अनजान रिश्ते (धर्मेंद्र त्यागी)

फ्लैट के बाहर से आ रही जोर जोर से बोलने की आवाजें सुनकर अंगद ने दरवाजा खोला।
अंगद का पूरा नाम अंगद शुक्ला था। वो अपनी नौकरी की वजह से अभी कुछ दिन पहले ही मथुरा से मुम्बई आया था, जहाँ कि वो एक ऑटोपार्ट्स बनाने वाली कम्पनी में टेक्निकल मैनेजर के पद पर नियुक्त हुआ था।
गैलरी में मिसेज वर्मा और उनका बेटा किसी बात पर बहस कर रहे थे और उनकी बहू दरवाजे पर खड़ी थी।
मिसेज वर्मा रिटायर्ड प्रोफेसर रघुवंश वर्मा की पत्नी थी। वे अंगद को कुछ खास पसन्द नही करतीं थीं। उन्हें लगता था कि घर से बाहर रहने वाले लड़के आवारा होते है और अंगद तो उन्हें कई बार गैलेरी में अक्सर सिगरेट के कश लगाता दिख जाता था।
अंगद कई बार गैलरी में मिलने पर उन्हें नमस्ते भी करता था, जिसका जवाब न मिलने पर अब उसने वो भी करना बंद कर दिया था।
हालांकि प्रोफेसर वर्मा से वो जब भी आते-जाते हुए मिलता, हमेशा ही उन्हें नमस्ते करता था, जिसके जवाब में उसे प्रोफेसर वर्मा का मुस्कुराता हुआ चेहरा झुकता दिखता था।
अंगद को दरवाजा खोलकर उनकी तरफ झांकते देख मिसेज वर्मा और उनका बेटा चुप हो गए और अंदर चले गए।
अंगद भी वापस आकर अपनी मूवी देखने लगा।
शाम को सिगरेट की तलब की वजह से अंगद को नीचे दुकान तक जाना पड़ा, जहाँ प्रोफेसर वर्मा का बेटा परेशानहाल खड़ा था और बड़ी बेचैनी से सिगरेट फूंक रहा था।
उसे बेचैन देख अंगद उसके पास पहुंचा। औपचारिक हाय-हैलो एवं परिचय के आदान-प्रदान के पश्चात दोनों के बीच बातचीत आरम्भ हुई। उसने अंगद को अपना नाम वरुण बताया।
“कोई परेशानी है क्या? बहुत परेशान दिख रहे हो।”-अंगद उसे देखते हुए बोला।
“क्या बताऊँ भाई, कुछ समझ नही आ रहा है।”-वरुण परेशान होते हुए बोला।
“क्यों क्या हुआ?”-अंगद उसके साथ पास ही पड़ी एक बेंच पर बैठते हुए बोला।
“भाई, पिताजी की तबियत सही नहीं थी तो उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करवाया, जहां कोविड टेस्ट कराने पर उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। वो पहले से ही बीमार रहते हैं, इस वजह से उनकी कंडीशन और ज्यादा बिगड़ रही है।”-कहते हुए वरुण की आंखों में आँसू आ गए-“डॉक्टर बोल रहा है कि जितनी जल्दी हो सके, उनके लिए प्लाज्मा की व्यवस्था करो। तभी इनकी हालत में सुधार हो सकता है। लेकिन बहुत ढूंढने पर भी कोई प्लाज्मा डोनर नही मिला भाई।”
ये सुनकर अंगद भी परेशान दिखाई देने लगा। उसकी आंखों के सामने प्रोफेसर वर्मा का हमेशा हँसता-मुस्कुराता हुआ चेहरा आ गया।
कुछ देर तक दोनों ही खामोश बैठे रहे। अंगद की भी कुछ समझ न आ रहा था कि क्या करे और क्या बोले।
अगर कोई पैसे की या कोई और जरूरत होती तो शायद वो पूरी कर भी देता लेकिन प्लाज्मा कहाँ से लाये? अभी कुछ दिन पहले ही उसके एक रिलेटिव की मौत भी इसी वजह से हुई थी।
उसे पता था कि प्लाज्मा डोनेट करने के नाम से लोग कैसे दूर दूर भागते हैं। सरकार द्वारा की गई तमाम कोशिशों के बाद भी लोग ये समझने को तैयार ही नहीं हैं कि प्लाज्मा देने से उन्हें कोई नुकसान नही होने वाला है।
तभी वरुण का फोन रिंग हुआ और वो उस पर बात करते हुए वहाँ से चला गया।
अंगद की सिगरेट पीने की तलब न जाने कबकी मर चुकी थी।
वो वही बेंच पर बैठे-बैठे बहुत देर तक न जाने क्या-क्या सोचता रहा। आखिर काफी देर बाद खोखे पर बैठे आदमी ने ही अंगद से पूछा-“क्या हुआ भैया जी? आप काफी देर से यहाँ बैठे है और आज तो आपने मुझसे कोई सिगरेट भी नही ली। सब ठीक तो है न?”
जवाब में अंगद ‘सब ठीक है’ कहते हुए वहां से अपने फ्लैट पर आ गया। उसने फेसबुक और व्हाट्सएप के अपने ग्रुप्स में ‘अर्जेंट प्लाज्मा की जरूरत है’ का मैसेज डाला, फिर प्रोफेसर साहब के लिए प्लाज्मा डोनर की व्यवस्था कहां से की जाए, यही सोचते हुए कब नींद आ गई, उसे पता ही न चला।
सुबह अलार्म की बजती घण्टी से अंगद की आंखें खुलीं। पिछली रात हुई घटना की वजह से वो अभी तक अपनी प्रेजेंटेशन भी पूरी नहीं कर सका था, जिसे आज उसे ऑफिस में जाकर अपने सीनियर्स को दिखाना भी था। उसी हड़बड़ी में वो बिना नाश्ता किये जल्दी से ऑफिस पहुँचा। वहाँ उसने अपनी प्रेजेंटेशन का बचा हुआ काम खत्म किया। तभी उसे सीनियर्स का बुलावा आ गया। दोपहर तक चली उस मीटिंग के बाद ही अंगद को थोड़ा चैन मिला।
तभी उसका मोबाइल रिंग करने लगा।
स्क्रीन पर कॉलकर्ता का नाम देख अंगद के चेहरे पर अनायास ही मुस्कान आ गई। वो नम्बर उसके खास दोस्तों में से एक शेखर का था, जो उसे तभी फोन करता था जब उसके पास पैसे खत्म हो जाते थे और घर से मिलने की भी कोई आशा की किरण न दिखाई देती थी।
“हैलो। कैसा है शेखर? आज बहुत दिनों बाद तुझे मेरी याद आई।”-फोन उठाते हुए अंगद बोला।
“कहाँ बिजी है भाई?”-उधर से शेखर की झुंझलाहट भरी आवाज आई-“रात में मेसेज डाला और बस काम खत्म? एक तो लोगों के इसी व्यवहार की वजह से लोग मदद को आगे नही आते।”
“अरे क्या हुआ भाई?”-हकबकाया-सा अंगद बोला।
“रात को तूने जो प्लाज्मा डोनर के लिए मैसेज डाला था, उसी के लिए मैंने तुझे मैसेज किया था। यार एक डोनर मिला तो है
लेकिन वो बहुत गरीब है और कोविड के इलाज की वजह से उस पर बहुत कर्जा भी हो गया है। वो प्लाज्मा देने के लिए रेडी है लेकिन उसके बदले में उसे कुछ पैसे चाहिए।”
सुनकर अंगद कुछ सोचने में लग गया।
“क्या हुआ भाई ?”-शेखर की आवाज आई-“बता क्या जवाब दूँ उसे?”
“तू उसे शाम तक कि बोल दे भाई इस बारे में मुझे पेशेंट के घरवालों से बात करनी होगी। तभी तुझे कुछ बता पाऊंगा।”
औपचारिक बातचीत के बाद अंगद ने कॉल डिसकनेक्ट कर दी।
शाम को ऑफिस से घर लौटते हुए अंगद को वरुण खोखे के पास कल की तरह परेशानहाल खड़ा दिखाई दिया।
अंगद उसके पास पहुंचा।
उसे देखकर वरुण हल्के से मुस्कुरा दिया। उसकी मुस्कुराहट में भी उसकी परेशानी साफ दिख रही थी।
“डोनर का इंतजाम हुआ क्या?”-अंगद ने उससे सांत्वना भरे लहजे में पूछा।
“नहीं भाई कहीं से कोई इंतजाम नही हुआ है। कुछ लोगों के कॉल्स आये भी थे लेकिन वो पैसा इतना मांग रहे है जिसका इंतजाम में नही कर सकता अभी।”
“भाई एक डोनर तो मुझे भी मिला है लेकिन बिना पैसे के बदले तो वो भी प्लाज्मा नही देने वाला। हाँ शायद उसकी मांग कम होगी ऐसा जरूर लगता है।”
सुनकर वरुण की आंखों में चमक आ गयी-“कहाँ भाई चल बात करते है उससे।”
“रुक में अभी इंतजाम करता हूँ।”-कहते हुए अंगद शेखर को कॉल करने लगा।
अंगद और वरुण दोनों वरुण की बाइक से शेखर द्वारा बताए गए इलाके में पहुँचे। वो एक झुग्गी-झोपड़ियों से भरा इलाका था। शेखर ने उन दोनों को वहीं मिलने को कहा था।
तभी शेखर भी बाइक से आता हुआ दिखाई दिया।
“सॉरी यार, ट्रैफिक की वजह से लेट हो गया।”-बाइक से उतरते हुए शेखर बोला
“कोई बात नहीं यार, हम भी अभी यहाँ पहुंचे हैं। ये वरुण है, जिन्हें प्लाज्मा डोनर की जरूरत है अपने पिताजी के लिए।”-कहते हुए अंगद ने शेखर और वरुण का परिचय करवाया।
“कहाँ है वो डोनर?”-वरुण व्याकुलता से चारों ओर देखते हुए बोला।
“उसका घर थोड़ा अंदर है। हमें पैदल ही चलना होगा। बाइक आप यही लॉक करके खड़ी कर दीजिए।”
वरुण ओर अंगद शेखर के साथ एक पतली-सी गली में चलने लगे। वो एक गंदी-सी गली थी, जहां जगह-जगह पानी भरा था और नालियों से बदबू उठ रही थी।
थोड़ी दूर चलने के बाद शेखर ने एक झोपड़ी का दरवाजा खटखटाया।
दरवाजा खोलकर एक युवक बाहर निकला। वो मुश्किल से 28 साल का था लेकिन मेहनत और मजदूरी ने उसे अपनी उम्र से बड़ा बना दिया था। उसके चेहरे पर जवानी की उमंग की जगह बुजुर्गों जैसा ठहराव था।
शेखर की देखते ही उसने अपने दोनों हाथ उसके सामने जोड़ दिए।
“राजा यही है वो लोग जिनके बारे में मैने तुझसे बात की थी। इन्हें इस समय प्लाज्मा की बहुत सख्त जरूरत है। इनके पिताजी हॉस्पिटल में जिंदगी और मौत के बीच खड़े हैं, जहां से सिर्फ तुम ही उनकी मदद कर सकते हो।”
सुनकर राजा हाथ जोड़े शांत खड़ा धरती की ओर नजरें गड़ाए रहा।
वरुण अंगद की तरफ देखने लगा।
अंगद राजा के पास गया और उसके कंधे ओर हाथ रख दिया “क्या बात है, राजा? तुम बहुत परेशान दिख रहे हो? बताओ शायद हम भी तुम्हारी कुछ मदद कर सकें।”-अंगद बड़े ही अपनत्व भरे लहजे में बोला।
“कुछ नही साहब जी। समझ नही आता कैसे आपसे कुछ कहें?”
“अरे तुम बेझिझक बोलो।”-अंगद उसे प्रोत्साहित करते हुए बोला।
“साहब, मैं अभी कोरोना से सही हुआ हूँ। घर में कमाने वाला भी कोई और नही है। मैंने जिंदगी भर मेहनत से जो जोड़ा था, वो मेरे इलाज में खर्च हो गया और ऊपर से कुछ कर्जा भी हो गया है। और अभी पता नहीं कितने दिनों तक और घर पर बैठना होगा।”-कहते हुए राजा की आवाज भर्रा गयी।
“अरे तुम चिंता मत करो।”-अंगद प्यार भरे लहजे में उससे बोला-“बताओ अभी कितने पैसों से तुम्हारा कर्ज मिट जाएगा?”
“साहब, जितना आप दे देंगे वो मेरे लिए बहुत होगा। किसी की जान बचाना तो बहुत पुण्य का काम है। लेकिन आज उसके लिए भी मुझे सौदा करना पड़ रहा है। भगवान मुझे कभी माफ नही करेगा।”-कहते हुए राजा की आंखों में आँसू आ गए।
“अरे कोई बात नही है भाई, तुम भी तो हमारी मदद कर रहे हो। तो बदले में हमारा भी तो कुछ फर्ज बनता है। इसमें संकोच कैसा? आओ, मैं तुम्हे पैसे देता हूँ। सुबह तुम हॉस्पिटल आ जाना।”
कहते हुए राजा उन तीनों के साथ गली से बाहर की ओर बढ़ गया।
“मम्मी, कहाँ हो?”-कहते हुए वरुण राजा और अंगद को लेकर अपने फ्लैट में दाखिल हुआ।
“क्या हुआ?”-मिसेज वर्मा कमरे से बाहर आते हुए बोलीं।
अंगद पर उनकी नजर पढ़ते ही उनकी आंखें कठोर हो गईं।
“मम्मी, हमे डोनर मिल गया है। अब पापा जल्द ही ठीक हो जाएंगे। ये राजा है, जो प्लाज्मा देने को तैयार हो गया है।”-कहते हुए वरुण ने राजा को मिसेज वर्मा से मिलवाया।
जवाब में मिसेज वर्मा ने दोनों हाथ जोड़ते हुए आंखों ही आंखों में उसे बहुत धन्यवाद दिया।
“मम्मी, राजा को 50 हजार रुपये की जरूरत है। आप जरा अंदर से रुपये ले आइए।”
सुनकर मिसेज वर्मा को एक झटका-सा लगा।
“वरुण, जरा तुम मेरे साथ आओ।”-कहते हुए मिसेज वर्मा कमरे की तरफ बढ़ गयीं।
वरुण अंगद ओर राजा को बिठाकर मां के पीछे उनके कमरे में चला गया।
“क्या हुआ मम्मी?”
“वरुण, तुझे कितनी बार समझाया है ऐसे लोगों के झांसे में न आया कर। कब बड़ा होगा तू?”-मिसेज वर्मा की तीखी आवाज पूरे फ्लैट में गूंज गयी।
“क्या हुआ मां?”-वरुण हकबकया-सा अपनी माँ को देखते हुए बोला।
“तू अभी उसे 50 हज़ार रुपये दे देगा। सुबह तक वो तुझे कहीं ढूंढे नही मिलेगा।”
“अरे मां चिंता मत करो। ये अंगद के एक जानने वाले के यहाँ काम करता है। उसी ने इस डोनर का इंतजाम किया है।”
“नाम भी मत ले उसका। वो लड़का मुझे बिल्कुल पसन्द नही है। जब देखो, तब गैलरी में सिगरेट फूंकता रहता है। क्या पता ये सब पैसे झटकने के लिए उसी की मिलीभगत हो।”
“मां, प्लीज धीरे बोलिये। वो बाहर ही हैं। सुन लेंगे।”-वरुण गिड़गिड़ाते हुए बोला।
“तो सुन ले। मैं क्या उस छोकरे से डरती हूँ।”
वरुण अपनी माँ को यूँ ही चिल्लाता हुआ छोड़कर बाहर की तरफ चला गया।
हॉल में कोई नही था।
वरुण वहीं सोफे पर सिर पकड़कर बैठ गया।
उसके पिता को बचाने के लिए आशा की जो किरण दिखाई दे रही थी, वो भी अब बुझ चुकी थी।
सुबह वो घर से चुपचाप हॉस्पिटल चला गया। रात को जो कुछ हुआ था उसके बाद अंगद के सामने जाने में भी उसे हिचकिचाहट हो रही थी। मां ने पैसे नहीं दिए थे और किसी और प्लाज्मा डोनर का भी इंतजाम नहीं हो पाया था, जिससे वो बुरी तरह परेशान था।
अस्पताल के रिसेप्शन पर राज को देखकर उसके आश्चर्य की कोई सीमा नही रही।
“राजा, तुम यहाँ।”-वरुण उत्साहित स्वर में बोला।
“हाँ साहब, हमने बोला तो था कि सुबह हम हॉस्पिटल पहुँच जाएंगे। हॉस्पिटल का पता हमें रात को ही अंगद साहब ने दे दिया था।”
“लेकिन पैसे जिसकी तुम्हे जरूरत थी…।”-वरुण कुछ रुककर बोला। उसे अपने गले मे कुछ अटकता-सा महसूस हुआ।
“वो तो हमें रात को ही अंगद साहब ने दे दिए थे साहब।”-राजा विनयशील स्वर में बोला।
“मेरे साथ आओ।”-कहकर वरुण डॉक्टर के केबिन की ओर बढ़ गया। चलते हुए उसके पैर लड़खड़ा गए।
“सम्भल कर।”-राजा उसे संभालते हुए बोला।
शाम को मिसेज वर्मा हॉस्पिटल आईं और वहां राजा को देखकर उन्होंने प्रश्नसूचक नजरों से वरुण को देखा।
“मां, इन्होंने ही आज पिताजी की जान बचाई है।”-वरुण अपनी माँ से बोला-“और आपको पता है, जिस आवारा लड़के की आप बुराई करते नही थकती, उसी की वजह से आज पिताजी हम सबके साथ हैं। डॉक्टर ने कहा है वो बहुत जल्द ठीक हो जाएंगें।”-कहते हुए वरुण बाहर की तरफ बढ़ गया।
मिसेज वर्मा वहीं पर बैठ गयी।
उनके मन का भावावेग उनकी आंखों से ढलक आए आंसुओं की दो बूंदों में बदल चुका था।
और बदल चुका था अंगद के प्रति उनका नजरिया।