‘शो, डोंट टेल’
‘शो, डोंट टेल’
अंतराष्ट्रीय स्तर पर ‘शो, डोंट टेल’ एक टूल के रूप में लेखकों का पसंदीदा टूल बन चुका है। आप इस टूल के बारे में बात करते हुए कई लेखकों को पढ़ एवं सुन सकते हैं। वैसे यह जानना रुचिकर होगा, कि, इस वाक्य का असलियत में अर्थ क्या है और कैसे यह लेखकों के महत्वपूर्ण है।
‘दिखाओ, बताओ नही।’
लेखकों के लिए यह टूल यह बताता है कि किसी भी बात को सीधे तरीके से बताने के स्थान पर आप उसे वर्णन करते हुए बताइए। जिस बात को सीधे-सपाट लहजे में कहना चाह रहे हैं, उसे विशेषणों एवं क्रिया-विशेषणों का इस्तेमाल करते हुए, वर्णनात्मक लहजे में कहिये। अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो SDT (शो, डोंट टेल) लेखक को यह सलाह देता है कि वह खुद के उपस्थिति को कहानी में डालने के बजाय किरदारों को सोचने, समझने, क्रिया करने और अपनी भावनाएं दिखाने का मौका दे।
अब जैसे की कहानी के दो लगातार हिस्सों के बीच 2 हफ्ते का वक्फा है, तो इन हिस्सों को इस तरह से दर्शाना है कि पाठक को उस वक्फे में किरदार के साथ घटी घटनाओं को जानने की कतई जरूरत न पड़े।
वहीं जब किसी किरदार का भूतकाल दिखाना हो तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप किरदार के वर्तमान के बारे में लिख रहे और उसी पर कहानी भी निर्भर है। तो ऐसे में ज्यादा वर्णन न करते हुए, इस तरह से पाठक के सामने इस हिस्से को प्रस्तुत करना चाहिए कि कम से कम शब्दों में अपनी बात कह दें। मुख्यतः कई लेखक संवाद एवं सोच के जरिये इस हिस्से को प्रस्तुत करते हैं।
एक्चुअली वर्तमान का जो पाठक है वह ऐसी कहानी चाहता है, जिसे वो पढ़े तो, उसकी घटनाएं फ़िल्म की तरह, उसकी आँखों के सामने चलने लगे। इसलिए लेखक इस ‘शो, डोंट टेल’ तरीके का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। आप ‘पंच इंद्रियों’ का इस्तेमाल करके, किरदार की भावनाओं को व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह है कि ऐसे विवरण कम ही रखे जायें तो बेहतर है।
आज का पाठक फ़ास्ट लाइफ में जीता है, ऐसे में ज्यादा विवरण के बाद पाठकों को बोरियत भी आने लगती है इसलिए इस प्रकार के विवरण का इस्तेमाल सिर्फ कहानी की शोभा बढ़ाने के लिए किया जाना बेहतर है।
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