“अरे उठो! नशे में हो क्या?”
मैं झटके से उठा “हरिद्वार आ गया क्या?”
“अरे हाँ, तभी तो उठा रहा हूँ, पर तू उठने को तैयार ही नहीं, कुंभकरण के वंशज”, बस कंडक्टर थोडा गुस्से में था. शायद मुझे थोडा ज्यादा समय ऐसे ही सोते हुए हो गया था. बस पूरी ख़ाली हो चुकी थी.
बस से मैं चुपचाप उतर गया. अब इस बेचारे कंडक्टर से क्या बहस करता, उसे क्या पता कि मेरी मंजिल क्या है, हरिद्वार या हरी के द्वार!
कल तक सब कुछ था मेरे पास; अच्छे स्कूल में पढाई, मैं पढाई में अव्वल, एक गर्लफ्रैंड, प्यार करने वाला परिवार वगैरह बगैरह. पर अब जैसे लगता है कुछ नहीं बचा. सब कुछ ख़त्म!
गर्लफ्रैंड किसी और को प्यार करती है, ये अभी पिछले हफ़्ते ही पता चला.. इश्कबाज़ी में ज्यादा व्यस्त रहा था. पढाई पर इस बार ध्यान दे नहीं पाया था और बुरी तरह फ़ेल हो गया था. परीक्षा का रिजल्ट कल ही मिला था, कैसे करता पापा मम्मी का सामना! घर जाने की हिम्मत ही नहीं हुई, एटीएम से जितना कैश निकल सकता था निकाला और निकल पढ़ा अपनी ज़िन्दगी को ख़त्म करके अपने को हरी के द्वार पर समर्पित करने. भगवान ने बहुत गलत किया था मेरे साथ और मैं चाहता था कि ज़रा उससे मिलूं और समझूँ की ऐसा क्यूँ? मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ?
यही सोचते सोचते मैं गंगा किनारे पहुँच चुका था, बस अब सामने ही तो थी मंजिल.
मंजिल यानि कि बस एक डुबकी और आत्मसमर्पण..
कितना आसान हल होता है न! जब कोई रास्ता न हो तो आत्महत्या ही एक मात्र विकल्प होता है. बस एक क़दम और सभी चिंताओं से मुक्ति.
यही सोचते हुए बस गंगा में कूदने ही वाला था, एक पैर बस आगे बढाया ही था कि एक आवाज़ आई, “जूते मौजे उतारो पहले, गंगा को मैला करना है क्या!”
अब मैं क्या कहता उसे. मुझे लगा शायद यह जगह सही नहीं हैं यहाँ लोग हैं आस पास मुझे टोकने के लिए.
मैं चुपचाप थोडा आगे की तरफ चलने लगा. वो गुस्सैली आवाज़ अभी भी आ रही थी “पता नहीं कहाँ कहाँ से चले आते हैं.”
रास्ते में एक आदमी दिखा खाना पकाते हुए, उसका केवल एक ही हाथ था और एक बैसाखी जैसे पढ़ी थी उससे लगता था कि शायद पैरों से भी लाचार है.
“ये साला क्यूँ जिंदा है! फालतू में परेशानी झेल रहा है” यही सोचते हुए मैं आगे बढ़ने लगा.
थोड़ी दूर चलने पर ही एक जगह सही लगी मुझे अपने “काम” के लिए और मैं जूते उतारने लगा. मुझे लग रहा था कि इस बार पहले जैसी गलती न करूँ, क्या पता कहाँ से कौन टोक दे.
न चाहते हुए भी इस अंतिम समय पर मन में तरह तरह के विचार आ रहे थे. मम्मी का रोता हुआ चेहरा दिख रहा था. पता नहीं क्यूँ, अब जब सब कुछ सही लग रहा था, मुझे मन कर रहा था कि एक बार फिर सोच लूँ.
बार बार वो आदमी दिमाग में घूम रहा था जो हाथ पैर न होते हुए भी जिंदगी जीने की कोशिश कर रहा था. कितनी कठिन होगी उसकी ज़िन्दगी, पता नहीं परिवार में भी कोई है या नहीं. किसी को, उसके जीने या मरने से, फर्क पढता है या नहीं. पर मैं, मैं उसके बारे में क्यूँ सोच रहा हूँ, मेरे पास तो सब कुछ था, पर अब कुछ नहीं.
प्रेमिका तो धोखा दे ही चुकी. परीक्षा में इतने कम नंबर आए हैं इस बार. कितना मारेंगे पापा मुझे. अब तो मम्मी भी नहीं बचाएंगी. अगर दोबारा पढ़ने की सोच भी लूं तो पुराने दोस्त कितना मजाक बनायेंगे, और प्रेमिका! उसको रोज़ रोज़ देखकर खून नहीं जलेगा मेरा. नहीं नहीं, हर रोज़ तिल तिल कर मरने से बेहतर है, एक बार में काम ख़त्म. मेरे लिए यही सही है.
एक बार फिर से दृढ संकल्प के साथ मैंने इस बार अपनी पेंट शर्ट भी उतार दी और चल पढ़ा अपने लक्ष्य की ओर..
बस गंगा में डुबकी लगाने ही वाला था कि माँ का चेहरा फिर से आँखों के सामने आया. मैं अभी तक मानता था कि आत्महत्या कायरों का काम होता है पर आज महसूस कर रहा था कि बहुत ही हिम्मत चाहिए होती है अपनी जान देने के लिए. यह इतना आसान नहीं होता, जितना सोचने में लगता है. शायद जो लोग यह सोचते हैं कि कायर लोग ही आत्महत्या करते हैं, शायद वो कभी मेरे जैसे हालातों से गुज़रे ही नहीं.
आगे बढ़ता हुआ मेरा क़दम हवा में ही रुक गया था, माँ के आसूँ मुझे आगे बढ़ने ही नहीं दे रहे थे, कभी पापा का गुस्से वाला चेहरा सामने आ रहा था, कभी सहपाठियों का मजाक बनाते हुए. प्रेमिका भी बार बार किसी और की बाहों में दिख रही थी और जैसे मेरी खिल्ली बना रही थी.
तभी अचानक माँ का गुस्से में तमतमाया चेहरा दिखा मुझे जो मेरे रिपोर्ट कार्ड को मुझे दिखा रही थी. बस ऐसा लगा कि जो बंधन मुझे अभी तक रोक रहा था वो जैसे टूट गया और मैं हवा में डगमगाता हुआ, छपाक से पानी में..
हालाँकि मौसम गर्म था और पर फिर भी पानी ठंडा ठंडा लग रहा था. बोल तो नहीं पा रहा था पर हाथ जैसे अपने आप इधर उधर कोई सहारा ढूढ़ रहे थे, पर मैं जानता था कि कुछ नहीं मिलेगा आखिर इतना सोच कर इस जगह आया था. पर फिर भी पानी मेरी नाक में, कान में और पता नहीं कहाँ कहाँ जा रहा था और शरीर इतना तड़प रहा था जैसे मैंने मछली को पानी से बाहर निकालने पर तड़पते हुए देखा था. पानी किसी नामालूम दिशा में ले जा रहा था, ज़मीन नीचे खींच रही थी, कुछ देर बाद वापिस ऊपर भेजने के लिए. बस कुछ देर की ही बात रह गयी थी अब भगवन से मुलाकात में..
होश आया तो कोई सीने पर हाथ दबा रहा था और कह रहा था “उठो भैया, उठो!”
वो ही शख्स जो थोड़ी देर पहले खाना बनाते हुए दिखा था, वो ही मेरे ऊपर झुका हुआ था और मुझे उठाने की कोशिश कर रहा था. मुँह से पानी निकल रहा था.
कितनी हिम्मत से मैं कूदा था! बहुत गुस्सा आ रहा था पर क्या कर सकता था.
“भैया बहुत देर से आपको देख रहा था. शक़ भी हो रहा था पर टोका इसलिए नहीं कि लोग झिड़क देते हैं बिना बजह टोकने पर. जब आप इस तरफ आ रहे थे तब से ही आपके पीछे आ रहा था पर मेरी बैसाखी आपके क़दमों का मुक़ाबला नहीं कर पा रही थी, फिर भी भगवान् का शुक्र है कि समय रहते आपको बचा लिया, वर्ना अनर्थ हो जाता. क्या परेशानी है बाबू? क्यों जान देने पर तुले हो? इतनी अनमोल ज़िन्दगी है क्यों ख़त्म कर रहे हो?” वो जोश में बोलता ही जा रहा था.
“मेरी परेशानी बहुत बड़ी है तुम नहीं समझोगे” मैंने जैसे पीछा छुड़ाने के स्वर में कहा.
“सही कह रहे हो बाबू! मैं नहीं समझ पाऊंगा!! कैसे समझूंगा मैं!!! मेरी एक टांग नहीं एक हाथ नहीं, ज़िन्दगी इतनी अच्छी है मेरी कि मैं किसी की परेशानी क्या समझूंगा?”
“नहीं नहीं, मेरा ये मतलब नहीं था. मैं परीक्षा में फ़ेल हो गया हूँ और प्रेमिका ने धोखा दे दिया है. अब क्या करूँगा जी कर.” ये बोलते समय मैं उस अनजान शख्स की आँखों में आंसू तैरते हुए देख रहा था.
उसने मुझे बड़े प्यार से बैठाया और कहा “देखो भैया, मैं मानता हूँ आपकी समस्या गंभीर है पर ऐसा नहीं है कि ज़िन्दगी में करने को कुछ बचा ही नहीं है. अच्छा ये बताओ कि क्या वो प्रेमिका या वो परीक्षा ही सब कुछ थी. आपके परिवार में भी तो लोग होंगे क्या उनके लिए आपको कुछ नहीं करना?”
“पर मेरे पापा मम्मी मेरा परीक्षा परिणाम देख कर मुझे मारेंगे!”
“जान से मार देंगे?”
“नहीं, ऐसा कैसे. डंडे से मार लेंगे, खाना पीना बंद कर देंगे. पर जान से क्यों मारेंगे? कसाई थोड़े ही हैं”
पहली बार मैंने उसके चेहरे पर एक बहुत महीन सी छणिक सी मुस्कराहट देखी.
“एक बात बताओ कि आपके मरने से किसे फायदा होगा?”
“मेरे पापा और मेरी मम्मी का. उनका सर मेरे परिणाम के कारण नहीं झुकेगा.”
“और आपके मरने से नुकसान किसे होगा?”
“नुकसान? नुकसान को किसी का नहीं होगा.”
“अच्छा? आपके पापा मम्मी?”
“मेरे पापा और मम्मी को ही होगा. वो अकेले हो जायेंगे”
“अच्छा एक बात यह बताओ, कि क्या आपके मरने से आपका परिणाम बदल जायेगा?”
“नहीं ये तो असंभव है”
“तो मतलब यह कि आप मर भी गए तो भी आपके पापा मम्मी को शर्म से अपना सर झुकाना पढ़ सकता है. फिर फायदा तो हुआ नहीं. या हुआ?”
मेरे दिमाग में जैसे अनार फूट रहे थे, ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था. मैंने तो एक दिशा में सोचा और उसी में आगे बढ़ता ही चला गया था. उसके प्रश्न ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था और मेरे पास उसके प्रश्न का कोई जवाब नहीं था.
मुझे चुप देखकर उसने कहा “फायदा क्या हुआ भैया?”
मैं रोने को बिलकुल तैयार था फिर भी कहा “कोई फायदा नहीं था भैया”
“फिर आप यह कायरों वाला काम क्यों कर रहे थे?”
“नहीं, ये कायरों वाला काम नहीं है, मैंने आज महसूस किया कि यह तो बड़ी हिम्मत का काम है.”
“हिम्मत का काम! अरे भैया, अगर इसकी आधी भी हिम्मत दिखाई जाए तो ज़िन्दगी की सारी समस्याएँ हल हो जाएँ. केवल एक छणिक मानसिक दिवालियापन होता है खुदकुशी. क्या यह जीवन केवल आपका ही है, क्या आपके माता पिता का आपसे उम्मीद करना गलत है, जिन अध्यापको ने आपको पढाया क्या उनका आपसे उम्मीद करना व्यर्थ है. कितने लोगों की उम्मीदें आप से जुड़ी होती हैं! क्या इस देश में एक ही लड़की है, परीक्षा में फ़ेल हुए तो क्या दोबारा परीक्षा नहीं दे सकते. बाबू अगर सही से सोचोगे तो देखोगे कि कई रास्ते थे जो आपने देखे ही नहीं. आपने केवल अपने बारे में सोचा और किसी के बारे में नहीं. यही सच है” उसका शायद बरसों का गुबार बाहर आ रहा था.
मेरे आंसू जो अब तक रुके हुए थे वो गंगा की धार से ज्यादा तेज़ गति से बह रहे थे. एक सैलाब ही जैसे उमड़ आया था.
उसकी इन दो चार बातों ने ही मेरी सोच बदल दी थी. उसकी बातें सच थी और मेरे पास वास्तव में उसकी बातों का कोई जवाब नहीं था. मैं मन ही मन शुक्रगुज़ार था भगवान् का कि उसने मुझे एक पाप करने से बचा लिया. आत्महत्या का पहला ख्याल आते ही अगर मैंने किसी से अपना दुःख साझा किया होता तो शायद आज इतना कुछ नहीं होता. मुझे जैसे दूसरा जन्म इस देवता ने दिया था. मुझे अभी तक यह ख्याल भी नहीं आया था कि मैं इस अनजान व्यक्ति का अभी नाम भी नहीं जानता था और वो भी मेरा नाम नहीं जानता था.
“भैया, मैं, रोहित, आपको वचन देता हूँ कि पिछली गलतियों को सुधारूँगा. आपने मेरी सोच को एक नयी दिशा दी है. आपका बहुत बहुत शुक्रिया.”
“भैया आपकी मदद करके मुझे ख़ुशी हुई, अभी उम्र ही क्या है, अभी तो जीवन शुरू हुआ है. अभी तो आपको बहुत उंचाईयों को छूना है.”
“भैया अपना नाम तो बताईये कृपया”
“विष्णु”
“बिष्णु भैया, बहुत भूख लगी है, कुछ है खाने को.”
विष्णु भैया खुल के हँसे इस बार “हाँ, जरुर. आओ साथ खाते हैं.”
मैंने अपने कपड़े, जूते सब समेटे और चल पड़ा वापसी के रास्ते पर.
मैं वापिस अपनी दुनिया अपने घर में, इस बार विष्णु भैया के साथ, लौटने का मन बना चूका था और घर पर बात करने के लिए अपना फ़ोन स्विच ऑन कर रहा था.
समाप्त
जनवरी 21, 2019 @ 8:12 अपराह्न
जीवन के आयामों को सुझाती शानदार कहानी। ?
जनवरी 21, 2019 @ 10:17 अपराह्न
बहुत शुक्रिया सुनीत भाई
जनवरी 22, 2019 @ 12:48 पूर्वाह्न
शुक्रिया भाई
जनवरी 21, 2019 @ 11:35 अपराह्न
ख़ुदकुशी करने के लिए जो हिम्मत जुटाते हो उससे आधी हिम्मत दिखाकर ख़ुदकुशी के कारण का निदान कर सकते हो..बहुमूल्य सीख।
संदेशपरक कहानी
जनवरी 22, 2019 @ 8:03 पूर्वाह्न
बहुत शुक्रिया
जनवरी 22, 2019 @ 12:06 पूर्वाह्न
बहुत ही सहज तरीके से कही गई बेहतरीन कहानी।
जनवरी 22, 2019 @ 8:02 पूर्वाह्न
बहुत शुक्रिया आनंद भाई
जनवरी 22, 2019 @ 6:55 पूर्वाह्न
मुझे शोभित गुप्ता जी की कहानी “खुदकुशी” बेहद पसंद आई..
कहानी में इतनी वास्तविकता है कि पढ़ते हुए लगता है कि सब आंखो के सामने घटित हो रहा है
मुझे शोभित जी का प्रयास बेहद सराहनीय लगा
जनवरी 22, 2019 @ 10:01 पूर्वाह्न
बहुत शुक्रिया
जनवरी 31, 2019 @ 9:59 अपराह्न
Good
जनवरी 31, 2019 @ 10:13 अपराह्न
Thanks
जनवरी 22, 2019 @ 10:48 पूर्वाह्न
बेहतरीन बातों का संग्रह है ये इसे कहानी बनाकर अपने प्रेरणा दी है जीवन से भागने वाले जीवों को
वाकई जीवन अनमोल है मेरे हिसाब से कहानी वही जिसमे कोई सलाहियत वाली बात हो इसमे तो जीने का मूलमंत्र है
बहुत खूब शोभित जी
जनवरी 23, 2019 @ 5:56 अपराह्न
बहुत शुक्रिया आशीष भाई
जनवरी 22, 2019 @ 11:07 पूर्वाह्न
जिंदगी बस जिंदगी है बाकि सब झूठ है और इसे जीने वाले ही जिंदादिल होते दिल टूटेगा नही तो और लडकिया कैसे आएंगी सिपैथी देने कितनी ही ऐसे अन्य चीजे भी है जो बताती है को हर एक से एक बेहतर चीजे जीवन में उपलब्ध है
अंत …अंत तो है ही नही हर अंत एक नई शुरुवात है
कहानी बहुत अच्छी और उससे भी अच्छे आप शोभित भैया ????
जनवरी 22, 2019 @ 2:03 अपराह्न
बहुत शुक्रिया विक्की भाई.
जनवरी 22, 2019 @ 1:49 अपराह्न
प्रेरणाप्रद कहानी, इस कहानी को पढकर कोई भी अपने जीवन को खत्म करने के बारे मे नही सोचेगा, परेशानी और कठिनाइया हर किसी के जीवन मे आती है, लेकिन उनका अंत मृत्यु या खुदकुशी नही होता, लाजबाब कहानी ??
जनवरी 22, 2019 @ 11:17 अपराह्न
बहुत शुक्रिया राजेश भाई.
जनवरी 23, 2019 @ 1:02 अपराह्न
मार्मिक कहानी। मुश्किलों के आगे घुटने टेकने से बात नहीं बनती और कोई भी मुश्किल ऐसी नहीं कि उससे जूझा न जा सके।
जनवरी 23, 2019 @ 2:21 अपराह्न
शुक्रिया विकास भाई
जनवरी 23, 2019 @ 9:52 अपराह्न
ये जीवन की वास्तविकता है और एक सराहनीय कदम है
जनवरी 23, 2019 @ 10:44 अपराह्न
शुक्रिया मम्मी जी
जनवरी 24, 2019 @ 1:20 अपराह्न
बहुत बढ़िया.. प्रेरक
जनवरी 24, 2019 @ 2:01 अपराह्न
बहुत शुक्रिया
जनवरी 26, 2019 @ 6:29 अपराह्न
शोभित की कहानी ‘खुदकुशी’ अच्छी कहानी है। मनोविश्लेषण के रास्ते यह आत्महत्या करने वाले की मन:स्थितियों का वास्तविक विश्लेषण करती है। एक जटिल मन:स्थिति को कहानी में लाने का विचार जितना आसान हो सकता है, सच में उसे कहानी में ले आना काफी मुश्किल काम है। एक जटिल प्रक्रिया को जितनी सरल भाषा में शोभित ने कहानी में पिरोया है, वह प्रशंसा करने लायक है। भविष्य में हमें इनसे बहुत उम्मीदें जगती हैं।
सादर
राजा अवस्थी, कटनी
जनवरी 26, 2019 @ 8:10 अपराह्न
बहुत शुक्रिया राजा जी. भविष्य में और बेहतर लिखने की कोशिश रहेगी
जनवरी 26, 2019 @ 10:07 अपराह्न
Amazing Storytelling !!
I could imagine the entire event in my mind.
जनवरी 26, 2019 @ 10:49 अपराह्न
बहुत शुक्रिया कपिल भाई
जनवरी 27, 2019 @ 7:48 अपराह्न
Bahut badhiya
जनवरी 27, 2019 @ 9:21 अपराह्न
बहुत शुक्रिया राम जी
जनवरी 27, 2019 @ 8:28 अपराह्न
बहुत ही सटीक बैठती है आज के जीवन में।
जनवरी 27, 2019 @ 9:22 अपराह्न
बहुत शुक्रिया अंकल जी
जनवरी 31, 2019 @ 12:14 अपराह्न
Excellent story written on life facts
फ़रवरी 1, 2019 @ 10:09 अपराह्न
Thanks