संसार के जितने भी देश हैं उनमें इजराएल सबसे रहस्यमयी देश प्रतीत होता है, न जाने यह देश सदियों से आज तक इतने भीषण युद्धों और विषमताओं का बड़ा गवाह बना हुआ है कि कहना मुश्किल है और यही एक बड़ा कारण है कि इस देश की ओर बरबस आकर्षित होना और उस ओर खींचा चला आना एक नियति से कम नहीं।
इस देश की संस्कृति, उनकी सामाजिक सोच, राजनीतिक स्थितियों, उनकी परम्पराओं और अंत में उनके पीछे की वजह को जानने की प्रबल इच्छा के आगे मैं लगभग विवश ही हूँ। जिज्ञासा मानव मन का एक स्थायी भाव है, जो अक्सर मनुष्य को एक नई जानकारी प्राप्त करने की दिशा में प्रेरित करती रहती है। मेरा मन भी इस जिज्ञासा के भाव से अछूता नहीं है। इस देश की सांस्कृतिक संरचना और इतिहास जानने की जिज्ञासा से वहाँ तीसरी बार बरबस खींचा चला आया था।
जार्डन से होकर एलन वाय ब्रिज पार कर जैसे ही हमारी बस ने इजराएली सीमा में प्रवेश किया, दो-तीन इस्राएलियों ने हमारे दल का सामान उतारकर ट्रे में रख दिया और टिप्स स्वरूप डॉलर देने को कहा। प्रत्येक यात्री से वे पैसे की मांग कर रहे थे, मैं दंग रह गया। पिछली यात्राओं में ऐसा दृश्य न था। पूरे संसार में अपने अनुशासन, चपलता, ईमानदारी और देशभक्ति के लिए जाने जाने वाले देश में यह देखकर मैं व्यथित हो उठा।
वीजा की औपचारिकता पूर्ण कर बस से “वेस्ट बैंक” यानी फिलिस्तीन सीमा में स्थित ईसा के जन्म स्थान बेथलेहेम नगर रवाना हुए। बस चालक से बीच-बीच में मैं विभिन्न विषयों पर जानकारी लेता रहता था। फिलिस्तीनी सीमा के चेकपॉइंट के पास बड़े-बड़े साइन बोर्ड में लाल अक्षरों में लिखा था – ’’ यह क्षेत्र इजराएलियों के लिए अत्यंत खतरनाक है।’’ ठीक वैसे, जैसे नक्सली लिखते हैं, बड़ा आश्चर्य हुआ।
चेकपॉइंट में इजराएली पुलिस जबकि वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी। पीले नम्बर प्लेट की गाड़ियाँ फिलिस्तीनी तथा इजराएली क्षेत्रों में बेरोकटोक आवाजाही कर सकती है। ये इंगित करती हैं कि ये गाड़ियाँ इजराएलियों की हैं जबकि फिलिस्तीनियों की पहचान के लिए उनके वाहनों में सफेद रंग की नंबर प्लेटें लगी हुई हैं, ये गाड़ियाँ इजराएली सीमा में प्रवेश नहीं कर सकतीं।
पूरे फिलिस्तीनी सीमाओं को ऊँची-ऊँची सीमेंट की दीवारों से घेर दिया गया है। दीवारें इतनी ऊँची कि विभिन्न देशों की जेलों की दीवारें भी शरमा जाए। इन दीवारों और विभिन्न चेक पाईंट की वीडियोग्राफी और छायांकन अपराध है। फिलिस्तीन की जल, थल, नभ सेना नहीं हो सकती और न ही इन पर उनका अधिकार है। कोई फिलीस्तानी एक विशेष अनुज्ञा से ही इजराएली क्षेत्रों में प्रवेश कर सकता है, परन्तु वह रातें नहीं गुजार सकता। उसे हर हाल में फिलिस्तीन वापिस ही होना है।
यहाँ फिलिस्तीन में ईसाई आबादी मात्र 4 प्रतिशत रह गई है। जबकि 04 से 05 वर्ष पूर्व यह आबादी लगभग 8 प्रतिशत थी। भेदभाव व अन्य कारणों से यहाँ के ईसाई विभिन्न देशों की ओर कूच कर गए और यह क्रम अब भी जारी है। फिलिस्तीनी ईसाइयों द्वारा इस क्षेत्र को छोड़ने का मुख्य कारण आर्थिक और शैक्षणिक अवसरों की कमी भी है। फिलिस्तीनी मुस्लिमों को कोई अन्य देश आसानी से स्वीकार नहीं करता, अतः वे यहीं के होकर रह गए।
फिलिस्तीनियों के लिए इजराएल पासपोर्ट जारी नहीं करता। विदेश भ्रमण के लिए इच्छुक फिलीस्तीनियों के लिए जॉर्डन पासपोर्ट जारी करता है। पर यह उन्हें जॉर्डन की नागरिकता का अधिकार नहीं देता। फिलिस्तीन ऑथोरिटी भी पासपोर्ट जारी करती है, जिसकी अवधि 05 वर्ष की होती है, पर बहुत सारे देश फिलिस्तीन को अधिकारिक तौर पर स्वतंत्र राष्ट्र की मान्यता नहीं देते, अतः वीजा प्राप्ति के उपरांत ही इन देशों की यात्राएँ की जा सकती हैं।
पाकिस्तानियों को इजराएल अपने देश तथा फिलिस्तीन प्रवेश की अनुमति नहीं देता, अतः काफी पाकिस्तानी ईसाई अन्य देशों की नागरिकता प्राप्त कर ईसा से जुड़े स्थानों को देखने के लिए इजराएल और फिलिस्तीन की यात्राएँ करते हैं। इसी तरह बांग्लादेश के नागरिकों का भी, पूर्व में पाकिस्तान का हिस्सा होने के कारण, इजराएल में प्रवेश करना, नाकों चने चबाने जैसा ही है।
क्रिसमस के दौरान फिलिस्तीन के बेथलेहेम नगर में पर्यटन अपने शिखर पर होता है। क्रिसमस के एक दिवस पूर्व हजारों फिलिस्तीनी स्काउट बच्चे नीले वस्त्र पहने सुनहरी टोपी लगाये और तरह-तरह के झण्डे हाथों में लिए ड्रम के साथ परेड निकालते हैं, और विश्व भर के लोगों के साथ इसे देखना एक रोमांचकारी अनुभव है। यह परेड शहर के मध्य से शुरू होकर मैंगर स्क्वायर पर समाप्त होती है।
परेड में बैग पाइप बैंड होते हैं। बैग पाइप बजाना एक परम्परा है, जो तब से जारी है, जब ब्रिटिश सेना ने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस की चाक-चौबंद व्यवस्था के साथ आधी सड़कें बंद कर दी जाती हैं। क्रिसमस परेड में शामिल स्काउट के बच्चों के बारे में जानकारी लेना अवश्यम्भावी हो गया था कि इसमें मुस्लिम शामिल होते हैं या नहीं?
इजराएल और फिलिस्तीन में मुस्लिम और ईसाई अरब माने जाते हैं। जहाँ-जहाँ यहूदी बस्ती है, वहाँ इनकी बसावट नहीं होती। मुस्लिम और ईसाई साथ-साथ ही रहते हैं। विभिन्न धर्मावलम्बियों की बस्ती को यहाँ क्वार्टर कहा जाता है, मसलन ज्यूस क्वार्टर, मुस्लिम क्वार्टर, क्रिश्चयन क्वार्टर। अरबों से यानी मुस्लिमों और ईसाइयों से यहूदी दूरी बनाये रखते हैं। इस कौम से वे सशंकित रहते हैं। इनके दिलों में इतनी दूरियाँ हैं कि नजदीकियाँ कभी बन ही नहीं सकती।
इसके पीछे यहाँ की राजनीतिक व सामाजिक जटिलताएँ हैं, जो एक दूसरे से उन्हें जुदा करती है। पुराने जेरूशलम शहर में अधिकतर मुस्लिम तथा ईसाई आबादी है। यहूदियों का वेलिंग वाल भी यहीं है। इन क्षेत्रों में एक्का-दुक्का यहूदी परिवार भी है जो अपनी पृथक पहचान या यूँ कहें, श्रेष्ठता के लिए घर के मुख्य द्वार पर एक विशेष चिन्ह अंकित किए हुए हैं, दीप भी जलते रहते हैं। यहूदी क्वार्टर में जाना हो तो पूरे सुरक्षा चक्र से गुजरना पड़ेगा पर मुस्लिम- ईसाई बस्ती के लिए नहीं।
धार्मिक रूप से इजराएल एक विभाजित समाज है। राजनैतिक मूल्यों और सार्वजनिक जीवन में धर्म की भूमिका को लेकर यहूदियों के और अरबों के बीच एक गहरी खाई है। यहूदियों के बीच भी धार्मिक उपसमूह है और वे चार श्रेणियों में बँटे हुए हैं। आर्थोडॉक्स यहूदी खुद को पहले यहूदी फिर इजराएली के रूप में देखते हैं। अधिकांश यहूदियों के लिए यहूदी पहचान राष्ट्रीय गौरव के साथ जुड़ी हुई है। इजराएल के अधिकांश गैर यहूदी निवासी जातीय रूप से अरब हैं और धार्मिक रूप से मुस्लिम, ईसाई या ड्रूज के रूप में पहचान करते हैं।
विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि के यहूदी व अरबों को केवल उनकी धार्मिक और राजनीतिक विचारों से अलग किया जा सकता है। ये सभी धार्मिक समूह एक दूसरे से अलग-थलग ही हैं। अरबों के धार्मिक समूह आपसी विवाह को लेकर सहज नहीं हैं। पर वे चूंकि जातीय रूप से अरब हैं अस्तु ईसा की जन्मभूमि बेथलेहेम नगर के क्रिसमस रैली व परेड में मुस्लिम और ईसाई दोनों शामिल होते हैं, परन्तु बहुत सारे फिलिस्तीनी व इजराएली ईसाई अपने को अरबी नहीं मानते।
वे अपने को महान वायजांयन्टीन सभ्यता के वंशज मानते हैं, और यह भी मानते हैं कि इन क्षेत्रों में इस्लाम के आगमन के पूर्व ही उनकी जड़ें विद्यमान थीं। जेरूशलम के सेपलचर चर्च यानी ईसा के कब्र पर बने चर्च की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसकी चाबी एक अरबी मुस्लिम परिवार के पास रहती है।
फिलिस्तीनी पुलिस को अत्याधुनिक हथियार रखना मना है जबकि इजराएल में प्रत्येक महिला-पुरूष को 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने पर सेना में सेवा देना अनिवार्य है, यह समस्त यहूदियों और ड्रूज के लिए अनिवार्य शर्त है जबकि मुस्लिमों तथा ईसाइयों के लिए ऐच्छिक। पुरुष को 03 वर्ष तथा महिलाओं हेतु 02 वर्ष की सेवा अवधि अनिवार्य है। जगह-जगह इजराएली कमसिन युवक-युवतियों के हाथों अत्याधुनिक हथियार देखकर शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती है। ये सब चीजें इशारा करती हैं कि देश में स्थितियाँ सामान्य नहीं है।
गलीली क्षेत्र को छोड़ दिया जाये तो फिलिस्तीनी व इजराएल के अधिकांश भू-भाग शुष्क और अनुपजाऊ है, परन्तु इजराएलियों ने नई उन्नत तकनीकों का प्रयोग कर अपने कब्जे वाले इन अनुपजाऊ भूमि को भी उर्वरक बना दिया है और वहीं दूसरी ओर फिलिस्तीनी भाग में भूमि बिना खेती के ज्यों के त्यों पड़ी हुई है। दरअसल मरूस्थली भू-भागों में उन्नत तकनीकों का प्रयोग करना अत्यंत महँगा सौदा है और यह आर्थिक रूप से गरीब देश के बूते के बाहर की चीज है।
इजराएल में कृषि हेतु “केबूत” प्रथा प्रचलित है। केबूत कुछ लोगों का समूह है जो यहूदियों की भूमि पर निःशुल्क कृषि कार्य करते हैं। शासन उन्हें कृषि कार्य हेतु समस्त प्रकार की सुविधा प्रदान करती है। खेती से प्राप्त उपज पर इनका कोई अधिकार नहीं होता। केबूत लोगों को इसके बदले शासन उन्हें हर तरह की मुफ्त सुविधा जैसे आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि प्रदान करती है। एक कृषि गाँव में 08-10 केबूत परिवार से अधिक नहीं होते।
गैर यहूदियों को “केबूत” रखने की मनाही है। यह एक तरह की सामूहिक खेती है। इजराएल की स्थापना के बाद यूरोप, अरब दुनिया से यहूदी शरणार्थियों की बाढ़ ने केबूतों के लिए नई चुनौतियों के साथ अवसरों को भी प्रस्तुत किया। आप्रवासी समस्या ने नए सदस्यों और सस्ते श्रम के माध्यम से केबूत प्रथा को विस्तार करने का मौका दिया। केबूतों को उनके मूल्यों और राष्ट्रीय उद्देश्यों के लिए एक सृजक के रूप में माना गया और इजराएली समाज में उन्हें बहुत सराहना मिली।
जार्डन से सड़क मार्ग से इजराएल प्रवेश के लिए एलन वाय ब्रिज अथवा किंग हुसैन ब्रिज ही एकमात्र जरिया है, यह क्षेत्र वेस्ट बैंक यानी फिलिस्तीनी है किन्तु नियंत्रण इजराएल के हाथों में है। कुल मिलाकर यहाँ इतनी ज्यादा राजनीतिक जटिलताएँ और मतभेद है कि लम्बे समय तक इसका निपटारा होना संभव नहीं लगता। फिलिस्तीनी अपने चारों तरफ अश्त्र-शस्त्रों के बीच पिंजरे में कैद पंछी की तरह चहारदीवारी में जीवन जीने को मजबूर हैं।
बहुत सी नई जानकारी मिली, लेखक की शैली ज़बरदस्त है, ऐसा लगा जैसे आँखों से सामने ही परेड हो रही हो.
हम्म
I only knew other side’s story. it’s good to know some about this side too. Thanks for sharing.