Final Chapter Written by Mr. Anand – 1st runner up of Mystery of the Month – April
मैं समझा नहीं…!
इंस्पेक्टर मुस्कुराया, “आपका घर बहुत बड़ा है। इसकी तलाशी लेने में बहुत वक्त लगेगा। और वैसे भी तलाशी से पेंटिंग तो बरामद हो सकती है, लेकिन इससे चोरी किसने की, इसका पता कैसे लगाएंगे। हमारे लिए पेंटिंग बरामद करने से ज्यादा अहम है चोर…” यह कहते हुए इंस्पेक्टर अभय ने सभी की ओर सख्त निगाह से देखा, “चोर, जो आपमें से ही एक है, उसकी शिनाख्त जरूरी है।“
“यह क्या बकवास है, हम चोर नहीं हैं।” अलका लांबा ने तीखे स्वर से कहा।
“ठीक फरमाया, आप सब शहर के संभ्रांत शहरी हैं ! बड़े बड़े बंगलों में रहने वाले! इज्जतदार! वो क्या कहते हैं व्हाइट कॉलर! आप चोर कैसे हो सकते हैं। इसका ठीकरा तो किसी नौकर, माली या चौकीदार के सर फूटना चाहिए! चलिए मान लेते हैं! लेकिन सॉरी, आपको जानकर दुख होगा कि इस वक्त यहाँ कोई नौकर या माली मौजूद नहीं है!” कहकर इंस्पेक्टर ओ.पी. मेहरा की ओर मुड़ा “महाशय जी, आप तय कीजिए कि सचमुच कोई पेंटिंग की चोरी हुई भी है या नहीं, या आपने संभ्रांत जनों की पार्टी में पब्लिक सर्वेंट की मुस्तैदी आजमाने के लिए हमें बुलवाया है।“
“मैं माफी चाहता हूँ इंस्पेक्टर! हमारा यह मतलब नहीं था! मैं… हम हम सभी आपस में पुराने परिचित हैं, इसलिए… आप प्लीज़ अपना काम कीजिए। मेरी बेशकीमती पेंटिंग को चोरी होने से बचा लीजिए।” ओ.पी. मेहरा ने कहा।
“तो मुझे मेरा काम अपने तरीके से करने दीजिए। मैं सभी पर शक करता हूँ। मेरी नज़र में आप सभी चोर हो सकते हैं। और यही मेरा तरीका है।“
“बिलकुल। हमें कोई ऐतराज नहीं। आप अपने तरीके से काम कीजिए।” सुजाता ने कहा।
इंस्पेक्टर ने उनकी ओर देखा। सभी एक दूसरे की ओर देखकर सहमति में सिर हिलाने लगे। उस घड़ी इंस्पेक्टर की बात काटने का साहस किसी को न हुआ।
इंस्पेक्टर ने सबसे पहले अलका लांबा पर नज़रें गड़ा दीं, “सबसे पहले पुतले को आपने देखा? राइट?”
“पुतला नहीं, मैंने ओ.पी. को देखा था, मेरा मतलब उस समय मैं यह नहीं जानती थी कि वह पुतला है, मुझे लगा खुद ओ.पी. पेड़ से लटके हुए हैं।“
“तो आप कहती हैं कि आप रात दो बजे का अलार्म लगाकर सोई थीं।“
“हाँ। दवा खाने के लिए मुझे उठना पड़ता है, हर छह घंटे में दवा लेनी जरूरी है।“
“पार्टी कब तक चली थी, मेरा मतलब है डिनर कितने बजे तक समाप्त हो गया था?”
“डिनर लगभग 10 बजे समाप्त हो गया, और सोने के लिए जाते–जाते 11 बज गए थे।” अलका ने बताया।
“तो पिछली खुराक आपने लगभग 11 बजे खाई होगी। ऐसे में अगली खुराक 6 घंटे बाद, यानी सुबह पाँच बजे खानी चाहिए थी।“
“नहीं। पिछली खुराक रात के आठ बजे खाई थी।” अलका ने इंकार में सिर हिलाया।
“ताज्जुब है! आपको नहीं लगता कि यदि रात की दवा डिनर के बाद 10 -11 बजे खाई जाती, तो आपको यूँ रात के दो बजे न उठना पड़ता? मेरा मतलब है आप अगली खुराक आराम से सुबह चार या पाँच बजे उठ कर ले सकती थी।“
“लेकिन ऐसा नहीं है। मेरे मामले में दवा के खुराक की साइकिल मेरी सहूलियत के अनुसार नहीं चलती। जैसा डॉक्टर ने प्रिस्क्रिप्शन में लिखा है, ठीक वैसा फॉलो करना पड़ता है। आप चाहें तो डॉक्टर की पर्ची दिखा सकती हूँ।
“इसकी कोई जरूरत नहीं।” इंस्पेक्टर ने कहा, लेकिन वह उससे आश्वस्त नहीं लग रहा था।
इंस्पेक्टर ओ.पी. की ओर मुड़ा, “ऐसा कौन सा सैलिब्रेशन था कि आपने सभी नौकरों की छुट्टी कर दी थी। आमतौर पर जब मेहमान आते हैं, तो नौकरों की सेवा की जरूरत पड़ती है। ऐसे में…”
“यह कोई सैलिब्रेशन नहीं था, बल्कि अनौपचारिक मौका था। हम बचपन के दोस्त हैं, अकसर साल छह महीने में इसी तरह मिलकर डिनर करते हैं। सीधा–सादा डिनर होता है, आपस में सुख–दुख की बातें होती हैं और कुछ नहीं। ऐसे में हम स्वयं नौकरों की छुट्टी कर देते हैं।“
“आई सी। आप कहते हैं तो मान लेता हूँ। तो इस पेंटिंग की कीमत क्या होगी?”
“कला की क्या कीमत हो सकती है? असली कीमत तो कद्रदान की नज़र की होती है। लेकिन फिर भी एक आर्ट गैलरी ने पिछले साल इसके लिए 25 करोड़ रूपए की पेशकश की थी।“
“जिसे आपने इंकार कर दिया।“
“जाहिर है। तभी तो यह यहाँ मौजूद थी। यह बात मैंने सभी को रात को बताई थी।“
“इतनी महँगी पेंटिंग है। आपने इस पेंटिंग का इंश्योरेंस तो करवाया होगा।“
“जी हाँ। इसका 10 करोड़ रूपए का इंश्योरेंस है।” ओ.पी. ने हिचकते हुए कहा।
हाल में मौजूद सभी लोग चौंके।
इंस्पेक्टर मुस्कुराया, “यानी इस पेंटिंग को कोई नुकसान हो जाता है, या चोरी हो जाती है, तो आपको 10 करोड़ रूपए मिलेंगे।“
“लेकिन मैं ऐसा क्यों करूँगा। माना कि बिज़नेस में घाटा लगा था, लेकिन इतना नहीं कि सामान बेचना पड़े। और यदि पैसे की जरूरत होती तो मैं इसे पूरे 25 करोड़ लेकर बेचता, चोरी क्यों करता। वैसे भी मैं अपना सबकुछ अपनी भानजी को देने वाला था।” ओ.पी. ने सफाई दी लेकिन इंस्पेक्टर की मुस्कुराहट पर इससे कोई कोई अंतर नहीं पड़ा।
अब इंस्पेक्टर करण रस्तोगी की ओर मुड़ा, “आपका पेशा क्या है।“
“मेरा बिज़नेस है। कपड़ों के एक्सपोर्ट का कारोबार है।“
“आपने सबसे पहले पुतले को पहचाना। पुतले पहचानने का खूब तजुर्बा है आपको! शायद अपने कपड़े के कारोबार में ऐसे पुतलों से वास्ता पड़ता होगा, जिन्हें रंगबिरंगे कपड़े पहनाकर शोरूम में खड़ा कर दिया जाता है।“
“जी, मैंने कहा मेरी कपड़ों की दुकान नहीं है, एक्सपोर्ट का कारोबार है।“
“तो क्या हुआ, सैंपल वाले कपड़े पहने पुतले आपके यहाँ भी होंगे।” इंस्पेक्टर ने जिद की।
“नहीं हैं, आप चाहें तो चलकर देख सकते हैं।” करण ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा, “वैसे भी यह मैनिकिन नहीं है। मैनिकिन यानी शोरूम का पुतला हल्के प्लास्टिक से बना खोखला ढांचा होता है, जबकि आर्टिस्ट लोग जो पुतले बनाते हैं वह प्लास्टर ऑफ़ पेरिस या मोम से बनाए जाते हैं। आप भूल रहे हैं कि यह पुतला भाभीजी यानी श्रीमती मेहरा जी ने अपने हाथों से बनाया है। उन्हें पुतले बनाने का शौक था। ऊपर स्टडी में ऐसे कई पुतले रखे हुए हैं। चाहें तो देख लें।“
“कहाँ हैं?”
“ऊपर स्टडी में हैं। मतलब है, रखे होंगे… भाभीजी का कलेक्शन वहीं रहता है। अभी–अभी ओ.पी. ने तो बताया था।” करण रस्तोगी हड़बड़ाया।
“ओह, मुझे लगा आपने ‘रखे हैं‘ कहा है।“
“इससे क्या फर्क पड़ता है? मैं यहाँ फैमिली जैसा हूँ… इस कोठी के चप्पे चप्पे से वाकिफ हूँ, इसलिए कहा कि पुतले वहीं रखे हैं।” करण रस्तोगी ने ज़ोर दिया। सुजाता ने कुछ कहना चाहा, पर कुछ सोचकर होठ भींच लिए।
“अब गोली मारिए पुतले को। बताइए आपकी नज़र कैसी है।“
“बिलकुल ठीक है। अभी तक कोई चश्मा नहीं लगा।“
“और सेहत कैसी है?”
“बिलकुल फिट। इस उम्र में भी तंदुरुस्त हूँ। जबकि मेरी उम्र के दोस्तों ने बिस्तर पकड़ लिया है।” करण का इशारा ओ.पी. मेहरा की ओर था।
“तभी तो आपने अकेले सीढ़ी उठाई और पुतले को मेहराजी के कपड़े पहनाकर पेड़ पर टांग दिया।“
“क्या बकते हो।” करण चीखा।
लेकिन इंस्पेक्टर पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।
“इतना ही नहीं, आपने बड़े सब्र से रात के दो बजने का इंतजार किया। जैसा अंदेशा था, वैसा ही हुआ। अलका चीखी, और बाहर भागी। उसके पीछे सुजाता भी बाहर गई। आप जानते थे, मेहरा जी बीमार हैं, और उन्हें उठकर आने में कुछ वक्त लगेगा। आपने मौका देखकर कुर्सी लगाकर चुपके से पेंटिंग उतार ली, और कहीं छिपा दी। फिर आराम से बाहर निकल गए।“
सुजाता ने कहा, “जी हाँ इंस्पेक्टर साहब, हम सब पेड़ पर अंकल जी को लटका समझ रहे थे, जबकि इन्होंने आते ही पहचान लिया कि यह पुतला है।“
इंस्पेक्टर ने करण रस्तोगी की ओर देखा, “आपने मेरे आने पर मेरे आई.कार्ड को बिलकुल करीब से देखा। मैं तभी समझ गया था कि आपकी दूर की नज़र कमज़ोर है। जब यह सुना कि पुतले को अंधेरे में आपने पहचाना तो जान गया सब आपका किया धरा है। देखना और सुनना ऐसी सहज क्रिया है, जिसकी कमज़ोरी पर परदा नहीं डाला जा सकता। यह कमज़ोरी हमारे बर्ताव से झलक जाती है।“
करण रस्तोगी ने असहाय भाव से चारों ओर देखा लेकिन सब उसे ही घूर रहे थे।
इंस्पेक्टर अभय ने उसका कंधा थामकर ज़हरबुझे स्वर से पूछा, “यह सीधे–सीधे बताओगे कि पेंटिंग कहाँ छुपाई, या मैं आपकी इज्जतआफ़जाई करूँ, मिस्टर व्हाइट कॉलर बिजनेसमैन।“
और बिजनेसमैन का रिकॉर्ड बिना रुके बजना शुरू हो गया।