जैनेन्द्र

तत्सत -जैनेन्द्र
एक गहन वन में दो शिकारी पहुंचे. वे पुराने शिकारी थे. शिकार की टोह में दूर – दूर घूम रहे थे, लेकिन ऐसा घना जंगल उन्हें नहीं मिला था. देखते ही जी में दहशत होती थी. वहां एक बड़े पेड़ की छांह में उन्होंने वास किया और आपस में […]
खेल -जैनेन्द्र
मौन-मुग्ध संध्या स्मित प्रकाश से हँस रही थी। उस समय गंगा के निर्जन बालुकास्थल पर एक बालक और बालिका सारे विश्व को भूल, गंगा-तट के बालू और पानी से खिलवाड़ कर रहे थे। बालक कहीं से एक लकड़ी लाकर तट के जल को उछाल रहा था। बालिका अपने पैर पर […]

पत्नी – जैनेंद्र
शहर के एक ओर तिरस्कृत मकान। दूसरा तल्ला, वहां चौके में एक स्त्री अंगीठी सामने लिए बैठी है। अंगीठी की आग राख हुई जा रही है। वह जाने क्या सोच रही है। उसकी अवस्था बीस-बाईस के लगभग होगी। देह से कुछ दुबली है और संभ्रांत कुल की मालूम होती है। […]

पाजेब – जैनेंद्र
बाजार में एक नई तरह की पाजेब चली है। पैरों में पड़कर वे बड़ी अच्छी मालूम होती हैं। उनकी कड़ियां आपस में लचक के साथ जुड़ी रहती हैं कि पाजेब का मानो निज का आकार कुछ नहीं है, जिस पांव में पड़े उसी के अनुकूल ही रहती हैं। पास-पड़ोस में […]