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13 Comments

  1. विक्की
    March 29, 2020 @ 8:21 pm

    बहुत लाजवाब बहुत शानदार पढ़ते समय लगा जैसे नागपंचमी का वो दौर सामने चल रहा

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  2. आनंद कुमार सिंह
    March 29, 2020 @ 8:23 pm

    बेहतरीन.. शब्दों की जादूगरी देखने को मिली। लेखक से आइंदा दिनों में और कहानियों की अपेक्षा है..

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  3. Hareesh Gupta
    March 29, 2020 @ 8:28 pm

    शानदार संस्मरण… वाक़ेई जैसा पहले देखा करते थे वैसा सामाजिक सामंजस्य अब दिखना मुश्किल है। अहमद दादा दिलचस्प किरदार थे।

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  4. राशीद शेख
    March 29, 2020 @ 8:33 pm

    धन्यवाद मित्रों, हौसला अफजाई का शुक्रिया

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  5. deepak maurya
    March 29, 2020 @ 8:35 pm

    बढ़िया कहानी

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  6. msrajpurohit
    March 29, 2020 @ 9:01 pm

    लाजवाब प्रस्तुतिकरण

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  7. v p tirkey
    March 29, 2020 @ 9:11 pm

    बहुत बेहतरीन।

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  8. Abhishek Kumar
    March 29, 2020 @ 9:48 pm

    बहुत बढ़िया संस्मरण राशिद भाई।आपकी लेखन शैली वाक़ई बहुत जबरदस्त है।आप निरंतर लिखते रहेंगे तो काफी अच्छी कहानियाँ तथा अन्य रचनाएँँ पढ़ने को मिलती रहेंगी।आपके संस्मरण से पता चला कि नागपंचमी पर ऐसे ऐसे आयोजन भी होते थे।धन्यवाद आपको।

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  9. Manish Kansal
    March 29, 2020 @ 10:06 pm

    वाह, गज़ब का अंदाज़े बयां. ऐसा लगा कि आँखों से देख रहे हैं ये सब

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  10. Rajiv Chandra rajan
    March 29, 2020 @ 10:36 pm

    वाह राशिद भाई शानदार

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  11. राकेश Kumar
    March 29, 2020 @ 10:48 pm

    वाह क्या बात है 
    छा गए अहमद दादा 

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  12. खुमेश शर्मा
    March 30, 2020 @ 7:44 am

    बहुत सुंदर राशिद भाई

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  13. Siddharth
    March 30, 2020 @ 10:09 am

    बहुत बढ़िया लिखा, राशिद भाई

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