इस शहर मे बसंत अचानक आता है और जब आता है तो मैंने देखा है लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से उठता है धूल का एक बवंडर और इस महान पुराने शहर की जीभ किरकिराने लगती है जो है वह सुगबुगाता है जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ आदमी दशाश्वमेध पर जाता है और पाता है […]
मैं ने देखा एक बूँद सहसाउछली सागर के झाग सेरँग गई क्षण भरढलते सूरज की आग से।मुझको दीख गया :सूने विराट् के सम्मुखहर आलोक-छुआ अपनापनहै उन्मोचननश्वरता के दाग से! कठिन शब्द सहसा- अचानक विराट् – (तत्सम, विशेषण, संज्ञा) – बहुत बड़ा, ब्रह्म उन्मोचन – (तत्सम) – मुक्ति, आजादी नश्वरता – (तत्सम) – नाश होने की प्रवृत्ति, नष्ट हो जाने का गुण
यह दीप अकेला स्नेह भरा है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो। यह जन है : गाता गीत जिन्हें फिर और कौन गाएगा? पनडुब्बा : ये मोती सच्चे फिर कौन कृती लाएगा? यह समिधा : ऐसी आग हठीला बिरला सुलगाएगा। यह अद्वितीय : यह मेरा : यह मैं स्वयं विसर्जित – यह दीप, अकेला, स्नेह भरा है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो। यह मधु है : स्वयं काल की मौना का युग-संचय, यह गोरस : जीवन-कामधेनु का अमृत-पूत पय, यह अंकुर : फोड़ धरा को रवि को तकता निर्भय, यह प्रकृत, स्वयंभू, ब्रह्म, अयुत : इसको भी शक्ति को दे दो। यह दीप अकेला स्नेह भरा है गर्व भरा मदमाता, पर इसको भी पंक्ति को दे दो। यह वह विश्वास, नहीं जो अपनी लघुता में भी काँपा, वह पीड़ा, जिसकी गहराई को स्वयं उसी ने नापा; कुत्सा, अपमान, अवज्ञा के […]
सरोज स्मृति एक शोक गीति है, जो कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद लिखी थी। काव्यांश देखा विवाह आमूल नवल, तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल। देखती मुझे तू, हँसी मंद, होठों में बिजली फँसी, स्पंद उर में भर झूली छबि सुंदर, प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर तू खुली एक उच्छ्वास-संग, विश्वास-स्तब्ध बंध अंग-अंग, नत नयनों से आलोक उतर काँपा अधरों पर थर-थर-थर। देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति मेरे वसंत की प्रथम गीति— शब्दार्थ आमूल: पूरी तरह, जड़ से नवल: नया मंद: धीमा स्पंद: व्याख्या काव्यांश शृंगार, रहा जो निराकार रस कविता में उच्छ्वसित-धार गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग […]
गीत गाने दो मुझे तो, वेदना को रोकने को। चोट खाकर राह चलते होश के भी होश छूटे, हाथ जो पाथेय थे, ठग- ठाकुरों ने रात लूटे, कंठ रुकता जा रहा है, आ रहा है काल देखो। भर गया है जहर से संसार जैसे हार खाकर, देखते हैं लोग लोगों को, सही परिचय न पाकर, बुझ गई है लौ पृथा […]
कार्नेलिया का गीत (अरुण यह मधुमय देश हमारा) जयशंकर प्रसाद के नाटक चन्द्रगुप्त से लिया गया है। काव्यांश अरुण यह मधुमय देश हमारा! जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा। सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरुशिखा मनोहर। छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुंकुम सारा! शब्दार्थ अरुण: सुबह का सूर्य, लाल रंग, प्रातः कालीन आकाश में छाई लाली मधुमय: मिठास से भरा हुआ क्षितिज: जहाँ धरती और आकाश मिलते प्रतीत होते हैं सरस: रस से भरा हुआ तामरस: तांबे की तरह लाल, खनिज से भरी पृथ्वी, कमल विभा: प्रकाश, चमक तरुशिखा: पेड़ों की फुनगियाँ मनोहर: मन को हरने वाला, सुंदर, आकर्षक व्याख्या सिकंदर के सेनापति सिल्यूकस (सेल्यूकस) की पुत्री कार्नेलिया को भारतीय संस्कृति से प्यार है। वह सिंधु नदी के किनारे ग्रीक शिविर में बैठी भारतीय संगीत का अभ्यास करते हुए यह गीत गाती है। कवि ने कार्नेलिया द्वारा भारत को अपना देश मानते दिखाया है। कार्नेलिया कहती […]
देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद के नाटक स्कंदगुप्त से लिया गया है। काव्यांश आह! वेदना मिली विदाई! मैंने भ्रम-वश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई। छलछल थे संध्या के श्रमकण, आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण। मेरी यात्रा पर लेती थीं- नीरवता अनंत अँगड़ाई। शब्दार्थ वेदना – अनुभूति, ज्ञान, पीड़ा ( प्रस्तुत कविता के लिए उपयुक्त अर्थ- पीड़ा, कष्ट) भ्रम – संदेह, धोखा, गलतफ़हमी (भ्रम वश – गलतफ़हमी के कारण) जीवन-संचित – जीवन भर इकट्ठा की हुई मधुकरी – भिक्षा, साधुओं द्वारा पके अन्न की भिक्षा, मधुकर अर्थात् भौंरे की मादा (भौंरी), थोड़ा-थोड़ा करके इकट्ठी की गयी वस्तु, कर्नाटक संगीत की एक रागिनी श्रम कण – पसीने की […]
उस रोज सुबह से पानी बरस रहा था। साँझ तक वह पहाड़ी बस्ती एक अपार और पीले धुँधलके में डूब-सी गयी थी। छिपे हुए सुनसान रास्ते, बदनुमा खेत, छोटे-छोटे एकरस मकान – सब उस पीली धुन्ध के साथ मिलकर जैसे एकाकार हो गए थे। औरतें घरों के दरवाजे बन्द किए सूत सुलझा रही थीं। आदमी पास के एक गाँव में गए थे। वहाँ मिशन का क्वार्टर था और एक भट्टी। वाकई, वहाँ बारिश की धीमी, एकरस और मुलायम छपाछप की कोई आवाज नहीं आ रही थी। चार बजने से कुछ ही मिनट पहले एक कॉटेज का दरवाजा खुला। यह कॉटेज मामूली मकानों से भी नीची और छोटी थी। उसके चरमराते हुए लकड़ी के जीने से पाँच-छ: लड़के-लड़कियाँ उतर, बूढ़े किसानों की तरह झुककर, अपने बस्तों से बारिश बचाते, चुपचाप, घुमावदार रास्ते पर चलकर आँखों से ओझल हो गए। जब तक वह दिखलाई देते रहे, उनकी मास्टरनी तनी हुई चुपचाप खड़ी […]
बॉलीवुड में बहुत-सी प्रेम कहानियाँ बनीं। बहुत से किस्से परवान चढ़े। कई जोड़ियाँ बनीं, कई दिल टूटे। इन प्रेम कहानियों का जिक्र जब भी आएगा, देव आनंद और सुरैया की याद जरूर आएगी। देव-सुरैया की लव स्टोरी बॉलीवुड की सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक है, और शायद सबसे बदकिस्मत भी। देव-सुरैया की प्रेमकथा उनकी पहली फिल्म विद्या की शूटिंग के समय ही शुरू हो गई थी। देव उस समय न्यूकमर थे, जबकि सुरैया गायिका और अभिनेत्री दोनों रूपों में एक स्थापित कलाकार। देवआनंद सुरैया के साथ काम करने को लेकर जितने उत्साहित थे, उतने ही आशंकित। बाद में उन दिनों को याद करते हुए देव साहब ने लिखा- “वह बहुत अच्छी थीं, मैं उनके दोस्ताना व्यवहार से प्रभावित था। इतनी बड़ी स्टार होकर भी उनमें घमंड नहीं था।“ सुरैया को भी देव के आकर्षक व्यक्तित्व ने पहली बार में ही प्रभावित किया। एक इंटरव्यू में इस बारे […]
1979 में रिलीज हुई यशराज फिल्म्स की “काला पत्थर” सितारों से सजी उस समय की एक बहुचर्चित फिल्म थी जिसने उस समय तो बॉक्स ऑफिस पर औसत व्यवसाय किया था लेकिन बाद में सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। बॉलीवुड में त्रासदियों पर बनी कुछ अच्छी फिल्मों में इस फिल्म का स्थान सर्वोपरि है। 27 दिसंबर 1975 में घटित धनबाद की “चासनाला खान दुर्घटना” से प्रेरित होकर यह फिल्म बनाई गई थी जिसमें लगभग 375 मजदूर खदान में पानी भर जाने के कारण असमय मृत्यु का शिकार हो गए थे। इस फिल्म की शूटिंग झारखंड (तत्कालीन बिहार राज्य) की गिद्दी खदानों में की गई थी। भारत में 90 फ़ीसदी से अधिक कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है। कुछ खदानें बड़ी कंपनियों को भी दी गई हैं, इन्हें कैप्टिव माइन्स कहा जाता है। इन कैप्टिव खदानों का उत्पादन कंपनियां अपने संयंत्रों में ही ख़र्च करती हैं। भारत दुनिया के उन पांच […]
‘मनुस्मृति’ में कहा गया है कि जहाँ गुरु की निंदा या असत्कथा हो रही हो वहाँ पर भले आदमी को चाहिए कि कान बंद कर ले या कहीं उठकर चला जाए। यह हिंदुओं के या हिंदुस्तानी सभ्यता के कछुआ धरम का आदर्श है। ध्यान रहे कि मनु महाराज ने न सुनने जोग गुरु की कलंक-कथा के सुनने के पाप से बचने के दो ही उपाय बताए हैं। या तो कान ढककर बैठ जाओ या दुम दबाकर चल दो। तीसरा उपाय, जो और देशों के सौ में नब्बे आदमियों को ऐसे अवसर पर पहले सूझेगा, वह मनु ने नहीं बताया कि जूता लेकर, या मुक्का तानकर सामने खड़े हो जाओ और निंदा करने वाले का जबड़ा तोड़ दो या मुँह पिचका दो कि फिर ऐसी हरकत न करे। यह हमारी सभ्यता के भाव के विरुद्ध है। कछुआ ढाल में घुस जाता है, आगे बढ़कर मार नहीं सकता। अश्वघोष महाकवि ने बुद्ध […]
जाड़े की धुंध भरी घुप्प अंधेरी रात से ज्यादा गहरी रात और कोई नहीं होती, आज वैसी ही एक रात थी। ट्रेन रात के ग्यारह बजे की थी। कैलाश अपनी पत्नी और बच्चे को लेकर नौ बजे ही स्टेशन पहुँच गया। काठगोदाम स्टेशन यूँ तो चहल-पहल वाला स्टेशन है, पर जाड़े की रात जब गहरी होती है तो यहाँ एक अजीब सा सन्नाटा ला देती है। बच्चा अभी छोटा था सिर्फ दस महीने का, अतः कैलाश को समय से एक-दो घंटे पहले पहुँचना ही लाज़िमी लगा। वो काफी खुश था, ज़्यादा खुश इस वजह से था कि अनीता को नैनीताल काफी पसंद आया था। अनीता कैलाश की पत्नी थी। उसकी कई गुजारिशों के बाद कैलाश उसे घुमाने लेकर निकला था। क़रीब पाँच साल पहले दोनों की शादी हुई थी। यह हनीमून के बाद दूसरा मौका था जब दोनों कहीं बाहर घूमने निकले थे। पूछताछ केंद्र से कैलाश वह खबर भी […]
रुपाली ‘संझा’ के यात्रा वृतांत ‘दिल की खिड़की में टँगा तुर्की’ का एक अंश तकरीबन तीन हजार साल प्राचीन रोमन कालीन शहर! नहीं सिर्फ शहर नहीं…सुप्रसिद्ध पुरातन पत्तन (बंदरगाह) शहर! इस तरह की भौगोलिक स्थिति का मतलब तब किसी शहर के लिए हुआ करता था धन्ना सेठ होना। ये वो जमाना था जब सारा व्यापार समुद्र मार्ग के द्वारा होता था। ऐसी स्थिति में ये प्राकृतिक बंदरगाह उस शहर के लिए कारू का खजाना साबित हुआ करते थे। जब ये शहर अपने वैभव की पराकाष्ठा पर था तब मेडिटेरेनियन समुद्र के तट पर बसा नगर था! अपने वक्त का व्यापार के लिए लोकप्रियता के चरम पर पहुँचा हुआ नामी-गिरामी शहर। कैस्टर नदी गहन भावातिरेक की मानिंद एफ़ेसस और मेडिटेरेनियन सागर के बीच बहती रहती थी। उन्हें आपस में जोड़ने का यही तो सेतु था, सतत बहता हुआ। शहर और समुद्र एक-दूसरे के प्यार में गहरे खोये हुए थे। वे हमेशा […]
शिवनाथ जम्हाई लेते हुए कुर्सी पर ही सोते सोते एकतरफा लटक जा रहे थे। यद्यपि अपना संतुलन बनाए हुए थे। उनके बगल मे आटे के बोरे जैसे कसे देह लिए रमाशंकर चैतन्य थे। वह पतीली में बाज़ार से से लाये मटन को तलने में मगन थे। वो तलते कम थे, वकोध्यानम भाव से कलछुल ज्यादा हिला रहे थे। सूखी, चर्राई हुयी लकड़ियाँ पूरे आवेग से धधक रही थीं। ट्यूबवेल के पास वाली जीर्ण-शीर्ण मड़ई रसोईघर में तब्दील हो चुकी थी। बंटू,मंटू,पिंटू,सिधारी,खरपत्तू और जोखन लाल सहित कई लोग लहसुन-प्याज छिलने के काम में कूद-कूद कर भिड़े हुए थे। मंडली पूरे मनोयोग से लगी हुयी थी! आज किसी बड़े दावत की तैयारी थी! कल फिर बकरभोज का आयोजन था और आज पांच- छह दिनों से, केवल मंगलवार छोड़कर , दावतों का दौर परवान पर था। रमाशंकर ने शिवनाथ काका के खर्राटे पर खिसिया कर कहा- ‘ए काका! कुर्सीय प मत […]
“चलिए, अपना ख्याल रखिएगा और कोई जरूरत हो तो फोन कीजियेगा” कहते हुए नीमा ने कॉल काटा और मुड़ी तो चौंक गई। पतिदेव सामने खड़े थे, बोले “किस से बात कर रही थी इतनी रात को?” नीमा ने कहा “मेरी फ्रेंड है ना विशाखा, जो कोविड पॉजिटिव है और उसके हसबैंड भी…. उसके हसबैंड को ऑक्सीजन सिलिंडर की जरूरत है। सांस लेने में तकलीफ हो रही है और ऑक्सीजन लेवल 85 है। उसने मेसेज किया था तो वही पूछ रही थी कि अरेंज हुआ या नहीं।” तब तक रवि नीमा के हाथ से फोन लेकर लास्ट डायल्ड नंबर पर दुबारा कॉल कर चुका था और उधर से एक मर्द की आवाज में हेलो सुनकर फोन काट चुका था। नीमा की तरफ देखकर रवि बोला “ये विशाखा औरत है या मर्द?” नीमा ने हैरानी से कहा “औरत ही है और मैंने उसी को फोन किया था पर…” नीमा अपनी बात भी […]
Nicely written. Nagpanchami is one of that festivals which combines the good vibes of conservating forests and their dependents. The…