मिथक में क्राइम डिटेक्शन पिछले पांच हिस्से लिखने के बाद, आज आपको फिर से ‘बैक टू स्क्वायर’ वहीं लेकर जा रहा हूँ जहां से इस सीरीज के लेखों की शुरुआत हुई थी। नहीं, मैं आपको उससे पहले के समय में लेकर जा रहा हूँ। जब लेखन नहीं किया जाता था तब कहानियों को सुना जाता […]
अध्याय 16 : मुंशी जी की बैठक मुंशीजी बैठक में आकर एक कुर्सी पर बैठ गये। खवास सामने अलबेला रख गया था। मुंशीजी ने तमाखू पीते-पीते कहा-“बाहर जो लोग शोरगुल मचा रहे हैं उनको यहाँ बुलाओ।” दरोगा, जमादार और लट्ठ लिये कई चौकीदार बैठक में आये। उनके साथ हमलोगों का पुराना परिचित अबिलाख बिन्द भी […]
सस्पेंस के लिए चार जरूरी कारक हैं – पाठकों की सहानुभूति, पाठकों की चिंता, करीब से करीबतर खतरे और बढ़ता तनाव। पाठकों की सहानुभूति हासिल करने के लिए किरदार को महत्वाकांक्षा, इच्छा, घाव, आंतरिक संघर्ष आदि भावों का गहना पहना सकते हैं, जिससे पाठक उनके साथ जुड़ाव महसूस करे। जितना अधिक पाठक और किरदार के […]
अध्याय १५ : हरप्रकाश लाल का मकान पहले कही हुई कार्यवाई करके मकान लौटने में देर हो जाने से मुंशी जी अन्दर महल में न जाकर बैठक में ही सो रहे। बड़ी मेहनत के बाद अधिक रात गए, सोने के कारण, आज सबेरे सात बजे उनकी नींद खुली। उठकर वे भीतर गए – चौक […]
अध्याय १४ : पातालपुरी हीरा सिंह जब ठाकुर जी की आरती लेकर लौटा तबतक एक पहर दिन चढ़ गया था। अभी तक भोला राय वहीँ पर उसी तरह बैठा था। हीरा सिंह ने सोचा कि भोला का ढंग अच्छा नहीं है, इस समय उसको हाथ में न रखने से पीछे आफत आवेगी। यह सोचकर उसने […]
शरलॉक होम्स : द परफेक्ट डिटेक्टिव वर्तमान में, शरलॉक होम्स को सोचे बगैर क्राइम फिक्शन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आर्थर कॉनन डायल द्वारा रचित यह किरदार विश्व में क्राइम फिक्शन का प्रतीक बन चुका है। शरलॉक होम्स को समर्पित कई, अन्तराष्ट्रीय
अध्याय १३ : ठाकुरबाड़ी सबेरा हो गया है लेकिन अभी तक कहीं-कहीं अँधेरा है। इसी समय “सियाराम” – “सियाराम” कहकर प्रसिद्ध पुण्यात्मा हीरासिंह ने चारपाई से उठकर जमीन पर पैर रक्खा। वह इधर-उधर घूमकर एक पत्थर की वेदी के पास आ खड़ा हुआ। देखा वेदी पर भोलाराय
कोन्फ्लिक्ट (टकराव/संघर्ष) एक क्राइम उपन्यास या कहानी में ‘सस्पेंस’ का होना बहुत जरूरी होता है। इसे आप अपराध गल्प कथाओं का प्रमुख तत्व भी कह सकते हैं। नए लेखकों के लिए ‘अपराध गल्प कथा’ में सस्पेन्स डालना उतना आसान नही रहता है, हालांकि उनकी कोशिश पुरजोर रहती है
अध्याय १२ : गंगा की धारा छठ की रात तीन घड़ी बीत गयी है। डोरा के पास जंगल की नाहर से एक छोटी सी नाव निकलकर गंगा जी में आई। हीरासिंह के डाकुओं में से अबिलाख बिन्द, सागर पांडे, बुद्धन मुसहर तथा और दो आदमी उस पर सवार हैं। सागर पांडे ने जम्हाई ली और […]