बड़ा भाई होना कितनी बड़ी मुसीबत है, इसे वे ही समझ सकते हैं, जो सीधे दिखाई पड़ने वाले चालाक छोटे भाई-बहनों के जाल में फंसकर आये दिन उनकी शरारतों के लिए मेरी तरह खुद ही डांट खाते नजर आते हैं. घर में जिसे देखो वही दो-चार उपदेश दे जाता है और दो-चार काम सौंप जाता […]
नौगढ़ के टूर्नामेंट की बड़ी तैयारी की गई थी. सारा नगर सुसज्जित था. स्टेशन से लेकर स्कूल तक सड़क के दोनों ओर झंडियाँ लगाईं गई थीं. मोटरें खूब दौड़ रही थीं. टूर्नामेंट में पारितोषिक वितरण के लिए स्वयं कमिश्नर साहब आने वाले थे. इसीलिए शहर के सब अफसर और रईस व्यस्त थे. आज स्कूल के […]
सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। इसे देखकर अनायास ही उस छोटे जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज […]
जाड़े का दिन . अमावस्या की रात – ठंढी और काली . मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव भयार्त शिशु की तरह थर-थर कांप रहा था. पुरानी और उजड़ी बांस-फूस की झोंपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य ! अँधेरा और निस्तब्धता ! अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी. निस्तब्धता करुण सिसकियों […]
पुष्पदंतपुर के चौड़े राजपथ के एक किनारे जिस लोहार की दूकान थी , वह अपनी कला में प्रवीण था. किन्तु बहुत ही कम व्यक्ति उसे जानते थे. वह लोहार सिर झुकाए अनवरत परिश्रम करता .उसकी दुकान के सामने से जुलूस जाते. सम्राट की सवारी जाती. फिर भी वह कभी सिर उठाकर किसी ओर नहीं देखता […]
मोहन बरसों से ज्वालाप्रसाद का ऋण चुकाने की चेष्टा में था. परन्तु चेष्टा कभी सफल न होती थी. मोहन का ऋण दरिद्र के वंश की तरह दिन पर दिन बढ़ता ही जाता था. इधर कुछ दिनों से ज्वालाप्रसाद भी कुछ अधीर से हो उठे थे. रूपये अदा करने के लिए वह मोहन के यहाँ आदमी […]
क्रोध और वेदना के कारण उसकी वाणी में गहरी तलखी आ गई थी और वह बात-बात में चिनचिना उठना था। यदि उस समय गोपी न आ जाता, तो संभव था कि वह किसी बच्चे को पीट कर अपने दिल का गुबार निकालता। गोपी ने आ कर दूर से ही पुकारा – ‘साहब सलाम भाई रहमान। […]
माँ ने कहा, ‘टिल्लू में लाख ऐब हों, मैंने माना, लेकिन एक गुण भी ऐसा है जिससे लाखों ऐब ढँक जाते हैं – वह नमकहराम नहीं है!’ ‘मैंने तो कभी नमकहराम कहा नहीं उसे’ मैंने जवाब दिया – ‘वह काहिल है और नौकर को काहिल ही न होना चाहिए। काम तो रो-गाकर वह सभी करता […]
मास्को से लगभग दो सौ मील पश्चिम की ओर वियाज्मा के निकट – जंगल में घने वृक्षों के मध्य एक बड़ी-सी झोंपड़ी बनी थी। इस झोंपड़ी में एक छोटा-सा रूसी परिवार रहता था। इस परिवार में केवल तीन प्राणी थे। एक प्रौढ़ वयस्क पुरुष, जिसकी वयस पैंतालीस वर्ष के लगभग थी। शरीर का हृष्ट-पुष्ट तथा […]