निति गढ बाँचि चलै ससि सूरू । नाहिं त होइ बाजि रथ चूरू ॥ पौरी नवौ बज्र कै साजी । सहस सहस तहँ बैठे पाजी ॥ फिरहिं पाँच कोतवार सुभौंरी । काँपै पावैं चपत वह पौरी ॥ पौरहि पौरि सिंह गढि काढे । डरपहिं लोग देखि तहँ ठाढे ॥ बहुबिधान वै नाहर गढे । जनु […]
पुनि देखी सिंघल फै हाटा । नवो निद्धि लछिमी सब बाटा ॥ कनक हाट सब कुहकुहँ लीपी । बैठ महाजन सिंघलदीपी ॥ रचहिं हथौडा रूपन ढारी । चित्र कटाव अनेक सवारी ॥ सोन रूप भल भयऊ पसारा । धवल सिरीं पोतहिं घर बारा ॥ रतन पदारथ मानिक मोती । हीरा लाल सो अनबन जोती ॥ […]
ताल तलाव बरनि नहिं जाहीं । सूझै वार पार किछु नाहीं ॥ फूले कुमुद सेत उजियारे । मानहुँ उए गगन महँ तारे ॥ उतरहिं मेघ चढहि लेइ पानी चमकहिं मच्छ बीजु कै बानी ॥ पौंरहि पंख सुसंगहिं संगा । सेत पीत राते बहु रंगा ॥ चकई चकवा केलि कराहीं । निसि के बिछोह, दिनहिं मिलि […]
बसहिं पंखि बोलहिं बहु भाखा । करहिं हुलास देखि कै साखा ॥ भोर होत बोलहिं चुहुचूही । बोलहिं पाँडुक “एकै तूही”” ॥ सारौं सुआ जो रहचह करही । गिरहिं परेवा औ करबरहीं ॥ “पीव पीव”कर लाग पपीहा । “तुही तुही” कर गडुरी जीहा ॥ `कुहू कुहू‘ करि कोइल राखा । औ भिंगराज बोल बहु भाखा […]
सिंघलदीप कथा अब गावौं । औ सो पदुमिनी बरनि सुनावौं ॥ बरन क दरपन भाँति बिसेखा । जौ जेहि रूप सो तैसई देखा ॥ धनि सो दीप जहँ दीपक-बारी । औ पदमिनि जो दई सँवारी ॥ सात दीप बरनै सब लोगू । एकौ दीप न ओहि सरि जोगू ॥ दियादीप नहिं तस उँजियारा । सरनदीप […]