नई कहानी आन्दोलन के दौरान साम्प्रदायिकता और विभाजन को आधार बनाकर अनेक कहानियाँ लिखी गयीं. अमृतसर आ गया (भीष्म साहनी),सिक्का बदल गया (कृष्णा सोबती),शरणदाता (अज्ञेय) जैसी कहानियों ने सांप्रदायिक हादसों और विभाजन की त्रासदी का यथार्थ और मार्मिक चित्रण किया है. मोहन राकेश की मलबे का मालिक और परमात्मा का कुत्ता जैसी कहानियाँ इसी श्रेणी […]
उन दिनों संयोग से हाकिम-जिला एक रसिक सज्जन थे. इतिहास और पुराने सिक्कों की खोज में उन्होंने अच्छी ख्याति प्राप्त कर ली थी. ईश्वर जाने दफ्तर के सूखे कामों से उन्हें ऐतिहासिक छान-बीन के लिए कैसे समय मिल जाता था. वहाँ तो जब किसी अफसर से पूछिए, तो वह यही कहता है ‘मारे काम के […]
अँधेरी रात के सन्नाटे में धसान नदी चट्टानों से टकराती हुई ऐसी सुहावनी मालूम होती थी जैसे घुमुर-घुमुर करती हुई चक्कियाँ। नदी के दाहिने तट पर एक टीला है। उस पर एक पुराना दुर्ग बना हुआ है जिसको जंगली वृक्षों ने घेर रखा है। टीले के पूर्व की ओर छोटा-सा गाँव है। यह गढ़ी और […]
तीसरी कसम ….प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र ने जब रेणु की इस कहानी पर फिल्म बनाने का निश्चय किया तो हीरामन की भूमिका के लिए उनकी कल्पना में राज कपूर के सिवा कोई नाम नहीं था . मैं जितनी बार यह फिल्म देखता हूँ , मुझे लगता है कि जैसे कहानी लिखते वक्त रेणु जी की कल्पना […]
उसने अपना सूटकेस दरवाजे के आगे रख दिया। घंटी का बटन दबाया और प्रतीक्षा करने लगा। मकान चुप था। कोई हलचल नहीं – एक क्षण के लिये भ्रम हुआ कि घर में कोई नहीं है और वह खाली मकान के आगे खडा है। उसने रुमाल निकाल कर पसीना पौंछा, अपना एयर बैग सूटकेस पर रख दिया। दोबारा बटन दबाया और दरवाजे […]
काले सांप का काटा आदमी बच सकता है, हलाहल ज़हर पीने वाले की मौत रुक सकती है, किंतु जिस पौधे को एक बार कर्मनाशा का पानी छू ले, वह फिर हरा नहीं हो सकता. कर्मनाशा के बारे में किनारे के लोगों में एक और विश्वास प्रचलित था कि यदि एक बार नदी बढ़ आये तो […]
यों तो मेरी समझ में दुनिया की एक हज़ार एक बातें नहीं आती—जैसे लोग प्रात:काल उठते ही बालों पर छुरा क्यों चलाते हैं ? क्या अब पुरुषों में भी इतनी नजाकत आ गयी है कि बालों का बोझ उनसे नहीं सँभलता ? एक साथ ही सभी पढ़े-लिखे आदमियों की आँखें क्यों इतनी कमज़ोर हो […]
डायरी या आत्मालाप शैली में लिखी ‘यही सच है’ मन्नू भंडारी की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से एक है . यह कहानी है दीपा की या यूं कहें कि उसके अंतर्द्वंद्व की . निशीथ से निराश दीपा संजय की बाहों में सहारा ढूंढती है. उसे लगता है कि वह निशीथ को भूल गयी है , […]
पंडित मोटेराम शास्त्री ने अंदर जा कर अपने विशाल उदर पर हाथ फेरते हुए यह पद पंचम स्वर में गया, अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गये, सबके दाता राम ! सोना ने प्रफुल्लित हो कर पूछा, ‘ कोई मीठी ताजी खबर है क्या ? ‘ शास्त्री जी ने पैंतरे […]