गर्लफ्रेंड की हत्या
कैसी फीलिंग आती है, जब आपने कोई ऐसा फैसला किया हो जो आपके समूचे जीवन को बदल दे, आपकी बुनियाद हिला दे। न….न…न… आप ये न सोंचे कोई बड़ा फैसला, कोई नौकरी बदलना, शादी का फैसला करना, मेरा मतलब है ऐसा निर्णय जो आपकी जड़ हिला दे। बिलकुल ऐसा ही फैसला मैंने किया है। एक ऐसा फैसला जिसके बारे में कभी किस्से-कहानियों में पढ़ा ही था। सिनेमा के परदे पर देखा ही था। उसे खुद अंजाम देना और उसके बारे में स्वयं ही सोचना, उसे पल-पल जीना। विश्वास कीजिये एक ऐसी फीलिंग आती है जिसे शब्दों में ढालना बेहद मुश्किल होता है। लेकिन इसके अलावा और कोई चारा भी तो नहीं है। सीधे मुद्दे पर आऊँ तो मैंने अपनी गर्लफ्रेंड की हत्या का फैसला किया है।
मुझे प्यार करने वाली, मेरी आँखों में आँखें डाल कर मेरे साथ अपना जीवन बिताने की कसमें खाने वाली, मेरे हर सुख-दुःख में साथ देने का दम भरने वाली के जीवन को ही खत्म करने का फैसला किया है। ये मत सोचिये कि ये फैसला मेरे लिए आसान था, बेहद कठिन। मुझे आज समझ में आता है कि कोई आम इंसान किसी दुसरे इंसान की हस्ती को ही मिटा लेने की जब ठान लेता है तो उस पर क्या गुजरती होगी। लेकिन मैं अपने फैसले पर अटल हूँ। इसका कारण? धोखा। धोखा भी ऐसा कि जो दुनिया पर से आपका विश्वास उठा दे। हर इंसान आपको धोखेबाज दिखाई देने लगे। आपकी सभी खुशियों को हर ले। लेकिनं ये मत समझियेगा मैं बस बदला ही लेने वाला हूँ। बदला लेने के बाद मुझे भी इस मक्कार दुनिया में नहीं रहना। गर्लफ्रेंड के क़त्ल के बाद मैं भी इस दुनिया से विदा ले लूँगा। इसके लिए मेरे पास हैं – तीन दिन। क्योंकि तीन दिन बाद उसकी सगाई है। इन तीन दिनों में मुझे क़त्ल की योजना बनानी है, उसे अमली जामा पहनाना है और खुद भी मर जाना है।
अब मैं कोई आदी मुजरिम तो हूँ नहीं। सुसाइड स्क्वाड से भी मेरा कोई नाता नहीं। क़त्ल कैसे करना इसकी कोई गाइड बुक भी नहीं मिलती। लिहाजा सबकुछ ठन्डे दिमाग से करना होगा। ठन्डे दिमाग से याद आया कैसे रश्मि मेरे बालों में उँगलियाँ फिराते हुए कहती थे, ‘राजू पता है, तुम्हारी सबसे अच्छी बात मुझे क्या लगती है?’
मैं भी क्विज कांटेस्ट का प्रतियोगी बन जाता था – “क्या…. बताओ”
“योर कूल हेड… तुम्हारा सुलझा दिमाग।”
तो ठीक है, यही कूल हेड, यही सुलझा दिमाग उसके क़त्ल का सामान करेगा अब।
पहले मैंने सोचा था कि सीधा रिवाल्वर से गोलियां उसके पत्थर दिल में उतार दूँ और फिर खुद को भी वहीँ ढेर कर लूँ। लेकिन इन्टरनेट की ख़ाक छानने और कोलकाता के बदनाम पोर्ट इलाके में भटकने के बाद समझ आया कि रिवाल्वर पाना आसान नहीं। मिलने वालों को मिल जाती होगी, मुझे तो नहीं मिली। सड़क पर भटकते हुए हमेशा ही लंबे फल वाला छुरा मुझे अपनी और बुलाता लगता था। बेहद धारदार, चमचमाता हुआ। कुल पैंतालिस रूपये में किसी को भी सांसारिक बंधनों से आज़ाद करने में पूर्णतया काबिल। हिम्मत करके एक बार ताकत के साथ सामने वाले के सीने में भोंकना ही तो था। फिर खुद के गले पर चला लेना है। काम खत्म। हाँ रश्मि को मारने से पहले उसे उसे लज्जित करने, आतंकित करने के आनंद से खुद को वंचित करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। इसलिए मरने से पहले उसे क्या कहना है, इसे मैंने पहले ही लिख लिया था। मैंने लिखा था कि कैसे प्यार का दम भरते हुए मेरे पीठ पीछे अपने बॉस के साथ वह हमबिस्तर होती रही। कैसे रंगे हाथ पकड़े जाने पर भी निर्लज्जता से मुझे दुनियादारी से अनजान और बेवक़ूफ़ करार देती रही। कैसे मेरे आंसू भरे चेहरे को उसने लड़कियों की तरह बर्ताव करने वाला करार दिया था। खैर वह बीते दिनों की अब बात है। रश्मि की सगाई उसके घर पर ही होने वाली है। हाथ में समय केवल तीन दिन। समय न गंवाते हुए मैंने वो छुरा सुबह ही खरीद लिया था। पैंट में खोस लेने की प्रैक्टिस भी कर ली ताकि शर्ट के ऊपर से वह दिखाई न दे।
——
मैं रश्मि के घर से अच्छी तरह वाकिफ था। साल्टलेक में वह अपने मामा के घर में रहती थी। उसका खूंसट लेकिन धनवान मामा राजेंद्र अग्रवाल। अपने माँ-बाप की मौत के बाद से पिछले १५ वर्षों से वह वहां रह रही थी। रश्मि के घर को जानने के बाद भी मैंने उसकी रेकी करनी उचित जानी। सगाई रात करीब सात बजे होनी थी। उसके पहले के दो दिनों का समय मैंने उसके घर की निगरानी करने में गुजारा। यह जानने के लिए घर में दाखिल होने का सबसे आसान उपाय कौन सा है। आखिर बगैर किसी के देखे अन्दर जाना था। क्या फजीहत होगी अगर रश्मि के पास पहुँचने से पहले ही पकड़ा जाऊं। सगाई में पहुंचे मेहमान मुझे धून के रख देंगे। लेकिन सगाई की तैयारियों को देख कर मुझे एहसास हो गया कि सबसे आसान गेट से जाना होगा। इतने मेहमान पहुंचेंगे। कौन सा कोई सभी को जानता है। बीच से निकल जाऊँगा। नज़र बचाकर मेन हॉल में। फिर रश्मि को अकेले एक रूप में उपस्थित करना होगा। कैसे होगा ये? एक आईडिया था मेरे जेहन में। उसके बाद का काम तो आसान था।
———-
ठण्ड का मौसम होने की वजह से ओवरकोट मैंने पहना था। सात बजे से कुछ पहले ही टैक्सी से साल्टलेक के बीइ ब्लाक पहुँच गया। बारिश रह-रहकर हो रही थी। लगातार तीन दिनों तक चलने वाली बारिश थी वो। हालांकि इसका पता मुझे बाद में चलना था। आलीशान घर के बाहर लाइट्स लगी हुई थी। भीतर बाग़ से, जहाँ कि मूल फंक्शन होना था, संगीत की हल्की धुन बाहर भी पहुँच रही थी। मैं वातावरण को खुद में आत्मसात कर रहा था, उसका रसपान कर रहा था। खुद को बता रहा था कि जीवन के वह मेरे कुछ आखिरी पल चल रहे हैं। मुझे खुद कैसा महसूस हो रहा था? दिल धाड़-धाड़ बज रहा था। क्या मैं वह कर पाऊंगा जिसका महीनों से इंतज़ार कर रहा था। क्या किसी की जान लेना आसान है? क्या अपनी जान देना आसान है? दिमाग को ब्लेंक करके मैं गेट के भीतर प्रविष्ट हो गया। भगवान् से प्रार्थना कर रहा था कि कोई पहचान न ले। भीतर एक लंबा गलियारा था जिसकी दीवारों को फंक्शन की वजह से रंगीन कपड़े से ढँक दिया गया था। गलियारे के खत्म होते ही एक बड़ा सा ड्राइंग रूम था और सामने बाग़ था। गलियारे के दायें और बायें ऊपर जाने के लिए सीढियां थी। ऊपर पांच कमरे थे। जिनमे से एक रश्मि के मामा-मामी का, एक रश्मि का, दो गेस्ट रूम और एक छोटा कमरा नौकरानी जया के लिए था। घर में और दो नौकर थे लेकिन वह दिन में आते थे और शाम को चले जाते थे। स्थायी तौर पर जया ही बतौर नौकरानी घर में रहती थी। इतना सबकुछ मुझे रश्मि के बताये मालूम था। यह भी मालूम था कि ऊपर से फायर एस्केप की सीढियां आती जो सीधे बाग़ में खुलती थी। लेकिन मेन फंक्शन बाग़ में होने के कारण वहां से जाना, वह भी फायर एस्केप की सीढ़ियों से असंभव था। लिहाजा मेन सीढ़ी से जाने का ही फैसला मैंने किया था। कपड़े के भीतर रखा छुरा मुझे चुभ रहा था।
मैंने बाग़ की ओर नज़र दौड़ाई। वुडबी दुल्हे राजा अपने दोस्तों के बीच चहक रहा था। बाग़ में फाल्स सीलिंग की सजावट की गयी थी। शायद बारिश से बचने के लिए। सगाई की वजह से वह खुद तो ड्रिंक्स ले नहीं रहा था लेकिन जिस तरह उसके दोस्त पी रहे थे, उसके भी ड्रिंकर होने की चुगली करते थे। खैर मुझे क्या। मामा-मामी अचानक किसी मेहमान के साथ आवेश में आकर बात करते दिखे। होगी कोई बात। ड्रिंक्स लेकर वेटर इधर-उधर विचर रहे थे अचानक एक वेटर को देखा सीधा जाकर वुडबी दुल्हे राजा से टकरा गया। सॉरी-सॉरी कहते हुए उसने कपड़े पर पड़े छींटों को साफ़ करने की कोशिश की। लेकिन वुडबी दुल्हे राजा ने वेटर को रोका और खुद ही अपने कपड़े साफ़ करने लगा। सबकी शिकायती निगाहें वेटर की ओर उठी। लेकिन पता नहीं क्यों मुझे भीतर ही भीतर ख़ुशी का अहसास हुआ।
बढियां-बढियां।
मैं हाल में खड़ा था। कुछ लोग वेटर्स द्वारा की जा रही आवभगत का मजा ले रहे थे लेकिन मुझे घर के इण्टरकॉम का इस्तेमाल करना था जिससे कि मैं रश्मि को गेस्ट रूम में बुला सकता था और आगे की प्लानिंग को अंजाम दे सकता था। लेकिन ये इतना आसान नहीं था क्यूंकि मुझे रश्मि की सहेली जोया दिखाई दी। उससे नज़र बचाने का कोई उपाय नहीं था क्योंकि न केवल मुझे वह घूर रही थी बल्कि तेजी से मेरी ओर बढ़ रही थी।
“यहाँ क्या कर रहे हो?” जोया ने सख्ती से पूछा।
“मैं गेस्ट हूँ।”
“हुंह..गेस्ट…कट द कैप राजीव, यू नो यू आर नॉट वेलकम।”
वो ऐसे बर्ताव कर रही थी मानों घर उसी का था और सगाई के खाने-पीने का खर्चा उसी ने उठाना था।
“विश्वास नहीं होता तो रश्मि से पूछ लो।” – मैंने दिलेरी से कहा।
“देखो राजीव, तुम पर क्या गुजर रही है मैं समझती हूँ लेकिन ये वक़्त कोई बखेड़ा खड़ा करने का नहीं है।”
मेरे पर क्या गुजर रही है, वो समझती है। काश उसे पता रहता कि क्या गुजर रही है।
“मुझे कोई बखेड़ा नहीं खड़ा करना। बस आखिरी बार रश्मि को देख लूँ फिर चला जाऊँगा।” – मैंने प्रत्यक्षतः कहा।
उसे फिर बोलने को तत्पर पाकर मैंने कहा – “देखो बहस से कोई लाभ नहीं, मैं पांच मिनट ही रुकने वाला हूँ।”
तभी जोया को पीछे से किसी ने आवाज़ दी। उसने पीछे मुड़कर देखा, फिर मेरी और देखा, अनिश्चित भाव से फिर वह आवाज़ लगाने वाले के पास चली गयी। मैंने चैन की सांस ली। बाग़ के कोने में मामा-मामी दिख रहे थे। वो और गेस्ट्स से बात कर रहे थे। हॉल के कोने में पड़े फ़ोन की ओर मैं बढ़ा। रश्मि से मिली जानकारी आज काम आने वाली थी। मैंने रश्मि के कमरे में फ़ोन लगाया। किसी ने नहीं उठाया। शायद वो बाथरूम में थी। फिर कॉल किया। नो रिस्पांस। अब क्या किया जाये। क्या मेरा मिशन फेल हो जायेगा। क्या मुझे पल-पल मारने वाली यूँ ही फिर से मुझे एक बार धोखा देकर बच जायेगी। नेवर।
—-
अपने मोबाइल से रश्मि के मोबाइल पर कॉल का रिस्क मैं ले नहीं सकता था। पता था वह नहीं उठाने वाली।
मेरे लिए अब फैसले की घड़ी थी। क्या रिस्क लेकर ऊपर जाकर रश्मि को तलाश करूँ। या उसके नीचे आने का इंतज़ार करूँ। मुझे पता था नीचे आने के बाद उसके करीब फटकने का भी कोई चांस नहीं था। ऊपर ही जाना पड़ेगा। मैंने वेटर से एक ड्रिंक लिया, दो मिनट के भीतर उसे खत्म किया, कपड़े के भीतर छिपाकर रखे छुरे को टटोला। शायद उससे कोई आत्मविश्वास मिल जाए। मैंने ऊपर जाने का ही निश्चय किया। तब तक बेहद तेज़ हो रही बारिश की आवाज़ आने लगी थी। वातावरण में ठंडक बढ़ चुकी थी। दृढ कदमों से मैं हॉल से सटे सीढियों के जरिये ऊपर पहुंचा। ऊपर, नीचे के मुकाबले सन्नाटा सा था। सभी मेहमान नीचे जो थे। रश्मि का रूम सबसे आखिरी में था। एक अजीब सी बेचैनी मुझे होने लगी। क्या मेरी हिम्मत जवाब दे जायेगी। अभी पता चलता है। मैंने कपड़े के भीतर से अपना छुरा निकाला, रश्मि के रूम के दरवाजे को धकेला और भीतर दाखिल हो गया। भीतर एक चेयर पर वह बैठी थी। दहकते लाल रंग की साड़ी में। उसकी फटी हुई आँखें मुझे घूरती से लग रही थी। मुझे देखकर उसके घबराने का कोई स्कोप नहीं था। उसकी छाती में एक छुरा धंसा हुआ था। सीने से खून बह कर जमीन को रंग चूका था। मैं धम्म से करीब के बिस्तर पर बैठ गया।
—
तभी बाहर कुछ खटपट की आवाज़ आई।
मैं मानों नींद से जागा। पहले तो मुझे यहाँ से हटना होगा। जल्दी से मैं बाहर निकला। छुरे को वापस मैंने खोंस लिया था। सीढियां उतरा। जल्द से जल्द मैं गेट से बाहर निकल जाना चाहता था।
लेकिन हॉल में उतारते ही मुझे समझ में आ गया कि ऐसा नहीं हो सकता।
सामने बारिश के कारण बाढ़ का दृश्य उपस्थित था। कमर से ऊपर तक पानी। एक तरह से जो भीतर थे वह फंस चुके थे। मैंने हॉल में नज़र दौड़ाई। एक वेटर को थाम कर उससे ड्रिंक हासिल किया।
पांच मिनट बाद ही मुझे ऊपर से महिला की चीख सुनाई पड़ी। मैं समझ गया कि लाश बरामद हो चुकी है।
—-
चीख सुनते ही कुछ लोग ऊपर दौड़े और कुछ नीचे खड़े-खड़े ऊपर की तरफ एकाग्रता के साथ देख रहे मानों आसमान से कोई परी उतारकर उन्हें ज्ञान की बात बताएगी।
कुछ ही देर में रोने-धोने की आवाज़ आने लगी। पांच मिनट के भीतर मौजूद सभी लोगों को ब्रेकिंग न्यूज़ के सम्बन्ध में जानकारी हो चुकी थी। मैंने बाहर निकलने के रास्ते पर फिर नज़र दौड़ाई। असम्भव था निकलना। तभी एक हट्टे-कटते व्यक्ति ने, जिसे मैंने मामा से बात करते देखा था, अधिकारपूर्ण स्वर में बोला, “सभी लोग प्लीज हॉल के एक कोने में आ जाइए।”
सभी ने आदेश का पालन किया। मैंने भी …..
“देखिये यहाँ एक हत्या हुई है। मैं डिप्टी कमिश्नर मुकेश कुमार हूँ। इस क्षेत्र का डीसी नहीं, फिर भी हूँ तो पुलिस ऑफिसर ही। स्थानीय पुलिस के आने तक मैं नहीं चाहता कोई यहाँ से निकले” – उसने कहा।
अब पार्टी का देर तक भारी मजा लेने को आमादा लोग, घर जाने के लिए व्यग्र दिखाई देने लगे। अवसादपूर्ण तरीके से मामा सीढियों से उतरे। मामी शायद ऊपर ही किसी कमरे में सुबक रही थी। वह आकर हॉल की एक कुर्सी पर बैठ गए। डीसी मुकेश कुमार उनके पास गया। कुछ देर के लिए मामा को गमजदा होने के लिए समय दिया, फिर पूछा, “रश्मि को आखिरी बार किसने देखा था?”
“मेरी पत्नी ने।”
“कब?”
“नीचे आने से पहले।”
“टाइम बताइये। कब नीचे आये आप लोग?”
“मैं करीब साढ़े छह बजे नीचे आया था। करीब पंद्रह मिनट बाद मेरी पत्नी नीचे आई।”
“यानी पौने सात बजे आपकी पत्नी नीचे आई और वह सीधे रश्मि के रूम से आई थी।”
“हाँ।”
“यानी कुछ मिनटों पहले ही वह रश्मि से मिली होगी।”
“जाहिर है।”
“हम्म…..अच्छा रश्मि की किसी से दुश्मनी थी? कोई अदावत?”
“बिलकुल नहीं।”
“आपको किसी पर शक? देख लीजिये ये क्लोज्ड मर्डर लगता है। यहाँ जो लोग आये हैं क्या किसी पर संदेह है आपको?”
वृद्ध मामा ने असहाय भाव से हाथ फैलाया और कहा, “कैसा शक मुकेश जी… जिन्हें भी मैंने बुलाया है सभी मेरे करीबी मित्र है।” – यह कहते हुए उसने एक नज़र हॉल की तरफ दौड़ाई। उसकी नज़र मेरे पर ठहर गयी।
बंटाधार…….
मामा ने मानों भूत देख लिया। उसके नेत्र फट पड़े। मुकेश कुमार की निगाहें मामा की नज़रों का पीछा करते हुए मुझपर टिक गयी। उसने मामा से पूछा – “कौन है हो?”
पहले तो मामा के मुहं से बोल न फूटे, जब फूटे तो एक ही शब्द निकला – “ख…ख…खुनी…”
“क्या?”
“यही है वो इन्सान जिसने मेरी भांजी का खून किया है।”
“कौन है वो?”
“मेरी भांजी का पहले दोस्त हुआ करता था लेकिन मेरी भांजी ने उसे ठुकरा दिया था।”
साला.. मैंने मन ही मन सोचा। ठुकरा दिया था या उसे मैंने रंगे हाथों पकड़ा था और उसके पास कोई चारा नहीं था।
खैर, कुछ ही पलों में मैं मुकेश कुमार के साथ गेस्ट रूम में मौजूद था, अकेले। उसी गेस्ट रूम में जहां कुछ देर पहले मैंने रश्मि को बुलाने की योजना बनायी थी।
“क्या नाम है तुम्हारा?”
“राजीव।” – मैंने कहा।
“क्या करते हो?”
“कहानीकार हूँ।”
“साहित्यकार हो?”
“नहीं… मैं पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां लिखता हूँ। पैर जमाने की कोशिश में हूँ।”
उसने मुझे यूँ देखा मानों मैंने मंदिर से चप्पल चोरी करने की बात कबूली हो।
“तो बताओ…पूरा माजरा बताओ? क्यों क़त्ल किया।” मुकेश कुमार के कठोर शब्द मेरे कानों में हथोड़े की तरह पड़े।
“मैंने कुछ नहीं किया।” – मेरी आवाज मुझे ही बेहद कमजोर और विश्वास के नाकाबिल लग रही थी।
“यहाँ क्यों आये, किसने बुलाया।”
“किसी ने नहीं।”
“फिर…फिर क्यों आये। क्या करने आये थे।”
मैंने समझ चूका था कि सच्चाई बताने में ही गनीमत है क्योंकि एक झूठ छिपाने के लिए हज़ार झूठ बोलने पड़ते।
“रश्मि का क़त्ल करने ही आया। लेकिन मुझसे पहले किसी और ने उसका खून कर दिया।”
“क्या….?” – उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा।
मैंने उसे पूरी घटना बताई। लेकिन उसकी आँखों में अविश्वास के बादल पूरी तरह नहीं छटें थे।
मेरी तलाशी ली गयी। मेरे परिचय पत्र और अन्य सामान के साथ छुरा भी निकला।
मुकेश कुमार ने मेरी तरफ प्रश्नवाचक नेत्रों से देखा।
“सर अगर मैं खुनी होता तो ये छुरा मेरे पास नहीं रश्मि के सीने में रहता” – मैंने सफाई दी।
उसकी आँखों में आश्वासन के भाव दिखे मुझे। उसने छुरा अपने कब्जे में ले लिया।
इसके बाद वुडबी दुल्हे राजा को बुलाया गया। बेचारा शादी के पहले ही विधुर की तरह दिख रहा था। आँखे उसकी लाल थी। शायद रो-धो के आया था।
“आपका नाम।” – मुकेश कुमार ने भावहीन स्वर में पूछा।
“मलय प्रमाणिक।”
“क्या करते हैं आप?”
“जी मेरा अपना बिज़नस है। मेरी कंपनी गेलफांड, सीमेंट, लोहे की सरिया बनाती है।”
मुकेश कुमार प्रभावित नज़र आने लगा।
“रश्मि ने कभी किसी से दुश्मनी आदि का जिक्र किया था?”
“जी किया तो था” – फिर वह मेरी तरफ देखने लगा। कमीना मुझे जी फंसाने पर तुला हुआ था।
मुकेश कुमार उसका मंतव्य समझते हुए बोला – “और किसी के बारे में कभी कुछ कहा हो।”
“नहीं सर। रश्मि से भला किसी की क्या दुश्मनी हो सकती थी।”
“ठीक है, आप बैठिये।”
इस तरह एक-एक करके हॉल में मौजूद सभी लोगों को बुलाया जाने लगा। मलय प्रमाणिक मेरे ही बगल में बैठा था। मैनें उसे घूर कर देखा। वह परे देखने लगा।
“सगाई की बधाई।” – मैंने व्यंग्य से कहा।
वो सकपकाया। फिर कहा – “तुम ही हो खुनी, कोई माने या न माने मैं जानता हूँ।”
“अच्छा, बहुत नेक ख्याल हैं तुम्हारे मन में मेरे लिए।”
कुछ ही देर में जोया को बुलाया गया। सामान्य पूछताछ के बाद वह मेरे बगल में आई। उसे देखकर मलय उठ गया। उसकी जगह जोया बैठ गयी।
मैंने कहा – “कमीना मुझे ही कातिल समझ रहा है।”
“क्यों तुम क्या नहीं हो कातिल, वैसे आजकल क्या कर रहे हो।” – जोया ने मुझसे पूछा।
“कुछ ख़ास नहीं।”
“इसलिए तुम्हारी और रश्मि में नहीं निभ सकी। तुम्हें समझना चाहिए कि केवल प्यार से ही जीवन की गाड़ी नहीं खींचती।”
“तुम किससे खींचती हो गाड़ी”
एक पल को लगा जोया भड़क जायेगी। फिर वह संभली, व्यंग्यात्मक मुस्कान से कहा – “देखो..एक बार मलय को देखो। ही इज ए बिग शॉट। एड वाट आर यू। यू आर नथिंग। ए बिग जीरो।”
यह कहकर वह मुझसे विपरीत कोने में जाकर बैठ गयी।
—–
मैंने अपना मोबाइल निकाला। यहाँ वहाँ ब्राउज करता रहा। न्यूज़फीड में देखा तो पाया कि उस रोज शहर में तीन और हत्याएं ही हैं। रश्मि का उसमें नाम नहीं था। कल रश्मि भी एक और मृत युवती के तौर पर जानी जायेगी। मैंने सर्च इंजन पर मलय प्रमाणिक का नाम लिखकर फिर सर्च आरा। करीब चार-पांच एंट्रियाँ थी। गेलफांड सीमेंट, गेलफांड टीएमटी बार के मालिक के तौर पर। एक लिंक में तो मलय प्रमाणिक के दरियादिल होने की भी कहानी थी कि कैसे उसने १० गरीब बच्चों के ऑपरेशन के पैसे दिए। हुंह… पैसे रहे तो आदमी ये सब अफोर्ड कर ही सकता है। न रहे, तो करके दिखा। लेकिन कोई ख़ास बिग शॉट तो था नहीं। इन्टरनेट पर महज चार-पांच न्यूज़ एंट्रीज़। कंपनी की कोई वेबसाइट भी नहीं थी। खैर मुझे क्या। यहाँ से छुटकारा मिले तो घर जाऊं और आगे की सोचूं। मैं मोबाइल पर इधर-उदार ब्राउज करते हुए रूम में टहलने लगा। सिर मोबाइल पर झुका हुआ। मानों टेक्नोलॉजी के सम्मान में अपना शीश झुका रहा था। तभी जोया जो खुद मोबाइल पर ब्राउज़िंग में व्यस्त थी मेरे सामने आ गयी। हम दोनों टकरा ही गए होते। लेकिन मोबाइल पर झुके होने के बावजूद मुझे अहसास हो गया था कि सामने कोई है और एन वक़्त पर मैं हट गया। टक्कर नहीं हुई।
“देख कर मिस्टर” – जोया ने कहा।
“श्योर, देखा तभी हटा मैडम।”
वह कुछ न बोलकर मोबाइल पर वयस्तता प्रदर्शित करते हुए दुसरे छोर पर चली गयी। मैं भी जाकर चेयर पर बैठ गया। सोच कर भी अजीब लग रहा था कि बगल के कमरे में रश्मि की लाश पड़ी है। दुसरे कमरे में उसके मामा-मामी आंसू बहा रहे हैं। हम मोबाइल पर व्यस्त हैं, एक दुसरे से टकरा रहे हैं। न…न…टकरा नहीं रहे..टकराने से बच रहे हैं। तभी मुझे झटका लगा। लगा कोई एकदम भूली बात याद आ गयी। ऐसी बात जो थी तो बेहद साधारण लेकिन मायने कई निकलते थे।
——
मैं मुकेश कुमार के पास गया।
“सर एक बात कह सकता हूँ।”
“बोलो भाई।”
“सर हर हत्या का एक उद्दयेश होता है, आपको क्या लगता है, रश्मि की हत्या क्यों की गयी?”
मुकेश कुछ क्षण विचार करता रहा, फिर बोला – “देखो भई, शादी या सगाई के दिन ह्त्या। इन सब मामलों में हत्यारा आमतौर पर कोई पूर्व प्रेमी, जैसे कि तुम, निकलता है। लेकिन मैं मानता हूँ कि तुम हत्यारे नहीं हो।”
“अगर मैं नहीं हत्यारा। यानी कोई पूर्व प्रेमी हत्यारा नहीं है तो हत्या का और क्या मकसद हो सकता है?”
“हत्या के पीछे कारण अगर बदला नहीं है तो पैसा मुख्य मकसद होता है। दुनिया भर में सबसे अधिक क़त्ल पैसों के लिए ही होते हैं। तुमने सुना नहीं हो जर, जोरू , जमीन वाली कहावत।”
“बिलकुल सर। मैं यही कहना चाहता हूँ। हत्या के पीछे पैसा ही मुख्य मकसद आमतौर पर होता है। यहाँ भी ऐसा ही है।”
“क्यों भई, कोई कैंडिडेट मिल गया हत्यारे के तौर पर?”
“एक कैंडिडेट है तो सही। लेकिन उसे पकड़ने के लिए आपकी सहायता चाहिए।”
“क्या करना है।”
“आप सभी लोगों को हॉल में बुलाइए।” – फिर मैंने अपनी योजना मुकेश कुमार को बताई।
—
सभी लोग हॉल में हाज़िर हुए। ऊपर फाल्स सीलिंग और नीचे कालीन बिछा बाग़ वीरान नज़र आ रहा था। सभी की उत्सुक निगाहें मेरी ओर थी।
मैंने हॉल के बीच में गया। मेरे बगल में मुकेश कुमार था।
“साहबान अब से कुछ देर में हत्यारा आप सभी के सामने होगा।” – मैंने अपनी बातों का इफ़ेक्ट देखने के लिए नज़र दौड़ाई।
मैंने अपनी बात आगे बढाते हुए कहा – “रश्मि की हत्या एक ऐसी दास्ताँ है जिस पर सहज यकीन करना मुश्किल है। ये कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसकी हत्या करने दो-दो लोग पहुंचे। एक जो उसका पूर्व प्रेमी था। उसकी जान लेकर अपनी जान देना चाहता था। और दूसरा…साहेबान, दूसरा एक ऐसा शख्स था जिसका दिल पत्थर का था। वह रश्मि की जान महज भौतिक सुख के लिए लेना चाहता था।”
मुकेश कुमार भी गौर से मेरी बातें सुन रहा था।
मैंने कहा – “दोस्तों यदि आप इस घर की लोकेशन को देखें तो पता चलेगा कि केवल हॉल के करीब से जो सीढियाँ ऊपर की ओर जाती हैं वहीँ से रश्मि के रूम में पहुंचा जा सकता है। लेकिन एक और रास्ता है ऊपर जाने का। वो रास्ता है बाग़ के करीब से फायर एस्केप की सीढियों से।”
मैं इफेक्ट के लिए फिर कुछ देर रुका।
“मुझे कातिल का अंदाजा तब हुआ जब जोया मुझसे टकराने वाली थी और मैं बच गया। बच क्या गया मुझे आभास हो गया कि सामने वो खड़ी है, मोबाइल पर नज़रें गड़ाए रखने के बावजूद मैं उससे नहीं टकराया। दोस्तों किसी से टकरा जाना काफी मुश्किल होता है। बेहद मुश्किल। खासकर आप यदि किसी पार्टी के हीरो हों। क्यों मलय जी मैं सही कह रहा हूँ न।”
मलय ने अपने माथे के पसीने को पोंछा। वह चिंतित दिख रहा था।
मैं आगे बढ़ा – “दोस्तों अपने वुडबी दुल्हा, यानी मलय प्रमाणिक शाम को वेटर से टकरा गए। सभी ने वेटर को बुरा भला कहा। लेकिन अब मुझे यह सूझ रहा है कि यह टक्कर जानबूझ कर हुई। दरअसल टक्कर के बाद मलय को अपने कपडे धोने-पोंछने का बहाना मिल जाता।”
मलय अब बेहद चिंतित दिख रहा था।
“दरअसल वह फायर एस्केप की सीढियों से गया और रश्मि का क़त्ल करके वापस आ गया। लेकिन शायद खून की कुछ बूँदें इसके शर्ट या पैंट पर कहीं लग गयी थी। उसे तत्काल पोंछना बेहद जरूरी था उसके लिए। इसलिए यह टक्कर हुई थी।”
“लेकिन मलय आखिर रश्मि का खून क्यों करेगा?” – मुकेश कुमार ने पूछा।
“क्योंकि रश्मि इसकी हकीकत जान चुकी थी कि इसके पास पैसे नहीं। यह मुझसे भी अधिक कंगाल है। झूठी कहानी गढ़कर यह रश्मि को ठग रहा था।”
“लेकिन ऐसा यदि था तो ज्यादा से ज्यादा शादी नहीं होती न। क़त्ल की क्या जरूरत थी?”
“क्योंकि रश्मि न केवल शादी तोड़ रही थी बल्कि उसकी असलियत भी उजागर कर पुलिस को सौंपने पर आमदा थी। वह क्या करना चाहती थी यह तो अब वो या अब मलय जाने लेकिन मलय को उसका जिन्दा रहना गंवारा नहीं था। मलय की कहानी अपने आप खुल सकती है। इसके जूते देखिये। बाग़ में कालीन था लेकिन इसके जूते पर कहीं-कहीं कीचड़ लगा है। यानी ये फायर एस्केप के पास गया था जहाँ कालीन बिछी नहीं है। इसकी पोशाक की जांच भी बारीकी से की जाए तो खून का कोई निशान भी जरूर मिल जाएगा।”
तभी मलय अचानक उठा और तेजी से बाहर की ओर भाग। लेकिन दरवाजे के करीब ही जोया ने अपने पैरों से उसे लंगड़ी मारी। वह मुहं के बल गिरा।
—-
स्थानीय पुलिस दो घंटे पहले मलय को ले जा चुकी थी। अधिकांश मेहमान भी जा चुके थे। मुकेश को अभी भी कुछ सवालों के जवाब चाहिए थे।
“तुम्हें कैसे पता चला कि वह कंगाल है।” – उसने पूछा।
“ब्राउज़िंग के जरिये। मैंने देखा कि उसके नाम की महज चार-पांच एंट्रियाँ थी। कोई वेबसाइट नहीं। हर एंट्री न्यूज़ आइटम या ब्लॉग की तरह थी। हर एंट्री में कमोबेश एक ही विवरण लिखा था। कई बार एक ही वाक्यों का ही इस्तेमाल किया गया था। यानी ये सभी एंट्रियाँ किसी एक ने तैयार की हैं। वह भी धोखा देने की नियत से। इन्टरनेट पर आप भी ऐसे कई नकली अरबपतियों को पायेंगे जो हक़ीक़तन कुछ भी नहीं। लेकिन उनके सम्बन्ध में लिंक काफी होंगी। आप गौर से देखेंगे तो पता चलेगा कि सभी में लगभग एक ही बात लिखी हुई है। लेकिन मुझे उसके कातिल होने की बात जोया से धक्का न लगने पर सूझी। क्योंकि मैंने वेटर के साथ उसकी टक्कर देखी थी। सभी को पहले लगा कि गलती वेटर की है। लेकिन ऐसा था नहीं। उसने धक्का जानबूझ कर मारा था।”
“खैर हत्यारा तो पकड़ा गया, अब तुम्हारा क्या इरादा है।” – मुकेश ने पूछा।
“पता नहीं। लेकिन इन चंद घंटों में जीवन और मौत को काफी करीब से देखा। अब यूँ मैं जान नहीं देने वाला। कम से कम दिल में अब ये शान्ति है कि रश्मि का कातिल पकड़ा गया।”
कोलकाता निवासी, आनंद कुमार सिंह, पेशे से पत्रकार हैं। आप १६ वर्षों से पत्रकारिता से जुड़े हुए हैं एवं वर्तमान में एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक में बतौर वरीय संवाददाता के तौर पर कार्यरत हैं। बाल्यावस्था से ही कहानियों एवं उपन्यास पढने के शौकीन आनंद कुमार ने कॉमिक्स एवं राजन-इकबाल पढने के बाद श्री सुरेन्द्र मोहन पाठक जी को पढना शुरू किया। हिंदी क्राइम फिक्शन में वे सिर्फ सुरेन्द्र मोहन पाठक जी को पढ़ते हैं। अंग्रेजी भाषा में आपके कई पसंदीदा लेखक हैं – जिनमें ली चाइल्ड, फ्रेडरिक फोरसिथ, सिडनी शेल्डन, जेम्स हेडली चेज सहित बेशुमार लेखक हैं। आपकी कभी तमन्ना थी सुनील कुमार चक्रवर्ती जैसी रिपोर्टर बनने की, जिसे वे असंभव की हद तक कठिन बताते हैं। अब फिक्शन लेखन में अपना हाथ आजमाना चाहते हैं।
April 19, 2017 @ 7:22 am
Nice story. A small murder mystery…keep it up man.
September 29, 2020 @ 5:43 pm
धन्यवाद
July 22, 2019 @ 12:34 am
बहुत ही उम्दा प्रयास। बधाई इतना अच्छा लिखने के लिए।
September 29, 2020 @ 5:43 pm
धन्यवाद