साथी हाथ बढ़ाना (संजू प्रजापति ‘मीठी’)

“चलिए, अपना ख्याल रखिएगा और कोई जरूरत हो तो फोन कीजियेगा” कहते हुए नीमा ने कॉल काटा और मुड़ी तो चौंक गई। पतिदेव सामने खड़े थे, बोले “किस से बात कर रही थी इतनी रात को?” नीमा ने कहा “मेरी फ्रेंड है ना विशाखा, जो कोविड पॉजिटिव है और उसके हसबैंड भी…. उसके हसबैंड को ऑक्सीजन सिलिंडर की जरूरत है। सांस लेने में तकलीफ हो रही है और ऑक्सीजन लेवल 85 है। उसने मेसेज किया था तो वही पूछ रही थी कि अरेंज हुआ या नहीं।”
तब तक रवि नीमा के हाथ से फोन लेकर लास्ट डायल्ड नंबर पर दुबारा कॉल कर चुका था और उधर से एक मर्द की आवाज में हेलो सुनकर फोन काट चुका था। नीमा की तरफ देखकर रवि बोला “ये विशाखा औरत है या मर्द?” नीमा ने हैरानी से कहा “औरत ही है और मैंने उसी को फोन किया था पर…” नीमा अपनी बात भी पूरी नहीं कर पाई थी कि एक जोरदार चांटा उसके गालों पर पड़ा। नीमा गिर पड़ी।
फोन जमीन पर पटकते हुए रवि बोला “सामने सामने सफेद झूठ बोल रही है। शर्म नहीं आती जरा भी।” रवि गुस्से में छत से नीचे आप कमरे में चला गया। नीमा की आंखें भर आईं। उसने फोन उठाया और वो भी नीचे कमरे में आ गई। रवि गुस्से से भरा बिस्तर पर बैठा था। नीमा को भी गुस्सा आ रहा था।
कमरे का दरवाजा बंद कर के नीमा ने गुस्से में कहा “बात सुनने की आदत डालो रवि और भरोसा करना सीखो।” रवि ने भी गुस्से में कहा “भरोसे की बात तुम ना ही करो नीमा तो बेहतर है। उसी भरोसे को अभी छत पर तोड़कर आई हो तुम, अपने यार से बात कर के…” “वो मेरा यार नहीं है रवि” नीमा ने तेज आवाज में कहा “वो विशाखा के पति थे। मैने विशाखा को ही फोन किया था। विशाखा सो रही थी तो उसके पति शेखर ने फोन उठा लिया।”
“और तुम्हें मौका मिल गया एक पराए मर्द से रंगीन बातें करने का” रवि बोला तो नीमा गुस्से से एकदम तिलमिला गई और बोली “अपनी घटिया सोच को अपने पास रखो रवि।” नीमा की आंखें गुस्से और दुख से भर आई। उसने कमरे का दरवाजा खोला और बच्चों के कमरे में चली गई सोने।
सुबह नीमा उठकर घर के कामों में लग गई। लॉकडाउन लग चुका था इसलिए बाहर किसी को जाना नहीं था। रवि का गुस्सा शायद उतरा नहीं था। उसने नीमा से कोई बात नहीं की। नीमा उसका नाश्ता लेकर कमरे में गई तो रवि बिस्तर पर बैठ टीवी देख रहा था। नीमा उसके सामने बैठ गई और उसने बोलना शुरू किया।
“विशाखा और उसके पति दोनों कोविड पॉज़िटिव हैं। उनकी एक बेटी है और वो भी सिर्फ डेढ़ साल की। यहां विशाखा के मम्मी पापा रहते हैं लेकिन वो भी कोविड पॉज़िटिव हैं। कल उसके पति का ऑक्सीजन लेवल कम हो गया था। उसने मुझे शाम को ही मेसेज किया कि मैं कहीं से पता कर के बताऊं उसे। मैंने मेसेज रात को देखा और जो भी जानकारी मिल सकती थी इकट्ठा कर के उसे दी। उसने जब काफी देर तक मेरे मेसेज का जवाब नहीं दिया तब मैंने कॉल किया लेकिन उसके पति ने फोन उठाया और बताया कि उसे बुखार है तेज और वो दवाई खाकर सो चुकी है। उन्हें लेटने पर सांस की दिक्कत हो रही है इसलिए वो सोए नहीं और अपने लिए ऑक्सीजन सिलिंडर का इंतजाम कर रहे हैं। बस इतनी बात थी रवि और तुमने बिना पूरी बात सुने मुझे थप्पड़ मार दिया।”
रवि ने कहा “उसने तुम्हें ही क्यों मेसेज किया? तुम कोई डॉक्टर हो या तुम्हारे पास ऑक्सीजन सिलिंडर है?” नीमा ने कहा “मेरे पास नहीं है लेकिन हम लोग सभी उपलब्ध जगहों पर कॉल कर के वेरिफाई करते हैं और फिर सही जानकारी जरूरतमंदों तक पहुंचाते हैं।” रवि ने कहा “तो तुम उसकी इतनी सगी कब से बन गई कि उसने तुम्हें ही मेसेज किया।” नीमा बोली “अरे अकेले मुझे ही नहीं किया होगा औरों को भी किया होगा। जिस से जो बन पड़ा उन मदद की होगी।”
रवि और भी कुछ कहता लेकिन उस से पहले ही नीमा ने कहा “रवि, जरूरत में पड़े लोगों की हम जो हो सके मदद कर दें वही बहुत है। वो लोग परेशान हैं, उनकी छोटी सी बच्ची है। पता नहीं कैसे मैनेज कर रहे होंगे। ऐसे में अगर हमारी एक कॉल भी उनकी कुछ मदद कर सकती है तो तुम्हें नहीं लगता कि हमें वो करना चाहिए।” रवि ने गुस्से में कहा “तो जाओ करो ना मदद। उनके घर चली जाओ, वहीं जाकर मदद करो इतना ही तुम्हें मदद करने का भूत सवार है।”
रवि की तेज आवाज सुनकर उसकी मां आ गई और पूछा क्या बात है। रवि ने तेज चिल्ला चिल्लाकर कहा “रात रात को जाने किस से बात करेंगी फोन पर और पकड़ी जायेंगी तो कहेंगी मदद कर रही थी।” रवि काफी कुछ बुरा भला कहने लगा नीमा को। नीमा चुपचाप उठी और रसोई में आकर काम निपटाने लगी। उधर उसकी सास भी रवि की हां में हां मिलाने लगी और बोली “पूरा पूरा दिन तो फोन पर बतियाती रहती है, हंसती रहती है। हमसे बात करने में मौत होती है और फोन पर बात करने से फुरसत नहीं।”
नीमा अपने घरवालों की मानसिकता जानती थी, कितनी ही बार बहस कर चुकी थी लेकिन उसका कोई फायदा नहीं होता। मां से बताया तो मां ने कहा ससुराल में सब सहना पड़ता है। अगर अलग होगी तो हमारी इज्जत जायेगी। सबकी इज्जत, सबकी खुशी, सबके सम्मान के लिए नीमा बस अपनी जिंदगी जिए जा रही थी। इस कोरोना काल में बस थोड़ी बहुत लोगों की मदद कर देती जिस से उसे थोड़ा सुकून मिलता था लेकिन उस से भी सबको परेशानी हो गई।
नीमा का फोन बजा, उसने उठाया तो एक गैस एजेंसी से फोन था। उन्होंने कहा “मैडम कल इनक्वायरी आई थी आपकी, अभी ऑक्सीजन सिलिंडर हैं हमारे यहां, आकर ले जाइए। नीमा ने धन्यवाद कहा और एड्रेस लेकर विशाखा को मैसेज कर दिया। थोड़ी देर बाद भी जब जवाब नहीं आया तो उसने फोन किया विशाखा के नंबर पर। काफी देर तक घंटी बजी लेकिन उठाया नहीं किसी ने। उसने दो तीन बार कॉल किया लेकिन जवाब नहीं आया। फिर उसे याद आया कि एक बार विशाखा ने अपने पति के नंबर से उसे कोई मैसेज किया था। उसने वो नंबर ढूंढकर उस पर फोन किया लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं आया।
उसने विशाखा को दुबारा फोन किया तो इस बार पीने उठा लेकिन कोई आवाज़ नहीं आई। थोड़ी देर तक नीमा हेलो हेलो करती रही। अचानक उधर से बच्चे के रोने की आवाज आई। नीमा घबरा गई। फोन कट गया। इस से पहले दुबारा फोन करती उसके फोन पर विशाखा के पति का फोन आया। उसने उठाया तो उधर से बहुत धीमी आवाज आई। शेखर ने बहुत धीरे से कहा “मुझे लूज मोशन हो रहे हैं। मैं बहुत कमजोर हो गया हूं, इतना कि उठकर कमरे तक नहीं जा सकता, बाथरूम के पास पड़ा हूं। किट्टू रो रही है, विशाखा की कोई आवाज नही आ रही…”
इतना कहने के बाद दूसरी तरफ से आवाज आनी बंद हो गई। नीमा हेलो हेलो करती रही। उसका दिल घबराने लगा। उसने फिर विशाखा के नंबर पर फोन किया लेकिन कोई जवाब नहीं। उसे समझ नहीं आया क्या करे। उसने आंखें बंद की तो उसके सामने किट्टू का चेहरा आ गया। विशाखा अक्सर उसे किट्टू की तस्वीरें भेजती रहती है। तभी गुनगुन, उसकी बेटी आकर उस से चिपक गई और बोली “मम्मा, दुद्धू..”
नीमा ने गुनगुन को दूध दिया और सोचने लगी पता नहीं किट्टू ने कुछ खाया पिया होगा या नहीं। वो तुरंत उठी। उसने अलमारी में से अपना बैग उठाया उसमें दो जोड़ी कपड़े डाले, अपना पर्स लिया और जाने लगी। रवि ने पूछा “कहां जा रही हो?” नीमा ने कहा “तुम्हीं ने कहा था उसके घर जाकर मदद करो, तो बस वहीं जा रही हूं।” रवि ने कहा “मदद करने जा रही हो या उसके पति के साथ गुलछर्रे उड़ाने…”
“रवि नीमा बेहोश है शायद, या पता नहीं जिंदा भी है या नहीं। उसक पति इतना कमजोर हो गया है कि अपनी बेटी के पास तक नहीं जा पा रहा। उसकी डेढ़ साल की बेटी जाने कब से भूखी रो रही है। कोई नहीं है उसके पास। मुझे जाना ही होगा” नीमा ने कहा और अपनी चप्पल पहनने लगी। रवि ने कहा “और यहां हम लोगों का क्या? हमारा ख्याल कौन रखेगा?” नीमा ने कहा “आप लोग कोई दूध पीते बच्चे नहीं हो जो खुद का ख्याल न रख सको। मम्मी खाना बना सकती हैं। बच्चे वैसे भी अपने दादा दादी के साथ ही रहते हैं पूरा दिन। कुछ दिन तो मेरे बिना मैनेज कर ही सकते हो।”
रवि ने गुस्से में नीमा का हाथ पकड़कर कहा “तुम कहीं नहीं जाओगी।” नीमा ने कहा “आज नहीं रवि, आज बात एक मासूम बच्ची की है। वो हमारी गुनगुन की तरह ही है। मुझे जाना होगा।” रवि से हाथ छुड़ाकर नीमा जाने लगी तो रवि ने कहा “अगर मैं कहूं कि तुम फिर वापस नहीं आ पाओगी तो…” नीमा के बढ़ते कदम अचानक रुक गए। वो मुड़ी और वापस रवि के पास आकर बोली “इसके बारे में हम बाद में बात करेंगे रवि, बच्चों का ख्याल रखना।”
नीमा घर से बाहर निकल आई। उसे पता था कि उसने कितना बड़ा कदम उठाया है। सब घरवालों के खिलाफ, रवि के खिलाफ जाकर शायद उसने सही नहीं किया। विशाखा के घर इस स्थिति में जाना मतलब खुद को भी बीमार करना है और फिर जब वो वापस अपने घर जायेगी तो ये बीमारी साथ ले जायेगी लेकिन फिर भी बस किट्टू की खातिर आज उसने सब जानते हुए भी ये कदम उठाया है।
उसने रास्ते में अपनी एक डॉक्टर सहेली आशा को फोन किया और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया। आशा ने कहा “देखो नीमा, ये बात समझ लो कि वहां जाकर तुम भी बीमार पड़ोगी ही इसलिए उनके साथ साथ तुम्हें अपना भी ख्याल रखना होगा।” आशा ने उसे कुछ दवाइयां बताई जो उसे अपने पास रखना चाहिए और शेखर के लिए भी दवाई बताई। नीमा ने उसे घर आकर एक बार दोनों को देखने के लिए कहा तो आशा बोली “अभी बिलकुल फ्री नहीं हूं। रात को देखती हूं, तुम एड्रेस मेसेज कर दो।”
नीमा ने आशा को एड्रेस मेसेज कर दिया और दवाइयां लेकर वो विशाखा के घर पहुंच गई। विशाखा के घर का दरवाजा उसने देर तक खटखटाया लेकिन ना कोई दरवाजा खोलने आया ना ही कोई आवाज आई। उसे समझ नहीं आया क्या करे। वो घर के पीछे की तरफ गई तो देखा एक खिड़की खुली हुई थी। वो खिड़की रसोई की थी। उसने झांककर देखा तो रसोई में दूध बिखरा पड़ा था, शायद बिल्ली बिखरा गई हो। वो किसी तरह खिड़की के सहारे घर के अंदर आई। रसोई से निकलकर वो हॉल में आई तो बाथरूम के पास शेखर जमीन पर लेटा हुआ था और जोर जोर से सांसें ले रहा था।
नीमा जल्दी से उसके पास आई और उसे उठा कर बैठाया। रसोई से पानी लाकर उसने शेखर को दवाई दी। शेखर ने इशारे से बताया कि उसे सांस लेने में काफी दिक्कत हो रही है। उसने शेखर को सोफे पर लेटाया और थर्मामीटर और ऑक्सीमीटर लगाकर उसका बुखार और ऑक्सीजन लेवल चेक किया। ऑक्सीजन लेवल 80 से नीचे था, बुखार 101 ऑक्सीजन सिलिंडर मिला नहीं था अब तक तो नीमा ने नेबुलाइजर लगाकर शेखर को आराम करने को कहा।
नीमा कमरे में गई तो उसने देखा विशाखा बिस्तर पर पड़ी है और किट्टू उसका स्तन मुंह में लेकर लेटी हुई है। उसने किट्टू को देखा तो उसकी आंखें रो रोकर सूजी हुई थीं। उसने आराम से विशाखा का स्तन उसके मुंह से निकाला तो किट्टू फिर रोने लगी। नीमा ने किट्टू को गोद में उठाया और चुप कराते हुए रसोई में गई। दूध तो बिल्ली ने बिखेर दिया था। फ्रिज खोला तो एक पैकेट दूध उसमें रखा था। उन जल्दी से दूध गरम कर के ठंड किया और बोतल में डालकर किट्टू को दिया।
उसने किट्टू को दूध की बोतल देकर बिस्तर पर बैठाना चाहा तो किट्टू रोने लगी। वो रसोई में से ठंडा पानी और एक कपड़ा लेकर आई और विशाखा के पास किट्टू को गोद में लेकर बैठ गई और विशाखा की पट्टियां करने लगी। किट्टू दूध पीकर नीमा की गोद में सो गई। विशाखा का माथा थोड़ा ठंडा हुआ तो नीमा किट्टू को उसके पास लिटाकर शेखर के पास आई। शेखर का सर भी तो रहा था।
थोड़ी देर शेखर के सर पर ठंडी पट्टियां कर विशाखा रसोई में आई। गैस पर खिचड़ी चढ़ाकर रसोई और सारा घर साफ किया। थोड़ी परेशानी हुई क्योंकि अनजाना घर था लेकिन फिर भी उसने किया। कुकर की सीटी से विशाखा की नींद खुली। किसी तरह उठकर वो रसोई के पास आई तो देखा नीमा बर्तन धो रही है। उसने धीरे से कहा “नीमा?”
नीमा ने मुड़कर देखा तो विशाखा थी। उसने बर्तन छोड़ विशाखा को पकड़कर हॉल में लाकर बैठाया और थोड़ा गरम पानी दिया पीने को। विशाखा ने पूछा “तुम यहां कैसे?” नीमा बोली “बस आ गई। मैंने थोड़ी खिचड़ी बनाई है, तुम खा लो फिर दवाई खाकर आराम करो।” विशाखा ने कहा “किट्टू भूखी….” नीमा बोली “दूध पिला दिया मैंने उसे। अभी सोई है, जब उठेगी तब कुछ खा लेगी। तुम बैठो मैं खिचड़ी ला देती हूं थोड़ी सी।”
नीमा रसोई में खिचड़ी लेने चली गई। विशाखा उठकर शेखर के पास गई और बोली “शेखर…. शेखर कैसे हो तुम?” शेखर ने कुछ आंखें खोलते हुए कहा “बिलकुल हिम्मत नहीं उठने की। किट्टू कहां है?” विशाखा बोली “सोई है, दूध पीकर।” तभी नीम खिचड़ी लेकर आ गई। विशाखा और शेखर दोनों को थोड़ा बहुत खाना खिलाकर दवाई दे दी। दोनों कमरे में सो गए।
नीमा ने अपना फोन निकाला पर्स में से तो उसमें लगभग 70 से ऊपर मिसकॉल और ढेरों मेसेज थे। उसकी मां, उसकी बहने, उसके पिताजी, दादाजी, ससुर, देवर और खुद रवि के कॉल्स और मेसेज थे। उसे पता था कि सब क्यों उसे फोन कर रहे थे। उसने कमरे में जाकर चुपके से विशाखा और शेखर की फोटो ली और उसके साथ एक मैसेज टाइप किया “ये मेरे दोस्त हैं और उनकी छोटी सी बेटी है जो सिर्फ डेढ़ साल की है। दोनों कोविड पॉजिटिव हैं और देखभाल करने वाला कोई नहीं। सब जानते हुए भी इनको मरने केलिए नहीं छोड़ सकती थी। और कोई उपाय मुझे सूझा नहीं। अगर आप में से किसी के पास कोई बेहतर उपाय है तो मुझे बताएं, मैं तुरंत अपने घर वापस चली जाऊंगी।”
उसने सबको ये मेसेज और फोटो भेज दिया और रवि को फोन किया लेकिन उसने फोन नहीं उठाया। नीमा ने अपनी आंखें बंद की और कहा “हे ईश्वर! जिस तरह उस समय मुझे हिम्मत दी ये फैसला लेने की उसी तरह हमेशा मुझे हिम्मत देना।” नीमा उठी, अपना पर्स उठाया और बाहर चली गई।” ऑक्सीजन सिलिंडर का उसने जहां पता किया था वहां से ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर आई। घर के लिए जरूरी फल सब्जियां आदि सामान लेकर जब विशाखा के घर में दाखिल हुई तो देखा शेखर दीवार के सहारे झुककर खड़ा है और जोर जोर से सांसें ले रहा है। उसने झट शेखर को बैठाया और ऑक्सीजन मास्क उसके मुंह पर लगाया।
बुखार कम नहीं हुआ था तो उसने पट्टियां रखनी शुरू कर दी। तभी किट्टू उठकर रोने लगी। नीमा ने झट उसे गोद में उठाकर चुप कराया और खाना खिलाने लगी। थोड़ी देर में विशाखा भी उठकर आ गई। नीमा ने सबके लिए काढ़ा बनाया और पीकर उन्हें आराम करने को कहा। शाम हो चली थी सो नीमा ने झट से खाना बनाया और सबको खिल दिया। किट्टू भी खाना खाकर विशाखा की गोद में लेटी थी।
शेखर और विशाखा का बुखार अभी काफी कम था तो दोनों हॉल में बैठे थे। नीमा हॉल में आई तो शेखर ने उसे थैंक्यू कहा। नीमा ने किट्टू की तरफ देखते हुए कहा “तुम लोगों के लिए नहीं आई, बस इस क्यूटी पाई के लिए आई हूं।” विशाखा ने नीमा से पूछा “तू यहां है निम्मू, और तेरे घरवाले???”
“They are cool।” नीमा ने मुस्कुराते हुए कहा। विशाखा भी मुस्कुरा दी हालांकि वो नीमा के घर की स्थिति अच्छी तरह जानती थी। नीमा ने हल्दी वाला दूध लाकर दिया दोनों को। शेखर ने पूछा “घर का दरवाजा तो अंदर से बंद था, तो तुम अंदर कैसे आई?” नीमा ने हंसते हुए कहा “बिल्ली के रास्ते से।” सब हंसने लगे।
विशाखा किट्टू के सर पर हाथ फेरते हुए बोली “मेरी बेटी भूख से बिलख रही थी और मेरी इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि उठकर उसे कुछ दे दूं खाने के लिए। मेरा दूध छोड़े उसे कितने महीने हो गए लेकिन फिर भी निप्पल उसके मुंह में डाल दिया। बेचारी मेरा सुखा स्तन चूसकर ही सो गई।” विशाखा रोने लगी। नीमा ने उसे चुप कराया और कहा “वो ईश्वर है ना, वो सब ठीक कर देता है।”
रात को डॉक्टर आशा ने आकर दोनों का चेकअप किया और दवाइयां लिख दी। शेखर के लंग्स में इन्फेक्शन था शायद इसलिए उसे कुछ टेस्ट लिख दिए। अगले कुछ दिन तक नीमा ने विशाखा और शेखर का काफी ध्यान रखा जिस से उनकी तबियत में काफी सुधार हो गया। इस बीच उसने रवि से कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन रवि ने ढंग से बात नहीं की, यहां तक कि बच्चों से भी बात नहीं करवाई।
लगभग हफ्ते भर बाद नीमा ने विशाखा से कहा “अब तुम लोग काफी ठीक लग रहे हो, अब मुझे भी घर जाना चाहिए।” शेखर ने कहा “लेकिन जाने से पहले तुम भी अपना कोविड टेस्ट करवा लो। दो मरीजों के साथ रही हो, चांसेज पूरे हैं।” नीमा ने अपना कोविड टेस्ट करवाया तो नेगेटिव आया। हालांकि इसकी उम्मीद कम थी लेकिन फिर भी उसने चैन की सांस ली।
अपने घर जब वापस गई नीमा तो किसी ने भी उस से बात नहीं की सिवाय बच्चों के। उसने रवि से बात करने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। नीमा बस इसी डर में थी कि कहीं घर में किसी की तबीयत ना खराब हो जाए क्योंकि फिर उसका सारा इल्जाम नीमा पर ही आता लेकिन ईश्वर की कृपा से ऐसा कुछ नहीं हुआ।
एक दिन नीमा रसोई में खाना बना रही थी कि अचानक उसे अपनी मां की आवाज सुनाई दी “ऐसा मत कहिए दामाद जी, जायेगी कहां वो? गलती हुई है उस से, माफ कर दीजिए। दुबारा गलती नहीं करेगी।” नीमा अपनी मां की आवाज सुनकर हैरान रह गई और उस से ज्यादा हैरानी उसे रवि की बात सुनकर हुई “जहां हफ्ते भर रह कर आई है वहीं जाकर रहे, मुझे फर्क नहीं पड़ता पर अब वो यहां मेरे घर में नहीं रह सकती। दुनियाभर का कूड़ा कचरा जमा कर के रखने का ठेका नहीं ले रखा मैंने।”
नीमा एकदम जड़ हो गई ये सब सुनकर। बाहर से लगातार आवाजें आ रही थीं, सास ससुर, देवर पति सब नीमा की दुनियाभर की गलतियां गिनवा रहे थे जो अब तक किसी को नजर नहीं आती थी लेकिन अचानक नजर आने लगी। नीम रसोई से बाहर आई भरी आंखें लेकर। उसके पिताजी नजरें झुका कर बैठे थे, उसकी मां ने उसे दुनियाभर की दुहाई दी।
रवि बोला “वहां जाना अगर इसकी गलती थी तो पूछिए अपनी बेटी से क्या इसने अपनी गलती मानी? माफी मांगी अपनी गलती की। हम चाहते तो उस दिन इसे घर में ही ना घुसने देते लेकिन यही सोचकर कि गलती हुई है तो माफी मांग लेगी हमने इसे वक्त दिया लेकिन ये तो जाने किस घमंड में चूर है।” नीमा की मां ने नीमा से कहा “माफी मांग ले नीमा, क्यों बसी बसाई गृहस्थी उजाड़ने में लगी है।”
नीमा ने कहा “हां मां, गलती हुई मुझसे। माफी मांगनी चाहिए थी। माफ कर दो मुझे रवि, माफ कर दो कि पिछले आठ सालों से तुम्हारे साथ होते हुए भी मैं तुम्हारे विचारों को ढंग से जान नहीं पाई। माफ कर दो कि मैंने कितनी ही बार तुम्हारी गलतियों को नजरंदाज किया, उनका पहाड़ नहीं बनाया। माफ कर दीजिए मुझे आप सभी लोग जो मैंने आप लोगों से मेरी बात समझने की उम्मीद की, इंसानियत की उम्मीद की। आज जब पूरी दुनिया एक महामारी के खिलाफ लड़ रही है, मैंने आपको मेरे विचारों से लड़ने के लिए मजबूत किया। माफ कीजिए आप सब मुझे।”
सब हैरानी से नीमा को देखने लगे। नीमा कमरे में गई, अपना पर्स और मोबाइल उठाया और सीधा बाहर जाने लगी। दरवाजे से बाहर निकलने से पहले नीमा रुकी और मुड़कर बोली “और इस बार मैं खुद इस दरवाजे से अंदर नहीं आऊंगी।” नीमा चली गई और सब उसे देखते रहे।
नीमा सीधा अपनी एक दोस्त के पास गई जो एक एनजीओ में काम करती थी। नीमा उसके साथ मिलकर कोरोना के मरीजों की मदद करने लगी। बिना अपने स्वास्थ्य की फिक्र किए नीमा अन्य लोगों के साथ जी जान से लगी थी। एक रात 11 बजे करीब अचानक रवि का फोन आया उसके पास। उसने घबराते हुए कहा “मां की तबीयत खराब है।” नीमा ने आगे कुछ सुना ही नहीं और सीधा घर के लिए निकल गई।
कुछ ही देर में नीमा घर पर थी। मां पिताजी दोनों बीमार थे, मां की हालत ज्यादा खराब थी। नीमा ने तुरंत स्थित संभाली, डॉक्टर आशा भी कुछ देर में आ गई और वो जरूरत की दवाइयां साथ लेकर आई थी। कुछ ही देर में शेखर ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर आ गया। मां और पिताजी को ड्रिप लगाकर उचित दवाइयां दे दी और सारी चीजें समझाकर डॉक्टर चली गईं। शेखर भी कुछ देर में चला गया।
नीमा घर पर रहकर सबका ध्यान रखने लगी। एक एक कर सभी बीमार पड़े लेकिन नीमा की सेवा से धीरे धीरे सब ठीक हो गए। जरूरत की सब चीजें, दवाई घर पर ही आ जाती। इस दौरान रवि ने देखा कि कैसे सभी लोग सिर्फ एक मैसेज या एक कॉल पर मदद केलिए तैयार हो जाते।
एक रात नीमा बच्चों को सुलाकर काम खतम कर के सोने जा रही थी कि रवि ने उसे आवाज लगाई। नीमा रवि के पास गई तो रवि सर पकड़कर बैठा था। नीमा उसका सर दबाने लगी। रवि ने नीमा के हाथ पकड़कर अपनी आंखों पर लगा लिए। नीमा ने महसूस किया कि उसकी आंखें भीगी हुई हैं। उसने रवि से पूछा क्या हुआ तो रवि ने उसकी गोद में अपना सर छुपा लिया। नीमा ने कुछ नहीं कहा बस उसका सर सहलाने लगी।
अगले दिन सुबह जब नीमा उठी तो ये देख हैरान हो गई। घर में ढेर सारा राशन का सामान रखा था। रवि से पूछा तो उसने कहा “और कुछ तो कर नहीं सकते कम से कम खाना बनाकर जरूरत मंद लोगों तक पहुंचा तो सकते हैं। नीमा बहुत खुश हुई ये सब सुनकर। उसने कहा “लेकिन ये अकेले कैसे करेंगे? बन तो जायेगा लेकिन पहुंचाया कैसे जायेगा?” तभी रवि के कुछ दोस्त घर आ गए। उन्होंने कहा “भाभी आप चिंता न करें। हम हैं ना।”
रवि ने कहा “तुम्हारी एक मदद की जरूरत है। तुम सोशल मीडिया पर ये अपडेट कर दो कि जिसे भी भोजन की जरूरत है वो हमसे संपर्क करे।” नीमा ने कहा “हां ठीक है लेकिन हमें हमारी टीम को एक नाम भी देना होगा।” रवि ने कहा “नाम होगा, ‘साथी हाथ बढ़ाना’।”
नीमा ने कहा “मैं सच में बहुत खुश हूं रवि कि तुमने ये सब करने की सोची।” रवि ने कहा “हां नीमा, क्योंकि दुनिया के सारे सुकून एक तरफ और किसी जरूरतमंद की मदद करने का सुकून एक तरफ और थैंक्स टू यू, ये मुझे तुम्हारी वजह से ही पता चला है।”