दो में से क्या तुम्हे चाहिए कलम या कि तलवार मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति अजेय अपार अंध कक्षा में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान जला ज्ञान का दीप सिर्फ़ फैलाओगे उजियाली अथवा उठा कृपाण करोगे घर की भी रखवाली कलम देश की बड़ी शक्ति […]
चित्रसेन चितउर गढ राजा । कै गढ कोट चित्र सम साजा ॥ तेहि कुल रतनसेन उजियारा । धनि जननी जनमा अस बारा ॥ पंडित गुनि सामुद्रिक देखा । देखि रूप औ लखन बिसेखा ॥ रतनसेन यह कुल-निरमरा । रतन-जोति मन माथे परा ॥ पदुम पदारथ लिखी सो जोरी । चाँद सुरुज जस होइ अँजोरी ॥ […]
जब-तब नींद उचट जाती है पर क्या नींद उचट जाने से रात किसी की कट जाती है? देख-देख दु:स्वप्न भयंकर, चौंक-चौंक उठता हूँ डरकर; पर भीतर के दु:स्वप्नों से अधिक भयावह है तम बाहर! आती नहीं उषा, बस केवल आने की आहट आती है! देख अँधेरा नयन दूखते, दुश्चिंता में प्राण सूखते! सन्नाटा गहरा हो […]
खड़ा हिमालय बता रहा है डरो न आंधी पानी में। खड़े रहो तुम अविचल हो कर सब संकट तूफानी में। डिगो ना अपने प्राण से, तो तुम सब कुछ पा सकते हो प्यारे, तुम भी ऊँचे उठ सकते हो, छू सकते हो नभ के तारे। अचल रहा जो अपने पथ पर लाख मुसीबत आने में, […]
तुम आयी जैसे छीमियों में धीरे- धीरे आता है रस जैसे चलते-चलते एड़ी में कांटा जाए धंस तुम दिखी जैसे कोई बच्चा सुन रहा हो कहानी तुम हंसी जैसे तट पर बजता हो पानी तुम हिली जैसे हिलती है पत्ती जैसे लालटेन के शीशे में कांपती हो बत्ती तुमने छुआ जैसे धूप में धीरे-धीरे उड़ता […]
वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो! हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी रुके नहीं वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो! सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो! […]
विजन-वन-वल्लरी पर सोती थी सुहाग-भरी–स्नेह-स्वप्न-मग्न– अमल-कोमल-तनु तरुणी–जूही की कली, दृग बन्द किये, शिथिल–पत्रांक में, वासन्ती निशा थी; विरह-विधुर-प्रिया-संग छोड़ किसी दूर देश में था पवन जिसे कहते हैं मलयानिल। आयी याद बिछुड़न से मिलन की वह मधुर बात, आयी याद चाँदनी की धुली हुई आधी रात, आयी याद कान्ता की कमनीय गात, फिर क्या? पवन […]
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से कि धुल गयी हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो। और… […]