लोग मुझे उन्मादिनी कहते हैं। क्यों कहते हैं, यह तो कहने वाले ही जानें, किन्तु मैंने आज तक कोई भी ऐसा काम नहीं किया है जिसमें उन्माद के लक्षण हों। मैं अपने सभी काम नियम-पूर्वक करती हूँ। क्या एक भी दिन मैं उस समाधि पर फूल चढ़ाना भूली हूँ? क्या ऐसी कोई भी संध्या गयी […]
वीरों का कैसा हो वसंत? आ रही हिमालय से पुकार है उदधि गरजता बार-बार प्राची-पश्चिम, भू नभ अपार. सब पूछ रहे हैं दिग-दिगंत वीरों का कैसा हो वसंत? फूली सरसों ने दिया रंग मधु लेकर आ पहुंचा अनंग वसु-वसुधा पुलकित अंग-अंग हैं वीर वेश में किंतु कंत वीरों का कैसा हो वसंत? गलबांही हो, या […]
बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी। गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥ चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद। कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद? ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी? बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥ किये दूध के कुल्ले मैंने […]
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी […]
यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे मै भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली किसी तरह नीची हो जाती यह कदम्ब की डाली तुम्हे नहीं कुछ कहता, पर मै चुपके चुपके आता उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता वही बैठ फिर […]
लगभग 35 साल का एक खान आंगन में आकर रुक गया । हमेशा की तरह उसकी आवाज सुनाई दी – ”अम्मा… हींग लोगी?” पीठ पर बँधे हुए पीपे को खोलकर उसने, नीचे रख दिया और मौलसिरी के नीचे बने हुए चबूतरे पर बैठ गया । भीतर बरामदे से नौ – दस वर्ष के एक बालक ने […]