेट सुलगाया। लंबे-लंबे कश में सिगरेट तीन मिनट में ही खत्म हो गया। उसे उसने जूतों से बुझाया। पानी से चेहरा साफ करने के लिए रुमाल निकाला। रुमाल चेहरे से हटाकर जेब में जैसे ही वह रखने गया सामने उसने मिकी को पाया। मानों जादू के जोर से वह प्रकट हुआ था। कहां छिपा बैठा था दुश्मन उसका? पतला-दुबला शरीर, कपड़े जैसे हैंगर से लटक रहे हों। लंबी पतली उंगलियां, और उंगलियों में मजबूती से पकड़ा हुआ रिवॉल्वर। ‘ लगता है मेरी सारी तैयारियां धरी की धरी रह जायेंगी ’, जयंत ने सोचा।
बिना कुछ कहे, एक के बाद एक चार गोलियां मिकी ने चलायी। पूरी तरह पेशेवर होने के नाते उसने सबसे बड़े टारगेट प्वाइंट, उसके शरीर के बीच में निशाना लगाया था। महज पांच फुट की दूरी से चलायी गयी गोलियों के मिस होने का कोई सवाल ही नहीं था। हल्की आवाज के साथ चारों गोलियां चली। जयंत टूटे हुए पेड़ की तरह गिरा। पलक झपकते ही मिकी भी गायब हो गया। उसका असाइनमेंट पूरा जो हो गया था।
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मिकी ने वो किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था। असाइनमेंट पूरा होते ही अपने अस्थायी ठिकाने को उसने नहीं छोड़ा था। उसने सेलीब्रेट करने की ठानी। व्हिस्की के लार्ज पैग को चुसकने के बाद, वह बिस्तर के हवाले हुआ। लेट कर पिछले कुछ दिनों के वाकये को सोचने लगा। अपने शिकार के पलटवार पर मन ही मन उसकी तारीफ भी की। फिर सोने की कोशिश करने लगा। सुबह जल्दी निकलना था उसे। फिर किसी नये असाइनमेंट के लिए। लेकिन उसे नींद क्यों नहीं आ रही थी। वजह थी कुछ अधिक ही जोर से घड़ी की टिक-टिक की आवाज। हैरान मिकी तेजी से उठा, जल्द ही अपने पलंग के नीचे रखे अपने ही ‘तरबूज’ को बरामद किया। उसने टाइमर पर निगाह डाली तो महज 10 सेकेंड का वक्त बचा था। शायद बेडरूम का दरवाजा खोलने पर उसका टाइमर एक्टिवेट हुआ था। इन्हीं 10 सेकेंडों में उसकी समूची जिंदगी एक फिल्म की तरह उसकी आंखों के सामने से गुजरी। धमाका बेहद तगड़ा था लेकिन मिकी को वह सुनायी नहीं दिया था। उसे तो बेहद तेज रोशनी सी दिखी, दर्द का भी अहसास नहीं हुआ। उसके आखिरी ख्यालात में जयंत गोखले का चेहरा घूम रहा था।
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जयंत, नमन गोखले के घर पहुंचा। बुलेटप्रुफ जैकेट पहनने के बावजूद गोलियों की वजह से शरीर में दर्द का अहसास अभी भी था। नमन के घर कुछ दिन तक रहने की वजह से उसके घर की चाभी उसके पास थी। घर छोड़ने के बाद वह चाभी देना भूल गया था और नमन ने चाभी मांगना। नि:शब्द वह घर में दाखिल हुआ। ड्राइंग रूम में नमन किताब पढ़ रहा था। अचानक नमन की नजरें उठी और उसने जयंत को देखा। उसे लगा जैसे उसने भूत देख लिया हो। जयंत चुपचाप उसके सामने की कुर्सी पर बैठ गया। एक ही शब्द कहा, ‘आखिर क्यों मेरे भाई’? नमन झटके से उबर गया था। उसके मुंह से निकला, ‘वर्षा। वर्षा के लिए। तुम्हें क्या लगता है अपनी वर्षा को यूं ही तुमसे शादी करते देखते रहता’?
‘अपनी वर्षा? क्या कह रहे हो? तुम्हें पता नहीं हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं? जयंत ने हैरानी से कहा।
‘हुंह..प्यार..मैं हमेशा उससे प्यार करता था। उस दिन की पार्टी में जिस तरह तुम उसके पीछे पड़े थे मैंने सोचा ये फ्लर्टिंग दो दिन में उतर जायेगी लेकिन तुम नहीं माने। वर्षा भी तुमपर रीझ गयी।’
‘तो इसलिए पेशेवर खूनी से मुझे हटाने की योजना बनायी।’
‘हां..लेकिन तुम कैसे समझे इसके पीछे मैं हूं।’
‘क्योंकि मेरे हर गतिविधि के बारे में शिकारी को मालूम था। कहां हम खरीदारी करेंगे। रेस्तरां में खाने का आइडिया भी तुमने सरकाया। खिड़की के पास भी तुमने ही बैठने को कहा। गाड़ी से तुमने इसलिए बचाया क्योंकि वर्षा मेरे साथ थी। मेरे घर में बम रखते वक्त मैं नहीं रहूंगा, सिर्फ तुम्हें पता था, क्योंकि तुम मेरे साथ थे। तुम्हीं ने ये बात शिकारी तक सरकायी होगी। फिर भी ये सबकुछ तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता था।’
‘अब जब सुन लिया है तो ये कैसे समझ लिया कि तुम्हें अब मैं जाने दूंगा’ यह कहते हुए नमन के हाथ में एक नन्हीं सी पिस्तौल आ गयी थी।
जयंत की आंखों में आंसू आ गये थे। उसने कंधे पर लटक रहे अपने बैग से एक रिमोट और मास्क निकाला। रिमोट ऑन करके उसने मास्क पहन लिया और बैग को सामने फेंककर चुपचाप नमन को देखता रहा’।
नमन आश्चर्यचकित नजरों से उसे देख रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था आखिर जयंत ने ऐसा किया क्यों? फिर जब समझ आया तो देर हो गयी थी। बैग में रखी ‘अगरबत्ती’ से भूरा धुंआ माहौल में फैल रहा था। नमन को लगा जैसे वह मिर्ची भरी हवा में सांस ले रहा है। उसने पिस्तौल उठाकर जयंत पर निशाना लगाने की कोशिश की लेकिन वह हाथ भी नहीं उठा पा रहा था। वह लुढ़क गया। जयंत वहां से उठा और दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया।