नंदी की चोरी (मिस्ट्री ऑफ़ द मंथ – अप्रैल 2017)
दिल्ली में बारिश का मौसम भी अजीब तरह से आता है। जहाँ मौसम विभाग कहता है कि आज बारिश होगी, तो उस दिन न होकर २ दिन लेट-लतीफी के साथ, बिल्कुल दिल्ली पुलिस की तरह देर से ही पहुँचती है। दिल्ली शहर की इस विशेषता के साथ ही इसे कुछ उन शहरों में गिना जाता है – जो कभी सोते ही नहीं हैं। दिन-रात, सुबह-शाम-दोपहर, सर्दी-गर्मी-बरसात, यह शहर बस दौड़ता-भागता ही नज़र आता है।
रात के दो बज रहे थे – ऊपर से मूसलाधार बारिश – ऐसे मौसम में पालम विहार चौराहे की रोड नंबर २०१ पर, एक पान की दुकान का खुला होना अपने आप में आश्चर्य की बात थी। लेकिन यह आश्चर्य उस रास्ते से पहली बार गुजरने वालों को ही होता था। पूरे द्वारका में, एक यही पान की दुकान थी जो रात भर खुली रहती थी। वे मेडिकल शॉप, जो २४ घंटे खुले रहने का दावा करते हैं वो भी ऐसी बारिश में बंद हो जाया करते हैं। ऐसे में यह दुकान खुली थी और उन यात्रियों को बराबर सुविधा प्रदान कर रही थी जो तलब के शौक़ीन थे। पान की दुकान पर बैठा व्यक्ति पान की छटाई कर रहा था और दुकान में बज रहे टेप से निकलते गीत-संगीत की आवाज के साथ-साथ गाये-गुनगुनाये जा रहा था। उसी दुकान के ठीक सामने, एक पी.सी.आर. वैन बदस्तूर रात १० बजे से खड़ी थी। हर आधे घंटे के बाद वह वैन सायरन बजाते हुए निकल पड़ती थी और उस क्षेत्र के किसी हिस्से का चक्कर लगाकर वापिस उसी स्थान पर वापिस लौट आती थी। वह पनवाड़ी की दुकान उस चौक की खासियत थी इसलिए वह पी.सी.आर. वैन वहीं पर खड़ी होकर अपनी ड्यूटी को पूरा करती थी। पी.सी.आर. में बैठा एस.आई. अनिल शर्मा, सिगरेट का कश लगा रहा था और उसके साथ का हवलदार धर्मपाल तम्बाकू रगड़ रहा था।
अनिल शर्मा पनवाड़ी की दुकान की तरफ देखते हुए बोला – “धर्मपाल, एक कश लेगा क्या?”
धर्मपाल ने उसे तिरछी नज़रों से देखा और सड़ा हुआ मुँह बनाते हुए बोला – “तू तम्बाकू लेगा क्या?”
अनिल शर्मा ने उसकी बात सुनी तो उसने अपनी बगल का शीशा नीचा किया और थूककर बोला – “साले, मैं तम्बाकू खाऊँगा?”
“हाँ, मुझे पता है ‘गधे’ तम्बाकू नहीं खाते हैं?”
“क्या कहा साले?”
“जो तूने सूना साले।”
तभी उन्हें अपने वायरलेस पर आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने गौर से डिटेल सुनी और नोट की। जब सूचना समाप्त हो गयी तो अनिल शर्मा ने अपनी तरफ वाला ग्लास फिर नीचे किया और उस पनवाड़ी से चिल्लाकर कहा – “चौरसिया, हम लोग सेक्टर २८ में जा रहे हैं। उधर कोई चोरी हो गयी है। अभी आते हैं मामला निपटा के।” – इतना कहकर अनिल शर्मा ने पी.सी.आर वैन को राईट में लेते हुए रोड नंबर २२४ की ओर मोड़ दिया।
पीसीआर वैन रोड नंबर २२४ जो कि डाबरी-गुडगाँव रोड भी कहलाता है, से होती हुई गोल्फ कोर्स रोड के लिए बायीं ओर मुड़कर सेक्टर २८ के गेट पर पहुँची। उस गेट पर सोसाइटी की तरफ से नियुक्त एक सिक्योरिटी गार्ड अपने केबिन में बैठा ऊँघ रहा था। अनिल शर्मा ने हॉर्न बजाया तो वह गार्ड हकबकाते हुए, जाग गया और अपना रेनकोट पहनकर गेट खोलने के लिए दौड़ा।
गेट से अन्दर प्रवेश करते हुए हवलदार धर्मपाल ने उससे कुछ पूछा जिसके जवाब में उसने हाथ के इशारे से कुछ बताया। वैसे भी उस मूसलाधार बारिश में आदमी को आदमी की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी तो अक्लमंदी यही कहती है कि इशारे में बात करो। अनिल शर्मा ने धर्मपाल के दिशानिर्देश के अनुसार चलते हुए उस बिल्डिंग के सामने गाड़ी रोकी जिसमे चोरी की घटना घटी थी। उनकी गाड़ी पोर्च में पहुँची तो वे उतरकर लिफ्ट की ओर बढ़े। लिफ्ट से चौथे माले पर पहुँचकर उन्होंने फ्लैट नंबर ४०५ की कॉलबैल दबाई और साथ ही आवाज भी लगाई – “दिल्ली पुलिस।”
कॉलबैल के जवाब में एक महिला ने दरवाजा खोला जिसकी उम्र लगभग ३५ वर्ष रही होगी। उसने पीले रंग के गहरे गले का सूट पहना हुआ था जो उसके घुटने तक आ रहा था और उसी रंग की, उसी प्रिंट से मिलती-जुलती सलवार पहनी हुई थी जो कमर और एड़ी के करीब ही तंग थी और बाकी अंग में खुली-खुली सी थी।
“इतनी देर कैसे हो गयी आप लोगों को आने में?” – इतना कहकर उसने दरवाजा पूरी तरह से खोल दिया।
दोनों के अन्दर घुसते ही महिला ने दरवाजा बंद कर दिया। अनिल शर्मा और धर्मपाल ने अपने रेनकोट को खोलकर दरवाजे के करीब पड़ी एक रिक्त कुर्सी पर रख दिया। फर्श जो अभी तक साफ़-सुथरा था, धर्मपाल और अनिल शर्मा के जूतों के कारण वहाँ निशान बन गए और रेनकोट पर गिरी बारिश की बूँदें भी टप-टप करके फर्श को नहलाने लगीं। अनिल शर्मा ने जब ऐसा देखा तो बोला – “आई एम् सॉरी!”
धर्मपाल ने एक नोटपैड और पेन अनिल शर्मा के सामने सरका दिया। वह नोटपैड, लगभग २०-२१, ए४ साइज़ के लूज शीट्स से तैयार किया गया था, जिसके नीचे एक हार्डबोर्ड था जिसका इस्तेमाल परीक्षा के दौरान स्कूल में विद्यार्थी करते थे।
अनिल शर्मा ने महिला से मुखातिब होकर पूछा – “हाँ, बताइये क्या चोरी हो गया है?”
उस महिला ने बताया – “एक ‘मूर्ति’ चोरी हो गयी है।”
धर्मपाल महिला की बात सुनकर हंसने लगा और बोला – “लो दिल्ली पुलिस का काम अब ‘मूर्तियों’ को खोजना भी हो गया है।”
अनिल शर्मा ने उस ड्राइंग रूम नुमा कमरे में निगाह डाली तो पाया कि वह एक सुव्यवस्थित तरीके से सजा हुआ कमरा था। कमरे में ध्यान के मरकज की ३ अलमारियाँ थीं जिनमे शीशे के दरवाजे लगे थे और उन दरवाजों के पीछे कई मूर्तियाँ रखी हुई थीं। कुछ मूर्तियाँ टूटी-फूटी हुई थीं तो कुछ साबुत थीं। ऐसे में उसकी नज़र एक ‘नटराज’ की मूर्ति की ओर गयी।
महिला ने घृणा की दृष्टि से धर्मपाल को टेढ़ी नज़रों से देखते हुए बोला – “वह कोई मामूली मूर्ति नहीं थी। ‘झारखंड’ के कोयले की खदानों से ८० के दशक में वह मूर्ति पाई गयी थी जिसे बाद में ‘मिस्टर देबीप्रसाद परिदा’ ने खरीदा था। जिसकी कीमत आज के समय मार्किट में लगभग ३०-४० लाख रूपये है।”
“ये देबीप्रसाद परिदा कौन हैं?”
“देबीप्रसाद परिदा, एक समय में बहुत प्रसिद्ध ‘एंटीक कलेक्टर’ एवं धनी व्यक्ति थे। वे ‘हिमाचल प्रदेश’ की एक रियासत ‘मकलोडगंज’ के राजा के एकलौते वंशज हैं। खानदानी विरासत की कोई कमी नहीं थी लेकिन साथ ही सरकारी पैसा भी खूब आता था जिसे कि बाद में बंद कर दिया गया। वे ५ वर्ष पहले तक बहुत ही एक्टिव ‘एंटीक कलेक्टर’ रहे थे लेकिन एक बीमारी के कारण उन्होंने अपने इस शौक़ पर विराम लगा दिया था। उन्होंने लगभग अपनी सारी पूँजी अपने शौक़ में धौंक दी थी और जो बची थी वो उनकी बीमारी के इलाज़ में लग गई। आज के समय वे गुमनामी के अँधेरे में ‘इस घर’ में अपने अंतिम दिन बिता रहे हैं। एक समय ऐसा था जब, देश-विदेश से लोग उनके पास एंटीक मटेरियल लेकर आते थे और जो उन्हें पसंद आता था उसे वे खरीद लेते थे। आज के समय में अगर वे अपनी कलेक्शन को बेचें तो आराम से २०-२५ वर्ष गुजार सकते हैं लेकिन वो अपने कलेक्शन का एक आइटम भी बेचने को तैयार नहीं हैं।”
अनिल शर्मा ने कहा – ‘ये वो देबीप्रसाद परिदा हैं?”
“हाँ, वही हैं।”
“कहाँ हैं वो? हमें उनसे मिलना है।”
“आइये।”
वह महिला दोनों को अन्दर वाले कमरे में ले गयी तो वहाँ उन्होंने एक बूढ़े को व्हीलचेयर पर गर्दन झुकाए बैठे पाया। कमरे में आहट का आभास होते ही उस बूढ़े ने अपने चेहरे को ऊपर उठाया और लगभग प्रलाप करते हुए पूछा – “इंस्पेक्टर, मेरा नंदी मिला क्या?”
इससे पहले कि इंस्पेक्टर कुछ पूछता, उस महिला ने जवाब दिया – “दरअसल जो मूर्ति चोरी हुई है, वह भगवान् शिव के वाहन ‘नंदी’ की प्रतिरूप मूर्ति थी। अगर उसके आकार के बारे में बताऊँ तो उसका साइज़ 6 इंच होगा।”
“क्या आप ही ‘देबीप्रसाद परिदा’ हैं?”
“हाँ, ये ही देबीप्रसाद परिदा हैं और मैं इनकी पत्नी मालविका परिदा हूँ।”
धर्मपाल जो इतनी देर से बातों को सिर्फ सुन रहा था, वह अनिल शर्मा के करीब, उसके कानों के पास अपने होठों को ले जाकर बोला –“कमबख्त, ये तो बेटी या पोती की उम्र की है। पत्नी कैसे बन गयी?”
अनिल शर्मा ने उसकी बातों को अनसुना करके कहा – “देबीप्रसाद जी, जैसा कि आपकी पत्नी ने हमें बताया कि वह मूर्ति लगभग ‘४० लाख’ मूल्य की होगी तो क्या यह सच है?”
“हाँ, बिलकुल सच है।”
“क्या इससे भी अधिक मूल्य की कोई एंटीक आइटम है आपके पास?”
“हाँ, बाहर शेल्फ में एक ‘नटराज’ की मूर्ति है जिसका मूल्य १ करोड़ से ऊपर होगा।”
“ह्म्म्मम्म….” – कुछ सोचते हुए अनिल शर्मा ने पूछा – “क्या आपके कलेक्शन के सभी आइटम इंश्योर्ड हैं?”
“मुझे इसके बारे में कुछ याद नहीं है।” – उसने कुछ चिड़चिड़े भाव से कहा – “आप जल्द से जल्द मेरे नंदी को खोजिये।”
“क्या आप दोनों के सिवा इस फ्लैट में कोई तीसरा भी रहता है?”
“नहीं।” –मालविका ने जवाब दिया।
“क्या आज रात कोई अजनबी यहाँ आया था?”
“हाँ, आज रात एक डिलीवरी ब्वाय आया था।”
“डिलीवरी ब्यॉय? रात में डिलीवरी ब्वाय क्या करने आया था?”
“एक्चुअली मेरे पति को रात में ‘चाइनीज’ खाने का मन हुआ और जैसा कि आप देख रहे हैं इस उम्र में उनकी जिद बच्चों की जिद को क्रॉस कर देती है, इसलिए मैंने ‘सेक्टर २१’ में स्थित ‘चावला चाइनीज’ नामक रेस्टोरेंट में आर्डर किया था जिसके उपरान्त तकरीबन १ बजे हमें आर्डर डिलीवर करने के लिए ‘राजेश मखीजा’ नाम का डिलीवरी ब्वॉय आया था।”
“और?”
मालविका परिदा ने नज़रें झुकाकर कहा – “और मुझे लगता है कि मैंने मेन डोर खुला ही छोड़ा हुआ था।”
अनिल शर्मा गौर से मालविका परिदा को देखते हुए बोला – “आप हमें उस रेस्टोरेंट का नंबर दीजिये।” – फिर धर्मपाल की ओर मुड़ते हुए उसने कहा – “धर्मपाल, उस रेस्तोरेंट का नंबर लेकर कॉल करो और अगर कोई फ़ोन उठाये तो उनसे कहो कि ‘राजेश मखीजा’ को तुरंत यहाँ भेजे और अगर राजेश मखीजा वहाँ मौजूद न हो तो उस रेस्टोरेंट के मैनेजर को यहाँ आने के लिए कहो?” –इतना कहकर अनिल शर्मा उस कमरे से निकलकर बाहर के दरवाजे की तरफ चला गया।
दरवाजे का गहन अध्ययन करने के बाद उसे पता चला कि उस दरवाजे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हुई थी। अर्थात मालविका परिदा जो कह रही थी वह सच था। इतने देर में धर्मपाल अन्दर के कमरे से बाहर आते हुए बोला – “मैनेजर और राजेश मखीजा, दोनों ही आ रहे हैं।”
“गुड। वैसे धर्मपाल, तुम पता करो कि इस सोसाइटी में सेंधमारी एवं चोरी करते हुए कितने लोग पकड़े गए हैं। हो सकता है उनमे से ही कोई हो।”
“सर, थाने से अभी तक कोई पहुँचा क्यूँ नहीं? इन्वेस्टीगेशन का काम हमारे अंडर तो आता नहीं है। जब वो आयेंगे तभी पूछ लेंगे।” – धर्मपाल ने कहा।
“नहीं, अभी पता करो। जब तक वे नहीं आते हैं तब तक हम अपने दिमाग और स्किल पर चढ़ गई धूल को थोड़ा झाड़ तो सकते ही हैं।” –इतना कहते हुए वह मालविका की ओर मुड़ा – “आपके पति इस बारे में श्योर नहीं हैं कि उनके कलेक्शन के आइटम्स का इंश्योरेंस है कि नहीं। आपका इस बारे में क्या कहना है?”
“मेरे पति को शायद इस बारे में याद नहीं है लेकिन उनके कलेक्शन के वे आइटम जो ५ वर्ष पहले खरीदे गए थे वे इंश्योर्ड हैं। मैं इंश्योरेंस के पेपर आपको दिखाती हूँ।” – इतना कहकर वह एक ड्राअर में से कुछ डॉक्यूमेंट्स निकालकर दिखाने लगी।
अनिल शर्मा ने उन डाक्यूमेंट्स को देखा तो पाया कि ‘नंदी’ नामक एंटीक आर्टिकल जो चोरी हो गया था उसका इंश्योरेंस ३० करोड़ का था जबकि उसमे ‘नटराज’ के इंश्योरेंस के पेपर नहीं थे।
“क्या ‘नटराज’ की मूर्ति का इंश्योरेंस नहीं हुआ था?”
“हुआ था लेकिन बाद में उसके इंश्योरेंस का खर्च ज्यादा आने के कारण उसका इंश्योरेंस ड्राप कर दिया गया था।”
“आप इस अलमारी को लॉक करके नहीं रखती हैं?”
“नहीं।”
“क्यूँ?”
“क्यूँकि इन एंटीक मटेरियल की कीमत सिर्फ वही जानते हैं जो एंटीक के जानकार हैं और हमारा सम्बन्ध अब ‘इस दुनिया’ के किसी तीसरे इंसान से है नहीं इसलिए हम इसकी कोई आवश्यकता नहीं समझते हैं।”
इतनी देर में ही डोर बेल की आवाज आई तो धर्मपाल ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला। ‘राजेश मखीजा’ और उसके साथ आये मैनेजर ने अन्दर कदम रखा और प्रश्नवाचक
दृष्टि से दोनों पुलिसियों को देखा।
अनिल शर्मा ने ‘राजेश मखीजा’ से पूछा –“तुम जब अन्दर आये थे तो क्या यह दरवाजा खुला हुआ था?”
“मुझे इसके बारे में नहीं पता कि यह खुला हुआ था या नहीं क्योंकि मैं जब आया था तब दरवाजा चौखट से लगा हुआ था और मैडम ने ही आकर दरवाजा खोला था और पैकेट हासिल किया था।”
“क्या तुम कमरे के अन्दर नहीं घुसे थे?”
“नहीं, मैं कमरे के अन्दर नहीं घुसा था।”
अनिल शर्मा ने मालविका परिदा की तरफ देखा – “मालविका जी, आपने पैकेट लेकर क्या किया था?”
“मैं, पैकेट लेकर सीधे अन्दर वाले कमरे में चली गयी थी जहाँ मेरे पति ‘इंडिआना जोंस’ नामक मूवी देख रहे थे। मैं उस मूवी को हज़ारों बार देख चुकी हूँ लेकिन मुझे हर बार मजबूरन देखना पड़ता है क्योंकि मेरे पति ऐसा ही चाहते हैं।”
“आपकी शादी कब हुई थी?”
इस सवाल को सुनकर वह एक बार झिझकी फिर बोली – “लगभग ५ वर्ष पहले। जब मिस्टर परिदा बीमार हुए थे तब हॉस्पिटल से इनकी तीमारदारी और लगातार देखभाल के लिए मुझे अपॉइंट किया गया था। बाद के कुछ महींनों में ही मिस्टर परिदा मेरे द्वारा की गयी देखभाल से बहुत खुश हुए थे और मुझे परमानेंट अपने साथ रहने के लिए कहा था। लेकिन समाज आसानी से इस रिश्ते को स्वीकारता नहीं इसलिए समाज में बदनामी से बचने के लिए मिस्टर परिदा ने विधिवत मुझसे विवाह कर लिया था।”
“आपको कब पता चला कि ‘नंदी’ घर से चोरी हो गया है?”
“जब मूवी खत्म हुई तो मैं इस कमरे में किसी काम से आई तो दरवाजा खुला देखा। मेरे मन में शंका उत्पन्न हुई। इसलिए मैंने अलमारी में एक-एक आर्टिकल को देखा जिसके बाद मुझे ‘नंदी’ के मिस हो जाने के बारे में पता चला। तत्काल मैंने १०० नंबर पर कॉल किया और साथ ही अपने पति को भी बताया।”
इतनी देर से खड़े, राजेश मखीजा ने प्रतिवाद किया – “लेकिन सर मैं इस दरवाजे से अन्दर, इस फ्लैट में घुसा ही नहीं था। मैं तो आर्डर डिलीवरी करके तुरंत खड़े पैर वापिस चला गया था क्योंकि यह रेस्टोरेंट का आखिरी आर्डर था और मुझे रेस्टोरेंट पहुँचकर दिन भर का हिसाब देकर घर भी जाना था।”
धर्मपाल के फ़ोन की घंटी बजी तो उसने सुना। सुनने के बाद उसने अनिल शर्मा के कान में कहा – “साहब, इधर के सेंधमारों की हिस्ट्री यह बताती है कि वह उन्हीं चीजों पर हाथ फेरते हैं जो उन्हें महँगी नज़र आती है।”
उसी वक़्त, नीचे दिल्ली पुलिस का सायरन सुनाई दिया। धर्मपाल ने कहा – “आ गए थाने वाले।”
“हाँ, आदतन देर से आये। क्योंकि अब मुझे पता चल गया है कि चोरी किसने की है।”
नोट – प्रतियोगियों एवं पाठकों, अब आपको यह बताना है की ‘नंदी मूर्ति’ को किसने चुराया? अगर आप उस अपराधी को खोज निकालते हैं तो उसी के आधार पर आप इन्हीं किरदारों के साथ ऊपर लिखी कहानी को आगे बढ़ाइए जिसमे इस बात का जिक्र हो की चोरी कब, कैसे और क्यों किया। इस भाग में आप जिन तथ्यों, सुरागों एवं सूत्रों का प्रयोग करके अपराधी को खोज निकाला है उन्हीं के द्वारा आगे की “कहानी” प्रस्तुत कीजिये जिसे हम ‘फाइनल चैप्टर’ कहते हैं। आपको अपने हिस्से की कहानी को अधिक से अधिक 1000 शब्दों में कहना है। प्रतियोगी इस बात का ध्यान रखें की आप किसी नए किरदार,घटना, सूत्र, सुराग एवं तथ्य को ‘फाइनल चैप्टर’ में नहीं इस्तेमाल करेंगे, सिर्फ ऊपर दिए गए कहानी में मिले सूत्रों, सुरागों और तथ्यों के द्वारा ही “फाइनल चैप्टर” में अपनी कहानी कहनी है।
April 2, 2017 @ 7:57 am
मेरे ख्याल से तो चोरी मालविका परिदा ने की हो सकती है।कम से कम राजेश चोर नही हो सकता
April 4, 2017 @ 6:08 am
यह प्रतियोगिता बहुत ही अच्छी है। यहाँ प्रतिभागियों को अपनी लेखनी की क्षमता दिखाने का भरपूर मौका मिलता है।
धन्यवाद
April 4, 2017 @ 9:42 am
अनिल शर्मा की बात सुनकर कमरे में सन्नाटा छा गया। सभी अवाक रह गये। किसी के मुंह से कोई बात नहीं निकल रही थी।
धर्मपाल ने चौंक कर अनिल शर्मा को देखा और बोला, ‘क्या साहब, क्या कह रहे हैं, आपको चोर का पता भी चल गया?‘
‘हां बिल्कुल, यूं ही हमारा नाम अनिल शर्मा थोड़े ही है। आज तुझे भी पता चलेगा कि तेरे साहब का दिमाग कितना जोर चलता है।’
‘तो सर बताइये न’ धर्मपाल ने कहा। यह सुनकर अनिल शर्मा मुस्कुराया। अब तक उससे तू-तड़ाक की भाषा और कभी-कभार साहब कहकर संबोधित करने वाला धर्मपाल अब उसे सर कह रहा था।
लेकिन तबतक देबीप्रसाद परिदा बोल उठा, ‘अरे साहब अगर आपको पता है कि चोर कौन है और मेरी नंदी कहां है तो बताइये न। इतनी घनघोर बारिश में हम सभी का वक्त क्यों खराब कर रहे हैं?’
अनिल शर्मा तत्काल गंभीर हुआ, ‘ घनघोर बारिश? जी हां बारिश। देबीप्रसाद जी, इस बारिश ने ही आपकी नंदी का पता बताया है। आपको पता नहीं कि ये बारिश आपके कितने काम आई है। वरना चोर ने इतनी शातिर चाल चली थी कि उसे कामयाबी जरूर मिलती। भला हो दिल्ली की बारिश का, सॉरी, घनघोर बारिश का।’
तबतक रेस्तरां का मैनेजर, राजेश मखीजा और मालविका परिदा अपने-अपने अचंभे से बाहर आ गये थे। मालविका ने कहा, ‘ सर तो बताइये न कहां है नंदी, कौन है चोर?’
अनिल शर्मा ने कहा, ‘ मैडम चोर वो है जिसके पास चोरी का मौका और उद्देश्य था। बारिश की वजह से जो हालात पैदा हुए उस स्थिति में कोई और चोर हो ही नहीं सकता था।’
‘हां तो कौन है चोर, बताइये न’, मालविका अधैर्य हो रही थी।
‘अरे मैडम आप ये पूछ रही हैं। आपको तो अच्छी तरह पता होना चाहिए’ अनिल शर्मा ने मजे लेते हुए कहा।
‘मुझे क्यों’, मालविका की आवाज तेज हो गयी थी।
‘क्योंकि चोरी का पता तो सबसे पहले चोर को होता है न। है कि नहीं’ दार्शनिक के अंदाज में अनिल शर्मा ने कहा।
‘क्या कह रहे आप’ मालविका चिल्लाई। ‘ आप मुझे चोर कह रहे हैं। आप पागल तो नहीं हो गये। अपने ही घर में मैं भला क्यों चोरी करूंगी।’
‘ पैसा। पैसा ही वह वजह है जिसके लिए दुनिया भर में सबसे ज्यादा क्राइम होते हैं। आपने बीमे की रकम के लिए के लिए इस चोरी को अंजाम दिया। लेकिन आपको ये मुगालता हो गया था कि हम पुलिसवाले बेवकूफ हैं और आप आसानी से अपनी करतूत से लाभ हासिल कर लेंगी।’
देबीप्रसाद ने कहा, ‘ मिस्टर आप मेरे ही घर में मेरी ही बीवी को चोर ठहरा रहे हैं। आखिर आप कैसे कह सकते हैं कि नंदी की चोरी मालविका ने की है।’
‘बिल्कुल आसानी से, देखिये, नंदी की मूर्ति आपके घर में आपकी आलमारी में रखी थी। मूसलाधार बारिश के बीच राजेश मखीजा चाइनीज खाना लेकर आया। इसके बाद राजेश चला जाता है। मालविका कहती है कि फिल्म देखकर वह ड्राइंगरूम में आई और दरवाजा खुला देखा, फिर उसने आलमारी चेक की और एक मूर्ति, नंदी की मूर्ति, को गायब पाया।‘
‘तो क्या खराबी है इस बयान में?’ देबीप्रसाद ने कहा।
‘खराबी तो कुछ नहीं बस एक गलती हो गयी कि बारिश हो गयी। दरअसल इस मूसलाधार बारिश में जब हम घर में आये तो हमारे कमरे में घुसने से पहले घर बिल्कुल साफ-सुथरा था। हमारे घुसने पर ही हमारे जूते, रेनकोट वगैरह से घर में पानी-कीचड़ वगैरह से निशान बने। लेकिन ऐसे निशान तो हमारे आने से पहले तो बिल्कुल नहीं थे। घर बिल्कुल साफ था। यानी बाहर का कोई आदमी घर में प्रवेश कर ही नहीं सकता। या तो व्हीलचेयर पर बैठे आपने, मिस्टर देबीप्रसाद, आपने चोरी की या फिर चल फिर सकने लायक आपकी पत्नी ने।’
‘ये भी तो हो सकता है कि दरवाजा सचमुच खुला था, बाहर के किसी आदमी ने न सही, हमारी बिल्डिंग के किसी आदमी ने चोरी की, जो भीगा न हो।’ देबीप्रसाद का बीवी को बचाना जारी था।
‘जी वो संभावना तो मालविका जी ने पहले ही खारिज कर दी। उन्होंने कहा है कि दुनिया में किसी तीसरे से उनका कोई संबंध ही नहीं था। मूर्तियों के कीमती होने की बात केवल इसके जानकार ही जान सकते हैं। यानी किसी जानकार ने चोरी की। लेकिन जानकार ने सबसे कीमती नटराज की मूर्ति नहीं चुरायी जिससे उसे और अधिक पैसे मिलते। क्योंकि नटराज की मूर्ति का बीमा नहीं था। उसने चुरायी तो केवल वह मूर्ति जिसका बीमा 30 करोड़ रुपये का था।’
तबतक थाने से इंस्पेक्टर लाव-लश्कर के साथ फ्लैट में पहुंच चुका था। कुछ ही देर में उसने अनिल शर्मा से सारी जानकारी हासिल कर ली। मालविका सिर झुकाकर कुर्सी पर बैठ गयी थी। देबीप्रसाद की उम्र कुछ ही देर में मानों कई साल बढ़ गयी थी।’
धर्मपाल झिझकता हुआ अनिल शर्मा के पास जाकर फुसफुसाया, ‘लेकिन साहब मालविका ने ये ड्रामा क्यों रचा। पैसे के लिए वो मूर्तियां बेच भी सकती थी।’
‘भाई वो जानती थी कि देबीप्रसाद कभी भी मूर्तियों को बेचने के लिए राजी नहीं होगा। मूर्तियां ही बेचनी रहती तो ऐसी हालत में वो रहता ही क्यों, पहले ही न बेच देता। ’
‘लेकिन मालविका नटराज की मूर्ति भी चुरा सकती थी। उसे बेचती तो काफी पैसे मिलते’
‘ अरे इतनी कीमती मूर्ति बेचना हंसी-खेल नहीं। इसके लिए बड़े अपराधियों, अंडरवर्ल्ड, तस्करों आदि से संबंध होना जरूरी है। मालविका कैसे करती ये सब। उसने आसान रास्ता चुना। मूर्ति गायब करके बीमे की रकम हासिल करना और अपनी आर्थिक दुश्वारियों से निजात पाना।’
‘लेकिन साहब अब क्या होगा? मालविका क्या गिरफ्तार होगी?’
‘पता नहीं, शायद देबीप्रसाद अपनी शिकायत वापस ले लें। शायद गिरफ्तार हो भी जाये मालविका। लेकिन हमलोगों को इससे क्या। हमारी ड्यूटी तो खत्म हो गयी। अब चलो भाई काफी देर हो गयी। बाकी का काम थानेवाले संभाल ही लेंगे। चौरसिया की दुकान पर चलते हैं। इतनी रात गये कश का इंतजाम तो वही भला आदमी कर सकता है।’
‘जी साहब, सही कहा’ धर्मपाल ने अदब से कहा।
दोनों इंस्पेक्टर से विदा लेकर लिफ्ट की ओर बढ़ गये।
April 5, 2017 @ 12:58 pm
good story
April 7, 2017 @ 1:53 pm
देबिप्रसाद परिदा ही क़ातिल है
April 9, 2017 @ 10:45 am
devi prasad parida tangi ke duor se gujar raha h insurance ki rakam ke liye Japan boojh kar chari ka natak kiya gaya h…
April 9, 2017 @ 1:47 pm
नंदी की चोरी – फाइनल चैप्टर
“किसने की है चोरी?” सभी ने लगभग चौंकते हुए पूछा।
“बताता हूँ एक बार थाने वालों को भी आ जाने दो।” अनिल शर्मा ने ने सभी की और देखते हुए कहा।
कुछ ही मिनटों में थाने वाले भी आ गये।
“अरे अनिल तुम यहाँ कैसे?” थाने से आये पुलिस ऑफिसर जो की अनिल शर्मा का पुराना मित्र था ने अनिल को देखते ही कहा।
“आज पी सी आर पर नाईट ड्यूटी पर था वायरलेस पर चोरी का मेसेज मिला तो तूरंत पहुच गया।”
“अच्छा बताओ मामला क्या है?”
“एक कीमती मूर्ति चोरी हुई जिसकी कीमत लगभग 30-40 लाख की थी।” अनिल शर्मा संशिप्त में मामला समझाते हुए कहा।
“यार ये आज कल चोरो ने नाक में दम कर रखा है, सारी रात इनके पीछे भागते रहो।” थाने से आए पुलिस ऑफिसर ने कहा।
“तुम चिंता मत करो मामला सुलझ गया है, मैंने पता लगा लिया है चोरी किसने की है।” अनिल शर्मा ने ऑफिसर को दिलासा देते हुए कहा।
“किसने की है चोरी!” एक बार फिर सभी ने ये सवाल उठाया।
“दरअसल चोरी हुई ही नहीं है, नंदी की मूर्ति इसी घर में है।”
“ये क्या कह रहे हो आप?” मालविका ने तेज आवाज में कहा।
“सही कह रहा हूँ, यहाँ कोई चोरी नहीं हुई है। ये एक सोची समझी साजिश है जिसे अंजाम दिया है मालविका परिदा ने और ये पूरा प्लान और किसी का नहीं बल्कि खुद देबीप्रसाद परिदा का है।”
“क्या बकवास करते हों! पूरी दुनिया जानती है मैं एक कला प्रेमी हूँ और मैं भला अपने ही आर्टिकल को चुराने का क्यों प्लान बनाऊंगा।” अपनी व्हील चेयर पर घसीट कर आते हुए देबीप्रसाद ने कहा।
“अभी बताता हूँ देबीप्रसाद जी थोडा सा इत्मिनान रखिये।
हाँ तो हुआ ये की देबीप्रसाद जी जो की राजा महाराजाओं के खानदान से है को अपने गरीबी के दिन रास नहीं आ रहे थे और अपने आर्टिकल्स को वो बेचना नहीं चाहते थे तो गरीबी से छुटकारा पाने और अपना बुडापा सुधारने के लिये इन्होने ये प्लान बनाया।” अनिल शर्मा ने बोलने शुरू किया।
“ये पूरा प्लान था इंश्योरेंस कंपनी से पैसे हथियाने का। नंदी की मूर्ति जिसकी कीमत लगभग 30-40 लाख रूपये की थी और उसका इंश्योरेंस कीमत से दस गुना ज्यादा 30 करोड़ का था जबकि सबसे कीमती नटराज की मूर्ति का कोई इंश्योरेंस ही नहीं।”
“पर तुम इतना दावे के साथ कैसे कह सकते हो?” थाने से आये पुलिस ऑफिसर ने अनिल शर्मा से पूछा।”
“मालविका जी ने बताया की उस रात सिर्फ होटल से डिलीवरी बॉय खाना देने आया था और खाना लेते वक़्त उन्होंने भूल से दरवाज़ा खुला ही छोड़ दिया था और शायद उसी ने वो मूर्ति चुराई हो।
आज पूरी रात एक मिनट के लिये भी बारिश नहीं रुकी है और जब हम यहाँ पहुचे तब फर्श एकदम साफ़-सुथरा था और हमारे अन्दर आने से जूतों निशान फर्श पर बन गए थे उसे से पहले कोई और अन्दर आया हो ये मुझे बिलकुल नहीं लगता।
और जब हमने इंश्योरेंस के पेपर देखे तो उन सब में सबसे ज्यादा प्रीमियम नंदी वाली मूर्ति का था और वो एक ही महीने में खतम भी होने वाला था। देबीप्रसाद जी की मौजूदा हालत को देख कर लगता नहीं कि वो नंदी का अगला इंश्योरेंस प्रीमियम चुकाने की हालत मैं भी है।
जब मैं देबीप्रसाद के कमरे में गया तो वह खाना वैसा का वैसा रखा था। इतनी रात को खाने का आर्डर भी सिर्फ इसीलिये दिया गया ताकि शक की सुई राजेश मखीजा की और गुमाई जा सके।”
ये सब सुनकर मालविका सकते में आ गई और देबीप्रसाद के चेहरे पर भी हवाइयां उड़ने लगी।
“हवलदार इस घर की अच्छी तरह तलाशी लो जब तक मैं मालविका और देबीप्रसाद से पूछताछ करता अभी दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।” पुलिस ऑफिसर ने अपने साथ आये दो हवलदारों को आदेश देते हुए कहा।
“तो क्या अब हम जा सकते है?” राजेश मखीजा के साथ आए मेनेजर ने पूछा।
“हाँ अभी आप लोग जा सकते है अगर जरुरत पड़ी तो आपको फिर बुलाया जा सकता है” अनिल शर्मा ने कहा।
कुछ ही देर में हवलदारों ने नंदी की मूर्ति को ढूंड निकाला। मूर्ति होटल से आये चाइनीज खाने के पैकेट से मिली थी। किसी को शक न हो इसीलिए मूर्ति को मंचूरियन के डब्बे में रख दिया था और मूर्ति का आकार में छोटा होना इसके लिये फायदेमंद रहा।
थोडा सख्ती से पूछताछ करने पर मालविका टूट गई और उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया। अनिल शर्मा की बात सही निकली थी ये पूरा खेल दोनों ने मिलकर इंश्योरेंस का पैसा हथियाने के लिये खेला था।
नंदी की चोरी का राज दिल्ली पुलिस ने कुछ ही घंटे में सुलझा लिया था। देबीप्रसाद और मालविका को झूठी रिपोर्ट करवाने और इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ साजिश के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। दिल्ली पुलिस के दिमाग और स्किल पर चढ़ी धुल शायद इस मुसलाधार बारिश में धुल गई थी।
April 9, 2017 @ 2:09 pm
धर्मपाल ने चकित होकर पूछा, “किसने?”
अनिल शर्मा ने मुसकुराते हुए मालविका परिंदा को देखा, और कहा, “मालविका जी, मूर्ति आप स्वयं पेश करेंगी, या फिर हमें पूरे घर की तलाशी लेनी पड़ेगी? हमें पता है कि मूर्ति अभी घर पर ही है।“
मालविका पहले चौकी, फिर उसका चेहरा गुस्से में लाल हो गया।
“आप होश में तो है? आप जानते है कि आप क्या बकवास कर रहे है?”
“ऐसे बेहूदा इल्जाम लगाने का अंजाम सही नहीं होगा! मेरे नंदी को खोजने कि बजाय यहाँ हम पर ही इल्जाम लगाने का क्या मतलब है?” देवीप्रसाद ने भी अपना गुस्सा जाहिर किया।
अनिल शर्मा ने देवीप्रसाद को उत्तर देते हुये कहा, “देवीप्रसाद जी, इस मूर्ति का चोर सिर्फ आप और आपकी पत्नी हो सकते है, और कोई नहीं। और जैसा कि आप लोगों ने बताया कि आप मूवी देख रहे थे, यह काम सिर्फ आपकी पत्नी कर सकती थी।“
तभी थाने से भेजे गए लोग भी पहुँच गए। अनिल शर्मा ने अपना कथन जारी रखा। “आज मूसलाधार बारिश हो रही है। हमारे आते ही यहाँ का फर्श गीला हो गया। पर हमारे आने से पहले एकदम साफ और सूखा था। यदि राजेश मखीजा अंदर आया होता, तो फर्श अवश्य गीला होता। अब इतनी महंगी मूर्ति खोने के बाद आपका ध्यान फर्श साफ करने पर तो नहीं गया होगा। और यदि आपने फर्श साफ किया होता, तो देवीप्रसाद जी को अवश्य पता चलता। क्यों देवीप्रसाद जी?”
देवीप्रसाद का सर नकारात्मक रूप से हिला, फिर उन्होंने मालविका की ओर देखा, मालविका ने अपनी नजारे झुका ली। उसने सोफ़े के अंदर से नंदी कि मूर्ति निकाल कर अनिल शर्मा को दे दी।
“मुझे पैसे का लालच नहीं है, पर आज हमारे पास आपके इलाज के लिए पैसे नहीं बचे है। आपकी जिद है कि आप अपनी एक भी वस्तु बेचना नहीं चाहते। मेरे पास सिर्फ यही एक चारा रह गया था। मुझे माफ कर दीजिये। पर यदि जल्दी ही पैसे का इंतजाम नहीं किया गया, तो आप अधिक दिनों तक…..”, कहते कहते उसकी आवाज भर्रा गई।
चोरी कि रिपोर्ट नहीं लिखी गई, देवीप्रसाद ने राजेश मखीजा और पुलिस से माफी मांग ली थी। उन्होंने स्वयं भी मालविका को माफ कर दिया था। साथ ही अगले दिन अपने पुराने एजेंट से बात कर कुछ एंटिक को बेचने का निश्चय भी कर लिया था। अनिल शर्मा और धर्मपाल वापस अपने अड्डे पर पहुँच चुके थे। बारिश बंद हो चुकी थी, और पूर्व दिशा में हल्की लालिमा उभरने लगी थी। अनिल सिगरेट के कश लगता सोच रहा था कि प्यार में दिल चुराना तो सुना था, पर आज प्यार में मूर्ति चुराना भी देख लिया।
[कहानी में 2 जगह मूर्ति का मूल्य 30-40 लाख बताया गया है, परंतु इंश्योरेंस 30 करोड़ का बताया गया है। पहले मैंने कहानी का अंत इसके आधार पर बनाने का सोचा था, पर बाद में अलग तरह से लिखा। मुझे नहीं पता कि यह प्रूफ कि गलती से हुआ है, या फिर जानबूझकर।]
April 9, 2017 @ 2:46 pm
वह इलाका पालम थाने के अंतर्गत आता था। वहाँ से दो हवलदार और थाना इंचार्ज त्यागी आए थे। बाहर अभी भी बारिश हो रही थी। सभी ने अपनी-अपनी गीली जैकेटें उतारी और उसी कुर्सी पर रख दीं। अनिल शर्मा ने उनका अभिवादन किया और ड्राइंग रूम में बैठने का इशारा किया।
वहाँ उन दोनों के अलावा वहाँ हवलदार धर्मपाल, चावला चाइनीज का मैनेजर, डिलीवरी ब्वॉय राजेश मखीजा और मालविका भी मौजूद थे।
अनिल शर्मा ने कहा, “मुझे चोर का अंदाजा हो गया है, लेकिन इससे पहले मैं कुछ सवाल जवाब करना चाहता हूँ… सब के सामने।” और मालविका की ओर मुखातिब हुआ, “आपको कोई ऐतराज तो नहीं?”
मालविका ने कहा, “मुझे भला क्या ऐतराज हो सकता है?”
अनिल – “मैं चाहता हूँ कि यहाँ देबीप्रसाद जी मौजूद रहें।” और मालविका की ओर देखा। मालविका इशारा समझ गई और देबीप्रसाद परिदा को लेने अंदर चली गई।
धर्मपाल फुसफुसाया, “क्या माजरा है? क्या करना चाह रहा है? सीधे चोर का नाम क्यों नहीं बताता? यू मजमा क्यों लगाया सै।”
अनिल शर्मा ने कहा, “तू तमाशा देख!”
तब तक मालविका परिदा को व्हीलचेयर पर बाहर ले आई। देबीप्रसाद परिदा के चेहरे पर दुख की लकीरें साफ देखी जा सकती थीं।
अनिल शर्मा ने शुरूआत की, “मालविका जी, नंदी का इतिहास एक बताएंगी? यह आपके पास कहाँ से आया था?”
मालविका ने देवीप्रसाद की ओर देखा और कहा, “आपको बता चुकी हूँ कि यह 80 के दशक में झारखंड की कोयले की खदान से निकला था, जिसे बाद में…”
“आप गलतबयानी कर रही हैं। झारखंड राज्य सन 2000 में बना है, जब 80 के दशक में झारखंड अस्तित्व में था ही नहीं।” अशोक शर्मा ने विजेता से स्वर में कहा, “जब आपने यह बताया तभी मुझे शक हो गया था। आपने दरवाजा खुला होने का अंदेशा जताकर शक की सुई राजेश मखीजा की ओर मोड़ने की कोशिश की, लेकिन राजेश मखीजा सच बोल रहा है। इसने इस कमरे में कदम नहीं रखा। यदि रखा होता, तो बारिश में भीगे जूतों के निशान इस फर्श में जरूर पड़ते, जैसे हमारे पड़े हैं। इसके अलावा कोई और चोर या सेंधमार आता तो पहले इन मूर्तियों के बजाए यहाँ के इलेक्ट्रॉनिक्स के सामान चुराता, इस नटराज को चुराता। एक चोर के लिए नटराज अधिक कीमती था, लेकिन नंदी इन सबसे बहुमूल्य है, क्योंकि उसका इंश्योरेंस 30 करोड़ का है, केवल आपके लिए।”
मालविका अवाक रह गई, “मैंने? मैंने चुराया है?
“जी हाँ… आपने तिगुने उम्र वाले रईस व्यक्ति से दौलत की आस में शादी की, लेकिन आपको मुफलिसी के दरवाजे पर खड़ा एक बीमार आदमी मिला। आपने कोशिश की, कि एंटीक कलेक्शन की मूर्तियों को बेचकर चार पैसे आ जाएँ, पर उसमें भी कामयाब न हुईं और जान लिया कि देबीप्रसाद मरता मर जाएगा, लेकिन अपने कलेक्शन को हाथ नहीं लगाने देगा। आपके सामने केवल एक ही रास्ता था, कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। जब मूर्ति चोरी ही हो जाएगी तो बूढ़ा क्या सकेगा, और इंश्योसेंस से 30 करोड़ भी मिलेंगे, जो काफी होंगे। लेकिन आप भूल गईं कि नटराज को छोड़कर नंदी वही चुरा सकता है, जिसे इंश्योसेंस स्टेटस का पता हो।”
“शटअप इंस्पेक्टर!” देवीप्रसाद चीखा, और उसे खांसी का दौरा पड़ गया। मालविका अंदर गई और उसके लिए इनहेलर ले आई, कहा “‘शांत हो जाइए, आप शांत हो जाइए।”
“मैं ठीक हूँ…” देवीप्रसाद ने मुँह में इनहेलर लगाकर एक-दो लंबी साँस भरी। कुछ क्षण रुककर धीमी आवाज़ में कहा, “मैं ठीक हूँ… । इंस्पेक्टर… क्या नाम है तुम्हारा… अनिल शर्मा… यही है तुम्हारी तहकीकात? यही तरीका है मुजरिम को पकड़ने का? जिसने रिपोर्ट की, उसे ही थाने में डाल दिया, और लग गए मुजरिम साबित करने… क्योंकि असली चोर को पकड़ने में मशक्कत है, जाँमारी करनी पड़ेगी… क्यों? सही कह रहा हूँ न।
“मिसाल के तौर पर यही नंदी की बात लो…, चूँकि वह मेरे घर से गायब हुआ है… आपकी तहकीकात का तरीका यही कहता है न कि उस पर शक करो जिसके पास चुराने का मौका है… जिसे उस चोरी से फायदा होने वाला है। तो साहब, वह मेरी मिल्कियत है, मेरे पजेशन में है, तो जितना मौका मुझे हासिल है, उतना दुनिया में किसी को नहीं, तो क्या इससे आप मुझ पर शक करेंगे? आपकी तहकीकात कहती है कि चोरी से लाभ मुझे मिलने की संभावना है, लेकिन यूँ तो लाभ मिलने की कुछ न कुछ संभावना हर किसी को है… मिसाल के तौर पर यदि आपने.. जी हाँ.. आपने चोरी की है, तो तीस लाख के लाभार्थी आप हुए न… । इस लिहाज से यहाँ मौजूद आदमी चोर हो सकता है। वैसे तो हर आदमी पैसे का ख्वाहिशमंद होता है, तो क्या उन्हें हर चोरी या गुनाह के लिए संदिग्ध ठहराना उचित होगा?
“तुम मालविका के बारे में जानते ही क्या हो? उसने मुझे उस समय सहारा दिया जब मैं अपनी जिंदगी को लेकर नाउम्मीद हो चुका था। वह मेरे लिए क्या मायने रखती है, मुझे किसी से बताने की जरूरत नहीं है। लेकिन तुम नहीं समझोगे… तुम्हारे लिए बूढ़ा मतलब हमेशा हवस का मारा और औरत हमेशा लालची और धोखेबाज होती है। शायद तुम्हें यही मानने की ट्रेनिंग दी गई है। प्यार, त्याग, सेवा, वफा और कमिटमेंट जैसे लफ़्जों से तुम्हारा क्या वास्ता? जिस दिन अपनी ट्रेनिंग में इन लफ़्जों को शामिल कर लोगे, उस दिन लोगों की नजरों में पुलिस की छवि बदल जाएगी।
“तो… अब आप ही बताएँ.. कौन चोर हो सकता है….. हमें कैसे तहकीकात करनी चाहिए?” अशोक शर्मा हड़बड़ाया।
“यही तो मैं समझा रहा हूँ, कि चोर वह नहीं जिसे मौका हासिल है या जिसे फायदा हो सकता है, बल्कि वह होता है जिसने सचमुच चोरी की है। जाओ, बिल्डिंग का सीसीटीवी देखो… पड़ोसियों से पूछताछ करो। एंटीक बाजार में अपने जासूस तैनात करो। मुखबिरों को एलर्ट करो। बेशक तलाशी लो, बरामदगी करो। यदि इसमें मेरी या मेरी पत्नी के इनवॉल्वमेंट का सबूत मिले, तो सबूत के साथ बात करो। यूँ ड्राइंगरूम में बैठकर अटकलबाजी कर केस सॉल्व करने का दावा न करो। और हाँ, पुलिस को फोन कर बुलाने वाला व्यक्ति पीड़ित होता है, दया का मरहम चाहता है, उसके साथ सहानुभूति और विश्वास के साथ पेश आओगे तो तहकीकात जरूर कामयाब होगी। और हाँ, अपना जनरल नॉलेज अपडेट कर लो। भले ही झारखंड राज्य 2000 में बना, पर इस खान बहुल इलाके को बहुत पहले से झारखंड के नाम से जाना जाता है, इस नाम के आधार पर झारखंड पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा काफी अरसे से अपनी राजनीति करती आ रही हैं।”
बाहर आकर धर्मपाल ने अनिल शर्मा से पूछा, “सर, ये बूढ़ा क्या कह गया?”
“कह रहा कि यह केस इतनी आसानी से सॉल्व नहीं होने का… भगवान नंदी हमारी परेड करवाने पर तुले हैं। हो सकता है शहर के अन्य एंटीक जानकारों की मदद लेनी पड़े। फिलहाल मैं सुबह सर्च वारंट लेकर आता हूँ। तब तक तू इस फ़्लैट पर नजर रखने का इंतजाम कर। हम इतने जल्दी सुधर थोड़े ही सकते हैं।”
“बेहतर जनाब।” धर्मपाल ने कहा, और दोनों हँस पड़े।
April 9, 2017 @ 6:31 pm
मालविका सपाट अंदाज़ में पूछती है, “आप क्या कहना चाहते हैं? चोर मिल गया? कौन है वो?”
सभी लोग उत्सुकता से अनिल शर्मा की तरफ देखने लगते हैं! सस्पेंस बनाते हुए अनिल शर्मा कुछ देर टहलते हुए मुस्कराता है और फिर बताना शुरू करता है!
” देखा जाए तो किसी को भी लगेगा राजेश माखीजा के लिए एक 6 इंच की मूर्ति गायब करना कोई बड़ी बात नहीं, जबकि मालविका जी के अनुसार दरवाज़ा खुला था और वह अंदर चली गयी थीं। लेकिन रात के एक बजे यह चूक कुछ गैर मामूली जान पड़ती है! नटराज की मूर्ति महंगी थी लेकिन उसको छोड़कर नंदी की मूर्ति चोरी हुई जिसका इंश्योरेंस 30 करोड़ का था! चोर को यह बात कैसे मालूम! और एक डिलीवरी बॉय कैसे जानता था कि घर में लापरवाही से पड़ी एक मूर्ति एंटीक पीस है जो की मालविका जी के शब्दों में किसी जानकार व्यक्ति को ही मालूम हो सकता था। इससे आगे देखें तो रात के 2 बजे के आसपास आये हम लोग जब अंदर घुसे तो चमचमाते फर्श पर पैर के निशान पड़ गए। इससे साफ होता है कि राजेश अंदर नहीं आया है! मालविका जी के अनुसार आजकल घर में इनके और इनके पति के अलावा कोई और नहीं आता जाता! इससे स्पष्ट है कि यह चोरी मालविका जी ने 30 करोड़ के लालच में स्वयँ की है।”