आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने कबीर की भक्ति को रहस्यवाद से जोड़ा है और इसे एक प्रतिक्रियावादी दर्शन मानकर कबीर की आलोचना की है. शुक्लजी के मत की समीक्षा करने से पहले आवश्यक है कि रहस्यवाद को समझा जाय. आमतौर पर उस कथन या अनुभव को रहस्यवाद की संज्ञा दी जाती है, जिसमें अज्ञात ब्रह्म की […]
असाध्य वीणा अज्ञेय की एक लम्बी कविता है, लेकिन जैसी चर्चा मुक्तिबोध (अंधेरे में, चांद का मुंह टेढ़ा है) और धूमिल (पटकथा) की लम्बी कविताओं को मिली, वैसी असाध्य वीणा को नहीं मिली. यद्यपि इसका प्रकाशन इनसे पूर्व (आंगन के पार द्वार-1961) हुआ था. इसका कारण कई आलोचक असाध्य वीणा के रहस्यवाद को मानते है. […]
हिंदी में युद्ध कथाएँ काफी कम लिखी गई हैं, बावजूद इसके कि हिंदी कहानी की शुरुआत में ही गुलेरी जी ने ‘उसने कहा था’ जैसी सशक्त कहानी के माध्यम से युद्ध कथा का सूत्रपात् किया था. ऐसे में, जगदीशचन्द्र की ‘आधा पुल’ हिंदी में युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखी गई एक महत्वपूर्ण रचना के रूप […]
कुकुरमुत्ता निराला की श्रेष्ठ और सर्वाधिक विवादित रचनाओं में से एक है। प्रकाशन के तुरन्त बाद बाद से ही कुकुरमुत्ता को लेकर आलोचकों में मतभेद सामने आने लगे। कुकुरमुत्ता एक व्यग्यं रचना है। इस बात पर तो मतैक्य था परन्तु विवाद इस बात पर था कि यह व्यंग्य किस पर है। शुरूआती दौर में आमतौर […]
गोदान में प्रेमचन्द के नारी सम्बन्धी विचार अक्सर चर्चा और विवाद के विषय बनते रहे हैं। गोदान में प्रेमचन्द के विचारों के मुख्य स्रोत मेहता के वक्तव्य रहे हैं। अधिकांश आलोचक मेहता को ही उपन्यास में लेखक का प्रोटागोनिस्ट (विचारवाहक) मानते हैं। डॉ रामविलास शर्मा के अनुसार, अगर होरी और मेहता को मिला दिया जाय […]
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने मलिक मो. जायसी को सूफ़ी कवि मानते हुए उन्हें प्रेमाश्रयी : सूफ़ी काव्य धारा के अन्तर्गत रखा है. आचार्य शुक्ल के अनुसार जायसी महदियां सूफ़ी सम्प्रदाय में दीक्षित भी थे. यद्यपि शुक्लजी से पूर्व ग्रियर्सन जायसी को मुस्लिम सन्त बता चुके थे, तथापि शुक्लजी के बाद लगभग सभी आलोचकों ने जायसी […]
‘परिंदे’ निर्मल वर्मा की सर्वाधिक चर्चित कहानियों में से है . यह न सिर्फ अपनी चित्रात्मक भाषा के ज़रिये एक नए शिल्प प्रयोग को सामने लाती है , बल्कि कथ्य के स्तर पर भी कई परंपरागत प्रतिमानों को तोड़ती हुई नज़र आती है . परिंदे एक प्रेम कथा है . ऐसा नहीं है कि हिंदी […]
1954 में मैला आंचल के प्रकाशन को हिन्दी उपन्यास की अद्भुत घटना के रूप में माना जाता है। इसने आंचलिक उपन्यास के रूप में न सिर्फ हिन्दी उपन्यास की एक नयी धारा को जन्म दिया, बल्कि आलोचकों को लम्बे समय तक इस पर वाद-विवाद का मौका भी दिया। अंग्रेजी में चौसर के ‘केन्टरवरी टेल्स’ और […]
प्रेमचन्द के बाद हिन्दी में ग्राम कथा पर आधारित धारा अवरूद्ध सी हो जाती है। बलचनमा (नागार्जुन.1952) और गंगा मैया (भैरव प्रसाद गुप्त.1952) जैसे उपन्यास लिखे तो गये, परन्तु प्रेमचन्द जैसी व्यापक संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टि के अभाव में यथोचित प्रभाव नहीं छोड़ पाए। ऐसे में 1954 में मैला आंचल का आना एक सुखद आश्चर्य […]