बहुरूपिये की गवाही
ऊँचे-ऊँचे देवदार एवं बलूत के वृक्षों ने सूरज की रोशनी को पूरी तरह से ढक लिया था जिसके कारण दोपहर के समय भी उस जंगल में शाम का अहसास हो रहा था। जहां उस जंगल में आसमान को देखना आसान नहीं था वहीँ जमीन को देख पाना भी मुश्किल था। […]
ऊँचे-ऊँचे देवदार एवं बलूत के वृक्षों ने सूरज की रोशनी को पूरी तरह से ढक लिया था जिसके कारण दोपहर के समय भी उस जंगल में शाम का अहसास हो रहा था। जहां उस जंगल में आसमान को देखना आसान नहीं था वहीँ जमीन को देख पाना भी मुश्किल था। […]
“तू झूठ बोलता है, साले!” – सब इंस्पेक्टर दिनेश राठी के होठों से निकलता यह शब्द गौरव प्रधान के लिए किसी रिवाल्वर से निकली गोली के समान था। “तूने ही अपने पिता का क़त्ल किया है। बता क्यूँ किया अपने बाप का खून, किसलिये किया, कैसे किया, बता।” – दिनेश […]
कैसी फीलिंग आती है, जब आपने कोई ऐसा फैसला किया हो जो आपके समूचे जीवन को बदल दे, आपकी बुनियाद हिला दे। न….न…न… आप ये न सोंचे कोई बड़ा फैसला, कोई नौकरी बदलना, शादी का फैसला करना, मेरा मतलब है ऐसा निर्णय जो आपकी जड़ हिला दे। बिलकुल ऐसा ही फैसला मैंने किया है। एक ऐसा फैसला जिसके बारे में कभी किस्से-कहानियों में पढ़ा ही था। सिनेमा के परदे पर देखा ही था। उसे खुद अंजाम देना और उसके बारे में स्वयं ही सोचना, उसे पल-पल जीना। विश्वास कीजिये एक ऐसी फीलिंग आती है जिसे शब्दों में ढालना बेहद मुश्किल होता है। लेकिन इसके अलावा और कोई चारा भी तो नहीं है। सीधे मुद्दे पर आऊँ तो मैंने अपनी गर्लफ्रेंड की हत्या का फैसला किया है।
मुझे प्यार करने वाली, मेरी आँखों में आँखें डाल कर मेरे साथ अपना जीवन बिताने की कसमें खाने वाली, मेरे हर सुख-दुःख में साथ देने का दम भरने वाली के जीवन को ही खत्म करने का फैसला किया है। ये मत सोचिये कि ये फैसला मेरे लिए आसान था, बेहद कठिन। मुझे आज समझ में आता है कि कोई आम इंसान किसी दुसरे इंसान की हस्ती को ही मिटा लेने की जब ठान लेता है तो उस पर क्या गुजरती होगी। लेकिन मैं अपने फैसले पर अटल हूँ। इसका कारण? धोखा। धोखा भी ऐसा कि जो दुनिया पर से आपका विश्वास उठा दे। हर इंसान आपको धोखेबाज दिखाई देने लगे। आपकी सभी खुशियों को हर ले। लेकिनं ये मत समझियेगा मैं बस बदला ही लेने वाला हूँ। बदला लेने के बाद मुझे भी इस मक्कार दुनिया में नहीं रहना। गर्लफ्रेंड के क़त्ल के बाद मैं भी इस दुनिया से विदा ले लूँगा। इसके लिए मेरे पास हैं – तीन दिन। क्योंकि तीन दिन बाद उसकी सगाई है। इन तीन दिनों में मुझे क़त्ल की योजना बनानी है, उसे अमली जामा पहनाना है और खुद भी मर जाना है।
सर्दी की रात जल्दी होती है। और सन्नाटा भी। अगर कोहरा पड़ने लग जाए तो समझो सोने पे सुहागा।
जो की आज पड़ रहा था। मेरे लिए ये सबसे मुफीद दिन था।
बाइक स्टार्ट हुई, उसने मेरी तरफ देखा और फिर से पुछा “देख ले कर लेगा न?”
मना करने का तो सवाल ही नही उठता था, इसी दिन का तो मैं इंतज़ार कर रहा था।
१४ जुलाई :
उस दिन दोपहर से ही बारिश हो रही थी. उन दिनों मेरा मूड वैसे ही खराब रहता था. कोई नया काम नहीं मिल रहा था. रुपये पैसो के मामले में मैं परेशान था. मेरा जीवन भी क्या बेकार सा जीवन था. मैं लेखक था, और पूरी तरह से फ्लॉप था. करियर के प्रारम्भ में मैं खूब बिका लेकिन बाद में इन्टरनेट के युग के आने के बाद लोगों ने जैसे किताबें पढना ही छोड़ दिया और अब मुझ जैसे छोटे लेखकों को कोई नहीं पूछता था ! अच्छे वक़्त में जो कुछ पैसे कमाए थे वो भी करीब करीब ख़त्म हो रहे थे. ये घर भी एक पुराने प्रकाशक मित्र का था जिसने मेरे अच्छे समय में मेरी किताबों से खूब पैसे कमाए थे. उसी ने मुझ पर पुरानी दोस्ती के चलते ये घर देकर रखा था. कहीं से कोई आमदनी नहीं थी. ज्यादा दोस्त थे नहीं तो कोई कितना उधारी देता. कुछ पैसे कभी कभी कोई पत्रिका या अखबार वाला दे जाता था तो उसी के सहारे जीवन कट रहा था.