सबसे पहले भाषा शैली पर,जिसे लेकर काफी हल्ला भी हो रहा है इस पर यह बात लेखक को पनाह देती है कि ‘लेखक अपने आपको शहर कहता है, और शहर उसी जबान में किस्सा सुनाता है, जो उसके लोगों ने उसे सिखायी है.’ पाठक इस कथा के द्वारा बोकारो शहर से भी परिचित हो सकते […]
हर इंसान के अंदर भगवान और शैतान, दोनों, किसी न किसी रूप में मौजूद होते हैं। जब हम कोई सत्कार्य कर रहे हों तो उसे अपने अंदर मौजूद ईश्वरीय अंश का कृत्य मानते हैं, जबकि हर दुष्कृत्य के लिए अपने अंदर मौजूद शैतानीय अंश को उत्तरदायी मानते हैं। हमारे अंदर मौजूद ये दोनो ही अंश […]
हिंदी में युद्ध कथाएँ काफी कम लिखी गई हैं, बावजूद इसके कि हिंदी कहानी की शुरुआत में ही गुलेरी जी ने ‘उसने कहा था’ जैसी सशक्त कहानी के माध्यम से युद्ध कथा का सूत्रपात् किया था. ऐसे में, जगदीशचन्द्र की ‘आधा पुल’ हिंदी में युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखी गई एक महत्वपूर्ण रचना के रूप […]
‘परिंदे’ निर्मल वर्मा की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से है . यह न सिर्फ अपनी चित्रात्मक भाषा के ज़रिये एक नए शिल्प प्रयोग को सामने लाती है , बल्कि कथ्य के स्तर पर भी कई परंपरागत प्रतिमानों को तोड़ती हुई नज़र आती है . परिंदे एक प्रेम कथा है . ऐसा नहीं है कि हिंदी […]
1954 में मैला आंचल के प्रकाशन को हिन्दी उपन्यास की अद्भुत घटना के रूप में माना जाता है। इसने आंचलिक उपन्यास के रूप में न सिर्फ हिन्दी उपन्यास की एक नयी धारा को जन्म दिया, बल्कि आलोचकों को लम्बे समय तक इस पर वाद-विवाद का मौका भी दिया। अंग्रेजी में चौसर के ‘केन्टरवरी टेल्स’ और […]
प्रेमचन्द के बाद हिन्दी में ग्राम कथा पर आधारित धारा अवरूद्ध सी हो जाती है। बलचनमा (नागार्जुन.1952) और गंगा मैया (भैरव प्रसाद गुप्त.1952) जैसे उपन्यास लिखे तो गये, परन्तु प्रेमचन्द जैसी व्यापक संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टि के अभाव में यथोचित प्रभाव नहीं छोड़ पाए। ऐसे में 1954 में मैला आंचल का आना एक सुखद आश्चर्य […]
किसान समस्या प्रेमचन्द के उपन्यासों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या के रूप में सामने आती है।प्रेमचन्द का पहला उपन्यास ‘सेवासदन’ यद्यपि स्त्री समस्या को लेकर लिखा गया है,लेकिन यहाँ भी चैतू की कहानी के माध्यम से उन्होँने यह संकेत दे ही दिया है कि किसान समस्या और किसान जीवन ही उनके उपन्यासों का मुख्य विषय होने […]